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Magazine - Year 1955 - Version 2

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विशद् गायत्री महायज्ञ का समारम्भ

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कीर्ति, विद्या, धन स्त्री, पुत्र स्वास्थ आदि सुख सुविधाएँ, साँसारिक सम्पदाएँ मनुष्य को स्वभावतः प्रिय हैं। अपनी कठिनाइयों को निवारण करने एवं सुख सामग्रियों को बढ़ाने के लिए उसका प्रयत्न जीवन भर चलता रहता है। पर यह वस्तुएँ किसको कितनी मात्रा में मिल पाती हैं यह बात उसके प्रारब्ध पर निर्भर रहती है। पूर्वकृत शुभ कर्म ही प्रारब्ध बने होते हैं जिनके कारण प्रिय परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं। जिनका पिछला शुभ कर्म संचय नहीं है, वे उद्योग करते हुए भी अभीष्ट सफलताओं से वंचित रह जाते हैं। शुभ प्रारब्ध के बिना जब छोटी छोटी मौलिक संपदाएं भी नहीं मिल पातीं जो आत्म−कल्याण, ईश्वर प्राप्ति, स्वर्ग मुक्ति जैसी महान् सफलताओं का मिलना तो और भी कठिन रहता है। जिस प्रकार शुभ कर्म के संक्षय को भौतिक जगत में प्रारब्ध कहते हैं उसी प्रकार आध्यात्मिक जगत में इन्हीं शुभ कर्मों के संचित प्रारब्ध को ‘ईश्वर की विशेष कृपा’ कहते हैं। दैवी अनुग्रह भी हमारे सुकृत का ही परिणाम होता है। अतएव ऋषियों ने सर्वत्र यही कहा है कि साँसारिक एवं आध्यात्मिक सुख शान्ति का एक मात्र माध्यम सुकृत ही हैं। जो जितने शुभ कर्म संचित कर लेगा वह आज या कल उतना ही सुख शान्ति का अधिकारी बनेगा। शास्त्रों में पग पग पर एक ही बात कही गई है कि सुख का मूल धर्म है। धर्म संचय बिना कोई सुखी नहीं बन सकता। इसलिये जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन की अनेक समस्याओं पर विचार करता है, अनेक वस्तुओं एवं प्रयोजनों को जुटाने में लगा रहता है, उसी प्रकार उसे शुभ कर्मों के संचय में भी प्रयत्नशील रहना चाहिये।

शुभ कर्मों के लिये इच्छा, श्रद्धा एवं अन्तः प्रेरणा होना सौभाग्य का एक संकेत ही समझना चाहिये। जब भी शुभ कर्मों के अवसर आवें तो मन की कमजोरी को परास्त करके उस अवसर से लाभ उठाने का प्रयत्न करना चाहिये। यही मानव दृष्टि की सर्वोत्तम दूरदर्शिता है। जो आलस्य, प्रमाद, संकोच एवं दैनिक जीवन की छोटी मोटी कठिनाइयों के कारण ऐसे अवसरों को खो देते हैं, वे प्रत्यक्षतः समय बचाने आदि का लाभ सोच सकते हैं पर वस्तुतः अन्त में यह उनकी अबुद्धिमत्ता ही सिद्ध होती है। यों सदा ही शुभ कर्मों के अवसर निर्माण करने एवं ढूँढ़ने के लिए स्वयं प्रयत्नशील रहना चाहिये पर यदि अनायास ही कोई ऐसा अवसर सामने आ जाय तब से उसकी उपेक्षा की ही न जानी चाहिये। ऐसे अवसर वस्तुतः मानव की अन्तरात्मा में विराजमान ऋतम्भरा प्रज्ञा को एक चुनौती होते हैं। जो उस चुनौती को स्वीकार करते हैं वे ही जागृत आत्मा कहलाते हैं।

इसी बसन्त पञ्चमी से गायत्री तपोभूमि में आयोजित विशद् गायत्री महायज्ञ एक ऐसा ही असाधारण महत्व का शुभ अवसर है। ऐसे अवसर हर रोज नहीं—कहीं मुद्दतों में आते हैं और उनमें भाग लेने की अन्तःप्रेरणा एवं सुविधा किन्हीं विरले ही भाग्यवानों को होती है। जिन भाग्यवानों को अपने भीतर इसमें भागीदार बनने की कुछ भावना उठ रही हो उन्हें संकोच, आलस्य, फुरसत की कमी आदि मानसिक दुर्बलताओं को छोड़कर इसमें भाग लेने के लिए साहसपूर्वक कटिबद्ध हो ही जाना चाहिये। यह साहस निस्सन्देह प्रबल पुरुषार्थ सिद्ध होगा और जितना समय इस भाग लेने में लगेगा इसकी समुचित सत्परिणाम उन्हें उपलब्ध होगा।

विशद् गायत्री महायज्ञ में भागीदारी का विधान बहुत ही सरल है। प्रतिदिन अपने घर पर रहकर नियमित रूप से गायत्री जप करते रहिये। जब 24 हजार पूर्ण हो जाय तब उसे एक अनुष्ठान या गायत्री महायज्ञ की भागीदारी का एक शेयर मान लीजिये। इस प्रकार चैत्र सुदी 9 संवत् 2013 तक अगले 15 महीनों में आप कितने ही भाग इस यज्ञ के प्राप्त कर सकेंगे। इस जप का हिसाब रखने के लिए जो फार्म है उसे भर कर मथुरा भेजते रहना चाहिए और भागीदारी का प्रमाणपत्र प्राप्त करते रहना चाहिए। इस जप का शताँश हवन मथुरा में ही करना होगा। इस सवा वर्ष में जब कभी आपका मथुरा आना हो तब शताँश हवन अपने हाथों करलें। या कई भागीदारों की ओर से कोई एक प्रतिनिधि आकर यहाँ हवन कर जावे। यदि यह दोनों की बातें सम्भव न हों तो एक पैसा प्रति आहुति के हिसाब से खर्च भेज कर यहाँ ही उस हवन की व्यवस्था कर दी जा सकती है।

हवन में कुछ खर्च होगा इस संकोच से किसी को भी भागीदारी का लाभ नहीं छोड़ना चाहिये। एक पैसे प्रति आहुति का पूरा खर्च करना जिनके लिए कठिन हो वे आधा चौथाई दे सकते हैं। जो उतना भी न कर सकेंगे उनका भी हवन यहाँ पूरा करा दिया जायगा। पैसे के अभाव में किसी का हवन या भागीदारी की कोई बात अधूरी न रहने दी जायगी। इस भागीदारी में नवरात्रि के अनुष्ठानों की भाँति कोई विशेष नियम, बन्धन, तप, साधना आदि प्रतिबन्ध नहीं रखे गये हैं। जिससे अधिक लोगों को इसमें भाग लेने की सुविधा है।

महायज्ञ प्रारम्भ हो चुका है। इसमें भाग लेने की- भागीदार बनने की अपने परिवार के सभी सदस्यों से हमारी विशेष प्रार्थना है। यह अलभ्य अवसर हाथ से जाने न दिया जाना चाहिए। जिनके पास अवकाश हो वे तपोभूमि में रहकर इस महायज्ञ में भाग लें। पर ऐसे लोगों को पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर लेना आवश्यक है। यहाँ आने वाले जो साधक डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड लिये डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड दस डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड इसलिये डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड वह स्वयं डडडड डडडड डडडड डडडड गोदार ढूँढ़ डडडड डडडड डडडड डडडड सफल बनाने डडडड डडडड डडडड की संख्या पूरी करने डडडड डडडड डडडड आवश्यकता है इसी डडडड डडडड डडडड प्रियजनों से प्रार्थना तथा डडडड डडडड डडडड चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र का डडडड डडडड यज्ञ, रुद्र यज्ञ, महामृत्युञ्जय डडडड डडडड यज्ञ, गणपति यज्ञ, सरस्वती यज्ञ, डडडड डडडड ज्योतिष्टोम आदि अनेकों यज्ञों की डडडड गायत्री महायज्ञ के साथ साथ चलती रहेगी, डडडड में भाग लेने की जिनकी इच्छा हो, वे मथुरा आकर इनमें भी भाग लें।

