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Magazine - Year 1952 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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समय का सदुपयोग कीजिए।

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First 15 17 Last
(श्री रामचन्द्र वर्मा)

यदि संसार में कोई ऐसा पदार्थ है जो मनुष्य के हिस्से में बहुत ही थोड़ा आया है और जिसका सबसे अधिक अपव्यय और नाश होता है, तो वह समय ही है। जब हम इस बात का ध्यान करते हैं कि जीवन में हमें कितना कम समय मिला है तो हमें उसके अपव्यय पर बड़ा ही आश्चर्य होता है और बातों में तो हम लोग बहुत कुछ सचेत रहते हैं पर समय को बड़ी बुरी तरह से नष्ट करते हैं। ऐसे लोग बहुत ही कम हैं जो इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनका कितना समय आवश्यक और उपयोगी कामों में लगता है और कितना हँसी-दिल्लगी, सैर-तमाशे कभी अपने समय के सद् और असद् उपयोग का हिसाब लगावें तो लज्जित और दुःखी होने के सिवा आपसे और कुछ भी न बन पड़ेगा।

मनुष्य ज्यों−ही समय की उपयोगिता समझने लगता है त्यों−ही उसमें महत्ता, योग्यता आदि अनेक गुण आने लगते हैं। मनुष्य में चाहे कितने ही गुण क्यों न हो पर जब तक वह समय की कदर करना न सीखे, उपस्थित अवसरों का उपयोग न करे, तब तक उसे कोई लाभ नहीं हो सकता । यदि सच पूछिये तो समय का दुरुपयोग करने वालों को कभी अच्छे अवसर मिल ही नहीं सकते। जिस समय को मनुष्य व्यर्थ गंवाता है उसी समय में प्रयत्न करके वह बहुत कुछ सफलता प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य अपना कर्त्तव्य पालन करना चाहता हो-जो व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करने का इच्छुक हो, उसे सबसे पहले यही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। अपनी योग्यता, शक्ति और साधनों की शिकायत छोड़कर उसे यह समझना चाहिए कि समय ही मेरी ‘सम्पत्ति’ है और उसी से लाभ उठाने के लिए उसे प्रयत्नशील होना चाहिए। कितने दुःख की बात है कि लोगों को व्यर्थ नष्ट करने के लिए तो बहुत सा समय मिल जाता है पर काम में लगाने के लिये उसका एकदम अभाव हो जाता है।

संसार का सबसे अधिक उपकार उन्हीं लोगों के द्वारा हुआ है जिन्होंने कभी अपना एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवाया। ऐसे ही लोग बड़े बड़े कवि, महात्मा, दार्शनिक और आविष्कर्ता हुए हैं। सर्व साधारण जिस समय का कुछ भी ध्यान नहीं रखते उसी समय में उन्होंने बड़े बड़े काम किये हैं- उन्होंने एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने दिया। एक महात्मा का मत है-”हमें उत्तम अवसरों के आसरे न बैठना चाहिये बल्कि साधारण समय को उत्तम अवसर में परिणत करना चाहिए।” और यही सफलता प्राप्त करने का बहुत बड़ा सिद्धान्त है।

समय की व्यवस्था से बहुत काम निकलता है व्यवस्था एक ऐसी चीज है जिसके अभाव में बहुत से गुण व्यर्थ हो जाते हैं और मनुष्य को उलटे दुःखी होने और अपराधी बनना पड़ता है। जिस मनुष्य के सब कार्य व्यवस्थित हों, उसके कामों में अड़चनों की बहुत ही कम सम्भावना होती है, जिस को शान्त और प्रसन्न रखने में व्यवस्था से बहुत बड़ी सहायता मिलती है। सब प्रकार की व्यवस्थाओं की अपेक्षा समय की व्यवस्था बहुत ही आवश्यक और उपयोगी है।

