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Magazine - Year 1954 - Version 2

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गायत्री उपासना के सामूहिक आयोजन

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गायत्री हमारी आध्यात्मिक सम्पत्ति है। ईश्वर प्रदत्त इस अलम्ब वरदान को ऋषियों ने दीर्घकालीन तपश्चर्याओं के द्वारा प्राप्त करके हमारे लिए उपलब्ध किया है। और वे अपनी इस महत्वपूर्ण शोध को, खाती को हमारे लिए इसलिए छोड़ गये हैं कि इसका शुभोचित उपयोग करके अपने आत्मिक और साँसारिक जीवन को सुव्यवस्थित एवं सुख शान्तिमय बना सकें। जिन पर ईश्वर का अनुग्रह होता है वे इस पारसमणि को पहचानते और अपनाने का प्रयत्न भी करते हैं और समुचित लाभ भी उठाते हैं।

गायत्री के सम्बन्ध में एक बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए कि यह सामूहिक शक्ति है। कोई व्यक्ति केवल अपने लिए ही इसे सीमित करे तो यह गायत्री की मूल भावना के विपरीत कार्य होगा। ‘धियो योनः’ पद में जो नः शब्द है वह ‘बहुवचन; सामुदायिक अर्थ का बोधक है। गायत्री जपने वाला ‘केवल अपने लिए’ नहीं वरन् “हम सबके कल्याण के लिए” यह उपासना करता है। समाज का, संसार का, देश और जाति के कल्याण की बात को भुलाकर केवल अपने फायदे के लिए ही जो कार्य किए जाते हैं वे “स्वार्थ” कहलाते हैं। गायत्री मन्त्र निश्चय ही स्वार्थ नहीं-वह तो परमार्थ है-सबके कल्याण के लिए है। गायत्री साधना के साथ यज्ञ का, दान का, ब्राह्मण भोजन का सम्बन्ध इसलिए जोड़ा गया है कि केवल अकेला एक व्यक्ति चुपचाप जप करके एक कोने में न बैठा रहे वरन् संसार की वायु शुद्धि एवं शुभ वातावरण के निमित्त हवन भी करे, दान देकर समाज की कुछ भलाई भी करे। सच्चे लोक सेवकों परमार्थ प्रसारक ब्राह्मणों को भोजन आदि से तृप्त करके उनकी सामर्थ्य भी बढ़ावें। यह सब बातें परमार्थ रूप हैं-सामूहिक लाभ के लिए हैं। गायत्री की मूल भावना जो “नः” शब्द में स्पष्ट है। हमें सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए बलात् प्रेरित करती है। जिसमें यह लोकहित की भावनाएँ उठें, समझना चाहिए कि यही व्यक्ति गायत्री माता का पयपान करने की स्थिति में पहुँचने वाला है।

सच्चे गायत्री उपासक को सच्चा गायत्री प्रचारक भी बनना पड़ता है। जिस वस्तु को हम अपने लिए कल्याणकारक समझते हैं उससे दूसरों को भी लाभ उठाने के लिए क्यों न प्रेरणा दें? परमार्थ भावना का उद्देश्य ही लोक सेवा और जन कल्याण में प्रवृत्त होना है। गायत्री की विशेषता ही सामूहिक जनकल्याण की है। नैष्ठिक उपासकों में वह स्वयमेव पैदा होती है। सच्चे अध्यात्म-पथावलम्बियों में यह भावना रोके नहीं रुकती। हमारे स्वयं के पैर को कोई जबरदस्ती इस मार्ग पर बढ़ाये लिए जा रहा है। हम देखते हैं कि जो और लोग भी कुछ गहरे उतरते जाते हैं, उन्हें भी बलात् कोई शक्ति इसी मार्ग पर लगा देती है। वे अपनी कठोर व्यक्तिगत साधना की अपेक्षा-सामूहिक गायत्री विस्तार के आयोजनों का महत्व किसी भी प्रकार-रत्ती भर भी कम नहीं समझते। वरन् अधिक उत्साह पूर्वक इस दिशा में अवसर होते हैं।

इन दिनों ऐसे अनेक उदाहरण मिले हैं कि किन्हीं व्यक्तियों ने अपनी अन्तरात्मा की प्रेरणा से गायत्री प्रचार के लिए झिझकते छोटे-मोटे कदम उठाये पर प्रयत्न आरम्भ करते ही अनेकों सत्पुरुषों का सहयोग उसमें मिला और वे समारोह उनकी कल्पना से भी अनेक गुने सफल हुए। ईश्वरीय बल जिन कार्यों के पीछे होता है निस्संदेह वे ऐसे ही सफल होते हैं।

