• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • प्रार्थना ही नहीं पवित्रता भी
    • आत्मा असीम शक्तियों का केन्द्र बिन्दु
    • आत्मा की समीपता की ओर कदम
    • आत्मवत् सर्वभूतेषुः
    • कर्म-योग और कर्म-कौशल
    • आत्मा का वास
    • यज्ञ से सुख और समृद्धि का भौतिक विज्ञान
    • भक्ति-पथ की जीवन-नीति
    • चेतना का अस्तित्व और अनुभूति
    • मन का जीतना-सबसे बड़ी विजय
    • स्वाध्याय, जीवन विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता
    • ब्रह्म का नाद स्वरूप और शक्ति परिचय
    • सुगन्ध और सौंदर्य
    • हमारा दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं विशाल हो
    • ‘अमरत्व’ और ‘इच्छा आयु’ असम्भव नहीं
    • ब्रह्मचर्य, शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का आधार
    • सराक्यूज की रोती हुई प्रतिमा
    • कठिनाइयों से लड़ें और अपना साहस बढ़ायें
    • हकीम लुकमान
    • अदृश्य किन्तु प्रभावोत्पादक शक्ति-संगीत
    • VigyapanSuchana
    • पशु-बलि से देवता अप्रसन्न होते हैं और बदनाम भी
    • भय से पराजय
    • महासर्पिणी कुण्डलिनी और उसका महासर्प
    • हरि इच्छा- बलवान
    • अपनों से अपनी बात- - हमारे पांच पिछले और पांच अगले कदम
    • ग्रीष्म शिविरों में आने का सादर आमन्त्रण
    • स्वावलम्बन एवं व्यक्ति निर्माण की शिक्षा
    • मानवता का मन्दिर
    • मानवता का मन्दिर (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • प्रार्थना ही नहीं पवित्रता भी
    • आत्मा असीम शक्तियों का केन्द्र बिन्दु
    • आत्मा की समीपता की ओर कदम
    • आत्मवत् सर्वभूतेषुः
    • कर्म-योग और कर्म-कौशल
    • आत्मा का वास
    • यज्ञ से सुख और समृद्धि का भौतिक विज्ञान
    • भक्ति-पथ की जीवन-नीति
    • चेतना का अस्तित्व और अनुभूति
    • मन का जीतना-सबसे बड़ी विजय
    • स्वाध्याय, जीवन विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता
    • ब्रह्म का नाद स्वरूप और शक्ति परिचय
    • सुगन्ध और सौंदर्य
    • हमारा दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं विशाल हो
    • ‘अमरत्व’ और ‘इच्छा आयु’ असम्भव नहीं
    • ब्रह्मचर्य, शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का आधार
    • सराक्यूज की रोती हुई प्रतिमा
    • कठिनाइयों से लड़ें और अपना साहस बढ़ायें
    • हकीम लुकमान
    • अदृश्य किन्तु प्रभावोत्पादक शक्ति-संगीत
    • VigyapanSuchana
    • पशु-बलि से देवता अप्रसन्न होते हैं और बदनाम भी
    • भय से पराजय
    • महासर्पिणी कुण्डलिनी और उसका महासर्प
    • हरि इच्छा- बलवान
    • अपनों से अपनी बात- - हमारे पांच पिछले और पांच अगले कदम
    • ग्रीष्म शिविरों में आने का सादर आमन्त्रण
    • स्वावलम्बन एवं व्यक्ति निर्माण की शिक्षा
    • मानवता का मन्दिर
    • मानवता का मन्दिर (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1969 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


मन का जीतना-सबसे बड़ी विजय

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
इस प्रकार संसार के अतिरिक्त मनुष्य का एक मानसिक संसार भी होता है। इसका संचालक मनुष्य का गुप्त मन होता है। मनुष्य का यह मानसिक संसार बड़ा ही व्यस्त और विचित्र होता है। प्रतिक्षण इसमें नई-नई कल्पनायें और कामनायें जन्म लेती रहती हैं। जिनमें से बहुत सी मर भी जाया करती हैं और बहुत सी पलती पनपती रहती हैं और किसी दिन अवसर पाकर बाह्य संसार के बीच प्रकट होने लगती हैं।

