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Magazine - Year 1973 - Version 2

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अवरोधों से जूझने में मनुष्य पूर्णतया समर्थ है।

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परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल लेने की मानवी क्षमता अद्भुत है। उसे जिन परिस्थितियों में रहना पड़ता है उसी के अनुरूप अपनी रुचि प्रकृति को ही नहीं शारीरिक क्षमता को भी ढाल बदल लेता है।

कई व्यक्ति वर्तमान ढर्रे को बदलते हुए बहुत डरते घबराते हैं और सोचते हैं इस परिवर्तन को सहन कर सकना उनके लिए संभव न होगा। विशेषतया ऐसी आशंकाएँ तब की जाती है जब सुविधाजनक जीवन में से निकल कर किसी महान उद्देश्य के लिए कष्टसाध्य जीवन प्रक्रिया अपनाने की जरूरत पड़ती है।

निस्संदेह सेवा साधना और परमार्थ प्रयोजनों का मार्ग सुख-सुविधाओं से भरा हुआ नहीं है , उसमें अपेक्षाकृत अधिक श्रम करना पड़ता है और सुख-सुविधाओं में कटौती करनी पड़ती है। यह कटौती उस समय तक बड़ी भयानक प्रतीत होती है जब तक उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया जाता। तैरना जिसने नहीं सीखा है उसे पानी में घुसना संकट को निमंत्रण देने जैसा प्रतीत होता है पर जब वह शिक्षार्थी तैरना सीखने के लिए जल में प्रवेश करता है और हाथ पैर चलाना आरम्भ करता है तो लगता है कि न तो पानी में घुसना उतना संकटापन्न था और न तैरने की प्रक्रिया उतनी जटिल थी। अभ्यास हर कठिनाई को सरल बना देता है।

मनुष्य की तितिक्षा शक्ति का अन्त नहीं वह उन परिस्थितियों में भी जीवित ही नहीं संतोष तथा आनन्द पूर्वक जीवन यापन कर सकता है जो अनभ्यस्त लोगों को मृत्यु जैसी भयानक प्रतीत होती है।

शीत सम्बन्धी सहन शीलता को ही लिया जाय तो उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की सर्दी दिल दहलाने वाली है। जहाँ सदैव असह्य शीत पड़ती हो और सर्वत्र बर्फ की मोटी परतें ही नजर आती हो, जीवनोपयोगी कोई साधन सुविधा न हो वहाँ मनुष्य का देर तक निर्वाह कैसे हो सकता है, यह प्रश्न सहज ही हल नहीं हो सकता। पर जब संकल्पवान मनुष्य किसी लक्ष्य को लेकर वहाँ रहने की ठान, ठान लेते हैं तो वहाँ ठहर सकने के सारे साधन जुट जाते हैं इतना ही नहीं निवास करने वालों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति भी उसी ढाँचे में ढल जाती है।

दक्षिणी ध्रुव प्रदेश का शोध करना इसलिए आवश्यक हो गया कि वहाँ से पृथ्वी के गहन रहस्यों का पता लगाया जा सकना- अन्तर्ग्रही विकिरण के धरती पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना- एवं उस क्षेत्र में दबी पड़ी प्रचुर धातु सम्पदा को हथियाना सरल हो सकता है। इन तथ्यों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक हो गया कि उस प्रदेश में शोधकर्ता वैज्ञानिकों का दल देर तक निवास करने के लिए तैयार हो और उत्साह पूर्वक अपनी खोज जारी रखे।

दुस्साहसी मनुष्य समय-समय पर प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने के अपने शौर्य साहस का परिचय देता रहा है। ध्रुव सम्बन्धी खोज के लिए भी वह साहस आगे आया और उस हिमाच्छादित प्रदेश में बस्ती बसा कर रहना स्वीकार कर लिया गया। यह कार्य कई वर्षों से चल रहा है और सुविधा पूर्ण जीवन यापन करने वाले अब इस असुविधा भरी परिस्थितियों के न केवल अभ्यस्त हो गये है वरन् आनन्द भी अनुभव करते हैं।

दक्षिणी ध्रुव के बर्फीले भू भाग में सदा ही प्रायः दो सौ मील प्रति घण्टे की चाल वाले बवंडर तूफान चलते रहते हैं। वहाँ का तापमान शून्य से 125 डिग्री नीचे रहता है। चारों ओर बर्फ जमी रहती है, जमीन के कही दर्शन तक नहीं। नीरवता का साम्राज्य है। चारों और सन्नाटा और सुनसान। सूर्यास्त के समय वहाँ ऐसी चित्र-विचित्र और भयंकर आकृतियों वाली ज्योतियाँ चमकती है कि देखने वालों का दिल दहल जाय।

वैज्ञानिक इस क्षेत्र में जहाँ पहुँचे है और वहां की खोज बीन से धरती आकाश से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों का पता लगाने में जुटे हुए है। इस शोध में बारह राष्ट्रों के वैज्ञानिकों का सहयोग है। ब्रिटेन, अमेरिका और रूस के वैज्ञानिकों ने अपने स्थायी कैम्प डाल दिये है।

दक्षिणी ध्रुव का धरातल ऐसा है कि वहां हलका खेमा गाड़ा जाय तो भी हर साल जमीन में 6 फुट धँस जायेगा। इस कठिनाई से बचने के लिए वैज्ञानिकों के डेरे गाड़ते समय जहाजों में रख कर पत्थर ले जाये जाते हैं और उन पर खेमे गाड़ दिये जाते हैं ताकि धँसने की अड़चन अपेक्षाकृत कम उठानी पड़े। इस क्षेत्र में केवल पेन्गुइन पक्षी ही रहते हैं जो वहाँ पहुँचें वैज्ञानिकों की हलचलें कौतूहल पूर्वक देखने के लिए अक्सर पास में आकर पंक्ति बद्ध खड़े हो जाते थे। जब धूप निकलती है तो सारा क्षेत्र चौंधिया देने वाली नमक से भर जाता है। बर्फ में जहाँ-तहाँ सैकड़ों फुट गहरे गड्ढे भी है जो भूले भटके को सदा के लिए शीत समाधि दे सकते हैं।

यहाँ काम कर रहे शोधकर्ता चमड़े के कपड़े पहनते हैं और दुहरे तिहरे गरम मोजे। फिर भी ठण्ड की अधिकता से चेहरा पर सफेद दाग पड़ जाते हैं। डीज़ल, तेल, बिजली के उपकरण, खाद्य पदार्थ लेकर वहाँ जहाज पहुँचते रहते हैं। वस्तुओं के ढोने के लिए हलके टैंक भी वहाँ पहुँचा दिये गये है। अतः वहां शोधकर्ताओं की कुछ-कुछ घरों की बस्तियाँ बनाली गई है जिनके नाम विर्डस्टेशन, मैकमर्डो, अमण्डसन स्काट, एल्सवर्थ, हैलट आदि नाम है। इन्हीं बस्तियों में लगे संयन्त्र, उन संभावनाओं की खोज-खबर लाने में निरत है जो अगले दिनों संसार के भाग्य और भविष्य निर्माण करने में महती भूमिका सम्पादित कर सकते हैं।

दक्षिणी ध्रुव में ग्रीष्मऋतु जनवरी, फरवरी में होती है। तब वहाँ सिर्फ इतनी ठण्ड रह जाती है जितनी कि हम लोगों ने कभी भयानक कड़ाके की सर्दी अनुभव की होगी। माल लेकर जलयान वहाँ इसी ग्रीष्मऋतु में पहुँचते हैं। इस प्रदेश का क्षेत्रफल प्रायः भारत से पाँच गुना अधिक है। यहाँ से आबादी वाले स्थान के बीच काफी दूरी है। दक्षिणी अफ्रीका का अन्तिम छोर कोई दो हजार मील और अफ्रीका का सबसे निचला भाग 4 हजार मील पड़ता है अब तक की खोज खबर से यह बात स्पष्ट हो गई है कि इस भूभाग के नीचे सोना, ताँबा, टिन, कोयला, लोहा जस्ता अभ्रक सीसा, यूरेनियम, क्रोफाइट आदि धातुओं का विपुल भण्डार भरा है। इस सम्पदा को निकाला जा सके तो उससे संसार की समृद्धि में भारी बढ़ोत्तरी हो सकती है।

यदि इस प्रदेश को यातायात के उपयुक्त बना लिया गया और उधर से वायुयानों और जलयानों का गुजरना संभव हो गया तो पृथ्वी के एक भाग की यात्रा अपेक्षाकृत काफी सरल, सस्ती और जल्दी की हो जायेगी।

यदि इस क्षेत्र में मनुष्य की पहुँच सरल हो गई तो यहाँ से दक्षिणी गोलार्धों का सैनिक नियन्त्रण आसानी से हो सकेगा। राकेट, भारी वायुयान आदि का संचालन भी वहां से सरल पड़ेगा। अमरीका से अफ्रीका की ओर और आस्ट्रेलिया से दक्षिणी अमेरिका की हवाई उड़ाने भी कम दूरी की रह जायेगी। अन्तरिक्ष यान यदि इसी क्षेत्र में छोड़ें जाएँ तो बहुत सरलता रहेगी। समस्त धरती की सूचनाएँ इस एक जगह पर इकट्ठी करना पृथ्वी के अन्य भागो की अपेक्षा यहाँ अधिक सुगम पड़ेगा। धरती पर सर्वत्र फैले परमाणुओं और इलेक्ट्रान किरणों का क्षेत्र ध्रुवों पर बहुत ही कम है। यहाँ कास्मिक किरणों की अधिकता के कारण शोधकार्यों के लिए यह स्थान बहुत उपयुक्त है।

यही बात उत्तरी ध्रुव के सम्बन्ध में भी है। वहाँ के कुछ क्षेत्र की संरचना बहुत जटिल है और उसमें प्रवेश करने वाले वैज्ञानिक फूँक-फूँक कर पाँव धर रहे हैं। इतने पर भी वहाँ मनुष्य जाति का अस्तित्व बहुत पहले से बना हुआ है। वैज्ञानिक तो जब तब और जहाँ तहाँ जाते हैं पर आश्चर्य इस बात का है कि उस सर्वथा अभावग्रस्तता से भरे और घोर शीत के वातावरण में भी मनुष्य चिरकाल से रह रहा है और उस गला डालने जैसी शीत विभीषिका को चुनौती देता हुआ जीवन यापन कर रहा है।

विज्ञानी पीटर स्कालेण्डर ने उत्तरी ध्रुव प्रदेश के चिर निवासी एस्किमो लोगों की जीवनचर्या के सम्बन्ध में गहरे अनुसंधान किये है और पता लगाया है कि इन लोगों ने शीत सहने की ही क्षमता एकत्रित नहीं की है वरन् उससे निबटने के लिए ऐसी तरकीबें भी निकाली है जिससे उनकी विज्ञान बुद्धि को सराहें बिना नहीं रहा जा सकता। उदाहरण के लिये वे बर्फ की सतह पर बर्फ से ही अपने लिए घर बनाते हैं जो काफी गर्म रहते हैं कारण कि उनके भीतर जो हवा कैद रहती है उसे ईंधन या मनुष्य शरीर की गर्मी से जितना गरम कर दिया जाता है वैसी स्थिति देर तक बनी रहती है और गर्मी का लाभ अनायास ही मिलता रहता है। परिस्थितियों ने यह वैज्ञानिकता किस प्रकार इन एस्किमो लोगों को प्रदान कर दी यह अचम्भे की ही बात है। मोमबत्ती की तरह जलने वाली चर्बी भरी मछली को वे न जाने कहाँ से ढूँढ़ निकालते हैं और अपनी प्रकाश सम्बन्धी आवश्यकता पूरी करते हैं आमतौर से अधिक ठण्ड में रहने वाले की हाथ पाँवों की उँगलियाँ गल जाती है किन्तु एस्किमो लोगों के शरीर ने अपने आप को परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया है। उनका रक्त प्रवाह शीत के प्रतिरोध करने जितना ही तीव्र हो जाता है। लम्बे दिनों में जब तब आठ से तीस मिनट की झपकियाँ लेते रहते हैं और अपनी नींद पूरी करते हैं लम्बी रातों में वे कई-कई दिनों तक सोते रहने का आनन्द लेते रहते हैं।

शीत प्रदेशों में रहने वाले लोगों के रक्त में लाल रुधिर कणिकाएं अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होती है अतः वे आक्सीजन की अधिक मात्रा अपने में संग्रह कर लेते हैं। इसी विशेष संचय के बल पर टुंड्रा जैसे बर्फीले प्रदेशों में भी मनुष्य का रहना सम्भव हो सका। ध्रुव प्रदेश पर एस्किमो लोगों का पीढ़ियों में रहते चले आना इस तथ्य का परिचायक है कि मानव शरीर की संरचना किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढाल सकने में समर्थ है।

उत्तरी ध्रुव सम्बन्धी खोजे काफी आगे बढ़ चली है और यह आशा की जा रही है कि उस विशाल भूभाग पर कब्जा कर सकने पर कुबेर जैसी विपुल सम्पदा मनुष्य के हाथ लग सकती है। साथ ही पृथ्वी की रहस्यमयी गतिविधियों को समझ कर मानवी सुविधा के ऐसे साधन स्त्रोत निकाले जा सकते हैं जो अभी तक उपलब्ध नहीं है। ध्रुवप्रदेश के निकटवर्ती हिमाच्छादित प्रदेशों में भी शीत की कमी नहीं। वहाँ भी शोध कार्य चल रहा है और पता लगाया गया है कि साइबेरिया में सुवर्ण, अलास्का में पेट्रोल, उन्गावा में लोहा, उत्तरी कनाडा में ताँबा प्रचुर परिमाण में बर्फ की मोटी परतों के नीचे दबा पड़ा है। वह दौलत यदि हाथ लग सके तो मानवी सम्पदा में अत्यधिक वृद्धि हो सकती है।

जिस प्रकार भौतिक सम्पदा सुविधा और जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के असह्य शीत को चुनौती देते हुए दुस्साहसी लोगों ने वहाँ अड्डा जमाया है उसी प्रकार उच्च आध्यात्मिक प्रयोजनों के लिए- नव निर्माण जैसे महान लक्ष्यों के लिए साहस भर कदम बढ़ा सकते हैं। यदि वे इस दिशा में सचमुच चल पड़े तो समय बतायेगा कि उस मार्ग में आने वाली असह्य असुविधाओं की जो कल्पना की गई थी, भूतकाल में आदर्शवादी लोग त्याग बलिदान का मार्ग अपना कर भी संतुष्ट जीवनयापन करते रहे हैं। अभी भी उस उस राह को अपनाने वालों के लिए असुविधा को सुविधा में बदल देने वाली तितीक्षा, प्रकृति प्रदत्त तितीक्षा शक्ति हर किसी में भरी पड़ी है। जो बढ़ चलेंगे उनकी आशंका भरी कठिनाइयाँ समय आने पर अति सरल ही प्रतीत होगी।

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