
सफलता बनाम आत्मविश्वास
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सफलता और विश्वास दोनों एक−दूसरे के पूरक हैं। जिसको अपनी शक्ति, सामर्थ्य, क्षमता एवं योग्यता,प्रतिभा पर विश्वास ही न हो वह सफल कैसे हो सकता है? सफलता के लिए विश्वास को जगाना अति आवश्यक है। रोगी को यह विश्वास दिला दिया जाय कि तुम जल्दी ही अच्छे हो जाओगे तो उसके अन्दर नव−जीवन का संचार होता है और वह अपने को स्वस्थ अनुभव करने लगता है। इसी तरह से जीवन की सफलता इस बात पर टिकी हुई है कि हम अपने प्रति कितने विश्वासी हैं।
विश्वासी के बढ़ते हुए कदम कोई रोक नहीं सकता है। क्योंकि व्यक्ति बड़ा ही शक्तिवान है। शक्ति पर विश्वास करके आगे बढ़ने वाले दुनिया के इतिहास में अमर हो गये। गांधी जी आँधी तूफान की तरह बढ़ते चले गये, दुनिया में सुख-शान्ति की स्थापना की और जबरदस्त अंग्रेजों को उन्होंने मार भगाया। क्योंकि उन्हें विश्वास था अपनी अन्तरात्मा पर। आल्प्स पर्वत नेपोलियन बोनापोर्ट के मार्ग पर रोड़ा नहीं बन सका। ऐसे एक नहीं असंख्यों उदाहरण दृष्टिगत होते हैं कि महापुरुषों ने सफलता विश्वास के सहारे पाई और अपने जीवन की बाधाओं को चकनाचूर कर डाला।
सफलता उन्हीं को मिली है जो दृढ़ विश्वास के साथ अपने मार्ग पर डटे रहे और पराजित होने पर भी विजय की आशंका को जगाये रहे। उनके मन की स्थिरता एवं निडरता ने उन्हें सफलता के समीप पहुँचा दिया।
विश्वास के साथ उत्साह भी आवश्यक है किसी कार्य में विश्वास तो खूब हो पर कार्य करने का उत्साह न हो तो भी कार्य में सफलता मिल नहीं सकती है। सफलता के लिए छोटे-छोटे कार्य चुनने तथा करने चाहिए ताकि हम उन्हें अच्छी तरह से कर सकें। अच्छी तरह से सम्पन्न किए गये कार्य से प्रसन्नता एवं सन्तुष्टि होती है। यही सफलता का द्योतक है।
कार्य की सफलता के लिए पुरुषार्थी होना भी आवश्यक है। पुरुषार्थ के अभाव में सिर्फ सोचने मात्र से काम पूरा नहीं जाएगा। किसान पुरुषार्थ के बल पर खेती करता है। दुनिया में पुरुषार्थ के बल पर ही अनेक प्रकार की सफलता की निशानी है।
असफलता योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करती है। यदि मनुष्य सफलता की सफलता पाता चले तो जब कभी भी असफल होगा तुरन्त हताश हो जाएगा। ऐसे व्यक्ति विश्वासी नहीं होते। उनके जीवन के छोटे से दुःख भी उन्हें विचलित कर देते हैं उनकी क्षमतायें परिपक्व नहीं हो पाती हैं किन्तु असफलता या पराजय व्यक्ति को मजबूत बना देती है। ऐसा मजबूत मनुष्य हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। असफलता भी स्थिर सफलता चाहने वाले के लिए आवश्यक है।
स्काटलैण्ड के राजा राबर्ट ब्रूस युद्ध में हार जाने के पश्चात शत्रुओं से बचने के लिए एक गुफा में घुस गये वहाँ उन्होंने एक मकड़ी को अपना जाला बनाते हुए देखा, वह बार बार टूट जाता, किन्तु मकड़ी अपने धैर्य एवं साहस के साथ उसे बार बार जोड़ती रही और अन्त में उसने अपना जाला बना लिया। यह देखकर उन्हें फिर से आशा बँधी, साहस जागा और वह पुनः युद्ध के लिए चल पड़े और विजयी हुए।
असफलता को पराजय नहीं सफलता का प्रथम चरण मानना चाहिए। पराजय मनुष्य को अपनी शक्तियों का भान कराती है उसमें सामर्थ्य एवं साहस जगाती है। यह मानकर के नहीं चलना चाहिए कि हमें सदैव सफलता ही सफलता मिलें,क्योंकि सृष्टि हानि−लाभ, सुख-दुःख, दिन-रात, जीवन−मरण आदि के सम्मिश्रण से बनी है।
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