Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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न करिये कबिरा गरब
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अमेरिका के वाशिंगटन शहर में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। इसे एक पराजपे ने स्थापित किया है। वे यज्ञ द्वारा खेतों में फसल के बढ़ने का प्रतिपादन करते हैं। रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं से ऊबे, अमेरिकनों को वे विकल्प के रूप में मंत्रोच्चारण से दी गयी थी की आहुतियों का मार्ग सुझाते है। विश्वविद्यालय की यह मान्यता है कि फसलों के सभी रोगों का रामबाण इलाज यज्ञ है। यज्ञ से फसल उत्पादन में वृद्धि की इस पद्धति को उन्होंने हो थैरेपी कामिग नाम दिया है।
खेती में नियमित किये गये यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है एवं इससे पौधों में तेजी से बढ़ने व जमीन से अधिक शक्ति खींचने की सामर्थ्य आती है। इससे जो फसल होती है वह स्वादिष्ट होती है। 200 एकड़ तक के खेतों में बीचों बीच किये गये यज्ञ से पौधों की जड़ों का स्वरूप ही बदल जाता है। लम्बाई में भले ही कोई फर्क न आये, उनकी जमीन से पोषक तत्व खींचने की सामर्थ्य में निश्चित ही वृद्धि होती है।
इसके लिए विश्वविद्यालय ने अपने खेतों पर ही प्रयोग किये हैं। निष्कर्ष यह निकाले गये है कि यज्ञ करने से जमीन में नमी ज्यादा बनी रहती है। यदि पानी की सिंचाई के साथ स्नेह, श्रद्धा का पुट हो एवं मंत्रोच्चार भी किया जाये तो परिणाम और भी अच्छे होते हैं। पराजपे के अनुसार पीछे भी स्नेह के भूखे हैं। यदि किसान अपनी फसल से प्यार करे उन्हें पुचकारे तो वे बीमार नहीं होते, अच्छा उत्पादन देते हैं।
यह सभी का अनुभव है कि पौधों की बीमारियों के लिये प्रयुक्त कीटनाशक दवाओं से जमीन कमजोर होती है। एवं फसल का उत्पादन भले ही बढ़ जाये, गुणवत्ता की दृष्टि से वह गौण हो जाती है। इसी कारण कीटनाशक दवाओं के उपयोग पर अब पुनर्विचार किया जा रहा है। अग्निहोत्र विश्व विद्यालय कीटाणुओं के नाश के लिए यज्ञ की राख एवं गोबर की खाद का प्रचार कर रहा है। पानी में राख मिलाकर उसकी सिंचाई से पौधों की जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है। मंत्रोच्चार के साथ की गयी सिंचाई पौधों की सामर्थ्य में और भी वृद्धि कर देती है। अग्निहोत्र विश्व विद्यालय के अनुसार ये मंत्र पौधों के लिये टॉनिक का काम करते हैं।
आज की फसलों की गिरती गुणवत्ता के पीछे वे वातावरण प्रदूषण को मुख्य कारण मानते हैं। इसीलिए यज्ञ की महत्ता भी प्रतिपादन करते हैं। जो वातावरण को शुद्ध करता है। धूमीकृति औषधियाँ, घी धान हवा में मिलकर उसे शुद्ध करती है और फिर वर्षा के माध्यम से जमीन में पहुँचकर जड़ों का पोषण करती है। उनके अनुसार यज्ञ का धुआँ पहले पूरब की ओर उड़ता है व फिर घड़ी की तरह घूमता है। इसका प्रभाव आठ किलोमीटर की परिधि में होता है। इससे उन्हें विश्वास है कि वे अमेरिका के दक्षिणी भाग में लगने वाले “अल्बीनों नामक फसल नाशक कीड़े को समाप्त कर सकेंगे।”