
प्रसून से
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(राजकुमारी श्री रत्नेशकुमारी ‘ललन’, मैनपुरी स्टेट)
डालियों पर झूलते हुए-खिल-2 हँसते हुए—तुम कितने प्यारे लगते हो-अरे ओ प्रसून? वायु तुम्हें झकझोर डालता है पर तुम वैसे ही प्रफुल्लित बने रहते हो।
सूर्य अपने प्रचण्ड ताप से तपाता हुआ भी तुम्हारी मुस्कानों को नहीं मिटा पाता प्रिय! तितलियाँ भ्रमर तुम्हारे मधुकोष को रिक्त करके भी तुम्हारा हास्य नहीं छीन पाते।
निष्ठुर माली जब लोनी लतिका की सुखद गोद से तुम्हें जबरदस्ती छीन लेता है तब भी तुम्हारी मधुर हँसी मलिन नहीं पड़ने पाती, अरे ओ एक रस तपस्वी कोमल कुसुम!
हृदय बिधा कर किसी के हृदय-हार बन कर अथवा चरणों पर चढ़ कर भी तुम पूर्ववत् ही खिलखिला रहे हो। काश! मैं भी तुम्हारी भाँति बन पाती! अरे ओर बड़भागी सुमन!
सौभाग्य के शिखर पर आसीन होकर भी तुम इतराते नहीं और दुःख की गति में गिरकर भी तुम श्रीहीन होकर भी जीवन के अन्तिम क्षणों तक भी-सुगंधहीन नहीं बनते। जब तक तुम्हारी जीवनीशक्ति शेष रहती है तब तक तुम्हारा सुन्दर मुख खिला ही रहता है। सारे संसार का तिरस्कार लांछना सहकर भी तुम अम्लान ही रहते हो ओ निष्कामी पुष्प!
प्रिय! किसी जीवन में भी क्या मैं तुम्हारी इस आदर्श स्थित प्रज्ञता को अपना सकूँगी? धूल में पड़े हुए विश्व से तिरस्कृत चिर पवित्र फूल! मेरी यह हार्दिक श्रद्धाञ्जलि ग्रहण करो। आजीवन मैं तुमको जीवन पथ का एक आदर्श प्रदर्शक समझकर स्मरण रखूँगी।