• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आध्यात्मिकता की मुसकान
    • ईश्वर है या नहीं?
    • परिवार में आस्तिकता का वातावरण
    • महानता की प्राप्ति और उसके साधन
    • धर्म-रक्षा से आत्म-रक्षा
    • शुभ-संस्कार संचित कीजिये
    • संस्कृति का स्वरूप और लक्ष्य
    • हम संयमी बनें-शक्ति का अपव्यय न करें
    • स्वाध्याय सन्दोह - - जीवन का सदुपयोग कीजिए
    • मृत्यु हमारे जीवन का अन्तिम अतिथि
    • सत्य में अपवाद
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • वह खिलौना (Kavita)
    • कुटिल कुनीति (Kavita)
    • उठो फूट के पात्र को फोड़ डालो (Kavita)
    • नव जीवन (Kavita)
    • मुझे रुकना नहीं (Kavita)
    • महत्वाकाँक्षायें अनियन्त्रित न होने पावें
    • वाणी का ठीक उपयोग करना सीखें
    • दान-आत्म-कल्याण की एक श्रेष्ठ साधना
    • विवाह एक व्रत है- एक संकल्प भी।
    • निराशा से दूर ही रहिए
    • जीवन संग्राम में पुरुषार्थ की आवश्यकता
    • नम्रता और सहिष्णुता
    • टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
    • आत्म-ग्लानि में मत डूबे रहिए
    • प्राणवान बनना है तो प्राणायाम कीजिए
    • साँस्कृतिक उत्थान की नींव बाल-उत्थान
    • जनसंख्या वृद्धि का अभिशाप
    • खाद्य-पदार्थों में मिलावट कैसे दूर हो।
    • युग-निर्माण आन्दोलन की प्रगति
    • अगले वर्ष की विशिष्ट साधना
    • प्रतिनिधि फार्म इसी महीने आ जाय
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


आत्म-ग्लानि में मत डूबे रहिए

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 26 28 Last
आत्म-ग्लानि मनुष्य के मन की एक भावना ग्रन्थि है जो जाने-अनजाने, भूलवश या असावधानी में किए गये पापों पर अत्यधिक पश्चाताप करने से पैदा हो जाती है। वैसे किसी भी दुष्कृत्य, पाप-कर्म पर मनुष्य को पश्चाताप अवश्य होता है और उस सीमा तक यह आवश्यक भी है जब मनुष्य भविष्य में वैसा न करने का संकल्प करता है, पाप कर्मों से बचने के लिए भूल सुधार का दृढ़ प्रयत्न होता है। ऐसी स्थिति में पश्चाताप मनुष्य का पाप से उद्धार भी कर देता है। लेकिन जब यह सीमा से अधिक बढ़ जाता है तब आत्म-ग्लानि का रूप धारण कर लेता है। आत्म-ग्लानि की स्थिति में मनुष्य सुधार की ओर अग्रसर नहीं होता वरन् अपने आपको पापी, दुराचारी मान बैठता है। इस हीन भावना से उसकी कार्यक्षमता, सृजन-शक्ति व्यर्थ ही नष्ट होने लगती है। हीन विचारों में डूबे रहने से कई शारीरिक और मानसिक व्याधियां उत्पन्न हो जाती है।

आत्म-ग्लानि पैदा हो जाने पर मनुष्य अपने आपको पापी, दुष्ट समझकर धिक्कारता रहता है। वह सामाजिक जीवन में उत्तर कर कोई काम करने में एक प्रकार का भय और घबराहट सी महसूस करता है। अब जो आत्म-ग्लानि के आधिक्य से दबा हुआ है चाहे कितना ही योग्य, अनुभवी, जानकार क्यों न हो, वह प्रगति के पथ पर आगे न बढ़ सकेगा क्योंकि जो आगे कदम रखने से पूर्व ही अपने आपको पापी मान बैठा है, दूसरों के साथ चार आँखें करने की जिसमें हिम्मत नहीं है, संकोच, शंकायें, भय जिसे कुछ करने नहीं देते, ऐसा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल हो सके यह सम्भव नहीं। अत्यधिक पश्चाताप अथवा आत्म-ग्लानि के कारण हम कई बार बिना अपराध के भी अपने आपको अपराधी मान बैठते हैं। कभी बचपन में या किशोरावस्था में कोई भूल हो बैठी हो, कोई बुरी आदत पड़ गई हो, कोई बुरा काम बन पड़ा हो उसे जीवन भर रटते रहना अपने को कोसते रहना, स्वयं को बुरा समझ बैठना सचमुच ऐसी ही भूल है। ऐसी स्थिति में रास्ते में, बाजार में चलते हुए भी मनुष्य यह अनुभव करने लगता है कि दूसरे लोग उसकी बुराइयों को देख रहे है और उसे बुरा समझ रहे हैं। इस भय के कारण वह दूसरों से नीची निगाह रखता है। कुछ बोलने से पूर्व हड़बड़ा जाता है।

इस तरह के लोग जीवन भर आत्म-ग्लानि में डूबे रहते है। उनके जीवन की महत्वपूर्ण सम्भावनायें नष्ट हो जाती हैं। उसकी महत्वाकांक्षायें, आशा, अभिलाषायें, उमंगें असमय ही मुरझा जाती हैं। ऐसे होनहार, प्रतिभावान, जीवट सम्पन्न युवकों की संख्या कम नहीं है जो आत्म-ग्लानि के शिकार होकर अपने जीवन को नष्ट कर लेते हैं। किसी सामान्य-सी भूल को बहुत महत्व देकर जीवन भर लज्जा, शोक में डूबे रहकर अपराधी की तरह मानसिक परेशानी में डूबे रहते हैं। अपनी अबोध अवस्था में या अज्ञानवश किये गये किसी पाप पर जीवन भर पश्चाताप करते रहते हैं, दुःखी बने रहते हैं।

जैसा कि उत्तर बताया जा चुका है किसी भूल अथवा बुरे काम के सम्बन्ध में पश्चाताप करना उत्तम है, लेकिन यह तारक होना चाहिए। भविष्य में ऐसा न करने का संकल्प करके सदैव उससे बचते रहने का प्रयत्न करना, ऐसे वातावरण, संग-साथ एवं साधनों से दूर रहना जो बुराई की ओर प्रवृत्त करें, इसके लिए आवश्यक होता है। पिछली भूल से शिक्षा लेकर आगे के लिए उसका सुधार कर लेना और फिर पाप की भावना सदा के लिए भुला देना, पश्चाताप का सच्चा स्वरूप है।

आप से जो कुछ बुराई हो चुकी उसे भूल जाइये। मैन्सफील्ड ने कहा है- “आप इसे अपनी जिंदगी का नियम बना लें कि बीती हुई बातों को भूल जाएँगे, कभी पश्चाताप न करेंगे। बिगड़ी हुई बातों को याद करना कीचड़ से सने रहने के समान है।” भूतकाल में हमसे जो कुछ भी बुराई हो गई हो उसे “बीती ताहि बिसार दे” के अनुसार भुलाने में ही कल्याण है।

आत्म-ग्लानि को बढ़ने न दें, अन्यथा यह एक ऐसी मानसिक दुर्बलता के रूप में जम जायगी जो कुछ भी न करने देगी। कोई भी बुराई क्यों न हो गई हो उसे अनावश्यक तूल न दीजिए। कीचड़ में गिर पड़ने पर उठकर उसे धो लेना ही श्रेयष्कर है। कीचड़ में पड़े रहने का पश्चाताप करने में लग जाना, उसी का रोना रोते रहना ठीक नहीं। पूर्णतः पाक-साफ, दूध का धुला हुआ कोई नहीं होता। भूलें, बुराइयाँ, पाप बन जाना मनुष्य की स्वाभाविक कमजोरी है। प्रत्येक मनुष्य पैदा होने से मरने तक कोई न कोई बुरा काम कर ही बैठता है। गिर कर उठने में, बुराई से भलाई की ओर आगे बढ़ने में ही मनुष्य की श्रेष्ठता है। अपने पापों पर पश्चाताप कर आत्मग्लानि में न डूबें। याद रखिये प्रत्येक बहुत से दूसरे व्यक्ति भी इन्हीं बुराइयों के मार्ग से गुजरे हैं और जीवन में बहुत आगे बढ़े हैं।

कई बार हम घटनाओं, परिस्थितियों को अपने ही पापदण्ड से नापने का व्यर्थ प्रयत्न करते हैं। जब इनका परिणाम अपने मनोनुकूल नहीं निकलता तो इस पर पश्चाताप करते हैं और धीरे-धीरे आत्मग्लानि के शिकार बन जाते हैं। किन्तु यह तो असम्भव बात है कि जीवन की घटनाओं का हमारी रुचि के अनुसार ही परिणाम निकले। क्योंकि इनका सम्बन्ध केवल हमारी रुचि से ही तो नहीं होता वरन् बहुत-सी बातों से होता है और जब तक सबका तालमेल नहीं बैठता, सफलता नहीं मिलती। अपना एक लक्ष्य एवं निश्चित कार्यक्रम बनाकर उसमें लगे रहें। अनुकूलता पर गर्व भी न करें तो प्रतिकूल परिस्थितियों में पश्चाताप भी न करें। यही आगे बढ़ने का मध्यम मार्ग है।

आत्म-ग्लानि से बचने के लिए आत्म-विश्वास और उत्साह को बढ़ाइये। मिल्टन पावेल ने बताया है कि-”आत्म-ग्लानि से मनुष्य को बचाने के लिए उसके मन में धँसी हुई भय की भावना और भीरुता को दूर करना आवश्यक है।” अपनी शक्तियों पर, योग्यता और क्षमता पर विश्वास कीजिए। आप सब कुछ कर सकते हैं, उसी तरह ऊँचे उठ सकते है जिस तरह दूसरे मनस्वी लोग उठते हैं। अपने आत्म-विश्वास को जगाइये। आत्म-ग्लानि से बचने के लिए भय की भावना को दूर कीजिए। जब तक हम अपने आपको असमर्थ, दीन-हीन, अयोग्य मानते रहेंगे तब तक संसार में दूसरा कोई हमें कैसे महत्वपूर्ण मानेगा? यह सच है कि हम जैसा स्वयं अपने आपको समझते हैं उसी दृष्टि से हमें दुनिया भी देखती है। उत्साही विचार, दिव्य संकेत, आत्म-विश्वास की भावनाओं का नित्य अभ्यास करना चाहिए।

दुनिया से भागने में या एकान्त की शरण लेने से भी काम नहीं चलेगा। सामाजिक जीवन में खुलकर भाग लेने पर ही आत्म-ग्लानि की भावना से पीछा छुड़ाया जा सकता है। किन्हीं सभा-समितियों में जाने, बोलने, गाने-बजाने, खेलने-कूदने के अवसर मिलें तो उनका बेधड़क होकर उपयोग करना चाहिए। कदाचित प्रारम्भ में कई बार हँसी भी हो तो उससे न घबरा कर सदैव ऐसे अवसरों की तलाश में रहना चाहिए और अपना अभ्यास जारी रखना चाहिए। आप देखेंगे कि एक दिन आप में लोगों को प्रभावित करने की महत्वपूर्ण क्षमता पैदा हो जाएगी, जिसकी सम्भावना ही प्रारम्भ में झेंप जाने या घबरा जाने से नष्ट हो सकती है।

अपने शरीर को सदा स्वस्थ और तरो-ताजा रखें। इससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहेगा। और आप अनावश्यक सोच विचार, पश्चाताप से बचे रहेंगे। कमजोर, बीमार जीर्ण रोगी व्यक्तियों में आत्म-ग्लानि की भावना अधिक होती है, उन्हें अपने आप से असन्तोष एवं घृणा रहती है। इसका कारण उनका मनः संस्थान दुर्बल हो जाना है। प्रकृति की गोद में, खुले वातावरण में, खुले आकाश की छाया में खूब घूमें, संसार के सौंदर्य एवं सरलता पर विचार करके प्रसन्न होते रहें।

लज्जा, भय, संकोच को दूर करें, पुराने पापों को भूल जायें। मन में आत्म-विश्वास, साहस की भावनाओं को जगायें, आत्म-ग्लानि से बचने के लिए। स्मरण रहे कि इससे मनुष्य की मौलिक शक्तियों और क्षमताओं का बहुत ज्यादा ह्रास होता है अतः सफल जीवन के लिए आत्म-ग्लानि से बचें।

First 26 28 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आध्यात्मिकता की मुसकान
  • ईश्वर है या नहीं?
  • परिवार में आस्तिकता का वातावरण
  • महानता की प्राप्ति और उसके साधन
  • धर्म-रक्षा से आत्म-रक्षा
  • शुभ-संस्कार संचित कीजिये
  • संस्कृति का स्वरूप और लक्ष्य
  • हम संयमी बनें-शक्ति का अपव्यय न करें
  • स्वाध्याय सन्दोह - - जीवन का सदुपयोग कीजिए
  • मृत्यु हमारे जीवन का अन्तिम अतिथि
  • सत्य में अपवाद
  • मधु-संचय
  • मधु-संचय (Kavita)
  • वह खिलौना (Kavita)
  • कुटिल कुनीति (Kavita)
  • उठो फूट के पात्र को फोड़ डालो (Kavita)
  • नव जीवन (Kavita)
  • मुझे रुकना नहीं (Kavita)
  • महत्वाकाँक्षायें अनियन्त्रित न होने पावें
  • वाणी का ठीक उपयोग करना सीखें
  • दान-आत्म-कल्याण की एक श्रेष्ठ साधना
  • विवाह एक व्रत है- एक संकल्प भी।
  • निराशा से दूर ही रहिए
  • जीवन संग्राम में पुरुषार्थ की आवश्यकता
  • नम्रता और सहिष्णुता
  • टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
  • आत्म-ग्लानि में मत डूबे रहिए
  • प्राणवान बनना है तो प्राणायाम कीजिए
  • साँस्कृतिक उत्थान की नींव बाल-उत्थान
  • जनसंख्या वृद्धि का अभिशाप
  • खाद्य-पदार्थों में मिलावट कैसे दूर हो।
  • युग-निर्माण आन्दोलन की प्रगति
  • अगले वर्ष की विशिष्ट साधना
  • प्रतिनिधि फार्म इसी महीने आ जाय
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj