
इन अनुरोधों की उपेक्षा न की जाय।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
“अखण्ड-ज्योति” के गत अंक में परिजनों के सम्मुख चार सामयिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए थे।
(1) एक से दस आन्दोलन को तीव्र किया जाय। अपने परिवार, रिश्ते तथा संपर्क के प्रत्येक भावनाशील व्यक्ति को नवनिर्माण की विचारधारा से परिचित सम्बन्धित रखने के लिए उसे अखण्ड-ज्योति एवं जनजागरण का अन्य साहित्य नियमित रूप से पढ़ने सुनाने के लिए तैयार किया जाय। लोगों में विचार शक्ति का सन्देश पढ़ने सुनने की अभिरुचि उत्पन्न करना हमारा आरम्भिक एवं आवश्यक कार्य है। इसलिए हम में से ही एक को कम से कम दस व्यक्तियों तक युगनिर्माण की विचारधारा का सन्देश पहुँचाते रहने का व्रत लेना चाहिये।
(2) क्लीं बीज युक्त गायत्री महामंत्र का जो शक्ति पुरश्चरण अपने परिवार द्वारा चल रहा है। उसमें प्रत्येक परिजन को भागीदार बनना चाहिए। भले ही वह दस मिनट में हो सकने वाली एक माला 108 मन्त्रों जितना ही कम क्यों न हो। राष्ट्र को सर्वांगीण सशस्त्रता के लिए प्रस्तुत पुरश्चरण, जिसके अंतर्गत प्रति मास 24 करोड़ जप हो रहा है एक अमोघ अध्यात्मिक उपचार है। राष्ट्रीय सुरक्षा एवं समर्थता के भौतिक उपचारों के साथ-साथ यह आध्यात्मिक अनुष्ठान भी एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इसका लाभ आगे चलकर और भी अधिक होता है। इसमें अखण्ड-ज्योति का प्रत्येक सदस्य भागीदार बने। जिसने अभी यह उपासना आरम्भ न की हो वे अब से शुरू कर दें।
(3) जेष्ठ में 25 मई से आरम्भ होकर 13 जून तक चलने वाले 20 दिन के शिविर में परिजनों को मथुरा आने की तैयारी करनी चाहिए। शिक्षा तो साहित्य के माध्यम से भी दी जा सकती है पर प्रेरणा के लिये व्यक्तिगत संपर्क-सान्निध्य आवश्यक है। परिजन साल में 20 दिन हमारे साथ रहें तो यह हमारे लिए आनन्द का और परिजनों के लिए नया प्रकाश एवं मार्ग दर्शन प्राप्त करने का सुअवसर होगा। जो आ रहे हों, वे पूर्व स्वीकृति ले लें।
(4) संस्कार एवं पर्वों को प्रेरणाप्रद ढंग से मनाने का आन्दोलन अब हमें सर्वत्र एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया के रूप से चलाना चाहिये। उसमें धार्मिक आधार पर व्यक्ति परिवार एवं समाज के नवनिर्माण का उद्देश्य बड़ी सरलता एवं सफलतापूर्वक पूर्ण होगा। इनका विधि विधान पूरा करने का ढंग तथा इन अवसरों पर किये जाने वाले उद्बोधन प्रवचन का ढंग, हर शाखा को सीखना चाहिये जो पुराने पण्डित पुरोहित हैं, उन्हें भी इसे अपनाना चाहिए।
इस क्रिया पद्धति को सीखने के लिए शाखाओं में चार दिवसीय प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन होना चाहिये इनके लिये शिक्षण कर्ता मथुरा से भेजे जायेंगे। जहाँ आवश्यकता समझी जाय और सुविधा हो वहाँ इन शिविरों की माँग की जाय। माँगों के आधार पर एक क्रम से प्रशिक्षण कर्ता आगे बढ़ते जायेंगे, तदनुरूप तारीखें निश्चित कर दी जायेंगी। शिविर जुलाई में आरम्भ होंगे पर उनकी तिथियाँ अभी से निश्चित होनी हैं, अतएव उस सम्बन्ध में भी आवश्यक पत्र व्यवहार अवश्य किया जाना चाहिये।
गत अंक में प्रस्तुत यह चारों ही कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं। इनकी ओर परिजनों को समुचित ध्यान देना चाहिये, अपनी प्रतिक्रिया हमें सूचित करनी चाहिये। नवनिर्माण के लिये हमें अखंड-ज्योति का पाठक मात्र ही नहीं बने रहना है, वरन् सक्रिय रूप से कुछ करने के लिए भी तत्पर होना चाहिये।
पांचवां कार्यक्रम इस अंक में प्रस्तुत है। एक वर्ष के लिये प्रशिक्षण की जो योजना है, वह हर उज्ज्वल महत्व का स्वप्न देखने वाले व जीवन को सार्थकता की ओर अग्रसर करने के महत्वाकाँक्षी को अपने लिए सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होगी। यह एक वर्षीय प्रशिक्षण किसी की जीवन दिशा को प्रगति की ओर मोड़ सकता है। जिन्हें अवसर होवे इसका लाभ अवश्य उठावें।