मनुष्य की अतीन्द्रिय और अद्भुत क्षमताएँ
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स्वामी विवेकानन्द ने अपने एक भाषण में कहा था- मुझे एक बार एक मनुष्य के बारे में बताया गया जो किसी का प्रश्न सुनने से पूर्व ही उसका उत्तर देता था। मुझे उत्सुकता हुई मैं अपनी मित्र मण्डली के साथ वहाँ पहुँचा। उसने एक कागज हम सब को दे दिया। हमने अपने प्रश्न सोच लिये। हमें कागज खोलने को कहा गया। मेरी सोची संस्कृत की पंक्तियाँ ज्यों की त्यों उस कागज पर लिखी मिली। यही नहीं मेरे साथी ने अरबी भाषा का काव्य सोचा था। वह भी ठीक उसी तरह लिखा मिला। हमारे तीसरे साथी जो जर्मन डाक्टर थे, उन्होंने भी किसी जर्मन डाक्टरी पुस्तक का वाक्य अपने मन में सोचा था वह भी उनके कागज पर ज्यों का त्यों लिखा मिला। इस आश्चर्य के बाद भी मेरा मन सोचता रहा कि कही मैंने धोखा तो नहीं खाया। कई बार मैं उसके पास अधिक गहरी परीक्षा करने की दृष्टि से गया और हर बार आश्चर्य में डूबा हुआ वापिस आया।
कुछ वर्ष पूर्व इच्छाशक्ति के चमत्कारों का प्रत्यक्ष प्रदर्शन करने के लिए डा. राल्फ एलेक्जेण्डर ने एक सार्वजनिक प्रदर्शन मैक्सिको नगर में किया था। इस प्रदर्शन में प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्रों के प्रतिनिधि और अन्यान्य वैज्ञानिक, तार्किक, बुद्धिजीवी तथा संभ्रान्त नागरिक आमंत्रित किये गये थे। प्रदर्शन यह था कि आकाश में छाये बादलों को किसी भी स्थान से- किसी भी दिशा में हटाया जा सकता है और उसे कैसी ही शक्ल दी जा सकती हैं। बादलों को बुलाया और भगाया जा सकता है।
नियत समय पर प्रदर्शन हुआ। उस समय आकाश में एक भी बादल नहीं था। पर प्रयोगकर्ता ने देखते देखते घटाएँ बुला दी और दर्शकों की माँग के अनुसार बादलों के टुकड़े अभीष्ट दिशाओं में बखेर देने और उनकी चित्र-विचित्र शक्लें बना देने का सफल प्रदर्शन किया। इस अद्भुत प्रदर्शन की चर्चा उन दिनों अमरीका के प्रायः सभी अखबारों में मोटे हैडिंग देकर छपी थी।
उपरोक्त प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए एक प्रसिद्ध विज्ञानी एलेन एप्रागेट ने ‘साइकोलॉजी’ पत्रिका में एक विस्तृत लेख छाप कर यह बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान् विद्युत धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया विधि सम्मत है। इसे जादू नहीं समझा जाना चाहिए।
वस्तुओं को इच्छाशक्ति द्वारा प्रभावित करने का अब एक स्वतन्त्र ही विज्ञान बन गया है जिसे साइकोकिनास्रिस कहते हैं। इस लम्बे शब्द का संक्षिप्त है- सी. के.। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दीखने वाले पदार्थों के अंतर्गत भी विद्युत अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती है। इन अणुओं के अंतर्गत जो चेतना तत्व है उसे मनोबल की शक्ति तरंगों द्वारा प्रभावित नियंत्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार भौतिक जगत पर मनः शक्ति के नियन्त्रण को एक तथ्य माना जा सकता है। डा. एलेक्जेण्डर के इस संदर्भ में गहरे प्रयोग ‘ओरीलिया’ कस्बे में क्रमबद्ध रूप से चल रहे हैं। कई शोधकर्ता और शिक्षार्थी उनके इस शोध प्रयोजन में सम्मिलित है।
एक व्यक्ति के विचार दूरवर्ती दूसरे तक पहुँच सकते हैं और उसे प्रभावित कर सकते हैं यह तथ्य अब असंदिग्ध हो चला है। न केवल अनायास घटित होने वाली घटनाएँ ही इसकी साक्षी है वरन् प्रयोग करके यह संभव बनाया जा सका है कि यदि समुचित इच्छाशक्ति का समावेश हो और मनुष्यों के बीच घनिष्ठताओं की कमी न हो तो उनके विचारों का वायरलैस उनके बीच विचारों का आदान प्रदान करते रह सकने में समर्थ हो सकता है।
सान फ्रांसिस्को में ट्रक ड्राइवर था लुई फिशर उसकी पत्नी का नाम था- हैजल रेफर्टी। दोनों में एक दिन डट कर झगड़ा हुआ और वे दोनों फिर कभी न मिलने की कसम खाकर उस शहर को ही छोड़कर अन्यत्र चले गये ताकि फिर कभी एक दूसरे का मुँह न देख सके।
गुस्से में वे चले तो गये पर जल्दी ही अपनी भूल अनुभव करने लगे कि उन्हें तनिक से आवेश में आकर इतना बड़ा कदम नहीं उठाना चाहिए था। जैसे-जैसे दिन बीतते गये, दोनों की बेचैनी बढ़ती गई। और ऐसा उपाय ढूँढ़ने लगे कि साथी को ढूँढ़ पावे। पर दोनों में से किसी को किसी का पता न था।
एक दिन सबेरे आठ बजे हैजल ने रेडियो पर प्रसारित सूचना सुनी। लुई इसी लामऐजिल्स शहर में है वह तुम्हारा इंतजार ग्रिफिथ की वेधशाला पर बैठा कर रहा था। ठीक ऐसी ही रेडियो एनाउन्स लुई ने सुना- ग्रिफिथ की वेधशाला पर सीढ़ियों पर बैठी हैरिस तुम्हारा इन्तजार कर रही है। दोनों ही तत्काल दौड़ पड़े और जैसे ही नियत स्थान पर पहुँचे कि परस्पर मिलन हो गया। दोनों फूट-फूट कर रोये और फिर कभी विलग न होने की प्रतिज्ञा करके वापस अपनी जगह पहुँच गये।
मिलन की पृष्ठभूमि बनाने वाला रेडियो प्रसारण था। पर एक ही समय में दो प्रकार का प्रसारण क्यों? लुई को हैरिस से मिलने की और हैरिस को लुई से मिलने की पृथक्-पृथक् शब्दावली क्यों? एनाउन्स करने वाला कौन? पूछने पर उनने बताया कि ऐसा कोई प्रसारण किसी रेडियो ने नहीं किया फिर यह सूचना उनके कानों ने कैसे सुनी जो शब्दशः सत्य निकली। परामनोविज्ञान वेत्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अतीन्द्रिय चेतना ऐसा ताना-बाना बुन सकती है जिसके अनुसार दो घनिष्ठ व्यक्तियों के विचार एक से दूसरे तक इस तरह पहुँच जाये मानो वे एक दूसरे से प्रत्यक्ष वार्तालाप कर रहे हो।
अतीन्द्रिय विज्ञान के शोधकर्ताओं के सामने फ्रेड की एक घटना बहुत ही दिलचस्पी से विश्लेषण का विषय बनी रही है जिसके कारण उसे न केवल अपनी पत्नी के बहाने ऐसे संकेत मिले थे जो दुर्घटना एवं विभीषिका का भी पूर्वाभास देते थे। शोधकर्ता उस घटना को अन्तः चेतना का एक रहस्योद्घाटन ही मानते हैं जो किसी महत्वपूर्ण घटना का पूर्व परिचय देने और विपत्ति से सतर्क करने का कार्य भी कर सकती है।
अटलांटिक महासागर के केरोबियन द्वीप हिस्पानोलिया के पश्चिम में वेस्टइण्डीज द्वीप-समूह में एक सुरम्य स्थान है- हेटी। इस क्षेत्र पर 17 वीं शताब्दी में फ्रांसीसियों ने कब्जा किया था और अफ्रीकी गुलामों को पकड़ कर उसे सरसब्ज किया था। इस प्रदेश में एक व्यापारी फ्रेड स्पेडलिंग कुछ खरीद बेच करने के लिए अक्सर आया जाया करता था।
22 अगस्त 1964 की बात है। फ्रेड अपनी मोटर से हेटी की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में ऐसा भयानक तूफान आया जैसा उस क्षेत्र में कभी नहीं आया था, इसमें 138 जाने गई थी। फ्रेड उस अन्धड़ में फंस गया पर आखिर आगे तो चलना ही था- अपने होटल तक पहुँचने के लिए वह नक्शे की सहायता से आगे बढ़ने लगा। मोटर चलाई तो उसने सुना कि पत्नी की आवाज हवा में गूँज रही है और चीख-चीख कर कह रही है पीछे लौटो- यह रास्ता खतरनाक है। फ्रेड को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसकी पत्नी हजारों मील दूर अमेरिका में है उसकी आवाज यहाँ क्यों आयी। फिर भी उसे आवाज बार-बार सुनाई पड़ती रही जिसमें पीछे लौटने का आग्रह किया जा रहा था।
कुछ ही घंटों में फ्रेड एक नदी के पुल पर पहुँच गया। पुल पार करने की वह तैयारी कर ही रहा था कि समुद्र के दबाव से वह पुल चरमरा कर वह पड़ा और टूटे छप्पर की तरह उस उफनती जल राशि में डूबते पत्ते की तरह बहता चला गया। यह भयानक दृश्य उसने देखा तो काँप उठा, यदि एक क्षण पूर्व उसने पुल पर मोटर बढ़ा दी होती तो उसका अस्तित्व ही मिट जाता। मोटर लौटाई और सवेरे का इन्तजार करते हुए खुले मैदान में रात बिताई सवेरा होने पर वह रास्ता बदल कर अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचा। उसके दिमाग में यह रहस्य छाया ही रहा कि पत्नी की आवाज खतरे की चेतावनी देने और पीछे लौटने का आग्रह करती हुई बार-बार सुनाई क्यों पड़ रही थी।
फ्रेड जब अमेरिका वापिस पहुँचा तब उसे मालूम हुआ कि ठीक उसी रात उसकी पत्नी ने सपना देखा कि उसका पति हेटी के भयानक जंगल में तूफान में फंस गया। आगे गहरी नदी है उसमें उसकी मोटर डूबने ही वाली है। इस दृश्य से वह बेतरह घबराई और सोते-सोते ही चीख पड़ी- फ्रेड वापिस लौटो- खतरे से बचो।
यह एक रहस्य ही था कि हजारों मील दूरी पर रह रही पत्नी को एक ही समय में ऐसी अनुभूतियाँ हुई जो न केवल भविष्य बताती थी वरन् एक की स्थिति का दूसरे को तत्क्षण आभास भी देती थी।
पूर्वाभास की अनेक घटनाओं में एक निम्नलिखित घटना भी है जिसमें पूर्ण स्वस्थ रहते हुए भी मृत्यु का पूर्वाभास मिला और अक्षरशः सत्य निकला।
उत्तर प्रदेश - मुरादाबाद जिले की बिलारी तहसील में ग्राम सवाई के निवासी एक लोकप्रिय समाज सेवी गजराज सिंह को अपनी मृत्यु का आभास चार दिन पूर्व मिल गया था यो वे कुछ रुग्ण तो थे पर चलने फिरने तथा साधारण काम-काज करते रहने में समर्थ थे। उन्होंने घर वालों को चार दिन पूर्व अपने मृत्यु का समय बता दिया था और मरघट में जाकर अपने हाथ से जमीन साफ करके दाह कर्म के लिए स्थान निर्धारित किया था। लकड़ी, कफ़न यहाँ तक कि जमीन लीपने के लिये गोबर तक समय से पूर्व ही मँगा कर रख लिया था। यो वे अन्न खाते थे पर चार दिन पूर्व उन्होंने दूध और गंगा जल पर रहना आरम्भ कर दिया। आस-पास के गाँवों के लोगों को बुलाकर उन्होंने आवश्यक परामर्श दिये। मृत्यु का ठीक समय मध्याह्नोत्तर दो बजे था सो उन्होंने हर किसी को भोजन करके निवृत्त होने के लिये आग्रह पूर्वक प्रेरित किया। आश्चर्य यह कि मृत्यु ठीक उनके घोषित समय पर ही हुई और मरने से पन्द्रह मिनट पूर्व तक पूर्ण स्वस्थ जैसी स्थिति में बातें करते रहे।
ब्रिटिश साइकिक रिसर्च सोसायटी ने श्री मायर्स की अध्यक्षता में ऐसी खोजे की है जिनसे मनुष्य में सन्निहित अतीन्द्रिय क्षमता का रहस्योद्घाटन होता है। जिसे मनुष्य में देव दानव का आवेश अथवा जादू टोने की सिद्धि कहा जाता है- यह वस्तुतः अतीन्द्रिय क्षमता ही है जो आमतौर से प्रसुप्त स्थिति में पड़ी रहती है, किन्तु अभ्यास से जगाई जा सकती है। कभी-कभी यह अनायास ही जागृत हो जाती है और व्यक्ति में ऐसी अद्भुत विशेषताएँ उत्पन्न हो जाती है जो आमतौर से हर किसी में नहीं देखी जाती।
परा-मनोविज्ञान के गुणात्मक यात्रात्मक और मनः संचारण के तीनों पक्ष इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि मनुष्य मानसिक दृष्टि से इतना ही सीमित नहीं है जितना कि वह कामकाज और दैनिक जीवन में दिखाई पड़ता है। अतीन्द्रिय क्षमताएँ हर किसी में विद्यमान है। वे प्रसुप्त इसलिए रहती है कि उन्हें काम नहीं करना पड़ता। यदि यह आवश्यकता अनुभव की जाने लगे कि इनका जागरण होना ही चाहिए तो ऐसी परिस्थितियाँ सहज ही विकसित होने लगेगी जिनसे व्यक्ति परोक्षानुभूति की उन विशेषताओं से संपन्न हो चले जो आज अद्भुत एवं चमत्कारी समझी जाती है।
परा-मनोविज्ञान की इन दिनों तीन प्रमुख शोध दिशायें है। 1. साइकोकिक नेसिस (सी. के.) मनोगति मानसिक स्पन्दन शीलता। 2. एक्सट्रा सेन्सरी परशेपशन (ई. एस. पी.) अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष बोध। 3. इन कारपोरेल पर्सनल एजेन्सी- अमूर्त व्यक्ति परक अभिकरण।
अतीन्द्रिय अनुभूति की यथार्थता सिद्ध करने वाले आये दिन अगणित प्रमाण मिलते रहते हैं। इस क्षमता को विकसित कर सकना भी सम्भव है। इस तथ्य पर की गई खोजो ने परा-मनोविज्ञान को अधिक गहरे अन्वेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया है। टेलीपैथी पारेन्द्रिय ज्ञान-विचार संचार- ल्यैसर वायन्स-अपरोक्षानुभूति प्रिकागनीशन- पूर्व संज्ञान अब स्वतन्त्र शास्त्र बन चले है। कुछ समय पूर्व इनकी यथार्थता पर सन्देह किया जाता था। पर अब विज्ञान क्रमशः इन्हें ऐसे प्रामाणिक तथ्य मानता चला जा रहा है जिसकी खोज भौतिकी के अन्य क्रियाकलापों को जानने की तरह ही आवश्यक है। सेन्सरी चेतना के सम्बन्ध में जितनी जानकारी अब तक मिली है। उससे स्पष्ट है कि मनुष्य-मनुष्य के बीच में पड़ी हुई गोपनीयता की दीवार उठ सकती है और एक दूसरे की न केवल अन्तः स्थिति की जाना जा सकता है वरन् कायिक उपकरणों का प्रयोग दूरस्थ रहते हुए भी भावनात्मक आदान प्रदान कर सकता है। लहरे अलग दीखती भर है पर उनमें सागर का क्षार एवं ताप जुड़ा ही रहता है। प्रत्येक लहर अपने से पिछली वाली से कुछ लेती है और अगली वाली को कुछ देती है। व्यक्तिगत चेतना के बारे में यही बात है। प्रत्यक्षतः मनुष्य सामाजिक प्राणी है वह समाज से ही बहुत कुछ पाता है और अपनी हलचलों से समाज को प्रभावित करता है। यह शास्त्र की बात हुई। मनोविज्ञान शास्त्र की अतीन्द्रिय शाखा इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि विश्व मानस एक अथाह और असीम जल राशि की तरह है। व्यक्तिगत चेतना उसी विचार महासागर की एक नगण्य सी तरंग है। विश्व मानस से ही व्यक्ति विविध विधि चेतनाएँ उपलब्ध करता है और फिर अपनी विशेषता सम्मिलित करके फिर उसे वापिस उसी समुद्र को समर्पित कर देता है।
अध्यात्म शास्त्र में समस्त प्राणियों में एक ही चेतना का अस्तित्व बताया गया है। काय कलेवर की दृष्टि से अलग दीखते हुए भी वे वस्तुतः आत्मिक दृष्टि से एक है। व्यक्तिगत मौलिकता और स्वभावी विभिन्नताएँ कई बार एक दूसरे से विपरीत स्तर की मालूम पड़ती है फिर भी प्रकृति में न केवल साम्य है वरन् पारस्परिक सम्बन्ध भी है जिसे पूर्णतया अलग कर सकना सम्भव ही नहीं हो सकता। ऐसे मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती, जो अन्य मनुष्यों से सर्वथा स्वतन्त्र हो कर अपना अस्तित्व कायम रखे रहे।
निकट भविष्य में मनुष्य को अतीन्द्रिय क्षमता का और भी अधिक रहस्योद्घाटन होगा। तब मनुष्य की सत्ता के बारे में जाना जा सकेगा कि वह उतना ही नहीं है जितना कि शारीरिक और मानसिक क्षमता के आधार पर जाना समझा जाता है। मनुष्य अतीन्द्रिय क्षमताओं का भी भण्डार है और यदि उन्हें जागृत किया जा सके तो उसे वह संज्ञा प्राप्त हो सकती है जो आज देवताओं को उपलब्ध है।

