
वेदों में गो महिमा
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(श्री वेणीराम शर्मा गौड़)
मानव-जाति के लिए गौ से बढ़कर उपकार करने वाली और कोई वस्तु नहीं है। गौ मानव जाति की माता के समान उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता देने वाली है। यह अनेक प्रकार से प्राणिमात्र की सेवा कर उन्हें सुख पहुँचाती है। इसके उपकार से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। यही कारण है कि हिन्दू जाति ने गाय को देवता और माता के सदृश्य समझ कर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना अपना प्रधान धर्म समझा है। गाय का महत्व प्रतिपादन करने वाले कुछ वेद मन्त्र और शास्त्र वचन नीचे उपस्थित करते हैं।
“देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण
आप्यायध्वमध्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाँ अयक्ष्मा मावस्तेन ईशत माघशँ सो ध्रुवा अस्मिन्गोपतौ स्यात्॥”
(शु. यजु. 1।1)
‘हे गौओं! प्राणियों को सत्कार्यों में प्रवृत्त कराने वाले सवितादेव, आपको हरित शस्य संपन्न विस्तृत क्षेत्र कर्मों का अनुष्ठान होता है। हे गौओं! आप इन्द्र के क्षीर मूलक भाग को बढ़ावें अर्थात् अधिक दूध देने वाली हों। आपकी कोई चोरी न कर सके, व्याघ्रादि हिंसक जीव भी आपको न मार सकें, क्योंकि आप तमोगुणी दुष्टों द्वारा मारे जाने योग्य नहीं हो। आप बहुत सन्तान उत्पन्न करने वाली हैं जिनसे संसार का बहुत कल्याण होता है। आप जहाँ रहती हैं वहाँ किसी भी प्रकार की व्याधि नहीं आ सकती! यहाँ तक कि यक्ष्मा (तपेदिक) आदि राजरोग भी आपके पास नहीं आ सकते, अतएव आप सर्वदा यजमान के घर में सुख पूर्वक निवास करें।
अन्धस्थान्धो वो भक्षीय महस्थ महो वो भक्षीयोर्जस्थोर्ज। वो भक्षीय रायस्पोषस्थ रायस्पोषं वो भक्षीय ॥ शु. यजु. 3। 20
‘हे गौओं! आप अन्न को देने वाली हैं अतः आपकी कृपा से हम अन्न को प्राप्त करें। आप पूजनीय हैं, आपके सेवन से हममें सात्विक उच्च भाव पैदा होते हैं। आप बल देने वाली हैं, हमें भी आप बल दें। आप धन को बढ़ाने वाली हैं अतः हमारे यहाँ भी धन की वृद्धि और शक्ति संचार करो।’
(शु. यजु. 3।22)
हे गौओं! तुम विश्वरूप वाली दुग्ध-घृत रूप ह्यिदान के निमित्त यज्ञ कर्मों में संगति वाली हो। क्षीरादि रस द्वारा गो स्वामित्व में मुझमें सब प्रकार से प्रवेश करो। अर्थात् हमारा गो स्वामित्व अविचलित रक्खो। रात्रि में भी निरन्तर निवास करने वाले हे, अग्नि देवता! हम प्रतिदिन श्रद्धा-युक्त बुद्धि से तुमको नमस्कार करते हुए तुम्हारे प्रति प्राप्त होते हैं।’
इड एह्म दित एहि काम्या एत।
मयि वःकामधरणं भूयात्॥
(शु. यजु. 3। 27)
‘हे पृथ्वी रूप गौ! इस स्थान पर आओ। घृत द्वारा देवताओं को अदिति के सदृश पालन करने वाली अदिति रूप गौ! इस स्थान पर आगमन करो।
गौओं! तुम सब साधनाओं को देने वाली होने के कारण सब की आदरणीय हो। हे गौओं! तुम इस स्थान पर आओ तुम्हारा जो अपेक्षित फल धारकत्व है सो मुझ अनुष्ठान करने वाले में तुम्हारी कृपा से हो, तुम्हारे प्रसाद से मैं अभीष्ट फल का धारण करने वाला हूँ।’
अपस्त्रमिन्दुमहष्भुंरण्युमाग्निमीडे षूर्वचितिं नमोभिः।
स पर्वभिऋतुशः कल्पमानी गाँ मा हँम् सीरदितिं विराजताम्॥ (शु. य. 13। 43)
‘क्षय रहित ऐश्वर्य से युक्त रोष रहित अथवा आराधना के योग्य पूर्व महर्षियों से चयन के योग्य अन्नों से सबके पोषण करने वाले अग्नि द्वारा स्तुति करता हूँ। वह अग्नि पर्व द्वारा प्रत्येक ऋतु में कर्मों का सम्पादन करता हुआ अखण्डित अदीन दुग्धदानादि से विराजमान दस ऐश्वर्य होने से गौ विराट हैं अतएव गौ को मत मारो।’
गो में माता ऋषभः पिता में दिवम् शर्म्म जगती में प्रतिष्ठा॥ (ऋग्वेद)
‘गाय मेरी माता, बैल मेरा पिता, यह दोनों मुझे स्वर्ग और ऐहिक सुख प्रदान करें। गौओं में मेरी प्रतिष्ठा हो।’
यूयं गावो भेद कृशं चिदक्षीरं चि कृणुथा सुप्रतीकम्।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहदो वय उच्यते सभासु॥
(अथर्ववेद)
गौओं दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हृष्ट पुष्ट होता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है। गौओं से घर की शोभा बढ़ती है। गौओं का शब्द बहुत प्यारा लगता है।’
शास्त्रों में भी :-
गोम्यो यज्ञाः प्रवर्त्तन्ते गोभ्यो देवाः समुत्थिताः।
गोभ्यो वेदाः समुद्गीर्णाः सषडंगपदक्रमाः॥
‘गौओं के द्वारा यज्ञ चलते हैं, गौओं से ही देवता हुए हैं। छओं अंगों सहित वेदों की उत्पत्ति गौओं से ही हुई है।’
शृंगमूलं गवा नित्यं ब्रह्मबिष्णु समाश्रितौ।
शृंगाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च॥
‘गौओं के सींग के मूल में ब्रह्मा और विष्णु निवास करते हैं, सींग के अग्रभाग में सब तीर्थ और स्थावर जंगम रहते हैं।
शिरोमध्ये महादेवः सर्वभूतमयः स्थितिः।
गवामंगेषु निष्ठान्ति भुवनानि चतुर्दश॥
‘गौओं के शिर के बीच में सारे संसार के साथ शिवजी निवास करते है। गौओं के अंगों में चौदहों मुवन रहते हैं।
गावः र्स्वगस्य सोपानं गावः स्वर्गेऽपि पूजिताः।
गावः कामदुहो देव्यो नान्यत्किञ्चित्षरं स्मृतम्॥
‘गौएं स्वर्ग की सीढ़ी हैं, स्वर्ग में भी गौओं की पूजा होती है। गौएं अभिलषित फल देने वाली हैं, गौ से बढ़कर उत्तम और कोई वस्तु नहीं है