• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गायत्री की जयन्ती
    • VigyapanSuchana
    • माता का प्यार
    • माता का प्यार (Kavita)
    • नरमेध की आवश्यकता
    • प्रार्थना आवश्यक है।
    • बापू और भगवन्नाम
    • अपनी अन्तरात्मा को जागृत कीजिए।
    • तेरा कौन है?
    • मन का भार हलका कीजिये।
    • आत्म शान्ति का मूल केन्द्र
    • मन्त्र शक्ति का रहस्य
    • तुलसी सब रोगों की दवा
    • यज्ञ द्वारा अनेक प्रयोजनों की सिद्धि
    • मालिश के अद्भुत लाभ
    • युग परिवर्तनकारी शिक्षा का स्थायी आयोजन
    • ऐक्य-विजय
    • ऐक्य-विजय (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गायत्री की जयन्ती
    • VigyapanSuchana
    • माता का प्यार
    • माता का प्यार (Kavita)
    • नरमेध की आवश्यकता
    • प्रार्थना आवश्यक है।
    • बापू और भगवन्नाम
    • अपनी अन्तरात्मा को जागृत कीजिए।
    • तेरा कौन है?
    • मन का भार हलका कीजिये।
    • आत्म शान्ति का मूल केन्द्र
    • मन्त्र शक्ति का रहस्य
    • तुलसी सब रोगों की दवा
    • यज्ञ द्वारा अनेक प्रयोजनों की सिद्धि
    • मालिश के अद्भुत लाभ
    • युग परिवर्तनकारी शिक्षा का स्थायी आयोजन
    • ऐक्य-विजय
    • ऐक्य-विजय (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1954 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


बापू और भगवन्नाम

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
(श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार)

पुरानी बात है। बम्बई में श्री बालूराम जी ‘रामनाम के आढ़तिया’ आये हुए थे वे लोगों को नाम-जप करने का नियम दिलवाते और अपनी बही में उनकी सही करवा लेते थे। लाखों सही करवाई होंगी उन्होंने। बहियों के ढेर थे उनके पास। उनकी बही में सभी सम्प्रदायों और मतों के हस्ताक्षर मिलेंगे। यहाँ तक कि मुसलमान, ईसाई, पारसी, आदि से भी वे उनके अपने मन और विश्वास के अनुसार प्रतिदिन प्रभु प्रार्थना करने की प्रतिज्ञा करवाया करते थे। यही उनकी आदत थी। उन दिनों पूज्यपाद महामना मालवीय जी महाराज और पूज्य महात्मा जी- दोनों ही बम्बई पधारे हुए थे। आढ़तिया जी ने सेठ जमना लाल जी से तो सही करवा ही ली थी, उन्होंने कहा महात्मा जी और श्री मालवीय जी के पास भी मुझे ले चलो’। श्री जपना लाल जी ने मुझको बुलवाया और हम तीनों लेबरनम रोड़ पर महात्मा जी के पास गए। सेठजी ने आढ़तिया जी का परिचय कराया। बापू बहुत ही प्रसन्न हुए और हंस-हंसकर आढ़तिया जी की बहीं देखने और उनकी तारीफ करने लगे। आढ़तिया जी ने बही खोलकर सामने रखदी और बही करने का अनुरोध किया। इस पर महात्मा जी ने मुस्कराकर कहा- ‘जब में अफ्रीका में था, तब तो रामनाम की माला बहुत जपा करता था, परन्तु अब तो दिन-रात जो कुछ करता हूँ सब राम नाम के लिए ही करता हूँ। इसलिए मैं खास समय और संख्या के लिए हस्ताक्षर क्यों करूं?’ आढ़तिया जी को बापू की बात सुनकर सन्तोष हुआ। फिर हम लोग राजा बहादुर श्री गोविन्दलाल जी पित्ती के बंगले पर जहाँ पूज्य मालवीयजी ठहरे हुए थे, गये। मालवीय जी सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आढ़तिया जी की बहीं में लिख दिया- मैंने जब से होश संभाली भगवान का नित्यप्रति स्मरण करता हूँ और जब तक जीऊँगा, करता रहूँगा।’

‘कल्याण’ का ‘भगवन्नामाँक निकलने ही वाला था। सेठ जमनालाल जी को साथ लेकर मैं बापू के पास गया, रामनाम पर कुछ लिखवाने के लिए। बापू ने हंसकर कहा- ‘जमनालाल जी को क्यों साथ लाए। क्यों मैं इनकी सिफारिश मानकर लिख दूँगा। तुम अकेले ही क्यों नहीं आये? सेठ जी मुस्कराये। मैंने कहा- ‘बापू जी! बात तो सच है, मैं इनको इसीलिए साथ लाया कि आप लिख ही दें। बापू हंसकर बोले, ‘अच्छा, इस बार माफ करता हूँ, आइन्दा ऐसा अविश्वास मत करना। फिर कलम उठायी और तुरन्त नीचे लिखा सन्देश दिया-

