
रमणी या जीवन संगिनी
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(श्री मोहनलाल जी अहलमद, बीकानेर)
किसी नगर में एक ब्राह्मण रहते थे। उनके एक लड़का था। जब लड़का 5 वर्ष का हुआ तो ब्राह्मण और ब्राह्मणी सुरपुर सिधार गये। बालक को अनाथ देखकर एक महात्मा जी को दया आई और वे उसे पालने के लिए अपने साथ ले गये। बालक का पालन पोषण होता रहा और वह 25 वर्ष का हो गया।
एक दिन इस तरुण ब्राह्मण युवक के मन में आया कि तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। इसके लिए उसने महात्मा जी से आज्ञा माँगी। उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक दे दी। युवक चल पड़ा।
रास्ते में उसने देखा कि उसके समान ही एक युवक खूब सजा हुआ पालकी में बैठा जा रहा है और बहुत से आदमी तरह-तरह की सवारियों में बैठे हुए गाजे बाजे के सहित उसके साथ जा रहे हैं। ब्राह्मण ने उन लोगों के पास जाकर पूछा—यह सब क्या है? उन्होंने बताया कि यह बरात जा रही है, सजा हुआ युवक दूल्हा है। इसकी एक सुन्दरी के साथ शादी होगी। फिर यह दूल्हा अपनी वधू के साथ सुखपूर्वक सोया करेगा।
इन सब बातों को सुनकर ब्राह्मण युवक का मन भी सुन्दरी प्राप्त करने के लिए ललचाने लगा। उसके चित्त में नाना प्रकार के विषय विकार उठने लगे। सुन्दरी की बातें सोचने में ही उसका सारा ध्यान लग गया। रात हुई ब्राह्मण एक कुएं के पास लेट गया, नींद आई। स्वप्न में उसने देखा कि उसकी शादी हो गई और सुन्दरी उसके पास आकर लेट गई है। ब्राह्मण उस युवती को अपने अंक में लेने के लिए उसकी तरफ सरकने लगा। सरकते-सरकते वह कुएं में ही गिर पड़ा।
किसी के कुएं में गिरने की आवाज सुनकर आस-पास के लोग दौड़े। रस्सी फंसाकर कुएं में घुसे और उस ब्राह्मण को निकाला। वह बहुत घायल हो गया था। पूछने पर उसने अपना पता ठिकाना बताया और कहा मुझे अमुक स्थान पर मेरे गुरु महात्मा जी के पास पहुँचा दो। दयालु लोगों ने उस घायल ब्राह्मण को बैलगाड़ी में रख कर उन महात्मा के पास पहुँचा दिया।
अपने शिष्य की यह दुर्दशा देखकर महात्मा जी बड़े दुखी हुए। उन्होंने कुएं में गिरने का कारण पूछा। शिष्य ने वह सब बात कह सुनाई कि बरात देखकर उसके मन में शादी की इच्छा हुई, स्वप्न में उसे सुँदरी मिली और उससे लिपटने का प्रयत्न करते हुए कुएं में गिर पड़ा। महात्मा जी ने कहा बेटा! जिस वस्तु की कल्पना मात्र ने तेरी यह दुर्दशा कर दी यदि वह साक्षात रूप से तुझे मिल जाय तो अनुमान लगा ले कि फिर तेरी कितनी बड़ी दुर्दशा होगी।
स्त्री को जो लोग कामिनी, रमणी विलास यंत्र समझ कर प्राप्त करने की इच्छा करते हैं उनके मन में विषय विकारों की दुर्बुद्धि का भयानक धुंआ घुमड़ जाता है जिससे उनकी बड़ी दुर्दशा होती है। स्त्री-जीवन सहचरी, अर्धांगिनी, आत्मविस्तार में सहायता करने वाली दिव्य शक्ति है। जो उसका वास्तविक रूप समझ कर तदनुसार ही व्यवहार करते हैं उनका जीवन सुखी रहता है। स्त्री को काम विकारों का पुतला मात्र समझ कर इसी इच्छा से जो उसका संपर्क करते हैं निस्संदेह उनकी अत्यन्त दुर्दशा होती है। उनके ऐसे घाव लगते हैं जिनकी चोट से उन्हें सदैव कराहते रहना पड़ता है।