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Magazine - Year 1960 - Version 2

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Language: HINDI
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कृपया घबराया मत कीजिए।

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First 10 12 Last
(डॉ. रामचरण महेन्द्र एम. ए. पी. एच. डी.)

आपको रेलगाड़ी से जाना है। गाड़ी में अभी एक घन्टा देर है, पर आपके मन में यह धुकधुकी कैसी? चिन्ता और घबराहट आपको अस्त-व्यस्त किये हुए है। आपको एक घन्टा से पहले से ही गाड़ी छूट जाने का गुप्त भय है। आप तब तक इस चिन्ता और भय से मुक्ति नहीं पाते, जब तक रेल के डिब्बे में पैर नहीं रख लेते, आपके दिमाग में हर प्रकार की चिन्ताएँ घर बनाये रहती हैं, जैसे टिकट खरीदने की चिन्ता, जेब कट जाने या माल चुराये जाने का भय, डिब्बे में स्थान न पाने का डर, गाड़ी के समय से पहले आ जाने का भय, अपनी ही घड़ी के पीछे हो जाने का भय, कुली न मिलने की शंका, अगले कनेक्शन पर गाड़ी छूट जाने की चिंता आदि। इसी प्रकार की न जाने कितनी चिन्ताएँ आपको अस्त व्यस्त कर देती हैं। आप जल्दी-2 चलते हैं, दो चार वस्तुएँ मार्ग में ही भूल जाते हैं, रुपये गिरा देते हैं, या किसी को कुछ आवश्यक सूचना देना भूल जाते हैं। स्टेशन पहुँचते हैं, तो मालूम होता है कि अभी गाड़ी आने में देर है फिर घबराहट शुरू, क्या हमें अच्छी सीट मिलेगी? क्या यह सारा सामान डिब्बे में चढ़ जायगा? क्या सामान का बोझ टिकटों पर ले जा सकने के भार से अधिक तो नहीं है, आपके छोटे बच्चे, जिसका टिकट आपने उसे छोटा समझ कर नहीं खरीदा है, चेकर द्वारा पकड़ तो नहीं लिया जावेगा?

गाड़ी आती है और आप आश्चर्य से देखते हैं कि आपकी सब चिताएँ फिजूल थी? सारी घबराहट व्यर्थ आप मिथ्या काल्पनिक भय में डूबे हुए व्यर्थ ही मन को अस्त-व्यस्त कर रहे थे।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ चिन्ता नहीं होती। जिस गाड़ी में जायेंगे, उसके बारे में सूचनाएँ प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु जब उस गाड़ी को पकड़ने का समय समीप आता है तो ऐसे शान्ति और चिन्तामुक्त बैठे रहते हैं, जैसे उन्हें स्टेशन पर जाना ही नहीं है। ऐसा लगता हैं कि यदि वे नींद में भी हों, तब भी गाड़ी पकड़ लेंगे। ऐसे व्यक्तियों का मानसिक संतुलन इतना मजबूत होता है कि उनकी दिनचर्या तथा विविध कामों में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होती। यह एक दृष्टान्त मात्र है।

घबड़ाहट के अनेक स्थान हैं। परीक्षार्थियों के लिए परीक्षा भवन में अनेक विद्यार्थी आधा पर्चा तो गुप्त भय के कारण भूल जाते हैं। जैसे ही इम्तहान के भवन में दाखिला हुए कि मन में धुकधुक शुरू हो जाती है। जो याद किया है, उसका आधा हिस्सा भूल जाते हैं। घबराहट में जो जानते हैं, उसे भी गलत लिखते हैं। डॉक्टर के लिए घबराहट खतरनाक है। यदि आपरेशन करते समय रोगी की गिरती हुई अवस्था देखकर कहीं वह घबड़ा उठे, तो मृत्यु ही निश्चित है। रेलगाड़ी, मोटरगाड़ी या मोटर साइकिल, रिक्शा आदि के चालक यदि कहीं घबड़ा उठें, तो न जाने कितनों के टक्करें लग जाया करें। वक्ता जब बोलने, या अभिनेता जब अभिनय करने को खड़ा होता है, घबड़ा उठे तो बुरी तरह फेल होता है। जीवन के हर क्षेत्र में घबड़ाहट हानिकारक और घातक है। घबराना भी एक प्रकार की मानसिक आदत है। अतः मनुष्य को इसके स्वरूप को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये और बचने का प्रयत्न करना चाहिये।

जगत तथा समाज में भयानक परिस्थितियाँ आती हैं, उन पर नहीं बल्कि घबराहट की जड़ मनुष्य के मन में मौजूद रहती है। अस्थिरता, असन्तोष, रोग, चंचलता इत्यादि बाह्य जगत पर निर्भर न होकर अस्वास्थ्यकर वातावरण पर निर्भर है। एक व्यक्ति एक भयानक स्थिति देखकर घबरा उठता है, जबकि दूसरा अपने मन के संतुलन और सामर्थ्य के कारण वीरता से उसका सामना करता है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के सिद्धान्तों के अनुसार मनुष्य की जितनी बाहरी क्रियाएँ हैं, उनकी जड़ें मनुष्य के गुप्त मन में रहती हैं। यह गुप्त मन सक्रिय, सतेज, सशक्त और बड़ी प्रबल सामर्थ्य वाला है। अन्दर से यह बाह्य मन तथा शरीर को चलाया करता है। यदि गुप्त मन में (प्रायः बचपन में) कोई भय बैठ जाए, तो उसके फलस्वरूप बुरी सूचनाएँ और बुरे विचार, डर उत्पन्न होते रहते हैं। भय का गुप्त घातक प्रभाव शरीर पर पड़ता है। हम में हानिकारक परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं। हम खतरनाक फलों की कुकल्पनाएँ किया करते हैं। दूसरे जो व्यक्ति घबराते हैं, उन्हें देखकर छूत के रोग की तरह हमें भी घबराहट उत्पन्न होती है। घबराहट गुप्त मन में बनी हुई जटिल भय की मानसिक ग्रन्थि की दूषित प्रतिक्रिया है। इस आदत की जड़ मनुष्य के प्रारम्भिक जीवन, घर की परिस्थितियाँ, भावात्मक अनुभवों में पाई जाती है।

विचार करके देखिये कि घबराहट की डरपोक आदत आपको कैसे पड़ी? बाल्यावस्था में आपको कौन-कौन से भय दिखाये गये? किस-किस ने तंग किया, डराया, धमकाया या परेशान किया? शिक्षकों ने कितनी बार डाँटा डपटा, बुरा भला कहा? सौतेली माँ ने कैसा कुव्यवहार किया? किन-किन कार्यों में आपको असफलता मिली?

यदि आप किसी मनोविश्लेषण करने वाले विद्वान से अपना मनः विश्लेषण करावें, तो वह आपको मन में बनी हुई जटिल कटु और निराशावादी भावना ग्रन्थि का कारण बतलायेगा। जिस बच्चे को आप बार-बार बुरा-बुरा कहते हैं, ताड़ते, धमकाते या निरुत्साहित करते हैं, उसकी समस्त उत्पादक शक्तियाँ पंगु हो जाती हैं, वह बचपन से ही सुस्त और निराशावादी बन जाता है। उसको लज्जा और हीनत्व की भावना बुरी तरह आ घेरती है। वह लज्जा जाता है, दूसरों के समक्ष अपनी सच्ची बात भी कहते हिचकता है। बुरे व्यवहार से उसका आत्म-विश्वास नष्ट हो जाता है। यहीं से उसकी घबराने की आदत निकलती है। विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों से युद्ध करने की शक्ति उसमें नहीं रह जाती है।

अतः मात-पिता, अभिभावक, अध्यापक का कर्तव्य है कि अनुचित डाट-फटकार बच्चों पर न करें। उनकी गलतियों और मूलों को प्यार से ही सुलझावें। ऐसी ताड़ना न कर दें कि बच्चे की महत्वाकाँक्षा ही नष्ट हो जाए। विषम परिस्थितियों से लड़ने की आदत उसमें न रहे।

इसके विपरीत बच्चे में नेतृत्व के गुणों को प्रोत्साहित करने चाहिए। उसके आत्म-विश्वास को पुष्ट करने वाले पुराने वृत्तांत, उसकी छोटी सी विजय के रहस्य, उसकी शानदार सफलताओं, विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत के कार्यों की भरपूर सराहना दिल खोलकर मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी चाहिए।

प्रसिद्ध मनःशास्त्री श्री लालजीराम शुल्क ने तो लिखा है कि “छोटे बच्चे को किसी काम के लिए लज्जित कर देना उसमें घबड़ाने की मनोवृत्ति पैदा कर देना है। ऐसा बालक जन्म भर दूसरों के द्वारा लज्जित किए जाने से डरता है। अतएव उसमें नया काम करने की अथवा नये लोगों से मिलने की हिम्मत ही नहीं होती। हम देखते हैं कि कभी-कभी बड़े लोग बालक की किसी बात पर हँस देते हैं। कक्षा में यदि कोई प्रश्न पूछे तो बालक उपेक्षा कर देते हैं। इस प्रकार बालक लज्जा जाता है, फिर उसमें दूसरों के सामने मुँह खोलने की हिम्मत नहीं रहती। कभी-कभी बालक अपनी किसी भूल के लिए सब लोगों के सामने लज्जित हो जाता है। इसके अनुभव भी बड़े अप्रिय होते हैं। वह इन कटु अनुभवों को भूलने की चेष्टा करता है। वह इन्हें भूल भी जाता है, परंतु ऐसे अनुभव उसको इच्छा शक्ति को निर्बल कर देते हैं। परीक्षा की परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, तो घबड़ा जाता है। वास्तव में यह उसके दबे भाव का नई परिस्थिति पर आरोपण है। इससे कष्ट है कि हमें बच्चे को अधिक डाट फटकार और विपरीत संकेत नहीं देने चाहिए। उसकी भूलों की लम्बी-चौड़ी आलोचना नहीं करनी चाहिए, कटु अनुभवों को बार बार सामने पेश नहीं करना चाहिए।

अपने मन का विश्लेषण कर अपनी घबराहट का वास्तविक कारण जानिये। बार-2 पुरानी स्मृतियों का स्मरण कीजिये। अपनी घबराहट का कारण मालूम होने पर विवेक बुद्धि से उसे दूर किया जा सकता है।

आप गम्भीर दृष्टि से इन कारणों को देखेंगे तो पायेंगे कि वास्तव में ये आपकी कल्पित भावनायें नहीं थी। इनमें सचाई बहुत कम हैं। जिन कारणों को फिजूल सोच-सोच कर आप घबड़ा जाते हैं, वे वास्तव में होने वाले नहीं है। आप इतने बड़े हो गये, पर वे आपके जीवन में कभी नहीं घटे हैं।

वर्तमान विवेकपूर्ण विचार, गुप्त मन को दिये जाने वाले स्वस्थ संकेत या सजेशन और आत्मविश्वास पूर्ण आचरण-ये तीन ऐसे अमोध उपाय हैं, जो हमारी घबराहट की आदत को दूर सकते हैं। इन तीनों से मनुष्य का आत्म-विश्वास बढ़ाया जा सकता है। ज्यों-2 आत्म-विश्वास बढ़ता है, घबराहट की आदत छूटती है।

आप इसलिए घबरा जाते हैं, क्योंकि कार्य की तैयारी पूरे सामर्थ्य और पूरी ताकत से नहीं करते हैं। संसार बड़ी तैयारी और गहराई चाहता है। अधूरे मन से किया हुआ काम फेल होकर आपके आत्म विश्वास को तोड़ डालता है। घबराहट होने लगती है। जो भी कार्य हाथ में लें, उसे शुरू करने से पूर्व पूरी तरह जो कुछ भी हो सकता है मानसिक और बौद्धिक तैयारी कर डालिये। अच्छी तैयारी घबराहट को कभी उत्पन्न न होने देगी। जो व्यक्ति हर बुरी परिस्थिति को लिये तैयार है, उसे क्यों घबराहट होगी? चोर लोग घबराते हैं, बचते हैं, डरते हैं, लज्जित होते हैं। आप जब अच्छी तैयारी कर लेते हैं, तो तमाम कमजोरी समाप्त हो जाती है। जो भी कार्य आप हाथ में ले उसकी पूरी-पूरी तैयारी कर लिया करें। आपकी घबराहट की विरोधी भावना शाँत भावना है। जो शान्ति अविचलित मनःस्थिति को धारण कर लेता है, वह घबराहट का अन्त कर लेता है। हमें शान्त और स्थिर मनःस्थिति में विकास की मानसिक आदत डालनी चाहिए। हर कार्य करते समय मनःशान्ति धारण रखनी चाहिए। शान्ति के ही गुप्त आत्म-निर्देश गुप्त मन को देने चाहिए। आप सदा यही सोचा कीजिये-

मैं सब काम शान्ति से करता हूँ। व्यर्थ के कल्पित भावों में आकर जल्दबाजी नहीं कर बैठता हूँ। मैं शान्त हूँ। परम शान्त और स्थिर हूँ। मेरा मानसिक संतुलन सदा ठीक रहता है। मैं जानता हूँ कि चंचलता से मुक्त रह कर ही मैं उन्नति कर सकता हूं। मुझे कभी कोई घबराहट नहीं होती, क्योंकि मैं भगवान की शक्ति से स्वस्थ प्रसन्न एवं निश्चिंत हूँ। भगवान की शक्ति और प्रेरणा से मेरे लिए जो शुभ और स्थायी है, वही होगा। कोई तूफान या परेशानी मेरी शान्त मनः स्थिति को भंग नहीं कर सकती।

इस प्रकार की गुप्त प्रेरणा बार-2 अपने गुप्त मन को देते रहिये। दिन रात इसी भावना को मन में जमाने से मन की हालत संतुलित हो जायगी। आप मन में ऐसे शान्त व्यक्तियों, मुनियों, विद्वानों, विचारकों, के मानस चित्र मन में लाइये, जैसे शान्त आप स्वयं होना चाहते हैं। इन्हीं बड़े व्यक्तियों की मूर्तियां आपको घबराहट में प्रेरणा देती रहेंगी।

अपनी कल्पना का प्रयोग सही दिशा में कीजिए अर्थात् कल्पना द्वारा ऐसे शुभ और पौरुष पूर्ण मानस चित्र बनाइये जिनमें आप अपना पूर्ण सफल रूप देख सकें। जो सफलता और शान्तिपूर्वक रहने के चित्र आप कल्पना में देखते हैं वे निश्चय ही आपके जीवन में प्रत्यक्ष होंगे। मान लीजिये आपको भावना देने में घबराहट महसूस होती है। अब आप मन में बड़ी सभा का चित्र बनाइये और अपने को उसके सामने धारा प्रवाह बोलते हुए कल्पित कीजिये। सफलता और शान्ति रहने का मानसिक अभ्यास करते-2 निश्चय ही बाह्य जीवन में भी पा सकेंगे।

काम को शान्त, स्थिर और प्रसन्न मन से कीजिये। पहले ही यह न मान बैठिये कि आप अमुक कार्य न कर सकेंगे। धीरे-2 बोलिये। एक-एक काम ही एक बार पूर्ण कीजिये। सम्भव है बहुत से कार्य एक साथ सामने आते देख आप गड़बड़ा जायं और गुप्त भय से थकावट अनुभव करने लगें। धीरे-2 कार्य निपटाने से घबराहट कम होती है।

मन में कार्य की सफलता का पूरा-पूरा विश्वास और संकल्प को दृढ़ रखिए। आप जिस काम को हाथ में ले रहे हैं, उसमें जरूर सफलता प्राप्त करेंगे, यह भाव रखने से मनुष्य की तमाम शक्तियाँ जाग्रत होकर सफलता के लिए प्रयत्नशील बनती हैं अपनी विशेषताओं, अपनी शक्ति यों अपने ईश्वरीय गुणों का ही विचार लगातार कीजिए। भूलकर भी अपनी निर्बलताओं या कमियों को मन में मत लाइये अन्यथा घबराहट बढ़ेगी। निर्बलताओं की बात सोचने से आत्मग्लानि का थोड़ा विचार मन में आता है और कमजोरी पैदा करता है। पहले ऐसे छोटे-छोटे काम हाथ में लीजिए जिनमें आप सफल हो सकते हैं। फिर इनसे कठिन और कष्ट साध्य कार्य हाथ में लेकर उनमें सफलता प्राप्त कीजिए। इससे आपका आत्म विश्वास बढ़ जायगा।

घबड़ाहट का कारण गुप्त मन में संचित भय है अतः जिन बातों को करने में डर लगता हैं, उन्हें अवश्य करना चाहिए। जिन व्यक्तियों से मिलने में संकोच या लज्जा आती है, उनसे जरूर मिलना चाहिए। ऐसा अभ्यास करते-करते मन का छुपा हुआ डर निकल जाता है। अतः सहर्ष मन से निडर होकर आपत्तियों और कठिनाइयों का स्वागत कीजिए।

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