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Magazine - Year 1964 - Version 2

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मथुरा आने का आमन्त्रण

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जुलाई की अखण्ड-ज्योति में ‘जीवन- निर्माण का मासिक प्रशिक्षण’ और ‘गीता के माध्यम से जन - जागरण की शिक्षा’ शीर्षक दो लेखों में अखण्ड - ज्योति के पाठकों को मथुरा आने का आमन्त्रण दिया गया था। अगस्त अंक में इस सम्बन्ध में और भी अधिक स्पष्टीकरण किया जा चुका है। हर्ष की बात है कि इन दोनों निमन्त्रणों का परिजनों ने उत्साह - वर्धक स्वागत किया है और अपनी-अपनी सुविधा का समय देखकर इन प्रशिक्षणों में भाग लेने की स्वीकृतियाँ प्राप्त करके आने की तैयारी में लग रहे हैं।

इस वर्ष आश्विन, मार्गशीर्ष, माघ और चैत्र के चार शिविर शरीर और मन की अस्वस्थता दूर करने की दृष्टि से लगाये जा रहे हैं। चान्द्रायण व्रत के साथ गायत्री पुरश्चरण करने का अवसर जिन्हें मिल सके, उन्हें सौभाग्यवान ही कहना चाहिए। जो लोग चान्द्रायण व्रत न कर सकेंगे, उन्हें उनकी स्थिति के अनुरूप दूध कल्प, छाछ कल्प, शाक कल्प, फल कल्प या अन्न कल्प की विधि से उपवास कराया जायगा और बिगड़े हुए पाचन यन्त्र को सुधारने का प्रयत्न किया जायगा। प्राकृतिक चिकित्सा की व्यावहारिक शिक्षा, साथ ही उसका अपने ऊपर परीक्षण इससे दुहरा लाभ होगा। एक महत्वपूर्ण चिकित्सा विधि भी इतनी छोटी अवधि में सीख ली जायगी और उसकी उपयोगिता का अपने ऊपर प्रयोग करके विश्वास भी हो जायगा।

गायत्री उपासना, चान्द्रायण व्रत के साथ करने पर कितनी प्रभावशाली होती है, यह बात कहने की नहीं, वरन् अनुभव करने की ही है। साधारण रीति से -घर के झंझट-भरे वातावरण में उपासना करने की अपेक्षा गायत्री-तपोभूमि जैसे पवित्र वातावरण में रहकर इस प्रकार की तपश्चर्या के साथ साधना करने का प्रतिफल कुछ दूसरी ही तरह का होगा। आत्म-बल बढ़ने और अन्तःकरण पर चढ़े हुए, कषाय कल्मषो का शमन करने के लिए यह एक महीना किसी के लिए भी बहुत मूल्यवान सिद्ध हो सकता है।

मनोविकारों, मानसिक दुर्बलताओं और मानसिक रोगों को पहचानने, उनके दुष्परिणामों को जानने और जानकर उनके समाधान का उपाय कर सकने में बहुत कम लोग समर्थ होते हैं। इस एक महीने के प्रशिक्षण में शिक्षार्थियों की मानसिक अस्वस्थता को दूर करने का भी प्रयत्न होगा। मानसिक स्वास्थ्य का महत्व शारीरिक स्वास्थ्य से भी अधिक महत्वपूर्ण है, जो यह जानते हैं, उन्हें यह मानसिक परिष्कार के लिए मिलने वाला उपचार भी कम उपयोगी प्रतीत न होगा।

जीवन जीने की कला के विविध पहलू इन शिविरों में समझने को मिलेंगे। शारीरिक, मानसिक ही नहीं, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक, पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने की पद्धति सीखने को मिलेगी और यह सीखा जा सकेगा कि दाम्पत्ति - जीवन को आनन्दमय बनाने और अपने बच्चों को सुयोग्य एवं सुसंस्कृत बनाने का उपाय क्या है? जीवन जीने की कला जितनी ही महत्वपूर्ण है, दुर्भाग्य से आज वह उतनी ही उपेक्षित पड़ी हुई है। शिविरों में आने वाले शिक्षार्थी इस एक महीने की अवधि में जीवन विद्या का जितना अंश सीख सकेंगे, वह उनके लिए जन्म भर एक अविस्मरणीय उपहार की तरह आनन्ददायक प्रतिफल देता रहेगा।