आप इस महायज्ञ में भाग लेने का अवसर न चूकिए। यह भागीदारी अन्ततः आपके लिए परम मंगलमय सिद्ध होगी। शुभ कर्मों के संचय का यह अलभ्य अवसर है। ऐसे ही सत्कर्म ही मनुष्य को शुभ प्रारब्ध तथा दैवी अनुग्रह उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं।

महायज्ञ की सफलता के लिए :—

भागीदारों की संख्या बढ़ाना प्रधान कार्य है। इस कार्य को सफल बनाने का एक महत्वपूर्ण उपाय यह है कि आप जनवरी की अखण्ड ज्योति के ‘गायत्री अंक’ धार्मिक प्रकृति के अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने का प्रयत्न करें। लगान से भी कम−दो आना मूल्य−इस अंक का इसी उद्देश्य से रखा गया है। थोड़े अंक सादा बुक पोस्ट से मंगाने में उनके रास्ते में खो जाने का डर रहता है, इसलिए इनकी कम से कम 50 प्रतियाँ मंगानी चाहिये। इस पर रजिस्ट्री सेवा खर्च भी हम अपना लगा देंगे। इन अंकों का मूल्य तुरन्त ही देने में कोई कठिनाई है तो सुविधा के अनुसार पीछे भी भेज सकते हैं। गायत्री ज्ञान दान तथा इस ज्ञान के द्वारा महायज्ञ में भागीदारों की वृद्धि यह एक उच्चकोटि का पुण्य परमार्थ है। महायज्ञ में जहां अनेक यज्ञों का आयोजन है वह ‘गायत्री प्रसार ज्ञान यज्ञ’ भी उसका एक भाग है। थोड़ा प्रयत्न करने से ज्ञान यज्ञ को सफल बनाया जा सकता है।

महायज्ञ का यज्ञ संरक्षण :—

यज्ञों से सतोगुणी एवं दैवीतत्वों की शक्ति बढ़ती है और असुरता नष्ट होती है। आसुरी तत्व सदा यह प्रयत्न करते हैं कि वे बढ़ें और देव तत्व परास्त हों, इसलिये अपनी आत्मरक्षा तथा वृद्धि के लिए असुर सदा ही यज्ञों में नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित करते हैं। प्राचीन काल में विश्वामित्र सरीखे ऋषि तक इन असुरों के विघ्नों से घबरा गये थे और उन्हें यज्ञ संरक्षण के लिए दशरथ से उनके पुत्र माँगने जाना पड़ा था। यह विशद् गायत्री महायज्ञ भी इस युग का महान यज्ञ है। इसे सफल न होने देने के लिए भी असुरता जो कुछ कर सकती होगी उसे करने में किसी प्रकार की कमी न रहने देगी। असुरता के यह आक्रमण नाना प्रकार के रूप, वेष धारण करके अनेकानेक तरह से हो रहे हैं और होंगे। इनसे रक्षा न हो तो विश्वामित्र जैसे ऋषि जब घबराते थे तो हमारा विचलित हो जाना कुछ असम्भव नहीं। इसलिये इस यज्ञ की संरक्षण व्यवस्था होनी आवश्यक है। प्रत्येक गायत्री उपासक से हमारी प्रार्थना है कि वह अपनी भागीदारों के अतिरिक्त प्रतिदिन गायत्री मन्त्र की एक माला इस यज्ञ की रक्षा के निमित्त, असुरता के आक्रमणों को परास्त करने के निमित्त अवश्य करते रहें। जो सज्जन इस संरक्षण की एक माला यज्ञ के अन्त तक करते रहने का भार अपने ऊपर लेने को तैयार हों कि अपने इस संकल्प की पूर्ण सूचना हमें अवश्य देदें। ताकि हमें पता रहे कि संरक्षण के लिए आवश्यक शक्ति तैयार हुई या नहीं।

विशद गायत्री महायज्ञ का प्रारम्भ:—

बसन्त पञ्चमी ता. 28 जनवरी 55 से विशद् गायत्री महायज्ञ पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से वेदपाठी पण्डितों के तत्वावधान में प्रारम्भ हो गया है। आरम्भ होने का पुण्य दृश्य देखने ही योग्य था। यज्ञ में भागीदार बनने के लिए दूर दूर से सत्पुरुष आये हुए हैं। विस्तृत विवरण अगले अंक में छपेगा।

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