अभी हाल में गतमास आगरा के श्री सीताराम जी अग्रवाल एडवोकेट के मन में गायत्री साहित्य पढ़ने से यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि एक सामूहिक गायत्री यज्ञ किया जाय। वे अपने संकल्प को चरितार्थ करने के लिए उठ खड़े हुए। अनेक धार्मिक प्रवृत्ति के सज्जनों के घरों पर जा जाकर उन्हें यह प्रेरणा की कि 15 दिन में 24 हजार गायत्री का अनुष्ठान अपने-अपने घरों पर विधि पूर्वक करें। जो तैयार हो गये उन्हें-उन्होंने मालाएं गोमुखी आदि भेंट की और सारे नियम समझाये। इस प्रकार प्रयत्न करने से लगभग 40 अनुष्ठान कर्त्ता नर-नारी तैयार हो गये। यज्ञ की व्यवस्था एक सार्वजनिक सुन्दर स्थान पर प्रातःकाल होती रही, जिसमें सभी अनुष्ठान कर्त्ताओं ने अपने जप का शताँश हवन किया। प्रतिदिन सायंकाल धार्मिक विद्वानों के भाषण होते रहे। जिसे सुनने के लिये हजारों की संख्या में जनता आती रही, गायत्री साहित्य का वितरण हुआ। महिलाओं द्वारा कीर्तन हुआ। इस पुनीत आयोजन में जनता ने बहुत अभिरुचि प्रकट की, और बड़ी धार्मिक भावना तथा प्रेरणा ग्रहण की। आयोजन कर्त्ताओं को श्रेय, प्रकाश, आनन्द और उत्साह प्राप्त हुआ। अनेक सज्जनों ने इस पुनीत कार्य में उत्साह वर्धक सहयोग दिया। आशा से अधिक सफलता मिली। ऐसी ही प्रेरणा आगरा, जमुना किनारे के विश्वम्भर नाथ जी खण्डेलवाल को हुई है। उनके साधारण प्रयत्न से अब तक 40 अनुष्ठान कर्त्ता तैयार हो चुके हैं और बसंत पंचमी को पूर्णाहुति की तैयारी की जा रही है।

कुछ मास पूर्व अलीराजपुर के जेलर श्री देशमुख, एस. डी. ओ. श्री जाधव जी, हैड मास्टर श्री शिरदे सज्जनों के साधारण प्रयत्न से एक बहुत बड़ा गायत्री महापुरश्चरण हुआ था। जिसका नयनाभिराम दृश्य देखकर दर्शकों को प्राचीन भारत की प्रत्यक्ष अनुभूति होती थी। 500 व्यक्तियों का ब्रह्म-भोज तथा ऐसा विशाल आयोजन था जैसा एक व्यक्ति हजारों रुपये खर्च करने पर भी नहीं कर सकता, पर वह सामूहिक प्रयत्न होने के कारण बिना कोई याचना चन्दा आदि किये स्वेच्छा सहयोग से ही सब कुछ हो गया।

पं. गोपाल दास जी महाराज जोधपुर निवासी ने 24 गायत्री महायज्ञ कराने का संकल्प किया है। प्रयत्न करके उन्होंने आधे से अधिक पूर्ण कर लिये हैं। शेष के पूर्ण होने में भी अधिक विलम्ब लगने वाला नहीं है।

खास गाँव के श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने 24 लक्ष गायत्री मन्त्र लेखन कराने का संकल्प किया है। वे उस प्रान्त में घूम-घूम कर कापियाँ बाँट रहे हैं। और मन्त्र लिखा-लिखा कर मथुरा भेज रहे हैं। कापियाँ बाँटने का खर्चा भी कुछ सत्पुरुषों के सहयोग से आसानी से पूरा हो रहा है। 24 लक्ष मंत्र लेखन कराने के बाद एक विशाल पूर्णाहुति कराने का उनका विचार है।

बैंगलोर की अध्यापिका शाँता बाई ने केवल महिलाओं से गायत्री जप, गायत्री कीर्तन, गायत्री चालीसा पाठ, तथा गायत्री यज्ञ का विशाल आयोजन जप कराया था। इस पुण्य आयोजन में भाग लेने वाली महिलाओं को अनेकों साँसारिक लाभ हुए हैं, ऐसी सूचना हमारे पास आई थी।

यह तो दो चार वृत्तांत लिखे हैं, जिनमें से प्रत्येक का विवरण आश्चर्यजनक है। इतने स्वल्प प्रयत्न से इतने सफल आयोजन सम्पन्न हो जाते हैं। इन्हें देख कर यही कहना पड़ता है कि इन सत्कार्यों के पीछे कोई दैवी प्रेरणा शक्ति काम करती है।

गायत्री उपासना के सामूहिक आयोजनों का प्रबन्ध करना अपने एकाँकी छोटे-मोटे अनुष्ठानों की अपेक्षा निश्चय ही अधिक उच्च कोटि का पुण्य है। जिन को सुविधा हो, जिनके अन्तःकरण में प्रेरणा हो उनको ऐसे शुभ प्रयत्नों के लिए अवश्य ही उत्साह प्रकट करना चाहिए। एक दो प्रभावशाली सहयोगियों के साथ कार्य आरम्भ किया जाय। नीचे कुछ ऐसे ही कार्यक्रम उपस्थित किये जाते हैं।

(1) अपने पास पूरा गायत्री साहित्य मंगा लीजिये। धार्मिक प्रकृति के 24 व्यक्ति या कम से कम 10 व्यक्ति ऐसे तलाश कीजिए जो उसे पढ़ने की प्रतिज्ञा करें। उनके घर जा जाकर क्रमशः एक-एक पुस्तक पढ़ने दीजिए और वापिस लाइए। इस प्रकार 24 व्यक्तियों को वह साहित्य पूरा पढ़ा दिया जाय। अन्त में जिन-जिन ने यह पुस्तकें पढ़ी हों वे 108-108 आहुतियों का हवन कर लें। जिनने पुस्तकें पढ़ी हों उनमें से कोई चाहें तो इसी प्रकार अपना साहित्य मंगाकर ओर नये 10 या 24 को पढ़ा सकते हैं।

(2) अपने आस-पास कम से कम 24 व्यक्ति ऐसे ढूँढ़िये जो 24 हजार मंत्र का अनुष्ठान कर सकें। यह कम से कम 6 दिन में और अधिक से अधिक 24 दिन में पूरा करना चाहिए। ब्रह्मचर्य से इन दिनों रहना आवश्यक है और भी जो सात्विकताएँ बरती जा सकें उत्तम हैं। 24 हजार जप करने वालों को 240 आहुतियों का हवन करना है सो क्रमशः सब लोग करते रहें। हवन अन्तिम तीन दिनों में अथवा एक ही दिन सबका हो सकता है। यह एक पूर्ण पुरश्चरण है।

(3) यदि 24 से अधिक साधक मिल सकें और वे प्रतिदिन कुछ समय भी अधिक लगा सकें तो 24 लक्ष जप का महापुरश्चरण कराया जा सकता है। जिसने जितनी मालाएँ की हैं उन्हें उतनी ही आहुतियों का हवन करना चाहिए।

(4) गायत्री चालीसा के 2400 पाठों का अनुष्ठान 10 व्यक्ति 10 दिन में कर सकते हैं। इसमें प्रतिदिन 24 पाठ करने में 2-3 घण्टे से अधिक समय नहीं लगता। इसमें कोई विशेष प्रतिबन्ध नहीं है। रात्रि में अथवा मध्याह्न में सुविधा के समय भी यह हो सकता है। जहाँ अधिक व्यक्ति मिल सकें या अधिक समय लिया जा सके वहाँ 24 हजार पाठ कराये जा सकते हैं। जिसने जितने पाठ किये हों वह उतनी ही आहुतियों का हवन कर लें।

(5) गायत्री मन्त्र लेखन प्रतिदिन 500 मन्त्र लिखने के हिसाब से 24 दिन में 24 हजार मन्त्र लिखे जा सकते हैं। इसके लिए अधिक से अधिक 40 दिन का समय रखा जा सकता है। इनमें भी समय तथा ब्रह्मचर्य आदि का प्रतिबन्ध नहीं है। कम से कम 10 व्यक्तियों से यह अनुष्ठान 24000 मन्त्र लेखन का हो सकता है। इसमें प्रतिव्यक्ति को कम से कम 240 आहुति का हवन कराना चाहिए।

यह पाँच प्रकार के कार्यक्रम ऐसे हैं जिन्हें ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति जो दूसरों को उचित रीति से समझा सकने की क्षमता रखते हों बड़ी आसानी से पूरा कर सकते हैं। प्रारम्भिक आयोजन के लिए मालाएँ, गायत्री चालीसा या मन्त्र लेखन के लिए कापियाँ आयोजन कर्त्ता यदि अपने पास में से वितरण करे तो 4-6 रुपये में सब काम चल सकता है। अपील नियम आदि छपाये जाएं तो भी उनमें कोई भारी खर्च नहीं होगा। हवन जिन्होंने नहीं किया है, उन्हें बहुत भारी वस्तु मालूम पड़ती है, पर जिन लोगों के अभ्यास में वह है वे जानते हैं, कि अधिक धन हो तो हवन में बहुमूल्य सामग्री, मण्डप दक्षिणा, प्रसाद, ब्रह्म भोज आदि में चाहे जितना खर्च हो, सकता है पर जहाँ धन की कमी हो वहाँ तिल, जौ चावल, शकर, घी तथा सुगन्धित सामग्रियों के सम्मिश्रण से सस्ती सामग्री भी बन सकती है और गरीब आदमी भी उस व्यवस्था को आसानी से कर सकते हैं। जहाँ धन की कमी होती है वहाँ उदार हृदय पण्डित बिना दक्षिणा या कम दक्षिणा में भी कृत्य करा देते हैं। वैसा न हो तो भी हवन विधि कुछ मुश्किल नहीं है। मथुरा आकर शास्त्रोक्त पूर्ण विधान 3 दिन में भली प्रकार सीखा जा सकता है। प्रवचन के लिए जहाँ विद्वान व्यक्ति नहीं वहाँ तो ठीक ही है अन्यथा गायत्री ग्रन्थों में से महत्वपूर्ण अंश पढ़ कर सुनाते रहने से वह कार्य हो सकता है। कीर्तन आदि करने वाले, संगीत जानने वाले स्त्री-पुरुष हर जगह मिल जाते हैं। हवन प्रवचन आदि के मंच, मण्डप सुसज्जित बनाने में मनुष्य की कला प्रियता, थोड़े से सामान में ही बहुत शोभा उपस्थित कर सकता है। यह सब कार्य बहुत सरल है। फिर ऐसे शुभ कार्यों के लिए सहयोग भी अनायास ही मिलता है हमारा सहयोग एवं पथ-प्रदर्शन भी ऐसे पुनीत आयोजनों में सदा ही रहता है। शुभ और सच्चाई से खरे हुए कार्यों में भाग लेने की, हाथ बटाने की, सहायता देने की प्रेरणा अनेकों व्यक्तियों के हृदय में स्वाभाविक ही उठती है और वे सब कार्य बड़ी सुविधा पूर्वक हो जाते हैं।

धार्मिक प्रकृति के लोग कुछ न कुछ दान पुण्य, कथा कीर्तन, करते ही रहते हैं, यदि वे इस प्रकार पुनीत आयोजनों में अपना धन समय और श्रम लगावें तो वस्तुतः वे परम श्रेय प्राप्त कर सकते हैं। अपने लिए और दूसरों के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। वानप्रस्थ, संन्यासी, कथा वाचक, पुरोहित प्रकृति के ऐसे मनुष्य जिनने धार्मिक जीवन बिताने का लक्ष्य बनाया है और जिनके पास समय भी है वे दूसरों को प्रेरणा देकर ऐसे आयोजन कराते रहने में अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं। जोधपुर के पं. गोपालदास जी, खाम गाँव के ब्रह्मचारी जी इस प्रकार के आयोजन कराते रहने की पुनीत योजनाओं में लगे हुए हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि -शुभ कार्यों की प्रेरणा देने वालों को उन कृत्यों का दसवाँ भाग व पुण्य का भागीदार बनना पड़ता है। इस प्रकार अनेकों व्यक्तियों से शुभ कार्य कराते रहने से इतना पुण्य फल संचय हो जाता है, जितना एकाकी साधना में चौबीस घण्टे लगे रहने पर भी सम्भव नहीं है।

गायत्री विद्या की जानकारी तथा गायत्री उपासना साधना की प्रक्रिया का प्रसार करना मानव जीवन की अनेक कठिनाईयों को सरल करने का परम पुनीत मार्ग है। आज के समय में यह सर्वोपरि आवश्यक है।

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