इसी प्रकार कार्तिक, पौष, फाल्गुन, बैसाख में होने वाले ‘चार गीता शिविर’ उन लोगों के लिए एक दैवी वरदान की तरह उपयोगी सिद्ध होंगे, जो नये युग का नया नेतृत्व करने के लिए साहस कर सकते हैं। राजनैतिक नेतृत्व अब फिसड्डी सिद्ध होने वाले हैं। सामाजिक एवं चारित्र्यक क्षेत्र ही अपनी आवश्यकता एवं उपयोगिता प्रतिपादित करेंगे। इन्हीं क्षेत्रों का नेतृत्व मानव जाति की समस्याओं का समाधान करेगा और जो लोग इन क्षेत्रों में अपना वर्चस्व प्रदर्शित करेंगे, वे संसार में ऐतिहासिक महापुरुषों की तरह अजर - अमर बने रहेंगे।

युग की पुकार ऐसे ही लोक - नायकों की है, जो अन्धकार में भटकती हुई मनुष्य जाति को उसकी सामाजिक, नैतिक, शारीरिक एवं मानसिक स्थिति उत्तम बनाकर सुख शान्ति का चिरस्थायी वातावरण प्रस्तुत कर सकें। इस आवश्यकता की पूर्ति गीता प्रवचनों द्वारा सम्भव है। भगवान श्रीकृष्ण ने मोह - ग्रस्त अर्जुन पर यही अमृत बरसाया था। मूर्च्छित समाज के लिए आज फिर उसी संजीवनी बूटी की आवश्यकता पड़ी है। अस्तु प्रयत्न यह किया जा रहा है कि गीता प्रचारकों के रूप में सहस्रों जन-नायक जन-मानस की दिशा मोड़ने के लिए निकल पड़े और धार्मिकता एवं आस्तिकता के वातावरण में जनसाधारण के अन्तःकरणों तक वह प्रेरणा पहुँचावें, जिससे सुनने वालों की चित्त वृत्तियाँ आशा जनक मोड़ लिये बिना न रह सकें।

ठीक भागवत सप्ताह की पद्धति पर गीता के साप्ताहिक धर्मानुष्ठानों की परम्परा हमें प्रचलित करनी है। उसकी रूप-रेखा क्या होगी? यह पिछले दो अंकों में कहा जा चुका है। गीता के श्लोक, उनकी संगति वाली रामायण की चौपाइयां, हर श्लोक के साथ धर्म-पुराणों की कथाएं तथा ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन होने से कथा, साधारण कथा न रहेगी। वरन् वह अमृत वर्षा बन जाएगी। जनता द्वारा छन्द बद्ध गीता अनुवाद का गायन वाद्य के साथ सामूहिक रूप से कीर्तन, भजन की तरह परायण किया जाना बहुत ही आकर्षक एवं आनन्दमय प्रतीत होगा। उसे सुनते-2 उठने को किसी का मन न करेगा। इस प्रकार की आकर्षक कथा शैली का प्रशिक्षण इन एक महीने के शिविरों में होगा। आत्म कल्याण के लिए आवश्यक ज्ञान प्राप्त करने के अतिरिक्त जन-मानस में प्रेरणा भर देने वाले प्रवचन पद्धति भी सीख ली जाएगी। यह कम महत्त्व ही बात नहीं है।

इसी अवधि के षोडश संस्कार, जन्म दिन, विवाह दिन आए संस्कार और त्यौहार पर्व मनाने की विधि विधान सिखा दिया जायेगा। जिससे परिवार धार्मिकता और कर्त्तव्य-परायणता की प्रतिष्ठापना सम्भव हो सके। घरेलू प्रवचन इन्हीं माध्यमों से ही होते हैं। व्यक्तिगत जीवन को संस्कारवान् बनाने के लिए इन संस्कारों की कितनी अधिक आवश्यकता है? यह बताना जरूरी नहीं। कठिनाई यह थी कि ऐसी सरल संस्कार पद्धति अब तक थी नहीं जो थी, उनका व्यावहारिक ज्ञान न होने से केवल पुस्तक के आधार पर कुछ बनाना पड़ता था। अब वह सब व्यावहारिक रूप से सिखाया जाएगा तो उसका प्रयोग भी सरल बन जाएगा। गायत्री मंत्र की आम तौर से जरूरत पड़ती रहती है। इसका आद्योपांत परिपूर्ण विधान जान लेने से भी गायत्री मंत्र के माध्यम से होने वाले सामूहिक धर्म शिक्षण का एक वक्त बड़ा कार्य कर सकना आ जाता है।

सच्चे धर्म प्रचारकों की पहले भी आवश्यकता थी और अब भी है। सच्चे ब्राह्मणों के लिए प्राचीन काल में भी अपार श्रद्धा थी, अब भी है और आगे भी रहेगी। यह ब्राह्मणत्व की परम्पराएँ सदा की भाँति आगे भी अभिष्ट रहती है। इस पुण्य प्रक्रिया का शिक्षण युग-निर्माण के उद्देश्य करने की जो व्यवस्था की गई है, उसे सोने में सुगन्ध ही कहना चाहिए। इस माध्यम से गुजारे की समस्या भी सहज ही हल हो जाती है। माध्यम वृत्ति से गुजारा करने और गृहस्थ पालने के योग्य आजीविका भी इस माध्यम से मिल ही जाने वाली है।

गीता प्रचारक वस्तुतः युग - निर्माण योजना के उद्देश्यों और आदर्शों को विश्वव्यापी बनाने वाले जन - नेता ही होंगे। उनका स्थान दक्षिणा - खाऊ, पोथी - पण्डितों में नहीं, वरन् धर्म - सैनिकों में, युग - प्रवर्त्तकों में होगा। इसलिए जो उस मार्ग पर चलना चाहें वे इन एक - एक महीने के गीता शिविरों में आने की तैयारी करें। शाखाएँ अपने प्रतिनिधि इस प्रशिक्षण के लिए भेज सकती हैं। जिनके यहाँ पंडित पुरोहित या यजमानी कार्य होता है उनके लिए तो यह सब दृष्टियों से उपयुक्त है।

जिन्हें पारिवारिक उत्तरदायित्वों से छुट्टी मिल गई वे तपोभूमि में आकर निवास करने के लिए सादर आमन्त्रित किये जा रहे है। वेद, शास्त्र, दर्शन, उपनिषद्, गीता, रामायण आदि विधिवत पढ़ने और साधना करने का यह जो शान्तिमय वातावरण है, वह वृद्धावस्था के उद्देश्यों को पूरा करके पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा सकता है। अब तपोभूमि में स्थान सम्बन्धी जो नई सुविधा हो गई है, वह घर से निवृत्त हो जाने वालों के लिए बहुत ही सुविधाजनक है। जो अपने खर्च की व्यवस्था घर से चला सकते हों, उन वयोवृद्धों को मथुरा आकर अपना जीवन सफल बनाने की साधना में लग जाना चाहिए। इस प्रकार की परिस्थिति वालों को तपोभूमि सादर आमन्त्रित करती है। सभी शिक्षार्थी निवास की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे, पर उन्हें अपनी भोजन व्यवस्था स्वयं करनी होगी।

मथुरा आने के लिए - इन प्रशिक्षणों से लाभ उठाने के लिए अखण्ड - ज्योति परिवार के सभी परिजनों को आमन्त्रित किया गया है। बीमारी आदि के समय जैसे कुछ दिन साधारण काम छोड़ने पड़ते हैं, उसी तरह इन शिक्षाओं के लिए भी समय निकालने का प्रयत्न करना चाहिए। यह स्वर्ण - सुयोग न छोड़े जाने लायक ही है।

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