‘नाम की महिमा के बारे में तुलसीदास ने कुछ कहने को बाकी नहीं रखी है। द्वादश मन्त्र अष्टाक्षर सब इस मोहजाल में फंसे हुए मनुष्य के लिए शान्तिप्रद हैं इसमें कुछ भी शंका नहीं है। जिससे जिसको शान्ति मिले उस मन्त्र पर वह निर्भर रहे। परन्तु जिनको शान्ति का अनुभव ही नहीं है और जो शान्ति की खोज में हैं उसको तो अवश्य रामनाम पारसमणि बना सकता है। ईश्वर के सहस्र नाम कहे है उसका अर्थ यह है कि उसके नाम अनन्त है। गुण अनन्त है। इसी कारण ईश्वर नामातीत और गुणातीत भी है। परन्तु देहधारी के लिए भी राम नाम रूपी एकाक्षर मन्त्र का सहारा ले सकता है। वस्तुतः राम उच्चारण में एकाक्षर ही है और ॐकार और राम में कोई फरक नहीं है। परन्तु नाम-महिमा बुद्धिवाद से सिद्ध नहीं हो सकती है। श्रद्धा से अनुभव साध्य है।’

सन्देश लिखकर मुस्कराते हुए बापू बोले- ‘तुम मुझसे ही सन्देश लेने आए हो जगत को उपदेश देने के लिए या खुद भी कुछ करते हो? रोज नाम−जप करो तो तुम्हें सन्देश मिलेगा, नहीं तो मैं नहीं दूँगा। मैंने कहा- ‘बापू जी, मैं कुछ जप तो रोज करता ही हूँ, अब कुछ और बढ़ा दूँगा।’ बापू ने यह कहकर कि- ‘भाई, बिना कीमत ऐसी कीमती चीज थोड़े ही दी जाती है’- मुझे सन्देश दे दिया। सेठजी को कुछ बात करनी था। वे ठहर गए। मैंने स्पर्श किया और आज्ञा प्राप्त करके मैं चला आया।

मैं बम्बई से राजपूताना जा रहा था। अहमदाबाद से बापू के दर्शनार्थ रुक गया। वेटिंग रूम में सामान रखकर साबरमती आश्रम पहुँचा। दोपहर का समय था। बापू उठे कुछ लिखे रहे थे। मैंने जाकर चरणों में प्रणाम किया बापू ने सिर पर हाथ रखकर पास बैठा लिया। मेरे हाथ में ‘कल्याण’ का अंक था। वे उसे लेकर देखने लगे। ‘कल्याण के द्वारा प्रति वर्ष कुछ समय के लिए षोडराक्षर मन्त्र के जाप के लिए ग्राहकों से अनुरोध किया जाता है और जप का समय पूरा हो जाने पर जप किये जाने वाले स्थानों का नाम तथा जप की संख्या ‘कल्याण’ में छापी जाती है। उस अंक में वह संख्या छपी थी। संख्या मुझे याद तो रही है, परन्तु दस करोड़ से कुछ ज्यादा ही थी। बापू ने उसी को पढ़ा और सब बात सुनीं। सुनकर बहुत ही सन्तुष्ट हुए, कहा- ‘तुम बहुत अच्छा करा रहे हो। इतने जप करने वालो में कुछ भी यदि हृदय से जप करने वाले निकलेंगे तो उनका तथा देश का बड़ा कल्याण होगा।’

First 6 8 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • गायत्री की जयन्ती
  • VigyapanSuchana
  • माता का प्यार
  • माता का प्यार (Kavita)
  • नरमेध की आवश्यकता
  • प्रार्थना आवश्यक है।
  • बापू और भगवन्नाम
  • अपनी अन्तरात्मा को जागृत कीजिए।
  • तेरा कौन है?
  • मन का भार हलका कीजिये।
  • आत्म शान्ति का मूल केन्द्र
  • मन्त्र शक्ति का रहस्य
  • तुलसी सब रोगों की दवा
  • यज्ञ द्वारा अनेक प्रयोजनों की सिद्धि
  • मालिश के अद्भुत लाभ
  • युग परिवर्तनकारी शिक्षा का स्थायी आयोजन
  • ऐक्य-विजय
  • ऐक्य-विजय (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj