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Magazine - Year 1978 - Version 2

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वरदानी शक्ति का देवता- सुदृढ़ संकल्प

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पदार्थ जड़ है। उसमें हलचल उत्पन्न करने का काम शक्ति करती है। जागतिक हलचलों में जो शक्ति झाँकती है उसे विज्ञान की भाषा में एनर्जी—क्षमता कहते हैं। विद्युत के अनेक रूप उसके भेद उपभेदों का परिचय देते हैं। संसार में जो कुछ घटित हो रहा है उसका श्रेय उसी शक्ति को है जिसे विज्ञानी अपने यन्त्रों द्वारा और आत्म−ज्ञानी अपने मन्त्रों द्वारा प्रकट एवं प्रमाणित करते हैं।

जीव चेतना है, पर वह चेतना भी सक्रिय तब होती है, जब उसे शक्ति का सहयोग मिलता है। चेतना के साथ समर्थता का समन्वय होने से ही वह अपने वर्चस्व को प्रकट कर पाती है। अकेली चेतना तो अपने अस्तित्व को बनाये रहने भर में सीमित बनी रहती है। परब्रह्म की मूल−सत्ता का तत्वदर्शियों ने साक्षी, दृष्टा, अचिन्त्य, निर्विकल्प जैसे शब्दों में निरूपण दिया है।

चेतना के प्रकटीकरण और प्रस्फुरण की समस्त सम्भावनाएँ संकल्प शक्ति में केन्द्रीभूत है। संकल्प की शक्ति से अपरिचित होने और उसके उपयोग का अभ्यास अनुभव न होने के कारण ही मनुष्य को अभावग्रस्त अविकसित स्थिति में पड़े रहने का दुर्भाग्य सहन करना पड़ता है। जिन्हें अपने को बढ़ाना और उठाना है उन्हें संकल्पशक्ति को उभारने और उसका सुदृढ़ अवलम्बन ग्रहण करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग है नहीं। संकल्पवान ही अपनी प्रसुप्त क्षमताओं को जगाते हैं और उसके चुम्बकत्व से अभीष्ट साधनों तथा सफलताओं को उपलब्ध करते चले जाते हैं। प्रगति का दार्शनिक इतिहास यही है। द्रुत गति से आगे बढ़ने वालों को संकल्प रथ पर आरूढ़ होकर ही लक्ष्य तक पहुँचने में सफलता मिलती रही है।

परमात्मा को एकाकीपन अखरा- उसने अपने विस्तार और विनोद के लिए अभीष्ट साधनों की आकांक्षा की। संकल्प द्वारा उसने कल्पवृक्ष की भूमिका निवाहा और वह सब कुछ प्रस्तुत हो गया जो सृष्टा को अभीष्ट था। संकल्प का देवता हमारी प्रगति और सुविधा के लिए जो आवश्यक है उसका वरदान देने खड़ा है। आवश्यकता इतनी भर है कि हम उसकी शक्ति को पहचानें और भक्ति की साधना कर सकने का साहस जुटायें।

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