मनुष्य का यह मानसिक संसार बड़ा गुप्त होता है। इसका दर्शन संसार में किसी को नहीं हो पाता। हाँ अपने मनोराज्य का स्वामी मनुष्य अवश्य इसे देखा करता है। सो भी तब ठीक से देख पाता है, जब उसका विवेक प्रखर और प्रबुद्ध हो। अन्यथा देखता हुआ भी वह इसे नहीं देख पाता इसका तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति ने अपने विवेक को प्रखर और प्रकाशित नहीं किया होता है, वह मानसिक संसार की क्रियायें देखता तो है, किन्तु न ता उनका तात्पर्य समझ पाता है और न उनसे होने हानि-लाभ को ही विदित कर पाता है। ऐसी दशा में उसका देखना न देखना बराबर ही होता है।

यह मनोराज्य बड़ा ही सूक्ष्म होता है, अस्तु स्थूलताओं की गति इसमें नहीं हो पाती। यह स्वयं भी निराकार होता है और निराकार शून्य में ही स्थित रहता है। सूक्ष्म होने से इसमें बड़ी प्रबल शक्तियों का निवास रहता है। जो मनीषी व्यक्ति इस मानसिक संसार पर पूरा-पूरा आधिपत्य और शासन स्थापित कर लेता है, वह त्रिलोक और त्रिकाल का ज्ञाता हो जाता है, आत्मा में निवास करने वाले अमृत का भोगी बन जाता है। पूर्वकालीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने, जिन्होंने देशकाल को जीत लिया था और आत्मा के अमृत पर अधिकार स्थापित कर लिया था, अपनी साधना, उपासना और तपश्चर्या द्वारा पहले इस मनोराज्य पर ही विजय प्राप्त की थी। मनोजयी, सर्वजयी होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं।

इस मनोविस्तार के पीछे आत्मा का क्षेत्र रहता है। उसमें प्रवेश करने के लिए पहले इसे ही भेदन करना पड़ता है। जब तक इस लोहावरण का भेदन नहीं होता, आत्म लोक का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। आध्यात्मिक समर का यह दूसरा मोर्चा है। पहला मोर्चा शारीरिक अर्थात् स्थूल संसार का होता है। आध्यात्म योद्धा को पहले इन्द्रियों, उनकी तृष्णाओं और वासनाओं पर विजय करनी होती है, अनन्तर वह इस विजय का शंख फूँकता हुआ मानसिक मोर्चे की ओर बढ़ता है और इसको जीतने के बाद आत्मिक क्षेत्र में प्रवेश कर पाता है।

मनुष्य इस स्थूल जगत में जिस क्रिया को भी व्यक्त करता है, उसका जन्म पहले पहल मानसिक लोक में ही होता है। अपनी जन्मभूमि के अनुसार वह क्रिया भी निराकार रूप में ही जन्म लेती है - जिसे विचार कह सकते हैं। क्रियाओं का जन्म पहले विचारों के रूप में ही होता है। उसके बाद वे मन से प्रेरित होकर स्थूल जगत में आती और इन्द्रियों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति पाती हैं।

स्पष्ट है कि भूमि के अनुसार ही फसल पैदा होती है। भूमि अच्छी और स्वस्थ होगी फसल भी सुन्दर और स्वस्थ होगी। भूमि विकृत और मलीन होगी फसल भी उसी के अनुसार रद्दी और निम्नकोटि की होगी। इतना ही क्यों यदि भूमि में विषैले तत्त्वों का समावेश होगा तो उसकी उपज भी विषाक्त ही होगी। इसी प्रकार मनोभूमि के अनुसार मनुष्य के विचारों का जन्म होता है। मनोभूमि सुन्दर स्वस्थ और अनुकूल होगी, सुन्दर, स्वस्थ और अनुकूल विचारों का जन्म होगा। विचारों के अनुसार क्रियायें होंगी और क्रियाओं के अनुसार परिणाम। विकृत एवं विषाक्त मनोभूमि की गर्भ से विकृत और विषैले विचार जन्मेंगे, अपकर्मों में व्यक्त होंगे और तदनुसार दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम सम्पादित करेंगे। कर्मों का परिणाम मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन, उसके जन्म-जन्मान्तरों और लोक-परलोक से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार मनुष्य की सुगति और अवगति का सारा निर्माण उसकी मनोभूमि के ही अधीन है।

मनुष्य जीवन में मनोराज्य का बहुत महत्व है। इसकी अनुकूलता, प्रतिकूलता पर ही मनुष्य का उत्थान, पतन निर्भर है। मनुष्य के मनोराज्य में सद् और असद् दोनों तरह की वृत्तियों का निवास रहता है। किन्तु प्रायः सद्वृत्तियों पर असद् वृत्तियाँ हावी रहती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि असद् वृत्तियाँ आपसे-आप चैतन्य और सक्रिय रहती हैं किन्तु सद्वृत्तियाँ नहीं। जहाँ दुष्ट स्वभावतः चंचल और क्षिप्र रहते हैं, वहाँ सज्जन, शांत, गम्भीर और स्थिर रहने के अभ्यस्त रहते हैं। इसका भी एक विशेष कारण है। वह यह कि दुष्ट ध्वंस-प्रवर्तक होते हैं और सज्जन, सृजन-प्रवर्तक ध्वंस के लिए किसी प्रकार के सोच-विचार अथवा भोजन नियोजन की आवश्यकता नहीं होती, वह तो उनका स्वाभाविक खेल होता है। किन्तु सृजन की प्रक्रिया तो विचार, चिन्तन और व्यवस्थित योजना के अधीन होती है। फिर सद्वृत्तियाँ तो उन्नति, सफलता और अमृत तक की प्रदायिका होती हैं, उन्हें आत्म-गौरव और आत्म-श्लाघा होना ही चाहिये। अब तक कोई उनका आह्वान नहीं करेगा, उनसे संपर्क स्थापित नहीं करेगा, जब तक वे किसी की सेवा सहायता के लिए अपने-आप क्यों दौड़ने लगेंगी।

अस्तु जीवन में अभ्युदय चाहने वाले व्यक्ति को मनोनुकूलता के लिए उसकी सद्वृत्तियों को प्रबल बनाना होगा और उनके द्वारा असद्वृत्तियों को पराजित कराकर मनोराज्य से बाहर खदेड़ देना होगा। मनोभूमि पर सोई हुई सद्वृत्तियाँ जब एक बार प्रबुद्ध कर दी जाती हैं तो वे फिर तो अपनी विरोधी वृत्तियों से आपसे-आप संग्राम छेड़ देती हैं। ज्यों-ज्यों असद्वृत्तियाँ परास्त होती जाती हैं, मनुष्य की उन्नति का भव्य मार्ग प्रशस्त होता जाता है। किन्तु सद्वृत्तियों की सहायता के लिए मनुष्य को भी कुछ न कुछ करते रहना होगा। वह यह कि अपने उद्देश्य के शुभ संकल्पों को निरन्तर बढ़ाता रहा जाय। मनुष्य के एक शुभ संकल्प में पूरी एक सेना की भाँति शक्ति होती है। इस कुमुक को पाकर सद्वृत्तियों का उत्साह बढ़ेगा, उनमें विश्वास आयेगा और वे उत्तरोत्तर प्रबल होती चली जायेंगी।

किसी शुभ कल्पना अथवा कामना मात्र को शुभ संकल्प नहीं कहते। शुभ संकल्प वास्तव में वह निष्ठा, वह लगन और वह तीव्रता होती है, जो किसी लक्ष्यपूर्ण शुभ कामना अथवा कल्पना के साथ जुड़ी रहती हैं। एकान्त निष्ठा और अखण्ड लगन से रहित कोई भी शुभ विचार, संकल्प नहीं बनता। किसी विचार में यह निष्ठा और यह लगन तभी आती है, जब वह मनुष्य के सम्पूर्ण चेतन द्वारा स्वीकृत और विवेक द्वारा प्रमाणित कर दिया जाता है। जिस विचार की शुभता में जितना ही संशय अथवा संदेह रहेगा, वह उतना ही संकल्पता से दूर रहेगा। अस्तु इस विषय में मनुष्य को अपने विवेक से पूरा-पूरा काम लेते रहना चाहिये।

मानव-मन में एक से एक चमत्कारी शक्तियों का भण्डार भरा हुआ है। सद्वृत्तियों की सहायता से मन पर अधिकार होते ही मनुष्य उसकी सारी शक्तियों का स्वामी बन जाता है। किन्तु शक्तियों का स्वामी भर हो जाने से महानता का प्रयोजन नहीं हो सकता। उसके लिए शक्तियों के सतत उपयोग की आवश्यकता है। जिन शक्तियों का उपयोग नहीं होता, वे कुण्ठित होकर नष्ट हो जाती हैं।

