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Magazine - Year 1973 - Version 2

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2 Last
एक बार मेढ़कों को अपने समाज की अनुशासनहीनता पर बड़ा खेद हुआ और वे शंकर भगवान के पास एक राजा भेजने की प्रार्थना लेकर पहुँचे।

प्रार्थना स्वीकृत हो गई। कुछ समय बाद शिवजी ने अपना बैल मेढ़कों के लोक में शासन करने भेजा। मेढ़क इधर-उधर निःशंक भाव से घूमते फिरे सौ उसके पैरों के नीचे दब कर सैकड़ों मेढ़क ऐसे ही कुचल गये।

ऐसा राजा उन्हें पसंद नहीं आया मेढ़क फिर शिवलोक पहुँचे और पुराना हटा कर नया राजा भेजने का अनुरोध करने लगे।

वह प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। बैल वापिस बुला लिया गया। कुछ दिन बाद स्वर्गलोक से एक भारी शिला मेढ़कों के ऊपर गिरी उससे हजारों की संख्या में वे कुचल कर मर गये।

इस नई विपत्ति से मेढ़कों को और भी अधिक दुःख हुआ और वे भगवान के पास फिर शिकायत करने पहुँचे।

शिवजी ने गंभीर होकर कहा-बच्चों पहले हमने अपना वाहन बैल भेजा था, दूसरी बार, हम जिस स्फटिक शिला पर बैठते हैं उसे भेजा। इसमें शासकों का दोष नहीं है। तुम लोग जब तक स्वयं अनुशासन में रहना न सीखोगे और मिल-जुलकर अपनी व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं तत्पर न होगे तब तक कोई भी शासन तुम्हारा भला न कर सकेगा। मेढ़कों ने अपनी भूल समझी और शासन से बड़ी आशायें रखने की अपेक्षा अपना प्रबंध करने में जुट गये।

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