इस अवसर पर कुछ ऐसे सिद्धान्तों का वर्णन कर देना आवश्यक जान पड़ता है, जो कि सर्व साधारण के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। (1) एक समय में सदा एक ही काम करो। सरलतापूर्वक बहुत से काम करने का सीधा उपाय यही है। जो लोग एक ही समय में कई काम करना चाहते हैं उनके सभी काम प्रायः बिगड़ जाते हैं। (2) आवश्यक कामों को तुरन्त कर डालो, उन्हें दूसरे समय के लिए टाल न रखो। जो लोग कामों को टालते जाते हैं उनके बहुत से काम सदा बिना किये ही पड़े रह जाते हैं और जिससे कभी कभी भारी हानि भी जाती है कहा है— ‘काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब।” यदि हम कल का काम आज ही न कर डालें, तो कम से कम आज का काम तो जरूर निपटा डालें। (3) आज के काम को कल पर कभी मत छोड़ो। जो लोग अपना काम रोज करते चलते हैं उन्हें कभी बहुत अधिक काम की शिकायत नहीं करनी पड़ती। यदि हम आज अपना काम न करें तो कल हमें दो दिनों का काम करना पड़ेगा। यदि हम एक ही दिन में दो दिनों का काम न कर सकें तो और भी कठिनता होगी। सारा क्रम बिगड़ जायगा और एक दिन की जरा सी सुस्ती या असावधानी से हमें कई दिनों तक कठिनता सहनी पड़ेगी। (4) जो काम स्वयं तुम्हारे करने का हो उसे दूसरे पर कभी मत छोड़ो। कुछ लोगों का मत है कि जो काम तुम स्वयं कर सकते हो उसे दूसरे पर मत छोड़ो, और कुछ लोगों का सिद्धान्त है कि जो काम तुम दूसरे से ले सकते हो वह स्वयं मत करो। बहुत बड़ा काम करने वालों के लिए अन्तिम सिद्धान्त ही अधिक उपयुक्त हो सकता है, क्यों कि बहुत से छोटे-छोटे काम वे किसी प्रकार स्वयं नहीं कर सकते। बड़े कार्यालयों और दूसरी संस्थाओं के अधिकारी जब तक साधारण काम दूसरों पर न छोड़े तब तक वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। ऐसे लोगों का छोटे से छोटे काम पर पूरी देखभाल रखना ही उस काम को स्वयं करने के तुल्य हो जाता है, (5) बहुत अधिक शीघ्रता कार्य को नष्ट कर देती है। आपको ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो नित्य के साधारण व्यवहारों, कार्यों और बातचीत आदि में कुछ लोगों का स्वभाव भी जल्दी करने का होता है और जल्दी के कारण बार-बार हानि सहकर भी वे अपनी उस प्रकृति से पीछा नहीं छुड़ाते। यह दोष बहुत ही बुरा है एक पंजाबी मसल का अभिप्राय है कि किसी प्रकार का मन्तव्य स्थिर करने के समय अपने सिर से पगड़ी उतार लेनी चाहिए। क्यों? इसी लिए उन पर शाँतिपूर्वक विचार करने के लिए क्षण भर समय मिल जाय। पर इस सिद्धान्त का इतना बड़ा अनुयायी बन जाना भी ठीक नहीं कि सुस्ती और अकर्मण्यता का दोषारोपण होने लगे (6) किसी कार्य को आरम्भ करने के उपरान्त बीच में बहुत ही थोड़ा विश्राम लो जिसमें वह कार्य शीघ्र समाप्त हो जाय। किसी कार्य के मध्य में थोड़ा विश्राम करने की अपेक्षा उसकी समाप्ति पर अधिक विश्राम करना बहुत अच्छा है। संभव है कि बीच में विश्राम करने के समय उसमें कोई झंझट या विघ्न आ उपस्थित हो और तब हमें अपने विश्राम करने पर पछताना पड़े। यदि किसी प्रकार के झंझट या विघ्न की बिल्कुल सम्भावना न हो तो भी विश्राम नहीं करना चाहिए अथवा बहुत ही अल्प करना चाहिए। क्योंकि उसके बाद हमें और भी काम करने होंगे। यदि कछुए से शर्त लगा कर खरगोश आधे रास्ते में ही विश्राम न करने लग जाता तो कछुए के पास उससे बाजी जीतने का और कोई साधन या उपाय नहीं था।

किसी मनुष्य की मर्यादा और पद्वृद्धि में “समय का सदुपयोग“ ही सबसे बड़ा सहायक होता है। कोई ऐसा मनुष्य ढूँढ़ो जो अपने पुरुषार्थ से बहुत ऊँचे पद की मर्यादा तक पहुँचा हो, जिसने अपनी विद्या या बुद्धि से संसार का उपकार किया हो, जिसकी देश हितैषिता से उसके देश को लाभ पहुँचा हो, जिसने परोपकार- बुद्धि से बहुतों का कल्याण किया हो, ऐसे मनुष्य के जीवन-क्रम पर थोड़ा सा विचार करने से ही तुम्हें स्पष्ट जान पड़ेगा कि उसने समय का बहुत ही अच्छा और पूरा पूरा उपयोग किया है। उसने एक क्षण को भी कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया है। व्यापार-क्षेत्र में भी तुम्हें वे ही लोग सबसे अधिक सफलता प्राप्त करते हुए दिखाई देंगे जिन्होंने कभी अपना समय व्यर्थ नहीं खोया है।

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