प्रयत्नपूर्वक मानसिक शक्तियाँ पा जाने के बाद एक बार पुनः असद्शयता का खतरा खड़ा हो जाता है। कोई भी शक्ति अपने में कोई विश्वस्त वस्तु नहीं होती। उससे जहाँ लाभ हो सकता है, वहाँ हानि भी। शक्ति के सदुपयोग से जहाँ मनुष्य ऊँचा चढ़ सकता है, बड़ी से बड़ी सफलता पा सकता है। वहाँ उसके गलत प्रयोग से वह अपनी शक्ति मनुष्य की दुश्मन बन जाती है और वह अपने शस्त्र से ही आहत हो जाता है।

मनुष्य के मनोराज्य का बहुत महत्व है। उसे सदाशयों द्वारा वशीभूत करके सिद्धि की ओर बढ़ाया जाना चाहिये, किन्तु पश्चात् विकारों से सावधान रहने की आवश्यकता है। उसका एक ही उपाय है और वह यह कि शुभ संकल्पों को त्यागा न जाये।

पृथ्वी से अनेक उपग्रह आकाश स्थित ग्रहों के वातावरण और वहाँ की प्राकृतिक परिस्थितियों के अध्ययन के लिए भेजे जाते हैं। यह उपग्रह वहाँ जो कुछ देखते और अनुभव करते हैं, उन्हें रेडीय टेलीमेट्रो से पृथ्वी पर भेजते हैं। सन्देश सवार की क्रिया दो प्रकार से होती है, एक तो यह कि उपग्रह कोई संकेत ग्रहण करने के साथ ही उसे पृथ्वी की ओर प्रेषित कर देता है। पृथ्वी के रिसीविंग स्टेशन ग्रहण-केन्द्र उन्हें ग्रहण कर लेते हैं। दूसरी स्थिति में जानकारी संकेत में (कोड) भेजना प्रारम्भ कर देते हैं। पहली प्रणाली में उपग्रहों से भेजे गये फोटो और सन्देश दुनियाँ के तमाम ग्रहण केन्द्र प्राप्त कर लेते हैं, जबकि दूसरी स्थिति में कई बातें केवल उन्हीं लोगों को मालूम हो पाती है, जिन्होंने उपग्रह भेजा होता है।

इसलिये अन्तरिक्ष यात्रा की अनेक कौतूहल और आश्चर्यजनक तथ्य तो अन्तरिक्ष टेक्नोलॉजी के अग्रणी देश अमेरिका और रूस के ही पास हैं जो संदेश सामान्य रूप से पकड़े जा चुके हैं, वही इतने काफी हैं कि वे पाश्चात्य देशों की’ अनात्मावादी और परलोक कुछ नहीं, मान्यता को नष्ट कर देते हैं। रूस और अमेरिका भी अब यह बेचैनी से अनुभव करने लगे है कि पार्थिक जीवन ही सब कुछ नहीं उसका परलोक से ही कुछ सम्बन्ध अवश्य है।

चन्द्रमा के बारे में पहले लोगों की कल्पना थी कि वहाँ धूल है पर वहाँ से प्राप्त चित्रों से यह पता चलता है कि उसकी सतह ज्वालामुखी चट्टानों की तरह है और पत्थरों के ढेलों और ढोकों से छितरी हुई है। वह इतनी कड़ी है कि 220 पौण्ड भार के अन्तरिक्ष यान को सम्भाल सकती है। लूना-9 से यह जानकारियाँ मिली। सर्वेयर जो तूफान सागर (ओशन आफ स्टार्म, चन्द्रमा में कल्पित नाम) से उतरा था, वहाँ की स्थिति भी ऐसी ही थी। रूसी अन्तरिक्ष यान लूना-2 और जौण्ड-3 के द्वारा चन्द्रमा के उस हिस्से के चित्र लिये गये, जो पृथ्वीवासियों को दिखाई नहीं देता, अनुमान है कि यहाँ पहाड़ियों से घिरे हुए दो समुद्र हैं। ज्वालामुखी के गर्त और पहाड़ियां भी बहुतायत से होने का अनुमान है।

चन्द्रमा के अतिरिक्त सर्वाधिक जानकारी वाले ग्रह-मंगल और शुक्र हैं। शुक्र की सतह को चमकीले और घने बादल स्थायी रूप से ढके रहते हैं। शुक्र जब पृथ्वी और सूर्य के बीच से बीच से गुजरता है तो इसका वायु-मण्डल जगमगाते हुए प्रकाश वलय की तरह लगता है। इसमें कम मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड है। मैरीनर-2 जो 27 अगस्त 1962 को आकाश में छोड़ा गया था, तीन महीने बाद शुक्र की कक्षा को बेध कर शुक्र के क्षेत्र में पहुँचा। उसमें लगे यन्त्रों ने जो जानकारी प्रेषित की उनसे पता चलता है कि शुक्र की सतह गर्म है और सर्वत्र तापमान लगभग समान ही है। वायु-मण्डल (एटमॉस्फेयर) के सबसे ऊपरी भाग में थोड़ी कार्बन डाइआक्साइड भी है। अभी शुक्र ग्रह के विस्तृत अध्ययन के लिए चन्द्रमा में एक उपकेन्द्र तैयार करने की बात चल रही है, उससे कुछ और नये तथ्य सामने आने की सम्भावना है।

अब तक जहाँ मानव-विज्ञान पहुँचा, उन ग्रहों में तीसरा मंगल है। उसकी जानकारी के लिए सर्वप्रथम मेरीनर 4 छोड़ा गया। इस उपग्रह ने 228 दिन बाद 20 हजार मील की दूसरी मंगल के चित्र भेजने प्रारम्भ किये। पहला चित्र एक चौड़े रेगिस्तान का था उसके किनारों में कुछ पहाड़ियां थी। ज्वालामुखी ग्रहों का प्रमाण देने वाले चित्र भी आये। अनुमान है कि मंगल की सतह 5 अरब वर्ष के लगभग पुरानी है। यहाँ के ज्वालामुखी लगभग 100 मीटर ऊँचे हैं। कहीं-कहीं बर्फ जमने के भी चित्र आये। यद्यपि वहाँ जीवन होने के कोई प्रामाणिक तथ्य प्राप्त नहीं हुये, किन्तु यह निश्चित हो चुका है कि इस ग्रह का भी हमारी पृथ्वी की तरह ही अयन मंडल (होरिजन) है और 125 किलोमीटर की ऊँचाई पर इलेक्ट्रान्स का अधिकतम घनत्व 1 लाख प्रति घन सेन्टीमीटर है। अभी सबसे रहस्यमय सूर्यलोक के क्रिया -कलाप तो हुये ही है, उसकी जानकारी तो सम्भव है अन्तरिक्ष गवेषणा के सारे इतिहास को उलट कर रख दे।

अब तक के यह सन्देश जो उपग्रहों ने भेजे हैं, उनसे एक बात निश्चित हो गई है कि सभी ग्रह प्रकारान्तर से पाँच महाभूतों (आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि) ये बने हुये हैं। इनकी न्यूनाधिक मात्रा के अनुसार वहाँ वनस्पति भी होगी। बादल तो हैं ही, तापमान और वायुभार भी है पर इनका अपनी पृथ्वी के तापमान और वायुभार से सामंजस्य नहीं है। इसलिये यह तो नहीं कहा जा सकता कि वहाँ के प्राणधारियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी है, किन्तु जीवन के अस्तित्व के बारे में बिलकुल इनकार नहीं किया जा सकता।

हर्वर्ड वेधशाला (न्यूयार्क) के अवकाश प्राप्त ज्योतिषी डा. हारलो शेपले के अनुसार तो 10 करोड़ से भी अधिक ग्रहों में घास, वृक्ष और जीव रहते हैं। यह विचार उन्होंने एक टेलीविजन कार्यक्रम में व्यक्त किया। तीन अन्य अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी इस विश्वास की पुष्टि की कि केवल पृथ्वी पर ही जीव नहीं रहते अन्य लोकों में भी जीवन का अस्तित्व विद्यमान् है।

73 वर्षीय रूसी वैज्ञानिक श्री ए॰ आई॰ ओपारिन की राय में अन्य ग्रहों पर जीवन है। अकादमीशियन, ओपारिन 50 वर्ष से जीवन के उद्भव पर अनुसन्धान कर रहे हैं, उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि अन्य ग्रहों पर किसी तरह का जीवन होना चाहिए, किन्तु यह जरूरी नहीं कि वे मानक जैसे प्राणी हों। ज्यों-ज्यों मनुष्य प्रगति करेगा, उसे अन्य ग्रहों के प्राणियों के बारे में जानकारी, रासायनिक व खनिज विज्ञान की विधियों के प्रयोग और उल्का-पिण्डों के द्वारा मिलती रहेगी। श्री ओपारिन जो सोवियत विज्ञान अकादमी की जीव विज्ञान इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और जीव शास्त्रियों की अन्तर्राष्ट्रीय सोसायटी के उपाध्यक्ष भी हैं, का कहना है कि कार्बन यौगिकों की विकास की प्रक्रिया ही पृथ्वी पर जीवन का आधार है तो अन्य ग्रहों पर जहाँ भी कार्बन यौगिक है, जीवन का होना बिलकुल निश्चित है-(1) आदिमकालीन आर्गनिक पदार्थ हाइड्रोकार्बन, (2) विभिन्न प्रकार के जटिल आर्गनिक पदार्थों के जलीय घोल में प्राइमरी सूप का निर्माण और (3) जटिल बहु आणविक खुली प्रणाली, यह तीन प्रक्रियायें ही प्राणियों के उद्भव के स्रोत हैं और यह विकास क्रम अन्तरिक्ष में व्यापक रूप से विद्यमान् है।

अब यदि अन्तरिक्ष में जीवन है तो उनमें बौद्धिक विकास और शब्द ध्वनि की स्थिति भी होनी चाहिये। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक काफी समय से यह कहते आ रहे हैं कि आकाश से बहुत ही व्यवस्थित सन्देश आ रहे हैं किन्तु हमारी ग्रहणशीलता भिन्न प्रकार की होने से हम उन्हें समझ नहीं पा रहे पर यह निश्चित है कि किसी ग्रह में अत्यन्त बुद्धिमान् प्राणियों का निवास है अवश्य। प्रसिद्ध वैज्ञानिक कार्दाशेव ने उन विशेषताओं पर प्रकाश डाला है जिनके द्वारा अन्तरिक्ष से स्थायी तौर पर आने वाली ध्वनियों में से उन ध्वनियों का पहचाना जा सकता है, जो किसी कृत्रिम स्रोत से आ रही हैं। उन्होंने विभिन्न स्रोतों से आने वाली ध्वनि तरंगों के वर्ण छटाओं के अलग-अलग चार्ट तैयार किये हैं, एक चार्ट में उन्होंने दिखलाया है कि पृथ्वी से हजारों लाखों प्रकाश वर्षों की दूरी पर स्थित सभ्यताओं के रेडियो संकेतों की वर्ण छटा (रेडियो फोटो) किस प्रकार होगी। यह वर्ण छटा प्राकृतिक स्रोतों से निकलने वाली वर्ग छटा से बिलकुल भिन्न होगी।

1965 में प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् गेन्नादी शोलो मित्स्की ने अश्विनी के नक्षत्र मण्डल में एस०टी०ए॰ 102 के रेडियो ध्वनि विक्षेपण का अध्ययन करते हुये यह पता लगाया कि उसका प्रवाह निर्धारित समय पर बदलता रहता है यह अवधि 100 दिन की होती है। इंग्लैण्ड की जोड्रेल अन्तरिक्ष वेधशाला (एस्ट्रो लैबोरेटरी) द्वारा भी ऐसी सूचनाएँ प्राप्त की गई हैं, जिससे निकोलाई कार्दाशेव के मत की पुष्टि होती है। इन सभी वैज्ञानिकों का विश्वास है कि अश्विनी के नक्षत्र मण्डल में अवश्य ही पृथ्वी वासियों से कहीं अधिक मानसिक शक्ति और वैज्ञानिक प्रगति से सम्पन्न बुद्धिमान् प्राणी निवास करते हैं और वे सैकड़ों वर्षों से पृथ्वी के साथ संपर्क साधने के प्रयत्न में हैं।

