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Magazine - Year 1954 - Version 2

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सफाई, सुव्यवस्था और सौंदर्य

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(प्रो. मोहन लाल वर्मा बी. ए., एल. एल. बी.)

सफाई एक दैवी गुण है। अंग्रेजी में एक कहावत है जिसका तात्पर्य है कि सफाई से रहना देवत्व के समीप रहना है। जो साफ रहता है, अपने रहन-सहन द्वारा देवत्व प्रकट करता है। सफाई से सौंदर्य वृद्धि होती है। और साधारण वस्तु भी अपने आकर्षण रूप में प्रकट होती है। वस्तुओं का जीवन बढ़ जाता है। मशीनों की सफाई करने, या समय-समय पर कराते रहने का तात्पर्य उसकी कार्य शक्तियों को बढ़ा लेना है।

जब किसी मशीन को ओवर हाल (आमूल नए ढंग से फिटिंग) किया जाता है, तो न केवल सफाई हो जाती है, प्रत्युत सब पुर्जों को साफ कर नए सिरे से रखने के कारण उनमें नई स्फूर्ति का संचार होता है। जो पुर्जे चूँ-चूँ चर्र-चर्र करते थे, वह थोड़े से तेल से सहज स्निग्ध होकर मजे में चलने लगते हैं। उनकी कार्य शक्ति बढ़ जाती है।

इसी प्रकार मानव शरीर रूपी मशीन का हाल है। हमारे शरीर में अनेक छोटे बड़े सूक्ष्म पुर्जे हैं। हमारा शरीर, मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, उदर अनेक ग्रन्थियों से मिलकर बना है। इन पुर्जों में निरन्तर भोजन को पचाकर रक्त बनाने की क्रिया के कारण मैल एकत्रित हो जाता है। जीवन में पैसों के लिए हम शरीर को अधिक घिस डालते हैं। प्रायः नेत्रों की ज्योति क्षीण पड़ जाती है, गाल पिचक जाते हैं, दाँत गिर जाते हैं, पाचन विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये सब रोग शरीर की अधिक घिसावट के दुष्परिणाम हैं। यदि हम शरीर की आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की सफाई का ध्यान रखें, तो शरीर मन प्राण में नई स्फूर्ति, नई शक्ति और प्रेरणा का संचार हो सकता है।

भारत में जिस तत्व की बड़ी कमी मिलती है वह सफाई है। सुव्यवस्था और सौंदर्य इसके पुत्र-पुत्री हैं। लोगों के पास मान प्रतिष्ठा, उत्साह है पर स्वच्छता और सुव्यवस्था का बड़ा अभाव है। दुकानें, गलियाँ, सार्वजनिक स्थान, भोजन तथा मिठाई के बाजारों में आप पत्तों के ढेर, जूठन, मैल, मक्खियाँ, नालियों में भरा हुआ कीचड़ विष्ठा देखकर हमें हिन्दुस्तानियों की गंदी आदतों पर लज्जा आती है। लोग बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं बनाते हैं, पर उनमें सफाई पर ध्यान नहीं देते। टट्टियों तथा नालियों की सफाई पर व्यय नहीं करते। सार्वजनिक टट्टियों में सभ्य व्यक्ति को जाते हुए शर्म आती है। मेहतर अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते। अधिकारी वर्ग देख रेख के मामले में शिथिलता दिखलाता है। टट्टी विष्ठा से सने घिनौने स्वरूप रेल के डिब्बों और रेल के स्टेशनों पर पाई जाने वाली टट्टियों में भी देखे जाते हैं। जितना बड़ा शहर, उसकी गलियों में उतना ही अंधेरा, बदबू और गन्दगी पाई जाती है। जहाँ मवेशी बाँधे जाते हैं वहाँ का तो कहना ही क्या?

