
उपलब्धियाँ नहीं आधार आवश्यक
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श्रावस्ती के विशाल वेलुवन में भगवान् बुद्ध का धर्म दीक्षा समारोह आयोजित किया गया। नगरवासी प्रतिदिन उनके धार्मिक प्रवचन में भाग लेते और अमृत वाणी का दिव्य लाभ प्राप्त करते। धर्म जीवन के लिये क्यों आवश्यक है। अभिमुख होने से मनुष्य अपने यथार्थ स्वरूप को कैसे पहचानता है इन पर तथागत की सूक्ष्म मीमांसायें और मार्गदर्शन लोगों के हृदय में नई प्रेरणायें भरते। श्रावस्ती में इस तरह धर्म साकार हो उठा।
स्वार्थ की संकीर्णता और पूर्वाग्रह में ग्रस्त व्यक्ति के पास भगवान् भी पहुँच जायें तो भी उसकी जड़ता में अन्तर नहीं आता। वक्कलि था तो ब्राह्मण किन्तु गुण, कर्म, स्वभाव में ऐसी एक भी बात नहीं थी जिसमें उसका ब्राह्मणत्व झलकता। कई दिनों तक तो वह भगवान् बुद्ध के प्रवचन तो क्या दर्शनों तक के लिये नहीं गया, किन्तु जहाँ सारा नगर उमड़ रहा हो, जनसागर सम्पूर्णतः श्रद्धा से आविर्भूत हो रहा हो, वक्कलि की जिज्ञासा उसे शान्त कैसे बैठने देती? एक दिन नगरवासियों ने वक्कलि को भी वेलुवन समारोह में पाया।
वक्कलि ने भगवान् बुद्ध के प्रथम दर्शन किये। उनके रूप लावण्य, उनकी अद्वितीय तेजस्विता, सुगठित देह यष्टि तथा मुख से प्रकट होने वाली सौम्यता ने वक्कलि का मन मोह लिया। उसका हृदय तथागत के चरणों में लोटने लगा। उसने अनुभव किया यही तो वे मणियाँ थीं, जिनकी उसे खोज थी, उसने किंचित विलम्ब नहीं किया, उसी दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली।
भगवान् बुद्ध ने दीक्षा तो दे दी किन्तु यह बात उनसे छिपी नहीं रह सकी कि वक्कलि ने दीक्षा भले ही ली हो धर्म का एक भी नियम उसने जीवन में धारण नहीं किया। वह नियमित उपासना नहीं करता, आत्मनिरिक्षण आत्म-सुधार की आवश्यकता और उपयोगिता भी उसने नहीं समझी। उसकी परमार्थ-परायणता सक्रिय तो क्या होती अब तक भी स्वार्थ के बन्दीगृह से मुक्त नहीं हो पाई थी। यदि कुछ था तो बस इतना ही कि वह नियमित संघगोष्ठी में सम्मिलित अवश्य होता। वहाँ भी उसकी सांसारिक बुद्धि ही मुखर रहती। भगवान् बुद्ध के प्रवचनों में भी उसकी अभिरुचि नहीं थी, वहाँ भी वह बुद्धदेव के सौन्दर्य की ही चर्चा करता रहता।
समय पाकर एक दिन उसने तथागत से पूछा ही लिया भगवन् मुझे भी ऐसी योग साधना बताइये जिससे मैं भी आप जितना ही सुन्दर हो जाऊँ, ऐसी ही तेजस्विता मुझमें भी आ जाये, आप जैसा नवयौवन मुझमें भी फूट पड़े, जिस दिन यह हो जायेगा, उस दिन मैं आपके धर्म का संसार भर में प्रचार करूंगा, जब तक मेरे पास उक्त आकर्षण नहीं लोग मेरी बात क्यों कर सुनेंगे?