इन संकेतों को पकड़ने के अनेक अनुसन्धान हो भी रहें, आश्चर्य नहीं कि अगले पचास वर्षों में अंतरिक्षवासी प्राणियों के सन्देश समझने में सफलता मिल जाये, तब यह भी सम्भव है कि जिस तरह अर्जुन इन्द्र के पास जाकर धनुर्विद्या के गूढ़ रहस्य सीख कर आया था, उसी प्रकार यहाँ के लोग अन्य ग्रहों के संपर्क साधकर वहाँ की अनेक विद्याएँ सीखना आरम्भ कर दें।

अभी हाल में ही कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुछ रेडियो खगोलज्ञों ने भी घोषणा की है कि बाह्य अन्तरिक्ष से कुछ संकेत आ रहे हैं। यह घोषणा डा. ए॰ ए॰ हेविश ने की है। मुलाई वेधशाला के रेडियो खगोलज्ञों के बीच भाषण करते हुए उन्होंने बताया कि-उक्त संकेत संभवतः न्यूट्रान नक्षत्रों से आ रहें हैं, जो सूर्य के दूसरी और करोड़ों अरबों मील की दूरी पर स्थित माने जाते हैं।

गणित के प्राध्यापक और खगोलविद् डा. फ्योदोरोव ने सोवियत रूस के रक्षा मंत्रालय की पत्रिका ‘रेड स्टार’ से उद्धरित किया है-” प्राचीनकाल में अन्य ग्रहों से अन्तरिक्ष यात्रियों के पृथ्वी में आने की गाथायें गलत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उड़न तश्तरियों का आना भी, उसका एक प्रमाण है, किन्तु क्या सोडोम व गोमोरा के नगरों की विनाश लीला परमाणु विस्फोटों से होने वाले विनाश की याद नहीं दिलातीं। (ऐसा समझा जाता है कि यह अन्तरिक्ष लोक के किसी भाग का नियोजित हमला था) ब्रह्माण्ड के अन्तरिक्ष यात्रियों ने अपनी यात्राओं के चिह्न जानबूझ कर उन दो क्षुद्रग्रहों पर छोड़े होंगे जो सूर्य और शनि ग्रह के बीच चक्कर काट रहे हैं।” इन बातों को खगोल शास्त्री बहुत गम्भीर मान रहे हैं।

पृथ्वी का अन्य लोकों से यांत्रिक संपर्क तो अब बिल्कुल सत्य सिद्ध हो चुका है, किन्तु सिद्ध हो चुका है, किन्तु अभी वह पक्ष अधूरा है, जिसमें हमारे यहाँ मृत्योपरान्त उपस्थिति का अधिक विस्तार से सुखोपभोग किया जा सके। और लोकोत्तर दुर्गति से बचा जा सकें।

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • प्रार्थना ही नहीं पवित्रता भी
  • आत्मा असीम शक्तियों का केन्द्र बिन्दु
  • आत्मा की समीपता की ओर कदम
  • आत्मवत् सर्वभूतेषुः
  • कर्म-योग और कर्म-कौशल
  • आत्मा का वास
  • यज्ञ से सुख और समृद्धि का भौतिक विज्ञान
  • भक्ति-पथ की जीवन-नीति
  • चेतना का अस्तित्व और अनुभूति
  • मन का जीतना-सबसे बड़ी विजय
  • स्वाध्याय, जीवन विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता
  • ब्रह्म का नाद स्वरूप और शक्ति परिचय
  • सुगन्ध और सौंदर्य
  • हमारा दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं विशाल हो
  • ‘अमरत्व’ और ‘इच्छा आयु’ असम्भव नहीं
  • ब्रह्मचर्य, शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का आधार
  • सराक्यूज की रोती हुई प्रतिमा
  • कठिनाइयों से लड़ें और अपना साहस बढ़ायें
  • हकीम लुकमान
  • अदृश्य किन्तु प्रभावोत्पादक शक्ति-संगीत
  • VigyapanSuchana
  • पशु-बलि से देवता अप्रसन्न होते हैं और बदनाम भी
  • भय से पराजय
  • महासर्पिणी कुण्डलिनी और उसका महासर्प
  • हरि इच्छा- बलवान
  • अपनों से अपनी बात- - हमारे पांच पिछले और पांच अगले कदम
  • ग्रीष्म शिविरों में आने का सादर आमन्त्रण
  • स्वावलम्बन एवं व्यक्ति निर्माण की शिक्षा
  • मानवता का मन्दिर
  • मानवता का मन्दिर (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj