
मन का भार हलका कीजिये।
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(प्रो. रामचरण महेन्द्र)
क्या आप मन ही मन दुःखी रहते है? क्या अन्दर ही अन्दर घुने जा रहे है? कोई आन्तरिक दुःख, पीड़ा या अन्तर्वेदना आपको व्यथित-पीड़ित कर रही है? कोई दुर्दयनीय विषम मानसिक व्यथा आपको परेशान रखती है? यदि दुःखी, पीड़ा, कसक, वेदना या आन्तरिक हाहाकार से विह्वल रहते हैं, तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि आप पर कोई गंभीर और स्थायी मानसिक कष्ट आने वाला है। इस स्थिति से जितनी शीघ्रता से हो छुटकारा प्राप्त कीजिए।
मानसिक दुःख का कारण गुप्त मन में कटु स्मृतियों या भावी आशंकाओं को सहेजना और विपरीत विचार रखकर निरन्तर उन्हें पोसते जाना है। मानसिक कष्टों से आक्रान्त व्यक्ति अन्दर ही अन्दर घुले जाते है, ऊपर से हँसते रहने पर भी अन्दर से नैराश्य की काली छाया उन पर पड़ती रहती है। जब वे एकान्त में होते हैं, तो विक्षुब्ध होकर रोते है, अश्रुधारा बहाते है। संसार उन्हें अंधकारमय और नैराश्यपूर्ण प्रतीत होता है।
आप मन में कष्ट, पीड़ा लिए फिरते है, तो मानो अपने साथ भयंकर अत्याचार कर रहे है, अपनी महत्वाकांक्षाओं और उल्लास पर पानी फेरकर जीवन उजाड़ रहे है। अपने मन का भार हलका कीजिए।
मन में गुप्त इच्छाओं, दलित भावनाओं को रखना अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक रोगों की सृष्टि करना है। गुप्त मन में कष्ट रखना रुई में अग्नि छिपाये रखने के अनुरूप घातक है।
जैसे आप कूड़ा करकट बाहर नाली में फेंक कर अपने घर को झाड़ते, बुहारते, स्वच्छ करते है, वैसे ही अपने मन के रुके हुए इन दुष्ट विकारों को फेंक दीजिए, बाहर निकाल दीजिए। निम्न उपायों से आप आन्तरिक गन्दगी से सहज ही मुक्ति पाकर गुप्त मन को स्वच्छ कर सकते है।
अपने इष्ट मित्रों की संख्या में वृद्धि कीजिए। आत्म भाव का जितना व्यापक प्रसार होगा। उतना ही मन का भार हलका होगा। इनसे आप खुल-खुल कर बातें कीजिए। अपने मन की व्यथा इन्हें अपनी अनुभूतियाँ सुनाकर हलका कर सकते है।
मनुष्य यह चाहता है कि कोई उसकी अंतर्कथाएँ सुने, उसके साथ सम्वेदना प्रकट करे, उसे सच्ची सान्त्वना प्रदान करे और निरन्तर ऊँचा उड़ने की प्रेरणा प्रदान करे। आपका यह मित्र दुःख भरी कहानियाँ सुनकर मन की व्यथा को हलका करेगा। सच मानिए, आपकी बात सुनकर किसी दूसरे से कह देना मन के भार को हलका करने का एक अमोघ साधन है।
क्या आपके गुप्त मन में मिथ्या, भय, शंकाएँ, रहती है? यदि ऐसा है, तो इनका दूसरों से समाधान कर निकाल दीजिए, अन्यथा इसके फल भयंकर हो सकते है। मनोवैज्ञानिक सलाह पूछने वाले एक पाठक का यह पत्र देखिये और फल की भयंकरता पर विचार कीजिए।
आपके सुन्दर तथा मनोवैज्ञानिक लेख पढ़ कर मन को अत्यन्त शान्ति प्राप्त होती है और एक नया मार्ग दिखाई पड़ता है। परन्तु क्या बताऊँ मेरे मन पर एक बोझा है, जिसे हटाने की लाख कोशिश करने पर भी हलका नहीं हो पाता और वह बोझा है शारीरिक जो कि समय के बहाव के साथ मानसिक रूप धारण कर चुका है। दुर्भाग्यवश अपनी कमअकली के कारण मेरा चेहरा अत्यन्त कुरूप बन गया है। मुंहासों और काले दागों ने मेरे मुख के लावण्य को हटा कर अजीब सा बना दिया है। दिल तो चाहता है कि चमड़ी को उधेड़ दूँ। उपचार भी करता हूँ तो बेफायदा। दूसरों के सामने ऐसा भद्दा और कान्तिहीन मुख को ले जाते हुए लज्जा सी अनुभव होती है। बचपन की स्मृति याद आती है तो मन और भी दुःखित होता है। कभी-कभी नौबत यहाँ तक पहुँचती है कि आत्म-हत्या कर लूँ। मेरा मन अत्यन्त दुःखित और मलीन है किसी काम में मन नहीं लगता। सब व्यर्थ सा जान पड़ता है। मानसिक व्यथा के कारण मन में कभी प्रसन्नता नहीं रहती। जीवन निराशापूर्ण और अंधकार मय लगता है। इस चेहरे की कुरूपता ने मेरे मन और मस्तिष्क को घुन के समान चाट लिया है।
इस पत्र में अभिव्यक्त समस्त मानसिक कष्ट केवल आत्मग्लानि और हीनत्व भावना की ग्रन्थि के कारण है। मुँहासा होना यौवन के आगमन का प्रतीक है। पेट में कब्ज के कारण या रक्त में उष्णता के कारण मुँहासे हो सकते है। प्रायः अनेक संवेदनशील व्यक्ति ऐसी, या और छोटी-छोटी नगण्य बातों को लेकर मानसिक वेदना से परेशान रहते है। अपनी दुख कहें, तो दूसरे उसमें हिस्सा बटावें, कुछ कम करें। दुख बटे। अन्दर ही अन्दर मानसिक कष्ट को पोसते रहने से आत्म-हत्या जैसी घृणित स्थिति तक आ सकती है। अतः गुप चुप कष्ट को दूसरों से कहकर सलाह लीजिए, उसका हल ढूँढ़िये। अनेक व्यक्ति गुप्त घृणित रोगों के शिकार होकर मन ही मन पश्चाताप किया करते है, झूठे वैद्यों या हकीमों के चक्र में पड़कर रुपया नष्ट करते हैं। यह भयंकर भूल है। जब आप अपनी समस्या को दूसरों पर प्रकट करते है कहते है, या लिखते है, तो वह मन से दूर हो जाती है। गुप्त भार हलका हो जाता है। किसी गुपचुप पीड़ा के कारण आत्म-हत्या कर बैठना भयंकर पाप है।
कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका हल न हो, कोई ऐसी परिस्थिति नहीं जिसे सुधारा न जा सके। संसार की जटिल से जटिल मानसिक, सामाजिक समस्या का कोई हल हो सकता है, जिससे जीवन स्थिर रह सकता है और समस्या का निवारण भी हो सकता है।
क्या आप कुरूपता से व्यग्र हैं? यह स्मरण रखिए कि पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे या त्वचा, रूप की बनावट में न होकर उसके पुरुषत्व में है। पुरुष होकर न्याय नारी-सुलभ लज्जा या कमनीयता की आकाँक्षा न कीजिए। अपनी शक्ति की वृद्धि कीजिए। स्त्रियाँ प्रायः कुरूप, बेडौल, काले रंग के या वीर, साहसी, निर्भय शक्तिशाली वरों को पसन्द करती है। पुरुष का भूषण उसका पुरुषत्व, उसका साहस, ओज और वीरता है।
क्या आप किसी दिशा विशेष में पाई जाने वाली अपनी न्यूनता, या कमजोरी से तो परेशान है, किन्तु क्या आपने अपने गुणों और विशेषताओं की ओर भी ध्यान दिया है? यदि अपने गुण नहीं देखे है, तो अपने साथ भारी अन्याय किया है।
आप में कुछ गुण हैं, अवश्य है। बहुत बड़े पैमाने में है। कभी अपने गुणों को खोज निकालने और सतत अभ्यास से उन्हें विकसित करने की है। संभव है, आप कुशल वक्ता, व्यापारी, सेक्रेटरी, या अध्यापक बन सकते है। संगीत, साहित्य, कला इत्यादि में आपको प्रसिद्धि प्राप्त हो सके। संभव है नेतृत्व करने के गुण आप में भरे पड़े हों। दुनिया में हजारों एक से एक बड़े और महत्वपूर्ण कार्य आपके करने की प्रतीक्षा कर रहे है। यदि आप तन मन से उनमें लग जायं तो निश्चय जानिए आपके मन का भार हलका हो सकता है। क्षतिपूर्ति का नियम आपके लिए कल्याणकारी है। विधि के विधान में सर्वत्र न्याय है। परमेश्वर ने एक बात की एक स्थान पर कमी रखी है, तो दूसरी ओर उससे भी शक्तिशाली गुणों का प्रादुर्भाव किया है। वह एक चीज छीनते हैं, तो दस देते भी है। उनके विधान में कोई कमी नहीं है। सर्वत्र प्राचुर्य है। मुक्त हस्त से इस अक्षय भंडार से गुणों का दान निरन्तर होता रहता है।
अपने व्यक्तित्व का विश्लेषण सहृदयता से कीजिए। स्वयं न करें, तो किसी मनः विश्लेषण वाले विशेषज्ञ से कराइये। अपने गुणों का विकास कर अपने क्षेत्र में महान बनिए। निश्चय जानिए, संसार में आपके लिए कहीं न कहीं बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।
मानसिक भार हलका करने के लिये संगीत से उत्तम, अमोघ औषधि दूसरी नहीं है। सुमधुर स्वर में गाना गाने से मन की दुःख पीड़ा को बाहर निकलने के हेतु एक द्वार प्राप्त हो जाता है। संचित मानसिक-भार बह जाता है। मन हलका हो जाता है। आदि काल से वेदना के निवारणार्थ भक्त, योगी तथा साँसारिक व्यक्ति संगीत का उपयोग करते रहे है।
यह न समझिये कि आप अच्छा गा नहीं सकते, तो न गायें। यह कुछ नहीं। चाहे आप अच्छा गाना गाना जानते हों, अथवा नहीं, अवश्य गाइए, अकेले में जाकर गाइए। भगवान् की मूर्ति के समक्ष अपने पाप शंका, व्यथाओं को बहा दीजिए। पश्चातापमयी वाणी में मन को हलका करने की अद्भुत शक्ति है। “मो सम कौन कुटिल खल कामी”-कवि के इस पश्चाताप भरे गान से उसे कितनी मानसिक शान्ति प्राप्त हुई होगी, वह एक संगीत प्रेमी ही जान सकता है।
यदि कोई प्रेमी बन्धु, परिवार का सदस्य हितैषी मित्र स्वर्गवासी हो गया है और आप दुःख का अनुभव कर रहे है, तो कृपया डालिए। फूट-फूट कर रो दीजिए। अश्रुधारा के साथ आपके मन का भार बह जायगा। आप हलके हो जायेंगे। मन में व्यथा को रखना घातक है। इस विष को आँसुओं से धो डालना शान्ति और मानसिक स्वास्थ्य का सूचक है। रोना एक मनोवैज्ञानिक शान्ति मार्ग है। रोकर हम मन का भार हलका करते है।
अपने व्यक्तित्व का अध्ययन कर उन रुचिकर कार्यों की एक सूची बनाइए, जिनमें आप विशेष दिलचस्पी रखते हैं- बागवानी, साहित्य कला, चित्रकारी, खेल-कूद इत्यादि। इनमें इस तल्लीनता से संलग्न हो जाइए कि पुरानी व्यथाओं के बारे में सोचने-विचारने का अवकाश ही न प्राप्त हो। खाली मन शैतान का घर कहा गया है। अतः यदि आप खाली हाथ रहेंगे, तो पीड़ा का आक्रमण हो सकता है। व्यस्त जीवन से मन को कुछ न कुछ करने का आधार मिल जाता है और दुःख का बोझ घट जाता है।
मुस्कराने का स्वभाव बनाकर हर समय मन्द-मन्द मुस्कराने का नुस्खा आजमाइए। हँसने और मुस्कराते रहने से मानसिक तनाव दूर होता है और मन में ताजगी का संचार होता है। डॉक्टर पैस्किड, डॉ. पैवक इत्यादि ने नवीन मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों से यह प्रमाणित किया है कि हँसकर दुःखों का निवारण करना कोरी भावुकता मात्र नहीं प्रत्युत एक निगूढ़ मनोवैज्ञानिक तथ्य है।
डॉ. पैस्किड ने लगभग 150 प्रयोग मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में किए है। वे लिखते है कि हँसने से मनुष्य के थके हुए मज्जातन्तु सचेत एवं पुनः नवस्फूर्ति और ताजगी से युक्त हो जाते है। मन का भार कम हो जाता है। इसके विपरीत क्रोध, आवेश और उत्तेजना के खिंचाव में भरे रहने से माँसपेशियों में अनुचित दबाव आ जाता है। हँसने से रुका हुआ तनाव दूर होकर मनः शान्ति आती है। हँसकर हम कितने ही आंतरिक अवयवों तथा निष्क्रिय माँसपेशियों को व्यायाम देते हैं। चिन्ता, भय, क्रोध, या चिड़चिड़ाना थकान उत्पन्न करते है। इससे जीवनशक्ति का क्षय होता है।
प्रतिहिंसा की अग्नि को दमन करने वाली दवा है, हँसना और मुस्कराना। आप दुकानदार है ग्राहक शिकायत करते है, आप क्लर्क है और मालिक झिड़कियाँ देते या जुरमाना कर देते है, घरवाली अपनी बड़ी बड़ी फरमाइशें पेश करती है, तो इन सभी कुटिल मानसिक अवस्थाओं में मुस्कराने के नुस्खे से काम निकालिए अर्थात् मन को उनके विपरीत संकेतों से प्रभावित मत होने दीजिये।
मृदु मुस्कान द्वारा उत्पन्न स्निग्ध वातावरण से हम अन्दर ही अन्दर एक ऐसी शीतलता का अनुभव करते है जो हमें संसार के प्रकोप से, बाहर के दूषित वातावरण से बचाता है।
हमने एक स्थान पर लिखा है, मैं ऐसे प्रसन्न स्वभाव, जो सदैव प्रत्येक वस्तु को अच्छे दृष्टिकोण से देखने का आदी है, प्राप्त करना अधिक पसन्द करूंगा, बनिस्बत इसके लिए मैं दस हजार पौण्ड वार्षिक आय की जायदाद का स्वामी बन जाऊँ।
त्कोफेनर के अनुसार, प्रसन्नता प्रत्यक्ष और शीघ्रतम लाभ है। वह अन्य सिक्कों की तरह केवल बैंक का ही सिक्का नहीं, वरन् प्रत्यक्ष सिक्का है। धन प्रसन्नता का सबसे छोटा साधन है, और स्वास्थ्य सबसे अधिक।
ऊपर आपने पाश्चात्य चिकित्सकों तथा विद्वानों के विचार देखे। भारत में भी प्रफुल्लता की शक्ति को स्वीकार किया गया है। सुप्रसिद्ध चिकित्सक श्री विट्ठलदास मोदी के अनुसार, मुस्कराना हमारे हमारे स्वास्थ्य के लिए तो आवश्यक है ही, जीवन की कठोरता एवं संघर्ष को भी कम करता है। मोदी जी के विचार देखिये :-
“क्रोध, आशंका, चिन्ता, डर आदि मानसिक रोग है। जिस प्रकार शारीरिक रोगों का हमारे चेहरे पर प्रभाव पड़ता है, उसी तरह हमारे चेहरे पर प्रभाव पड़ता है। इन रोगी की दवा है- प्रसन्न चित्त रहना, मुस्कराना। मुस्कराना वह दवा है, जो इन रोगों का निशान आपके चेहरे से ही नहीं उड़ा देगी, वरन् इन रोगों की जड़ भी आपके दिल से निकाल देगी। यह हो नहीं सकता कि मुस्कराने वाले का दिल काला या भारी रहे।
मुस्कराहट की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया
जब आप मुस्कराते है, तो अपने आन्तरिक मन को एक स्वस्थ स्वसंकेत देते है। दर्पण में अपना खिला हुआ मुख कमल देखकर आपको आन्तरिक आह्लाद होता है। इसका विद्युत प्रभाव आपके सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है। माँस-पेशियाँ स्फूर्ति से उद्वेलित हो उठती हैं और काम में मन लगता है। मुस्कराने वाला व्यक्ति ही अपने अवयवों को पूर्ण स्वस्थ दशा में रख सकता है।
मुस्कराने का दूसरा अर्थ यह है कि आपका मन मधुर कल्पनाओं, शुभ भावनाओं तथा पवित्र विचारों से परिपूर्ण है। इन पवित्र संकल्पों से ऐसी किरणें निकलती है, जो मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम स्थिति में रखती है। जब मुस्कराहट स्थायी रूप से आपके स्वास्थ्य का एक अंग बन जाती है, तो स्वभाव में एक महान परिवर्तन हो जाता है। ऐसे मधुर स्वभाव से हमारा सर्वत्र स्वागत किया जाता है।