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Magazine - Year 1966 - Version 2

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First 19 21 Last
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येननाकः। यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ (ऋ ग. 10। 121। 5)

जिस दैवी शक्ति ने विशाल द्युलोक को, पृथिवी को, स्वर्लोक और नाक-लोक को अपने-अपने स्वरूप में स्थिर कर रखा है और जो अन्तरिक्ष-लोक भी व्याप्त हो रही है, उसको छोड़कर हम किस देव की स्तुति और उपासना कर सकते हैं? अर्थात् हमको उसी महाशक्ति-रुपणी देवता की पूजा करनी चाहिये।

==========================================================================

=कहानी====================================================================

=कहानी====================================================================

First 19 21 Last


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