सफाई एक सार्वजनिक आदत है। हम भारतीयों को अपनी सार्वजनिक गन्दगी पर लाज आनी चाहिए। जहाँ दूसरे राष्ट्रों में सफाई की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है, सरकार पर्याप्त व्यय करती है, म्यूनिस्पैलिटी बहुत ध्यान देती है, प्रत्येक नागरिक सार्वजनिक सफाई की ओर ध्यान देता है, वहाँ हमारे यहाँ कोई भी इस ओर ध्यान नहीं देता। नागरिक, विशेषतः ग्रामीण व्यक्ति और नारी समाज इतने पिछड़े हुए हैं कि जहाँ कहीं जाते हैं सार्वजनिक स्थानों को गन्दा छोड़ जाते हैं। कूड़ा करकट सड़कों पर डाला जाता है। केले, सन्तरे, तथा अन्य फलों के छिलके सड़कों पर डाले जाते हैं और कितने ही व्यक्ति उनसे फिसलकर घायल होते हैं। सिनेमा में मूँगफली के ढेर के ढेर छिलके, बीड़ी सिगरेट के टुकड़े, पान की पीक यत्र-तत्र फैले हुए मिलते हैं। स्टेशनों को हर आधे घण्टे पश्चात् साफ किया जाता है पर वह गन्दा होता जाता है। यह हमारी गन्दी आदत की सूचक हैं। हमें अपनी इन आदतों पर लज्जित होना चाहिए।

शारीरिक स्वच्छता के दो अंग हैं-बाह्य तथा आन्तरिक सफाई। नित्यप्रति मालिश और व्यायाम के पश्चात् स्नान करने से और खुरदरे तौलिये से पोंछने से शरीर स्वस्थ होता है। प्रायः लोग बार-बार स्नान करने का क्रम करते हैं, जल में पड़े रहते हैं असंख्य गोते लगाते हैं, बाल्टी पर बाल्टी पानी डालते हैं लेकिन सच्चे अर्थों में यह स्नान नहीं है। जब तक शरीर के रोमकूप स्वच्छ नहीं होते और त्वचा का संचित मल दूर नहीं होता, तब तक शरीर की स्वच्छता नहीं हो सकती। खुरदरे तौलिये को पानी में भिगो कर त्वचा पर रगड़ने से त्वचा साफ होती है। नाखूनों को काटना, नासिका द्वार को स्वच्छ रखना, जिह्वा की स्वच्छता ये प्रायः उपेक्षित रहते हैं। इन पर बड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है।

आन्तरिक स्वच्छता का साधन उपवास है। पन्द्रह दिन पश्चात् उपवास करने से संचित भोजन पच जाता है, मल पदार्थ निकल जाते हैं और पेट की बीमारियाँ दूर होती हैं। हमारे देश में उपवास धर्म के अंतर्गत इसीलिये रखा गया है कि सब इससे लाभ उठा सकें। यथासाध्य ठण्डे जल से स्नान करें। मूत्र-त्याग और मल-त्याग के पश्चात् इन्द्रियों को शीतल जल से धो डालें।

आपका घर वह स्थान है, जिसके वातावरण में आप पलते, वायु पाते, संसर्ग से प्रभावित होते हैं। प्रतिदिन हमारा 14-14 घण्टे का जीवन घर ही में व्यतीत होता है। घर चारदीवारी कमरों, फर्नीचर, वस्त्रों तथा विभिन्न स्थानों पर जो समय हम व्यतीत करते हैं, उनसे हमारी आदतों और स्वास्थ्य का निर्माण होता है। घर जितना ही स्वच्छ और सुव्यवस्थित होगा, उसमें उतनी ही स्वच्छ वायु तथा आनन्द प्राप्त हो सकेगी। यदि आप दुकानदार हैं, या आफिस में आठ घण्टे व्यतीत करते हैं, तो दुकान और आफिस के वातावरण का भी प्रभाव गुप्त रूप से पड़ता है। मान लीजिये आप तम्बाकू, शराब, गाँजा, चरस अथवा जूते की दुकान करते हैं। इन वस्तुओं की बदबू निरन्तर आपके स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती रहती है। अतः हमें चाहिये कि हम अपने घर, दुकान या ऑफिसों को खिलौनों की तरह साफ-स्वच्छ रखें।

स्वच्छ घर में रहने वाले की आत्मा प्रसन्न रहती है। आप स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन कर देखें मन कितना खिला रहता है। इसी प्रकार सफेद पुता हुआ कमरा, स्वच्छ फर्नीचर, स्वच्छ वस्त्र, स्नान से स्वच्छ शरीर, आपको प्रसन्न करने वाले हैं।

स्वच्छ रख कर हम अपने घर के सौंदर्य की वृद्धि करते हैं और चीजों के जीवन को बढ़ा लेते हैं। हमें आन्तरिक शान्ति प्राप्त होती है। सफाई प्रकृति का अंग बन जाने से सर्वत्र सौंदर्य की सृष्टि करती है।

आफिस, घर और दुकान में छोटी-बड़ी असंख्य वस्तुएं होती हैं। इनमें कुछ ऐसी हैं जिनका नित्य प्रयोग होता है, तो कुछ ऐसी होती हैं जो देर से निकलती और काम में आती हैं। कुशल व्यक्ति अपने घर, दुकान या आफिस की वस्तुओं की व्यवस्था इस प्रकार करते हैं कि आवश्यकता पड़ते ही, तुरन्त जरूरत की चीज मिल जाती है। ग्राहक आकर जिस छोटी वस्तु की माँग करता है, चतुर दुकानदार एक क्षण में उसे प्रस्तुत कर देता है। घर में दवाई से लेकर सुई डोरा आलपिन तक एक क्षण में मिल जानी चाहिये। आफिस की फाइल का कोई कागज जरा देर में अफसर के सम्मुख आना चाहिए। पुस्तकालय में जो पुस्तक माँगी जाय, तुरन्त पाठक को प्राप्त हो जानी चाहिए।

अव्यवस्थित दुकानदार, अफसर या परिवार का मुखिया उस व्यक्ति की तरह है, उर्द, मूँग, मसूर, गेहूँ, जो इत्यादि भिन्न-भिन्न अनाजों को एक साथ मिश्रित कर लेता है और जरूरत के समय उनको पृथक करने में व्यर्थ शक्ति का क्षय करता है। वह न गेहूँ निकाल सकता है, न उर्द न मूँग। और यदि निकालता भी है तो उस समय जब उसके हाथ से अवसर निकल जाता है। यदि प्रारम्भ से ही वह व्यवस्था से इन अनाजों को अलग-अलग रखता तो क्यों इतना श्रम और समय नष्ट होता!

प्रायः अफसर लोग चिल्लाया करते हैं और क्लर्क फाइलों को, भिन्न-भिन्न पत्रों को, रेफरेन्सों को तलाश करते हुए थक जाते हैं। दुकानदार वस्तुओं को गलत स्थान पर रख कर झींकते रहते हैं। घर में दियासलाई, चाकू, नालादानी, साबुन, तौलिया, रुमाल, हाथ का थैला, पेन्सिल, कलम इत्यादि प्रायः अव्यवस्थित होने से बड़ा हल्ला मचता रहता है। जो डॉक्टर अपने यहाँ भिन्न दवाइयों को क्रम व्यवस्था से नहीं रखते, वे पछताते रहते हैं। सर्वत्र व्यवस्था की आवश्यकता है।

आप चाहे जिस स्थिति, वर्ग या स्तर के व्यक्ति क्यों न हों, क्रम और व्यवस्था की आपको सबसे अधिक आवश्यकता है। व्यवस्था से आपका कार्य सरल होगा, समय की बचत होगी और जल्दी और काम कर सकेंगे। मन में किसी प्रकार की उलझन उपस्थित न होगी। काम करने को तबियत करेगी।

जिस व्यक्ति में अपनी वस्तुओं को एक निश्चित क्रम और व्यवस्था से रखने की आदत होती है, वह उनको उचित स्थान पर रख कर सौंदर्य की सृष्टि करता है। पं. जवाहर लाल नेहरू जब जेल में थे, तो उनके पास कुछ गिनी चुनी वस्तुएं थीं- हजामत का सामान, कंघा, कलम, दवात, कागज इत्यादि। लेकिन वे अपनी आत्म कथा में लिखते हैं कि उन्होंने उन्हीं को क्रम और व्यवस्था से रख कर सौंदर्य सृष्टि की ओर अपनी आत्मा को आनन्दित किया था। आपके पास जो भी वस्तुएं हों, उन्हीं को किसी निश्चित क्रम-व्यवस्था से रख कर सौंदर्य और उपयोगिता में वृद्धि कर सकते हैं।

अपने घर के पृथक-पृथक कमरों को लेकर यह निश्चित कीजिए कि आप उस कमरे को किस कार्य के लिए रखना चाहते हैं-बैठक, स्टोर, प्राइवेट कमरा, औरतों के बैठने-उठने का कमरा, भोजन करने का कमरा इत्यादि। प्रत्येक कमरे को उसी कार्य के लिए क्रमवार सुव्यवस्थित कीजिए।

मान लीजिए, बाहर वाले 1 कमरे को आप बैठक बनाना चाहते हैं। इसमें एक मेज, कुर्सी, सोफासेट, या फर्श तकिया इत्यादि रखिए, पाँव पोंछने के लिए पायदान, दीवारों पर कुछ कलेण्डर और एक-दो अच्छे चित्र, खूँटी और जूता रखने का स्थान। इस कमरे में व्यर्थ की चीजें, खूँटियों पर कपड़े या फालतू वस्तुएं नहीं रहनी चाहिए। मेन्टलपीस पर कलात्मक रूप से सजे हुए फूलदान और एक दो फोटो। अधिक सजावट भी असभ्यता की निशानी है।

आपके स्टोर में अनाज, दालें, महीने भर के कुटे हुए मसाले, घी, तेल, गुड़, चीनी, एक ओर वस्तुओं के सन्दूक तथा अन्य घर की वस्तुएं रहनी चाहिए। यदि मकान छोटा हो तो क्रम से रखी हुई लकड़ियाँ और उपले भी रह सकते हैं। मिट्टी का तेल और लालटेन भी रखी जा सकती है। सोने के कमरे में भी वस्तुएं कम ही रहें क्योंकि फालतू वस्तुओं से मच्छर होते हैं। रसोई में भी भिन्न-भिन्न बर्तन क्रम से सजे रहें। सीने, काढ़ने, बुनने और कातने का सब सामान एक स्थान पर सजा रहे। मशीन हो तो स्वच्छ तेल लगी हुई रहे। पुस्तकालय हो तो उसकी सब पुस्तकें विषय वार सजी रहें, जिससे जिस समय आवश्यकता हो निकाली जा सकें। संक्षेप में, आपके पास जो भी स्थान हो, जो जो वस्तुएं हों, वे स्वच्छ से स्वच्छ और सबसे आकर्षक रूप में मौजूद रहें, जिन्हें देखकर आपको भी प्रसन्नता हो और देखने वाले भी प्रसन्न रहें।

हमारे घरों में वस्त्रों की जो दुरावस्था है, उसे देखकर क्षोभ होता है। प्रायः स्त्रियाँ महंगे से महंगे रेशमी वस्त्र खरीदती हैं पर उनके साथ अकथनीय अत्याचार होता है। इधर उधर फेंका जाता है, आले या कोने में मैले पड़े रहते हैं, धोबी 20-20 दिन में धोकर वापिस नहीं लाता। यदि हम वस्त्रों की उचित व्यवस्था रखें, मैला होने पर स्वयं उसे धो लिया करें, तो हम आधे वस्त्रों में मजे से काम चला सकते हैं, रुपया बचा सकते हैं, और स्वच्छ भी रह सकते हैं। महंगे कपड़े बना लेना आसान है पर उनकी सेवा करना उनसे अधिकतम लाभ उठाना कुशलता और चतुराई का काम है।

वस्त्रों के संदूक या अलमारी में वस्त्रों को करीने से रखना चाहिए। इससे वस्त्रों के कोने सिकुड़ने या मुड़ने नहीं पाते और इस्तरी नहीं टूटती। रेशमी साड़ियों को कागज में लपेट कर पृथक रखना चाहिये। फिनायल की गोलियाँ रखने से वस्त्र विशेषतः साड़ियाँ कीड़ों से बची रहती हैं।

वस्तुओं की सम्हाल और व्यवस्था और भी आवश्यक है। सम्हाल कर रखने से मशीन का जीवन कई गुना बढ़ जाता है, जबकि तनिक सी लापरवाही से कीमती चीजें भी जल्दी ही नष्ट हो जाती हैं। लेखक के पास एक फाउन्टेन पेन है। इसका मूल्य तीन रुपये के लगभग है। अभी तक दस वर्ष से भी ऊपर यह काम कर चुका है। अब भी ठीक हालत में है। इसी प्रकार घड़ी दस वर्ष, जूता दो वर्ष, चलता है। वर्ष में तीन कमीज और चार पाजामों से काम चलता है। साइकिल को 26 वर्ष हो चुके हैं। यदि प्रत्येक वस्तु को उचित देख−रेख से रखा जाय तो वह कई गुना अधिक काम देती है।

क्या आप जानते हैं कि आपका फाउन्टेन पेन घिस कर नहीं, खोकर नष्ट होता है। पेन्सिलें कभी पूरी तरह काम में नहीं आतीं, कोई माँग लेता है अथवा खो जाती हैं। चाकू और रुमाल भी प्रायः खोते हैं। नालेदानी घर में अनेक होती हुई भी इधर-उधर रख कर भुलादी जाती है। कीमती साड़ियाँ पहनी नहीं जातीं, सन्दूकों में रखी रहती हैं और कीड़ों का भोजन बन कर नष्ट होती हैं। जिस साड़ी पर सबसे अधिक व्यय होता है, वह उतनी ही कम पहनी जाती हैं आभूषणों पर औरतें प्राण देती हैं, किन्तु वे खोकर नष्ट होते हैं, इनके कारण चोरियाँ होती हैं औरतें चुरा ली जाती हैं और अपमानित होती हैं।

यदि आप अपनी थोड़ी सी वस्तुओं को क्रम व्यवस्था से सजाकर रखें, तो इन्हीं की सहायता से हम घर की शोभा में वृद्धि कर सकते हैं। सौंदर्य के लिए अधिक वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है। जो थोड़ी सी चीजें हैं, उन्हीं की सहायता से आप सौंदर्य की उत्पत्ति कर सकते हैं। बस आपकी दृष्टि में कलात्मकता अपेक्षित है। कलात्मक दृष्टि से हर वस्तु का एक नियत स्थान है, जहाँ वह सुन्दरतम लग सकती है। घर की शोभा इस बात में है कि आप उस स्थान को खोज निकालें। प्रत्येक वस्तु के लिए एक स्थान नियत करें। घर का प्रत्येक सदस्य उस वस्तु को उठा कर वस्तु को नियत स्थान पर रखे। आपके कमरे में एक चित्र हो, या कैलेन्डर लेकिन यदि वही स्वच्छ हो, मैल का नाम निशान न हो, तो वही आकर्षक प्रतीत होता है।

सौंदर्य व्यवस्था पर निर्भर है। जूते कैसे नगण्य हैं, किन्तु यदि आप उन्हीं को पॉलिश कर सजाकर क्रमानुसार रखें, अपने सन्दूकों को स्वच्छ कर उन पर स्वच्छ वस्त्र बिछा लिया करें, चारपाइयों की चादरों को गन्दा न होने दें, कुर्सियों, मेजों, पुस्तकों की धूल झाड़ते रहें, तो निश्चय जानिए घर की चीजों में ही सौंदर्य प्रस्फुटित होगा और आपको अपने साधारण घर में ही आनन्द प्राप्त होगा। आत्मा प्रसन्न रहेगी और मन में यह साहस रहेगा कि आप अच्छे तरीके से रहते हैं।

जीवन में अधिक वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है, बल्कि जो थोड़ी सी वस्तुएं हों उन्हीं से सबसे अधिक, सबसे सुन्दर क्रम व्यवस्था से काम लेने में आनन्द है। जिनके पास अधिक वस्तुएं पड़ी रहती हैं, उनमें से आधी ही काम में आती हैं, शेष अनावश्यक, जंग लगी हुई, निष्क्रिय, अव्यवस्थित, बेकार पड़ी रहती हैं। आप अधिक वस्तुओं के संचय के मोह में न पड़ें, वरन् अपनी थोड़ी सी वस्तुओं को सम्हाल कर प्रयोग में लाएं। सार्वजनिक स्थानों की सफाई, सुव्यवस्था एवं सौंदर्य का उत्तरदायित्व आप पर है। आप एक श्रेष्ठ नागरिक हैं। समाज की उन्नति में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। आपकी आदतों से समाज बनता-बिगड़ता समुन्नत-अवनत होता है। अतः आप सार्वजनिक स्थानों को कार्य में लेते समय उनकी सफाई और सुव्यवस्था के सम्बन्ध में बड़े सावधान रहें।

यदि आप धर्मशाला में टिकें, तो उसके कमरे या इर्द-गिर्द की सफाई का ध्यान रखें, कमरे को वैसा ही सुन्दर छोड़कर जायं, जैसा वह आपको मिला था, पब्लिक पाखानों का ठीक इस्तेमाल करें। पेशाबघरों में सर्वत्र ध्यान रखें। पब्लिक पार्क, मन्दिर, सार्वजनिक बिल्डिंगों को बिगड़ने न दें। रेल के डिब्बे हम सबके काम आते हैं किंतु हम सफर के पश्चात् उन्हें छिलकों, पत्तों, पानी, धूल-मिट्टी से सना हुआ, जूठन से परिपूर्ण छोड़कर उठते हैं। यह हमारी गन्दी आदतों की परिचायक गन्दी वृत्ति की द्योतक हैं। हर सार्वजनिक स्थान सबके बैठने उठने के कार्य में लेने के लिए बना हुआ है। यदि हम में से प्रत्येक उसे अच्छी तरह प्रयोग में लाये, तो वह अधिक दिन चल सकता है और सबको आकर्षक लग सकता है। सार्वजनिक स्थान हमारे हैं। जैसे हम अपनी वस्तु की सफाई और सुरक्षा का ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार हमें सार्वजनिक वस्तुओं तथा स्थानों का ध्यान रखना चाहिये।

जो समर्थ हैं, अपनी शक्ति या रुपये का दान दे सकते हैं, उन्हें सार्वजनिक स्थानों, पार्कों, पुल, धर्मशालाओं, पब्लिक स्कूलों, टहलने के स्थानों, मन्दिरों, स्नान के घाटों, रेल के डिब्बों, टट्टियों, प्लेटफार्मों की स्वच्छता और व्यवस्था का पूर्ण ध्यान रखना चाहिये। अपने रुपये से मरम्मत या नई वस्तुएं बनवाने में पीछे नहीं रहना चाहिए। रुपया दान देने के स्थान पर मरम्मत या पुताई करा देना श्रेयस्कर है।

अपने देश, समाज तथा शरीर की सफाई, सुव्यवस्था और सौंदर्य में हम सबका अत्यन्त महत्वपूर्ण दायित्व है। हमें चाहिए कि अपनी जिम्मेदारी अनुभव करें।

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