• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा— कर्त्तव्य, कर्त्तव्य
    • प्रायश्चित्तो परावसुः
    • अज्ञानबंधन काटें— उन्मुक्त जीवन जिएँ
    • भगवान ईशु
    • ईश्वरप्राप्ति के लिए उपासना आवश्यक
    • क्षुद्रता छोड़ें— महानता की ओर बढ़ें
    • जल में रहकर भी उससे दूर
    • शरीर और मन को प्रभावित करने वाला जीवन-रस— हारमोन
    • यदि जीवन में बुद्धिमानी की कोई बात है
    • सिद्धि और सिद्धपुरुषों का स्तर
    • संत दादू को सीख (कहानी)
    • प्रेम और आत्मीयता का प्राणीमात्र पर प्रभाव
    • सच्चे अधिकारी
    • अनीति से समझौता नहीं
    • श्री रामकृष्ण परमहंस की सारगर्भित शिक्षाएँ
    • दरिद्र सेवा ही सच्ची सेवा है
    • रक्त-परिवर्तन एक अद्भुत, किंतु आवश्यक प्रक्रिया
    • प्रजापति की व्यथा (कहानी)
    • मृत्यु के लिए पहले से ही तैयारी करें
    • असंभव को संभव करने वाली महाशक्ति
    • Quotation
    • शीत की शक्ति समझें और उससे लाभ उठाएँ
    • विरानों को प्यार— अपनों का तिरस्कार, ऐसा क्यों?
    • भावनात्मक चेतना— जीवन की सर्वोपरि सत्ता
    • मंत्रों की चमत्कारी शक्ति के दो उद्गम स्रोत
    • Quotation
    • मनुष्य की समझदारी और नासमझी
    • कर्मफल की सुनिश्चितता समझें
    • समस्त सफलताओं का हेतु— मन
    • असली और नकली चमत्कारों का अंतर समझें
    • Quotation
    • अतींद्रिय ज्ञान की पृष्ठभूमि हर मस्तिष्क में मौजूद है
    • अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन
    • अदूरदर्शितायुक्त बुद्धिमत्ता— मूर्खता से भी बुरी
    • Quotation
    • पृथकता छोड़ें— सामूहिकता अपनाएँ
    • व्यक्तिवाद की तुच्छता छोड़कर समूहवाद की महानता का वरण
    • नारी अकेले ही सृष्टिक्रम चला सकती है
    • तुम्हारे स्वर्ग की अपेक्षा मुझे अपना यह मृत्युलोक प्रिय है
    • कुंडलिनी के षट्चक्र और उनकी सामर्थ्य
    • प्यार की फटकार (सदुक्ति)
    • अपनों से अपनी बात— महानता प्राप्त करने की दिशा में एक चरण आगे बढ़ाएँ
    • युगनिर्माण योजना (Kahani)
    • दिव्य सत्ता की झाँकी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा— कर्त्तव्य, कर्त्तव्य
    • प्रायश्चित्तो परावसुः
    • अज्ञानबंधन काटें— उन्मुक्त जीवन जिएँ
    • भगवान ईशु
    • ईश्वरप्राप्ति के लिए उपासना आवश्यक
    • क्षुद्रता छोड़ें— महानता की ओर बढ़ें
    • जल में रहकर भी उससे दूर
    • शरीर और मन को प्रभावित करने वाला जीवन-रस— हारमोन
    • यदि जीवन में बुद्धिमानी की कोई बात है
    • सिद्धि और सिद्धपुरुषों का स्तर
    • संत दादू को सीख (कहानी)
    • प्रेम और आत्मीयता का प्राणीमात्र पर प्रभाव
    • सच्चे अधिकारी
    • अनीति से समझौता नहीं
    • श्री रामकृष्ण परमहंस की सारगर्भित शिक्षाएँ
    • दरिद्र सेवा ही सच्ची सेवा है
    • रक्त-परिवर्तन एक अद्भुत, किंतु आवश्यक प्रक्रिया
    • प्रजापति की व्यथा (कहानी)
    • मृत्यु के लिए पहले से ही तैयारी करें
    • असंभव को संभव करने वाली महाशक्ति
    • Quotation
    • शीत की शक्ति समझें और उससे लाभ उठाएँ
    • विरानों को प्यार— अपनों का तिरस्कार, ऐसा क्यों?
    • भावनात्मक चेतना— जीवन की सर्वोपरि सत्ता
    • मंत्रों की चमत्कारी शक्ति के दो उद्गम स्रोत
    • Quotation
    • मनुष्य की समझदारी और नासमझी
    • कर्मफल की सुनिश्चितता समझें
    • समस्त सफलताओं का हेतु— मन
    • असली और नकली चमत्कारों का अंतर समझें
    • Quotation
    • अतींद्रिय ज्ञान की पृष्ठभूमि हर मस्तिष्क में मौजूद है
    • अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन
    • अदूरदर्शितायुक्त बुद्धिमत्ता— मूर्खता से भी बुरी
    • Quotation
    • पृथकता छोड़ें— सामूहिकता अपनाएँ
    • व्यक्तिवाद की तुच्छता छोड़कर समूहवाद की महानता का वरण
    • नारी अकेले ही सृष्टिक्रम चला सकती है
    • तुम्हारे स्वर्ग की अपेक्षा मुझे अपना यह मृत्युलोक प्रिय है
    • कुंडलिनी के षट्चक्र और उनकी सामर्थ्य
    • प्यार की फटकार (सदुक्ति)
    • अपनों से अपनी बात— महानता प्राप्त करने की दिशा में एक चरण आगे बढ़ाएँ
    • युगनिर्माण योजना (Kahani)
    • दिव्य सत्ता की झाँकी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1972 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


समस्त सफलताओं का हेतु— मन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
Normal 0 false false false EN-US X-NONE HI /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin-top:0in; mso-para-margin-right:0in; mso-para-margin-bottom:10.0pt; mso-para-margin-left:0in; line-height:115%; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; mso-bidi-font-size:10.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-fareast-font-family:"Times New Roman"; mso-fareast-theme-font:minor-fareast; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:Mangal; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;}

यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो हर मनुष्य को अपने जीवन में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलेंगे कि एक बार का किया हुआ काम बड़ा सुंदर होता है और दूसरी बार वही काम बिगड़ जाता है। एक ही काम, एक ही कर्त्ता और एक ही समय, फिर भला कार्य की यह निकृष्टता या उत्कृष्टता क्यों? ऐसा तो हो नहीं सकता कि पहली बार जब उसने काम को सुंदरतापूर्वक किया तब उसकी योग्यता अधिक थी और दूसरी बार जब काम बिगड़ता है तब उसकी योग्यता कुछ कम हो गई थी। पहली बार की अपेक्षा अभ्यास और अनुभव के कारण योग्यता में बढ़ोत्तरी ही होनी चाहिए थी, न कि कमी।

एक ही काम में लगे दो समान व्यक्तियों को देख लीजिए, एक अधिक दक्ष है तो दूसरा नहीं। एक ही कक्षा के एक ही विषय के दो विद्यार्थियों को ले लीजिए, एक अधिक अंक लाता है तो दूसरा कम। कलाकार, कवि, शिल्पी, वैज्ञानिक, विद्वान, लेखक, दार्शनिक किन्हीं को भी क्यों न ले लीजिए, अनेकों में उन्नीस-बीस का अंतर मिलेगा ही। एक की कृतियाँ दूसरे की अपेक्षा कुछ-न-कुछ न्यूनाधिक सुंदर होंगी।

इस अंतर का एकमात्र कारण एकाग्रता, तल्लीनता एवं तन्मयता ही है। जो जिस समय अपने काम में जितना अधिक एकाग्र, तल्लीन और तन्मय होगा, उसका काम उस समय उतना ही सुचारु एवं सुंदर होगा और जो जितनी अधिक एकाग्रता से चिंतन करेगा, उसके विचार उतने ही स्पष्ट एवं उन्नत होंगे। तन्मयता दक्षता का मूलमंत्र है।

तन्मयता जितनी तीव्र, तल्लीनता जितनी स्थाई और एकाग्रता जितनी सूक्ष्म होगी, कार्य का संपादन उतना ही शीघ्र और सुंदर होगा। किसी कला-कौशल अथवा कार्य के सीखने में दो आदमियों के समय और सीमा में जो अंतर रहता है, वह भी इस एकाग्रता की मात्रा का ही अंतर होता है। वैसे सामान्यतः एक ही क्षेत्र में रुचि रखने वालों की योग्यता में कोई विशेष अंतर नहीं होता।

मन की स्थिरता, केंद्रीयता एवं समाविष्टि को ही एकाग्रता, तन्मयता तथा तल्लीनता कहा जाता है। संसार की समग्र क्रियाओं का वास्तविक कर्त्ता तो मन है। शरीर तो साधनमात्र, उपादान भर ही है। बहुत बार देखा जा सकता है कि एक शरीर से हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ एवं संपन्न व्यक्ति किसी कार्य को उस खूबी के साथ नहीं कर पाता, जिस खूबी से एक दुबला-पतला और निर्बल दीखने वाला व्यक्ति कर दिखाता है। यदि शरीर ही वास्तविक कर्त्ता होता तो शारीरिक संपन्नता वाले व्यक्ति का कार्य दूसरे दुर्बल शरीर वाले व्यक्ति से अवश्य ही सुघड़ एवं सुंदर होना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं होने का कारण यही है कि एक का वास्तविक कर्त्ता मन स्वस्थ एवं सशक्त है और दूसरे का नहीं।

संसार की समस्त सफलताएँ वास्तविक कर्त्ता मन की क्षमताओं पर निर्भर करती हैं और मन की शक्ति है उसकी— 'एकाग्रता'। जिस समय मन तन्मय होकर किसी कार्य में नियोजित होता है, तब असंभव को भी संभव करके रख देता है। मनुष्य की मनमंजूषा में क्या लौकिक और क्या पारलौकिक, सारी शक्तियाँ सुरक्षित रहती हैं। मन की स्थिरता का अर्थ है— सब प्रकार की शक्तियों की उपस्थिति; और शक्तियों की उपस्थिति का अर्थ है— सफलता। मन के परिभ्रमण का अर्थ है— शक्तियों की अनुपस्थिति। जिसका अर्थ है— असफलता।

संसार का प्रत्येक व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलताओं के दर्शन चाहता है। क्या आर्थिक, क्या पारिवारिक, क्या सामाजिक, क्या सार्वजनिक, क्या बौद्धिक, क्या भौतिक और क्या आत्मिक: ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें मनुष्य सफलता का आकांक्षी न हो। बहुत से सफलता पाते भी हैं और बहुत से असफल रह जाते हैं।

जीवन में निश्चित सफलता पाने के लिए मन में एकाग्रता का स्वभाव उत्पन्न करना बहुत आवश्यक है। मन की वृत्ति कुछ उलटी होती है। वह जितना ही मुक्त, निर्भार एवं निर्विकार होता है, उतना ही स्थिर रहता है और जितना ही यह बोझिल एवं बंधित होता है, उतना ही चंचल एवं प्रमथनशील रहता है। मन को स्थिर एवं शक्तिशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि उसे हर प्रकार से मुक्त और निर्भार रखा जाए।

