
संगीत विश्व का प्राण है।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(गताँक से आगे)
मनुष्य को रस प्रिय है। रस की उसे सदा प्यास रहती है, क्योंकि रस पीकर ही जीवन बनता और विकसित होता है। इन रसों में संगीत सबसे प्रधान है। एक ऐसी क्रमबद्ध स्वर लहरी को संगीत कहते हैं जो शरीर के परमाणुओं में मुग्धता और मादकता पूर्ण तरंगों का संचार करें। यह गायन और वाद्य दोनों प्रकार से होता है। जैसी ध्वनि जन्य मादकता अमुक बाजों को बजाने से उत्पन्न होती है वैसे ही गायन कला के साथ गाये हुए गीतों से भी होती है। कंठ में भी वाद्य यन्त्र है। जैसे स, रे, ग, म, प, ध, नि, स्वर बाजे में होते हैं वैसे ही कंठ में भी हैं। बाजे की सहायता से और बिना बाजे के केवल कंठ स्वर से, या दोनों प्रकार से संगीत का रस उत्पन्न होता है। इस रस को कवि, नर्तक, गायक, वादक, विभिन्न रीतियों से उत्पन्न करते और मानव प्राणी की एक शाश्वत पिपासा को शान्त करते हैं।
जंगली और असभ्य मनुष्यों से लेकर सभ्यता की चोटी पर पहुँचे हुए लोगों तक संगीत को एक समान प्रिय समझा जाता है। जिन सघन वनों की पिछड़ी हुई जातियों में इस बीसवीं सदी तक शिक्षा, विज्ञान आदि का प्रकाश नहीं पहुँच पाया है वहाँ भी संगीत मौजूद है और आज से नहीं अतीत काल से मौजूद है। तथ्य यह है कि संगीत अन्तःकरण की एक स्फुरणा है जो स्वयमेव उत्पन्न होती है, उसे बहुत हद तक अपने आप सीख लिया जाता है। प्रकृति ने बहुत सोच समझ कर संगीत उत्पन्न करने और उसमें रस लेने की क्षमता मनुष्य को प्रदान की है। इस क्षमता के द्वारा प्राणी की शारीरिक और मानसिक विकृतियाँ दूर होती हैं और उसकी बाह्य एवं आभ्यन्तरिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है।
वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध किया है कि संगीत एक ऐसा अदृश्य भोजन है जो अपने आश्चर्यजनक तत्वों से सुनने वालों की शारीरिक और मानसिक चेतना से भर देता है। यह तत्व और इनके लाभ ऐसे अद्भुत हैं जिनके चमत्कार देखकर आश्चर्य से दंग रह जाना पड़ता है। हालैंड में संगीत सुना कर गायों से अधिक दूध निकालने की एक नई प्रणाली निकली हैं। गायें दुहने के समय पर बहुत ही मधुर बाजे सरकार द्वारा ब्रॉडकास्ट किये जाते हैं ग्वाले लोग अपने रेडियो सैट दुहने के स्थान पर रख देते हैं। संगीत को गायें बड़ी मुग्ध होकर सुनती हैं इससे उनके स्नायु संस्थान पर ऐसा प्रभाव पड़ता है जिससे पन्द्रह प्रतिशत से लेकर बीस प्रतिशत तक दूध अधिक देती हैं। अन्य अनेक पशु-पक्षियों से अधिक काम लेने और उनकी शक्तियाँ बढ़ाने के लिए नाना प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोग हो रहे हैं उनके आश्चर्यजनक परिणामों को देख-देखकर विचारक लोग यह सोच रहे हैं कि इस अद्भुत शक्ति को मनुष्य की विभिन्न प्रकार की उन्नतियों के लिए किस-किस प्रकार प्रयोग किया जाय। आश्चर्य नहीं कि कुछ ही समय में यह महाशक्ति संसार में बिजली की भाँति महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर ले। आरम्भ में जब बिजली का आविष्कार हुआ था तो उसकी पकड़ लेने और झटका देकर फेंक देने की दो ही शक्तियाँ मालूम हुई थी। पर अब तो उस बिजली के द्वारा नाना प्रकार के अद्भुत कार्य होने लगे हैं। संभव है भविष्य में संगीत भी दुनिया की ऐसी ही शक्ति साबित हो जैसी-बिजली।
सेनाएं जब किसी लोहे के पुल को पार करती हैं तो उन्हें आज्ञा दी जाती है कि लैफ्ट-राइट क्रम के अनुसार कदम मिलाकर न चले, वरन् तड़-बड़-पड़-पड़ की बिखरी हुई ध्वनि करते हुए चलें, क्योंकि कदम मिलाकर चलने से एक ऐसी तालमय ध्वनि उत्पन्न होती है जो अगर उलट पड़े तो पुल को नष्ट कर सकती है। शब्द एक शक्तिमान तत्त्व है। बिजली की तड़पन के शब्द से बड़ी-बड़ी आलीशान कोठियाँ फट जाती हैं, धड़ाके की आवाज़ से कानों के पर्दे फट जाते हैं, पक्के मकान में ज़ोर से बोलने पर सारा मकान झनझनाने लगता है, काँसे की थाली के पास ज़ोर से शब्द किया जाय तो थाली झंकारने लगती है, शंख की ध्वनि से बैक्टीरिया कीड़े मर जाते हैं। जीवित प्राणियों पर भी ध्वनि का ऐसा ही प्रभाव होता है। बहेलिये लोग बीन बजा कर हिरन को ऐसा मस्त कर लेते हैं कि वह भागना भूल जाता है फिर उसे पकड़ कर वे मार डालते हैं। सर्प की बाँबी पर सपेरे लोग बीन बजाते हैं वह संगीत के लोभ को संवरण न करके मुग्ध होता हुआ बाँबी से बाहर निकलता है और पकड़ा जाता है। युद्ध के बाजे कायरों में भी जोश भर देते हैं। खुशी और उत्सवों के अवसर पर बाजे इसलिए बजाये जाते हैं ताकि मनोमुग्धकारी भावनाएं और अधिक बढ़ जाएं खुशी का और अधिक मात्रा में अनुभव किया जा सके।
हमारे तत्वदर्शी ऋषि, महर्षि, संगीत के लाभों से भली प्रकार परिचित थे। उन्होंने सामवेद को गाया और जाना कि गान विद्या भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में निस्सन्देह सरसता उत्पन्न करने वाली है। वेद मन्त्रों को घास काटने की तरह नहीं पढ़ा जाता वरन् एक एक शब्द को सस्वर उच्चारण करने का नियम है। मन्त्रों के अर्थों में जैसी महानता है वैसी ही सहत्ता उनके सस्वर उच्चारण में है। इस उच्चारण से एक ऐसी स्वर लहरी का आविर्भाव होता है जो अनेक दृष्टियों से हमारे लिये लाभदायक है। इस स्वर की उपेक्षा करने से गलत रीति से उच्चारण करने पर अनिष्ट भी हो सकता है। कथा है कि त्वष्टा ऋषि से मंत्रोच्चार में एक स्वर की गलती हुई थी उसका फल बड़ा विपरीत हुआ। त्वष्टा इन्द्र को मारने वाला पुत्र पैदा करना चाहते थे किन्तु स्वर संबंधी उच्चारण की गलती से इन्द्र जिसे मार डाले ऐसा वृत नाम का महाअसुर पैदा हुआ। इन सब बातों से प्रतीत होता है कि स्वर लहरियों की शक्तियाँ असाधारण हैं और उनके रहस्य को जानकर भारतीय ऋषि मंत्र शक्ति से बड़े-बड़े ग्रंथों का संपादन करते थे।
सर्प के काटे हुओं को काँसी की थाली बजा कर अच्छा किया जाता है। कंठ माला, विषबेल सरीखे जहरीले फोड़े भी संगीत की सहायता से अच्छे होते हैं। भूतोन्माद सरीखे मस्तिष्क संबंधी रोगों का संगीत द्वारा इलाज किया जाता है। स्नायविक बीमारियों में डॉक्टर लोग संगीत सुनना बहुत लाभदायक बताते हैं। मैस्मरेजम विद्या के आविष्कारक मैस्पर अपनी विधि के अनुसार जब रोगियों की चिकित्सा करते थे तो वे आरंभ में बड़े मधुर संगीत का वादन कराते थे जिससे पीड़ितों का स्नायु समूह कोमल हो जाय और उन पर प्रयोग करने में सुविधा रहे। ध्वनि युक्त सरस स्वर लहरी के आघात प्रतिघातों से रक्त के श्वेत और भूरे जीवन कणों में एक नवीन चेतना आती है एक नवीन स्फुरणा होती है जिससे वे अपनी गिरी हुई अवस्था से उठने के लिए एक बार पुनः संघर्ष आरंभ करते हैं। इस प्रयत्न में अनेक बार पुनः आश्चर्यजनक सफलता मिलती है। बड़े-बड़े कठिन रोग अच्छे हो जाते हैं एवं गिरे हुए स्वास्थ्य सुधर जाते हैं।
पाठकों को अवश्य सूचनायें
1. सन् 44 के अब सिर्फ दो मास शेष हैं। अब चालू मास से ग्राहक न बनना चाहिये। जिन्हें ग्राहक बनना हो उन्हें जनवरी सन् 45 से पत्रिका चालू कराने के लिये ही चन्दा भेजना चाहिये।
2. सन् 45 से अखण्ड ज्योति का चन्दा 2 रु. वार्षिक होगा। कागज छपाई की महंगाई कई गुनी हो जाने के कारण विवश होकर यह वृद्धि हमें करनी पड़ रही है।
-मैनेजर- अखण्ड-ज्योति
-मैनेजर- अखण्ड-ज्योति