
Magazine - Year 1954 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मालिश के अद्भुत लाभ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री लक्ष्मी नारायण टंडन एम. ए. प्रेमी)
प्रायः बड़े नगरों में आपने सायंकाल के समय पार्कों तथा ऐसे स्थानों में, जहाँ वायु-सेवन या मनोरंजनार्थ लोग एकत्रित होते है, सर में तेल मालिश करने वालों को अवश्य देखा होगा। कुछ मालिश करने वाले तो अपने हुनर में इतने पटु होते है कि उनका दावा है कि सिर मालिश करके वह आपको निद्रित कर देंगे। आदमी सो भले ही न जाय, पर खुमारी तो मालिश कराते समय आ ही जाती है। सर मालिश में मनुष्य आनन्ददायक सनसनी का अनुभव करता है। मालिश केवल आनन्द प्रदान करती हो, यही नहीं, इससे कई प्रकार के छोटे मोटे रोग भी स्वयं दूर हो जाते है। अतः मालिश को भी हम प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत लेते है।
मालिश करने की कला का ज्ञान नया नहीं है। इस बात का पुष्ट प्रमाण मिलता है कि यह कला अत्यन्त पुरातन है। भारतवर्ष ही नहीं, चीन, मिश्र, फारस तथा टर्की आदि में भी पुरातन काल से लोग मालिश की उपयोगिता और प्रयोग जानते थे। ग्रीस तथा यूनान देश में आरोग्योपचार के रूप में ही नहीं, विलासिता के रूप में भी इसका बोलबाला था। भारतवर्ष में तो इस कला पर नाइयों की बपौती थी। धनियों के तो हाथ, पैर, सर आदि नित्य दबाने को नौकर ही रखे जाते है। निर्धन भी यदा-कदा इसके द्वारा सुख और आरोग्य का भोग करते है। हाथ, पैर तथा शरीर दबाना भी मालिश के अंतर्गत है। रुकावट दूर करने के लिए शवासन तथा मालिश से उत्तम कोई इलाज है ही नहीं। स्नायु शूल के लिए की मालिश लाभप्रद होती है। कहते हैं कि जूलियस सीजर (प्रसिद्ध रोमन सम्राट) इस रोग से पीड़ित था तथा नित्य मालिश कराता था। योरोपीय चिकित्सा प्रणाली के प्रवर्तक हिपक्रेटस तो अनेक रोगों में मालिश की ही सिफारिश कर गए है। इस प्रकार के संसार के समस्त देशों में पुरातन काल से ही इसका ज्ञान लोगों को था। पर मालिश को वैज्ञानिक रूप 17 वीं शताब्दी से चिकित्सकों ने दिया। शरीर विज्ञान का ज्ञान ज्यों ज्यों बढ़ता गया त्यों-त्यों मालिश की महत्ता भी बढ़ती गई। रक्त-प्रवाह की व्यवस्था के विषय में ज्ञात होने पर तो मालिश को चिकित्सा का रूप मिला। आज तो संसार के समस्त सभ्य और उन्नत देशों में मालिश एक वैज्ञानिक चिकित्सा-प्रणाली के रूप में मान्य है।
मालिश जैसी साधारण प्रणाली से रोग कैसे दूर हो सकते है, इसका समझना अत्यन्त सरल बात है। यह तो हम जानते ही हैं कि शरीर में रक्त का परिभ्रमण होता है। रक्त जितनी तेजी से शरीर में घूमेगा, फेफड़ों को उसकी उतनी जल्दी-जल्दी सफाई करने के लिए अधिक से अधिक ऑक्सीजन वायु से से घसीटनी पड़ेगी। रुधिर तो शुद्ध ऑक्सीजन से ही होता है, यह तो हम जानते ही हैं व्यायाम करने, तेज चलने या दौड़ने अथवा किसी प्रकार का परिश्रम करने से इसी से साँस तेजी से चलने लगता है, हम हाँफने लगते हैं। रक्त जब तेजी से घूमेगा और सारी शरीर में ठीक से और समुचित मात्रा में पहुँचेगा तो स्वाभाविक ही है कि शरीर के दबे हुए विकार उमड़ेंगे और शरीर के अंदर की गन्दगी और विकार अपने स्थान से हटने को बाध्य होंगे। यह मल, पेशाब, पसीना तथा श्वाँस आदि के रूप में शरीर से बाहर निकलेगा। ये विभिन्न स्थानों के विकार नियमित रूप से जब निकलने लगेंगे क्योंकि समान रूप से रक्त का संचालन नित्य अभ्यास से स्थायी बन जाता है- तो स्थायी लाभ तथा आरोग्य स्वाभाविक ही है। और यही लाभ अस्थायी या सामयिक नहीं होगा। मालिश करने से रक्त का संचालन ठीक से होता है। इस प्रकार हमने देखा कि वास्तविक लाभ मालिश से नहीं वरन् मालिश द्वारा रक्त-संचालन की क्रिया के सुधरने से होता है। और रक्त-संचालन क्रिया सब से अधिक मालिश से ही ठीक होती है। अब जब शरीर से विकार दूर होगा तो स्नायु तथा शरीर के अंग शुद्ध और पुष्ट होंगे, शरीर में नव जीवन तथा स्फूर्ति आयेगी, शरीर के आत्म-रक्षा मूलक यंत्र स्वतः ही संजीवित हो उठेंगे। पर इन सब के लिए नियमित रूप से वैज्ञानिक आधार पर नित्य-प्रति उचित मात्रा में मालिश की आवश्यकता है। और जब आत्मा-रक्षक-यंत्र सजग और सबल हो जायेंगे रोगों के प्रतिरोध करने के शक्ति भी बढ़ जायगी। अतः बाहरी रोगों के आक्रमणों का भय और कुप्रभाव जाता रहेगा।
संभवतः आपने सुना होगा कि पहलवान लोग अपने शागिर्दों से मालिश स्वयं भी कराते हैं, उन्हें भी मालिश कराने पर जोर देते हैं। यह कहावत ठीक ही है कि मालिश कराने वाला कुश्तीबाज से अधिक स्वस्थ होता है। मालिश कराने से केवल शरीर ही पुष्ट नहीं होता, रक्त ही शुद्ध नहीं होता, शरीर के विकार तथा रोग ही नहीं निकलते, हमारे आत्म-रक्षक-यंत्र ही सशक्त नहीं होते, वरन् शरीर की खाल शीशे के समान निर्मल, चिकनी और चमकीली हो जाती है, बुढ़ापा आने नहीं पाता, आयु बढ़ती है, आया हुआ बुढ़ापा वापस लौटने को बाध्य होता है तथा जवानी अधिक दिनों तक रहती है।
मालिश से फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है, उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, यह तो बताना ही नहीं रहा। मालिश से गुर्दों तथा आँतों की भी शक्ति और क्रियाशीलता बढ़ती है। पेट की मालिश करने से आंतें और गुर्दे अधिक क्रियाशील होते है। अतः पखाने तथा पेशाब के रूप में मल-विसर्जन की क्रिया उत्तम रीति से होने लगती है और जहाँ कोष्ठ की सफाई हुई, कब्ज की शिकायत दूर हुई, किडनियाँ सदा पेशाब के साथ शरीर में संचित विष को निकलने में समर्थ हुई कि शरीर से रोग भागा। सब रोगों की जड़ तो पेट की खराबी कब्ज है न? और जब कब्ज ही नहीं तो फिर रोग की जड़ ही कट गई। और जो पहले का संचित विष है, वह अधिक पेशाब होने से (क्योंकि किडनियाँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं) दूर होने लगता है। यूरिक एसिड जहाँ पेशाबों द्वारा अधिक निकला कि अनेक रोग दूर हुए। अतः पेट की मालिश कराना कितना अधिक लाभप्रद है, इसे बताना आवश्यक नहीं। कब्ज तथा बदहजमी के रोगियों, के पेट की, अन्य बीमारियों के रोगियों तथा पेशाब सम्बन्धी बीमारी के रोगियों के लिए तो मालिश रामबाण है। ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय’ के अनुसार मालिश में न बहुत टीमटाम की आवश्यकता है और न खर्च की। पैसे दो पैसे का तेल और मालिश कराने तथा करने वाला दो प्राणी और बस इस प्राकृतिक चिकित्सा से लाभ लीजिए। दो मित्र यदि आपस में एक दूसरे के तेल मलने का भार ले लें तो एक पैसे का भी खर्च नहीं रहा, फिर तेल मलने में व्यायाम का फल मुफ्त में मिल जायगा और मालिश के लाभ तो हैं ही। आपस में हँसते बोलते न काम की गुरुता का मान होगा और न अधिक समय ही लगेगा। यदि यह भी संभव न हो तो भगवान ने अपने हाथ पैर दिए है। स्वयं ही अपने शरीर में मालिश करें। एक पंथ दो काज। व्यायाम भी और मालिश दोनों के लाभ।
मालिश कितने प्रकार की होती है, किससे मालिश नहीं कराना चाहिये, मालिश में किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, मालिश किस वस्तु से होनी चाहिए, तथा किन रोगों में मालिश अधिक लाभप्रद है, यह दूसरे लेख में लिखूँगा। किन्तु यहाँ केवल यह बताता हूँ कि साधारणतया कड़ुवे तेल से मालिश करना चाहिए। क्या यह अच्छा हो यदि कड़ुवा तेल कुछ समय के लिए धूप में रख दिया इसमें सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्वतः विटामिन डी पैदा हो जाता है। धूप में खड़े होकर शरीर में तेल मलने से भी स्वतः विटामिन डी शरीर को मिलता है। अतः गरीबों को विटामिन डी बिना फल आदि खाये कितनी सुविधा और बिना पैसे के मिल जाता है। जाड़े में तो धूप में तेल मलना यों भी अच्छा लगता है। और गरमी में आपसे चिलचिलाती धूप में तेल मलने की सलाह कोई नहीं देगा। प्रातः के समय काम यह आप कर सकते है।
पीठ की मालिश अवश्य ही अपने हाथ से संभव नहीं है। अतः या तो किसी से खुशामद करके यह काम करालें और या फिर पीठ को भगवान के आसरे छोड़ दें। रुपए में सोलह आने पर नहीं तो पन्द्रह आने भर ही लाभ सही। जो अधिक कमजोर या रोगी है, वह बहुत हल्के हल्के ही मालिश करें। मालिश की तारीफ यही है कि शरीर में तेल सोख जाय। शरीर या जोड़ों में दर्द होने पर तो मालिश आप सब ने कराई ही होगी। पैदल वद्रिकाश्रम यात्रा करने वालों का कहना है कि नित्य 10-15 मील चलकर सायंकाल को जब थक कर चट्टी में पहुँचते थे तो गरम पानी करके उससे विशेष रूप से खूब पैर सूतते थे तथा और शरीर की तब थकावट बिलकुल दूर हो जाती थी। यह है मालिश का तुरंत प्रभाव।
शरीर से मैल निकालने वाले यंत्र विशेष रूप से मालिश से प्रभावित हो जाते हैं, यह बताया ही जा चुका है। रक्त से नित्य प्रति अधिक मात्रा में विष निकलने में किडनियाँ समर्थ होती हैं, आंतें पखाना फेंकने में पूर्ण समर्थ होती हैं यह भी बताया जा चुका है। श्वास-प्रश्वास जब गहरा होगा तो फेफड़े अधिक ऑक्सीजन वायु से ग्रहण करेंगे ही तथा कार्बन डाई ऑक्साइड को अधिक मात्रा में फेकेंगे ही। साथ ही शरीर में रोम-कूप भी खुलेंगे। पसीने के रूप में शरीर का विष खूब निकलने लगता है इससे उन लोगों को जिन्हें सर्दी अधिक सताती है या जिन्हें सर्दी जल्दी लग जाने का रोग होता है (मैं स्वयं सैनसिबिल टू कोल्ड हूँ, और मैंने मालिश से लाभ उठाया है) उनका कष्ट जाता रहता है क्योंकि न केवल रोम-कूपों में विष निकलने की क्षमता बढ़ जाती है वरन् मालिश से शरीर के चमड़े का स्वास्थ्य भी बढ़ जाता है। लाल तथा श्वेत कण दोनों ही रक्त में अधिक बनेंगे। और हम जानते ही है कि रक्त के वह लाल और श्वेत कण जहाँ बलवान हुए तो इनमें बाहरी रोगों के कीटाणुओं से लड़ने में सफलता मिलेगी। अतः हम पर रोग आक्रमण न कर पायेंगे। इसलिए हमें नियमित रूप से नित्य प्रति मालिश करना चाहिए। कमजोर नाड़ियाँ, बलवान हो जाती है। लीवर के काम करने की क्षमता बढ़ जाती है। और लीवर ठीक होने से शरीर का कार्य और भी अच्छे रूप से होने लगता है।