जिस प्रकार स्थिरता के संबंध में मन की वृत्ति कुछ उलटी-सी है, उसी प्रकार चंचलता के विषय में कुछ अनुकूल-सी है। आप जिस दिशा में इसको संकेत कर देंगे, यह उसी दिशा में दौड़ जाएगा। जिस विषय से परिचय करा देंगे, उससे घनिष्ठता पैदा कर लेगा। विषय विशेषों की ओर एक बार मार्ग दिखा देने भर से फिर यह सजातीय हजारों विषयों का मार्ग स्वयं खोज लेता है और फिर बिना प्रेरणा के ही विषय-पथ पर दौड़ा-दौड़ा फिरता है। थोड़ी-सी भी छूट पाने पर यह उच्छृंखल ही नहीं, निरंकुश हो जाता है और तब मनमानी करता हुआ जल्दी हाथ नहीं आता।

बेहाथ हुआ मन भयानक प्रेत की तरह मनुष्य को लग जाता है और उसे एक असहाय की तरह पतन के गर्तों में गिराता और कष्ट देता रहता है। उसकी विवेक-बुद्धि को ग्रसितकर विपरीत बना देता है, जिससे ईश्वर अंश का सगुणस्वरूप मनुष्य नारकीय यंत्रणाओं को भोगा करता है। मन की दो ही गतियाँ हैं— या तो यह मनुष्य का स्वयं दास बनकर उसका आज्ञाकारी रहेगा अथवा मनुष्य को अपना दास बनाकर उस पर विविध अत्याचार करेगा। निरंकुश मन के वशीभूत मनुष्य की वही दशा होती है, जैसे— भागते हुए घोड़े की दुम में बँधे किसी अपराधी की। घोड़ा बुरी तरह ऊँचे-नीचे, कंकड़ीले-पथरीले, सँकरे, गंदे मार्गों को लाँघता-कूदता चला जाता है और दुम में बँधा मनुष्य, घिसटता-खिंचता और मरता-मिटता दुःसह कष्ट पाता रहता है।

जिसने मन को स्वाधीन बना लिया है, उसने मानो त्रिलोक की सुख-संपत्ति अपनी मुट्ठी में बंद कर ली है। जब मन निर्विकार होकर स्थिर हो जाता है तो  अपने दिव्य चमत्कारों की पिटारी खोलता है। एक-से-एक सुंदर स्वर्गों की रचना करके मनुष्य को सुख-शांति से परिपूर्ण कर देता है।

निर्बल मन क्षण-क्षण पर भले-बुरे मनोरथ करता रहता है, किंतु अधिकतर वह जाता बुराई की तरफ ही है। इसका कारण उसकी वह दुर्बलता है, जो उसे सुंदर और पवित्र जीवन का आकर्षण ही उत्पन्न नहीं होने देती।

मन में ईश्वर ने एक प्रचंड-शक्ति भर दी है। जो स्फुरित होते ही सारे संसार को प्रभावित कर सकती है। बड़े-बड़े आंदोलनों का संचालन तथा जननेतृत्व मनोबल से ही किए जाते हैं। मन को अपने कार्यों एवं इच्छाओं के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना होता। स्वयं ही वह इच्छाएँ कर लेता है और स्वयं ही अपनी आकर्षणशक्ति से उसकी पूर्ति के साधन जुटा लेता है।

जीवन में अभ्युदय की इच्छा रखने वालों को कुछ और न करके पहले अपने मन की महान शक्तियों का उद्घाटन करना चाहिए। मन की शक्तियों का उद्घाटन करने के लिए उसे अपने अनुकूल बनाना बहुत आवश्यक है। मन के अनुकूल होते ही उसकी सारी शक्तियाँ कल्याणकरी कार्यों की ओर लग जाती हैं और मनुष्य के जीवन में एक से एक बढ़कर फल लाती हैं।

मन को अनुकूल बनाने का एक ही उपाय है कि उसे बुरी भावनाओं, अवांछनीय इच्छाओं और अकल्याणकरी मनोरथों से बचाए रखा जाए। विषय-वासनाओं तथा भोग-विलास की प्रमादी प्रवृत्तियों का बोझ इस पर न डाला जाए। विकारों से थका हुआ मन विद्रोही होकर अनिष्टकारी दिशाओं में ही भागता है। उसकी सत्चेतना का ह्रास हो जाता है और वह एक बदहवास मद्यप की तरह बनकर  मनुष्य का घोरतम अहित किया करता है।

अधिक कामनाएँ, लिप्साएँ एवं तृष्णाएँ मनुष्य के मन को जर्जर कर डालती हैं, जिससे उसकी शक्ति स्वयं मनुष्य पर आक्रमण करके उसे हानि पहुँचाया करती है।

संयम एवं साधना का सहारा लेकर मनुष्य को अपने मन का परिष्कार करना चाहिए। यह एक महान तप है। जिसने इस तप की सिद्धि कर ली, मन को मुट्ठी में कर लिया, मानो उसने संसार की समस्त सफलताओं एवं उन्नतियों की कुंजी ही पा ली।

 


First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन की मूल प्रेरणा— कर्त्तव्य, कर्त्तव्य
  • प्रायश्चित्तो परावसुः
  • अज्ञानबंधन काटें— उन्मुक्त जीवन जिएँ
  • भगवान ईशु
  • ईश्वरप्राप्ति के लिए उपासना आवश्यक
  • क्षुद्रता छोड़ें— महानता की ओर बढ़ें
  • जल में रहकर भी उससे दूर
  • शरीर और मन को प्रभावित करने वाला जीवन-रस— हारमोन
  • यदि जीवन में बुद्धिमानी की कोई बात है
  • सिद्धि और सिद्धपुरुषों का स्तर
  • संत दादू को सीख (कहानी)
  • प्रेम और आत्मीयता का प्राणीमात्र पर प्रभाव
  • सच्चे अधिकारी
  • अनीति से समझौता नहीं
  • श्री रामकृष्ण परमहंस की सारगर्भित शिक्षाएँ
  • दरिद्र सेवा ही सच्ची सेवा है
  • रक्त-परिवर्तन एक अद्भुत, किंतु आवश्यक प्रक्रिया
  • प्रजापति की व्यथा (कहानी)
  • मृत्यु के लिए पहले से ही तैयारी करें
  • असंभव को संभव करने वाली महाशक्ति
  • Quotation
  • शीत की शक्ति समझें और उससे लाभ उठाएँ
  • विरानों को प्यार— अपनों का तिरस्कार, ऐसा क्यों?
  • भावनात्मक चेतना— जीवन की सर्वोपरि सत्ता
  • मंत्रों की चमत्कारी शक्ति के दो उद्गम स्रोत
  • Quotation
  • मनुष्य की समझदारी और नासमझी
  • कर्मफल की सुनिश्चितता समझें
  • समस्त सफलताओं का हेतु— मन
  • असली और नकली चमत्कारों का अंतर समझें
  • Quotation
  • अतींद्रिय ज्ञान की पृष्ठभूमि हर मस्तिष्क में मौजूद है
  • अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन
  • अदूरदर्शितायुक्त बुद्धिमत्ता— मूर्खता से भी बुरी
  • Quotation
  • पृथकता छोड़ें— सामूहिकता अपनाएँ
  • व्यक्तिवाद की तुच्छता छोड़कर समूहवाद की महानता का वरण
  • नारी अकेले ही सृष्टिक्रम चला सकती है
  • तुम्हारे स्वर्ग की अपेक्षा मुझे अपना यह मृत्युलोक प्रिय है
  • कुंडलिनी के षट्चक्र और उनकी सामर्थ्य
  • प्यार की फटकार (सदुक्ति)
  • अपनों से अपनी बात— महानता प्राप्त करने की दिशा में एक चरण आगे बढ़ाएँ
  • युगनिर्माण योजना (Kahani)
  • दिव्य सत्ता की झाँकी (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj