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Magazine - Year 1972 - Version 2

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अतींद्रिय ज्ञान की पृष्ठभूमि हर मस्तिष्क में मौजूद है

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मानवी मस्तिष्क के स्नायुकोश— नर्व सैल्स— लगभग 10 अरब की संख्या में हैं। संसार में इन दिनों मनुष्यों की आबादी चार अरब के करीब है। इस प्रकार समस्त संसार के मनुष्यों की तुलना में हमारे मस्तिष्क में बैठे हुए यह कोश ढाई गुने हैं। छोटे होते हुए भी इनकी क्षमता अपनी दक्षता के अनुरूप किसी परिपूर्ण मनुष्य से कम नहीं है। इस प्रकार इस मस्तिष्करूपी संसार में संसार भर के मनुष्यों से कई गुनी अधिक आबादी बसी हुई है। मनुष्य लापरवाह और ढीले-पोले हो सकते हैं, पर यह स्नायुकोश अपने क्रियाकलाप में तनिक भी शिथिलता नहीं बरतते।

इन दस अरब कोशों को अद्भुत विशेषताओं से संपन्न देव या दानव कहा जा सकता है। इनमें से कुछ में तो माइक्रोफिल्मों की तरह न जाने कब-कब की स्मृतियाँ सुरक्षित रहती हैं। मोटे तौर पर जिन बातों को हम भूल चुके होते हैं, वे भी वस्तुतः विस्मृत नहीं होतीं, वरन एक कोने में छिपी पड़ी रहती हैं। जब अवसर पाती हैं तो वर्षा की घास की तरह उभरकर ऊपर आ जाती हैं। केनेडा के स्नायुविशेषज्ञ डॉ.पेनफील्ड ने एक व्यक्ति का एक स्मृतिकोश विद्युतधारा के स्पर्श से उत्तेजित किया। उसने बीस वर्ष पहले देखी हुई फिल्मों के कथानक और गाने ऐसे सुनाए मानो अभी-अभी देखकर आया हो।

इन कोशों से संबंधित नाड़ीतंतु समस्त शरीर में फैले पड़े हैं। इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है— 1) सेंसरी नर्वज— संज्ञा वाहक और  2) मोटर नर्वज— गति वाहक। संज्ञा वाहक तंतुओं का संबंध ज्ञानेंद्रियों से होता है। जो कुछ हम देखते, सुनते, चखते, सूँघते और स्पर्शानुभव करते हैं, वह इन संज्ञा वाहकों के माध्यम से संपन्न होता है और चलना, फिरना, खाना, नहाना, पढ़ना-लिखना आदि गतिवाहकों द्वारा, वे कर्मेंद्रियों को नियंत्रित एवं संचालित करते हैं।

यह मस्तिष्क सामान्य इंद्रियगम्य ज्ञान की जानकारियों तक सीमित है। ऐसा शरीरविज्ञानियों द्वारा कहा जाता रहा है, पर अब न्यूरोलोजी, पैरा साइकोलोजी, मैटाफिजिक्स विज्ञान के जानकार यह स्वीकार करने लगे हैं कि मानवी मन, विराट विश्व के मन का ही एक अंश है और जो कुछ उस विराट विश्व-ब्रह्मांड में हो रहा है या निकट भविष्य में होने जा रहा है, उसकी संवेदनाएँ मानवी मन को भी मिल सकती हैं।

पिछले दिनों क्या-क्या हो चुका, इस समय कहाँ, क्या हो रहा है और निकट भविष्य में क्या होने की संभावनाएँ बन गई हैं। उसे जान लेना किसी परिष्कृत मस्तिष्क के लिए संभव है। सामान्यतया यह अतींद्रिय अनुभूति प्रसुप्त स्थिति में पड़ी रहती है। केवल वर्तमान से संबंधित प्रत्यक्ष का ही अधिक ज्ञान रहता है। भूतकाल की निज से संबंधित घटनाएँ जब विस्मृत हो जाती हैं तो अन्यत्र होने वाली घटनाओं की जानकारी कैसे रहे? यह बात केवल सामान्य स्तर के मस्तिष्कों पर लागू होती है। परिष्कृत मस्तिष्क इससे कहीं ऊँचे उठे हुए होते हैं और वे त्रिकालज्ञ की भूमिका प्रस्तुत कर सकते हैं।

भौतिक जानकारी संग्रह करने वाले चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी-संस्थान को प्रभावित करने वाले अचेतन मस्तिष्क तक का ही ज्ञान अभी विज्ञानक्षेत्र की परिधि में आया है, पर अब अतींद्रिय मस्तिष्क के अस्तित्व को भी स्वीकारा जा रहा है। इसका कारण यह है कि बहुत-सी ऐसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं, जिनसे भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास मिलने और उसके अक्षरशः सही उतरने के प्रमाण मिलते हैं। यह प्रमाण इतने स्पष्ट और इतने प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किए गए होते हैं कि उनमें किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश नहीं रह जाती।

अतींद्रिय चेतना का मानवसत्ता में अस्तित्व स्वीकार किए बिना इन भविष्यवाणियों का और कोई कारण नहीं रह जाता। योगी और सिद्धपुरुष जिस दिव्यचेतना को अपनी तप-साधना के माध्यम से विकसित करते हैं, वह कई बार कई व्यक्तियों में अनायास और जन्मजात स्तर पर भी पाई जाती है। इस सत्ता का विकास करके मनुष्य सीमित परिधि के बंधन काटकर असीम के साथ अपने संबंध मिला सकता है और अपनी ज्ञान-परिधि को उतनी ही विस्तृत बना सकता है। समय-समय पर इस प्रकार के जो प्रमाण मिलते रहते हैं, उनसे उस संभावना को और भी अधिक बल मिलता है कि आत्मविकास के प्रयत्न मनुष्य को कहीं-से-कहीं पहुँचा सकने में समर्थ हैं।

अतींद्रिय ज्ञान के संबंध में कई प्रामाणिक ग्रंथ पाए जाते हैं। उनमें कुछ यह हैं— (1) टीन लोब सैंगरंपाकृत— 'थर्ड आई' (2) सुग्र अल जहीर द्वारा लिखित— 'मठभूमि की आध्यात्मिक यात्रा' और (3) डेनियल बारे लिखित— 'दी मेका आफ हैवनली ट्राडजर्स'। इन पुस्तकों में लेखकों ने अपनी निजी दिव्य अनुभूतियों के वे वर्णन लिखे हैं, जो उन्होंने आज्ञाचक्र स्थित तीसरे नेत्र से देखे और परीक्षा की कसौटी पर पूर्णतया खरे उतरे। भ्रू-मध्य भाग में अवस्थित तीसरा नेत्र देवी-देवताओं के ही नहीं,मनुष्य के भी होता है और वह उसे विकसित करके दिव्यदर्शी बन सकता है।

गेटे ने अपनी आत्मकथा में लिखा है— "एक बार वह अपने निवासस्थान वाइम्नर में था तो अचानक तीव्र अनुभूति हुई कि वहाँ से हजारों मील दूर सिसली में एक भयंकर भूकंप आया है। यह बात उसने अपने मित्रों को बताई तो किसी को विश्वास न हुआ कि बिना किसी आधार के इतनी दूर की बात इस प्रकार कैसे मालूम हो सकती है, पर कुछ दिन बाद आए समाचारों से पता चला कि ठीक उसी समय वैसा ही भूकंप सिसली में आया था जैसा कि उसने अपने मित्रों का बताया था।"

प्रसिद्ध लेखक जानेथन स्विफ्ट ने अपनी पुस्तक ‘गुलिवर भ्रमणकथा’ में यह लिखा है कि— ”मंगल ग्रह के चारों ओर दो चंद्रमा परिक्रमा करते हैं। इसमें एक की चाल दूसरे से दूनी है।” उस समय यह बात कपोल-कल्पना मानी गई थी; क्योंकि तब इस बात का किसी को तनिक भी आभास न था कि मंगल के इर्द-गिर्द घूमने वाले चंद्रमा भी हो सकते हैं। पीछे डेढ़ सौ वर्ष बाद सन् 1877 में वाशिंगटन की नेवल आवजरवेटरी में एक शक्तिशाली दूरबीन के सहारे यह देख लिया गया कि वास्तव में मंगल ग्रह के दो चंद्रमा हैं और एक की चाल दूसरे से दूनी है तो लोग आश्चर्यचकित रह गए कि उस साधनहीन जमाने में जब इस तरह की कल्पना कर सकना भी संभव न था तो किस प्रकार स्विफ्ट ने मंगल ग्रह की स्थिति बताई।

फिल्म अभिनेता स्वर्गीय चंद्रमोहन सेन ने एक दिन पूर्व स्वप्न देखा कि उनका रेस का घोड़ा दौड़ते हुए एक गड्ढे में गिरकर मर गया। जागने पर उनने घोड़े को सही स्थिति में पाया और स्वप्न को निरर्थक समझा, पर तीसरे ही दिन वह भवितव्यता होकर रही। घोड़ा ठीक उसी स्थिति में उसी स्थान पर मरा जैसा कि उनने स्वप्न में देखा था।

पुरातत्ववेत्ता प्रो.ह्विल प्रिक्ट एक प्राचीन शिलालेख का अर्थ समझने का प्रयत्न कर रहे थे, पर बहुत दिन माथा-पच्ची करने पर भी कुछ अर्थ-संगति नहीं बैठ रही थी। एक दिन उनने स्वप्न में देखा कि बेबीलोन का कोई पुरोहित उस लेख का अर्थ समझा रहा है। वे हड़बड़ाकर उठे और वह अर्थ नोट कर दिया। दूसरे दिन उनने संगति मिलाई तो अर्थ बिलकुल सही निकला और उनकी गुत्थी सुलझ गई।

बाणभट्ट की प्रसिद्ध पुस्तक ‘कादम्बरी’ की रूपरेखा उन्हें स्वप्न में ही मिली। रवींद्रनाथ टैगोर को अपनी गीतांजलि पुस्तक की कई कविताओं का आभास स्वप्न में मिला था।

जे0 डब्ल्यू डने की पुस्तक ‘एन एक्सपेरीमेंट विद टाइम’ में ऐसे स्वप्न की चर्चा है जो मात्र सपना न रहकर यथार्थ के रूप में सामने आए। उनका निज का एक स्वप्न, जिसमें उन्होंने क्रेस्टोआ द्वीप में भयंकर ज्वालामुखी फटते हुए देखा था, कुछ दिन बाद एक घटना ही बन गया।

स्पेन की सर्वश्रेष्ठ समझी जाने वाली इमारत ‘इस्को-पियल’ कुख्यात राजा फिलिप द्वितीय ने बनवाई थी। इसे उसने अपनी पत्नी मेरी ट्यूडार की स्मृति में बनवाया। इसके एक कक्ष में यह व्यवस्था भी की गई थी कि स्पेन के राजाओं की मृत्यु के बाद उनके शव उसी में गाड़े जाया करें और उनके स्मारक बना दिए जाया करें।

फिलिप को एक भविष्यवक्ता ने कहा था— "स्पेन का राजवंश 24 पीढ़ियों तक चलेगा।" उसे इस पर पूरा विश्वास था, इसलिए उसने चौबीस कब्रें ही पूर्वनियोजित ढंग से बनाकर रखी थीं।

सन् 1929 में स्पेन की रानी मैरिया क्रिस्टिना की मृत्यु हुई। उसका मृतशरीर 23 वें गड्ढे में गाड़ा गया। आश्चर्य यह कि वह शताब्दियों पूर्वघोषित भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य हुई। इसके बाद अलफोनो राजगद्दी पर बैठा। उसे दो वर्ष बाद ही गद्दी छोड़नी पड़ी और साथ ही राजतंत्र का भी अंत हो गया। इसके बाद स्पेन में गणतंत्र स्थापित हुआ और अलफोनो स्पेन का चौबीसवाँ और अंतिम राजा सिद्ध हुआ।

दैनिक हिन्दुस्तान के रविवारीय अंक में श्री परिपूर्णानंद वर्मा का एक लेख छपा है। जिसमें उन्होंने एक अंग्रेज वृद्धा की पूर्वाभास करने की शक्ति का अद्भुत वर्णन किया है। यह महिला श्रीमती सरोजनी नायडू के घनिष्ठ परिचय में थी। एक दिन श्रीमती नायडू के घर मुहम्मद अली जिन्ना और उनकी नवविवाहिता पारसी पत्नी आए। अंग्रेज वृद्धा आदि से अंत तक उन्हें आँखें फाड़कर देखती रही। जब वे चले गए तो श्रीमती नायडू ने उस अशिष्टता के लिए बुरा-भला कहा कि किसी मेहमान की ओर इस तरह घूरकर देखते रहना असभ्यता है।

अंग्रेज महिला ने कहा— "मुझे इनमें कुछ आश्चर्य दीखा। यह परम सुंदरी महिला तीन वर्ष में आत्महत्या कर लेगी और मि. जिन्ना बादशाह बनेंगे। यह मैंने इन लोगों का भविष्य देखा है। इसी तथ्य को मैं उनके चेहरे पर पढ़ रही थी।"

उपस्थित सभी लोग हँसे और उन दोनों बातों को असंभव बताया। उस परम सुंदरी पारसी महिला पर जिन्ना बेतरह आसक्त थे। सब प्रकार के सुखों के होते हुए वह आत्महत्या क्यों करेगी? उसी प्रकार उन दिनों किसी की कल्पना तक न थी कि पाकिस्तान की माँग जोर पकड़ेगी और वह किसी दिन एक वास्तविकता बनेगी तथा जिन्ना उसके अध्यक्ष बनेंगे। दोनों ही बातें बुद्धिसंगत न थीं; इसलिए उस महिला की बात को निरर्थक माना गया।

पर कुछ दिन बाद दोनों ही बातें सच हो गई। उस नवयुवती पत्नी को आत्महत्या करनी पड़ी। पाकिस्तान बना और जिन्ना उसके अध्यक्ष— बादशाह हुए।

अलीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति जैदी को इस भविष्यवाणी की काफी जानकारी थी। पाकिस्तान बनने के पाँच-छह वर्ष बाद श्री जैदी को लंदन जाना पड़ा। उन्हें उस अंग्रेज महिला की याद आई। पता उनकी डायरी में नोट था। वे उसके घर गए। उनने उस महिला से भारत तथा पाकिस्तान के भविष्य के बारे में पूछा तो उसने इतना ही कहा— "पूर्वी पाकिस्तान टूटकर अलग हो जाएगा। समय कितना लगेगा, कह नहीं सकती।" उन दिनों पाकिस्तान के इस प्रकार विभाजन होने की कोई आशंका नहीं थी; इसलिए वह कथन अविश्वस्त जँचा। यह समय ने बताया कि बात सच हो गई और उस अंग्रेज महिला की पुरानी भविष्यवाणी अक्षरशः सच निकली।

प्रयत्न करने पर इस प्रकार की अतींद्रिय दिव्यशक्ति कोई भी व्यक्ति अपने में विकसित कर सकता है। योग-साधना ऐसी ही संभावनाओं के पथ-प्रशस्त करती है।


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