• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • परिवर्तन में प्रगति और जीवन
    • युगसन्धि की विषम बेला और जागरुकों का कर्त्तव्य निर्धारण
    • युग परिवर्तन का यही उपयुक्त समय
    • मूर्धन्य विश्व विचारकों का अभिमत
    • अर्न्तग्रही परिस्थितियों की प्रभावी प्रतिक्रिया
    • मनुष्य जाति पर गहराते संकट के बादल
    • युद्ध लिप्सा कितनी घातक हो सकती है!
    • युग-सन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त-प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में
    • VigyapanSuchana
    • सूर्य ग्रहणों की असाधारण श्रृंखला और उनकी अवाँछनीय प्रतिक्रिया
    • खग्रास ग्रहण से व्यापक उथल पुथल सम्भावित
    • VigyapanSuchana
    • सूर्य स्फोटों का अपनी पृथ्वी पर प्रभाव!
    • विश्व विख्यात कुछ अदृश्य दर्शियों के भविष्य कथन
    • ईसाई धर्म साहित्य में भावी संकट के संकेत
    • युग परिवर्तन में अन्तरिक्ष विज्ञान का उपयोग
    • VigyapanSuchana
    • आर्ष ज्योतिविज्ञान का पुनजीवन-नई वैद्यशाला
    • नये चरण इस प्रकार उठाने है।
    • भावना बल
    • भावना बल (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • परिवर्तन में प्रगति और जीवन
    • युगसन्धि की विषम बेला और जागरुकों का कर्त्तव्य निर्धारण
    • युग परिवर्तन का यही उपयुक्त समय
    • मूर्धन्य विश्व विचारकों का अभिमत
    • अर्न्तग्रही परिस्थितियों की प्रभावी प्रतिक्रिया
    • मनुष्य जाति पर गहराते संकट के बादल
    • युद्ध लिप्सा कितनी घातक हो सकती है!
    • युग-सन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त-प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में
    • VigyapanSuchana
    • सूर्य ग्रहणों की असाधारण श्रृंखला और उनकी अवाँछनीय प्रतिक्रिया
    • खग्रास ग्रहण से व्यापक उथल पुथल सम्भावित
    • VigyapanSuchana
    • सूर्य स्फोटों का अपनी पृथ्वी पर प्रभाव!
    • विश्व विख्यात कुछ अदृश्य दर्शियों के भविष्य कथन
    • ईसाई धर्म साहित्य में भावी संकट के संकेत
    • युग परिवर्तन में अन्तरिक्ष विज्ञान का उपयोग
    • VigyapanSuchana
    • आर्ष ज्योतिविज्ञान का पुनजीवन-नई वैद्यशाला
    • नये चरण इस प्रकार उठाने है।
    • भावना बल
    • भावना बल (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1980 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सूर्य ग्रहणों की असाधारण श्रृंखला और उनकी अवाँछनीय प्रतिक्रिया

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
चन्द्रहण आमतौर से पड़ते रहते हैं सूर्य ग्रहणों की संख्या कम होती है। पर उसका प्रभाव धरती के वातावरण पर अधिक पड़ता है। विशेषतया तब, जबकि वह अधिक ढंके और ख्रग्रास जैसी स्थिति उत्पन्न हों।

युग सन्धि के बीस वर्षों में जो विशेष सूर्य ग्रहण शांखला सन् 1980 से आरम्भ हो 2000 तक चलने वाली है। वह असाधारण है उसका प्रभाव अन्तरिक्ष विज्ञानी तथा ज्योतिर्विद समान रुप से अशुभ बता रहे हैं।16 फरवरी 1980 के बाद अगले बीस वर्षों में दो पूर्ण सूर्य ग्रहण और होंगे। एक 24 अक्टूबर 1995 में दूसरा 11 अगस्त 1999 में। दोनों ही भारत में भली प्रकार देखे जा सकेंगे। 16 फरवरीी 1980 को पूर्ण सूर्य ग्रहण हुआ जो इस शताब्दी की सर्वाधिक महत्वपर्ण घटना इस देश के लिए थी। क्योंकि ग्रहण की पुर्णता का पथ भारतीय महाद्वीप के ऊपर से गुजरता है। पिछला पूर्ण सूर्यग्रहण जो स्पष्टतः भारत में देखा जा सका था, 22 जनवरी 1980 को हुआ था।

सम्पूर्ण पृथ्वी को दृष्टिगत रखकर यह अनुमान लगाया गया है कि ग्रहण 11-45 दोपहर (भारतीय समयानुसार) आरम्भ होकर 5-01 पर शाम को समाप्त हुआ। यह गोलार्द्व के लाँगीट्यूड 30 परिचम से 120 पूर्व तक एवं लैटीट्यूड 60å उत्तर से लैटीट्यूड 34å दक्षिण तक देखा। गया। इस परिधि में पूरा अफ्रीका, सऊदी अरब, ईराक ईरान, अफगान्स्तान, पाकिस्तान , भारत नैपाल, बंगलादेश, श्रीलंका, वर्मा, मलाया, थाइलैण्ड फिलिप्पीन्स, इन्डानेश्या, चीन, मंगोलिया एवं रुस आ जाते हैं।

भारतीय महाद्वीप में ग्रहण का आरम्भ पश्चिमी घाट के अकोला (कर्नाटक के) में 3 बजकर 39 मिनट पर आरम्भ हुआ। चन्द्रमा की पृथ्वी पर पड़ने वाली छाया तब उत्तर-पूर्व दिशा में घूमती हुई आँध्र प्रदेश एवं उड़ीसा प्रान्त पर होती हुई पूर्वी समुद्री छोर पर पुरी के नजदीक 3 बजकर 56 मिनट (भारतीय समयानुसार) पर छूती हुई निकल गई। इसके बाद एक छोटा सा हिस्सा मिजेरम का भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आया।

ग्रहण की पूर्णता की अवधि में अँधेरे आकाश में केवल चमकदार तारे एवं यह (बुध एवं शुक्र) ही आँखों से दिखाई पड़े।

इस अवधि में सूरज का प्रकाश सीधे न देख कर उसकी तेजी की 100,000 गुना कम करके देखा जाना चाहिए। सौर विकरण का अल्झवायोलेट एवं इन्फ्रारेड वाला हिसा दृष्टि में नहीं आये, इसकी व्यवस्था करने के लिए विशेष फिल्टर ग्लास उपयुक्त होते हैं।काली एक्सपोज की गई फाटोग्राफी की फिल्म को दुहरा कर ग्रहण को देखा जा सकता है। बेल्डर का डार्क-आर्क, लान्स भी प्रयोग किया जा सकता है।

इसी वर्ष 16 फरवरी को जो खग्रास सूर्य ग्रहण पड़ा उसे ज्योतिषियों ने ही नहीं वैज्ञानिकों ने भी सारे संसार के लिए अनिष्ट बताया है “दैनिक हिन्दुस्तान के 14 जनवरी अंक में वैज्ञानिकों की इस मान्यता का उल्लेख है कि ‘इस सूर्य ग्रहण के समय बड़ी मात्रा में गामा आदि किरणों का निर्माण होगा। ये किरणें समस्त जीवधारियों के स्वास्थ्य पर कुछ न कुछ प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस समय मनुष्यों का रक्तचाप बढ़ जाने और प्राणियों में दहशत फैल जाने की सम्भावना व्यक्त की गई है। वैज्ञानिकों ने गर्भवती महिलाओं को विशेष रुप से सतर्क किया है कि वे सूर्य ग्रहण के समय बाहर न निकलें। क्योंकि ग्रहण के समय सूर्य से निकलने वाली विभिन्न किरणें गर्भस्थ शिशु को असाधारण रुप से प्रभावित कर सकती हैं।

सन् 1980 में पूर्ण खग्रास सूर्यग्रहण भी पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण घटना घटित हो रही है और वह यह कि यह एक ऐसा वर्ष है जब कि सूर्य पर बनने वाले काले धब्बों का ग्यारह वर्षीय चक्र पूर्ण होगा। इस वर्ष सूर्य पर इन धब्बों की संख्या बढ़ेगी, परिणाम स्वरुप पृथ्वी पर जबर्दस्त चुम्बकीय तूफान उठेंगे, और साथ ही सौरवायु एवं सूर्य की ऊष्मा और घातक हो उठेगी। इन दिनों घातक पराबैंगनी रश्मियों की तीव्रता भी अधिक हो उठेगी जिसके परिणामस्वरुप भूमध्य रेखा के समीपवर्ती अक्षाँश वाले (भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, वर्मा आदि एशियाई) देशों में भयंकर गर्मी पड़ेगी, जोरदार आँधियाँ आयेंगी या मूसलाधार वर्षा होगी।

सूर्य का पूर्ण ग्रहण प्रकृति की अनूठी छवियों में से एक होता है। यह मात्र नव चन्द्रोदय के समय सम्भव है। इसका अर्थ हे कि जब चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच हो। चन्द्रमा जब धरती और सूर्य के बीच आ जाता है वह प्रकाश पथ को ढक लेता है और ग्रहण का कारण बनता है। चन्द्रग्रहण अपने सम्पूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता हैः किन्तु सूर्यग्रहण अधिक से अधिक 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 711 मिनट ही होती है।

खगोल विज्ञानियों और भौतिकविदों की दृष्टि में भी पूर्ण सूर्यग्रहण एक महत्वपूर्ण अध्ययन के योग्य घटना है। क्योंकि इस समय सौर वातावरण का अत्युतम रीति से अध्ययन सम्भव है।

खग्रास सूर्यग्रहण के समय सूर्य की ऊपरी सतह पर क्रमशः ये परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं- सौर वर्णपत में विभिन्न रासायनिक संयोगों के कारण काले धब्बे वाली रेखाएँ दिखायी पड़ती है। प्रारम्भ और अन्त में क्रोमोस्फियर रक्ताभ-सा दिखाई पड़ता है।

सर्वप्रथम चन्द्रमा की काली-सी छाया दीखती है, जो सूर्य के गोले के एक हिस्से को छूती सी दिखाई पड़ती है। धीरी-धीरे पूरा सूर्य ढंकता जाता है, प्रकाश मद्विम पड़ता जाता है। हवा में ठंडक और सिहरन बढ़ने लगती है। जब सूर्य की संकटी सी आभा मात्र ही अवशिष्ट रहती है, उस समय पूरे आकाश में अँधेरा छाने लगता है। कभी-कभी सूर्य मण्डल के चारों ओर एक हीरक-अँगूठी जैसी आभा दिखाई पड़ती है। इसके कुछ ही क्षणों बाद पूरा सूर्य मण्डल अदृश्य हो जाता है और एक हल्की सी सफेदी भर बच रहती है। कभी-कभी लाल-लपटें जैसी फैलती देखी जाती है। इसी समय जब राक्षसी अँधेरा अपनी भुजाएँ चारों ओर फैलाता है, जानवर उत्तेजित हो उठते हैं, पक्षी घोंसलों में दुबक जाते हैं और कई फूल अपनी पंखुड़िया समेट लेते हैं। इस समय सिर्फ खगोलवेत्ता पूरी मुस्तदी के साथ चुपचाप अपने औजारों, उपकरणों के द्वारा अध्ययन में तल्लीन रहते हैं।

खगोलविद् अधिक अच्छी तरक अध्ययन कर सकने की दृष्टि से एसे खग्रास सूर्यग्रहण पृथ्वी के जिस हिस्से में कुछ अधिक क्षणों तक दिखाई पड़ सकें, वहाँ ही अपने अड्डे जमाते हैं। महीनों पहले से उसकी तैयारी की जाती है। वैज्ञानिक उपकरण ताि अन्य औजार हजारों किलोमीटर तक ढोकर ले जाये जाते हैं। फिर वह घने जंगल के बीच में स्थिति केन्द्र हो अथवा भले ही बची समुद्र में अवस्थित द्वीप हो। जैसा कि 20 जून 1955 में श्रीलंका में दिखाई पड़ने वाले सूर्यग्रहण के लिए किया गया था।

1982 में होने वाले अपूर्व अन्तिरिक्षीय ग्रह संयोग के सदृश इस शताब्दी में पहले सिर्फ दो बार ही ग्रह सम्मिलित हुए हैं। यह है एक ही वर्ष में सात ग्रहण पड़ना। इस शताब्दी में पहली बार ऐसा 1917 में हुआ था। उस समय वर्ष चार सूर्य ग्रहण तथा तीन चन्द्रग्रहण पड़े थे। इनमें से जनवरी, जुलाई तथा दिसम्बर में दो-दो तथा जून में एक ग्रहण पड़ा था। दूसरी बार 1935 में सात ग्रहण पड़े- पाँच सूर्य ग्रहण तथा दो चन्द्रग्रहण। जिनमें से जनवरी में दो, फरवरी में एक जुलाई में तीन तथा दिसम्बर में एक ग्रहण पड़े। अब 1682 में भी सात ग्रहण पड़ने वाले हैं। इनकी शांखला ठीक 1617 जैसी ही है यानी जनवरी में दो, जून में एक जुलाई में दो तथा दिसम्बर दो।

ग्रहणों की यह शांखला धनु, मिथुर धुरी पर पड़ रही है। इसीलिए वे राष्ट्र तथा शहर जो इस धुरी के बीच में हैं या जिनकी भूमध्य रेखीय युति इस धुरी पर पड़ती है। वे इन ग्रहणों के प्रतिकूल प्रभाव की चपेट में विशेषकर आयेंगे। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमरीका, बेलजियम, इंग्लैड, तुर्की, वेस्टइंडीज, ब्राजील, मिश्र, स्विटजरलैण्ड, आस्ट्रेलिया, हंगरी, स्पेन, पुर्तगाल, लंकाशायर, सहारा का रेगिस्तानी क्षेत्र, नार्वे आदि इस संयोग शांखला से बुरी तरह प्रभावित होंगे। ग्रहों की युति तुला में हो रही है। इसलिए चीन, हिन्दचीन, रुस तथा मुस्लिम देशों पर भी इसका हानि का असन पड़ेगा।

16 फरवरी 1980 को होने वाले खग्रास सूर्य ग्रहण 1682 की विभीषिकाओं की पूर्व सूचना ही समझा जाना चाहिए। लगभग ऐसे ही कुछ सूर्यग्रहण 21 अगस्त 1614 को तथा 26 मई 1638 को हुए थे। ये दोनों ही क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व घटित हुए थे। 1980 का खग्रास सूर्य ग्रहण सन् 14 और 38 से भी बड़ा है। इतना भकर खग्रास सूर्यग्रहण इस शताब्दी में पहले कभी नहीं हुआ। वह इस शताब्दी के प्रारम्भ के दो वर्ष पूर्व सन् 1968 में पड़ा था। उन दिनों लगभग 30 वर्ष लम्बे अकार का दौर अपनी चरम सीमा पर था। अगले दिनों भी ऐसे ही भयंकर दुर्भिक्ष की विपत्ति की सम्भावना सिर पर मँडरा रही है।

फरवरी 1982 में सूर्य के जिस ओर पृथ्वी रहेगी, उससे विपरीप दिशा में शेष समस्त ग्रह एक सीधी पंक्ति में होंगे और उनका नेतृत्व कर रहे होंगे- वृहस्पति। लेकिन इन सभी ग्रहों के तल एवं स्तर भिन्न-भिन्न होंगे।

नवम्बर 1982 में सूर्य, शनि, गुरु और फ्लूटों की तुला में युति हे। यह मानव समाज के लिए अशुभ संकट है। लेकिन इससे भी अधिक हानिकारक संयोग इसके पूर्व 21 अगस्त से 11 सितम्बर 1982 के बीच सामने आने वाला है, जब छः ग्रहों राहु, शनि, गुरु, सूर्य, बुध एवं शुक्र की प्रचण्ड सिंह लग्न में युति हो रही है। ज्योतिर्विज्ञानियों के अनुसार निश्चय ही ऐसी युतियाँ सम्पूर्ण संसार के लिए विशेष हानिकारक हैं। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं समझ लेना चाहिए कि सम्पूर्ण मानव-जाति का समूलोच्छेद हो ही जायेगा।

अब तक जिन सूर्यग्रहणों के वितरण नोट किये जा सके हैं उनमें प्राचीनतम हैं ई. पूर्व 2137 को 22 अक्टूबर को देखा गया सूर्यग्रहण इसका विवरण चीनी पत्र ‘शू चिंग’ में दर्ज है। उस समय के दोनों शाही ज्योतिषियों ‘सी’ और ‘हो’ ने इतनी ज्यादा शराब पी ली कि वे लड़खड़ाने लगे और अध्ययन न करे सके। सम्राट ने उन्हें इस पर कठोर दण्ड दिया।

आस्ट्रियन खगोलवेत्ता टी. अपोलजर ने 1887 में एक शोध ग्रन्थ प्रकाशित किया जिसका नाम था “केननडेर फिन्स्टरनिसें। इसमें 8 हजार सूर्य ग्रहणों तथा 5200 चन्द्रग्रहणों का विवरण दिया था। जो 1207 ईस्वी पूर्व से उन दिनों तक घटित हुए थे, और आगे सन् 2161 तक होने वाले हैं।

19वीं सदी में कुल चार खग्रास सूर्यग्रहण भारत मेंदेखे गये। पहला 21 दिसम्बर 1843 को जिसे मुख्यतः दक्षिणी भारत में देखा गया, पर जिसका कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। दूसरा 18 अगस्त 1838 को देखा गया। इसका रिकार्ड अध्ययन मछलीपटनम में खगोलविद् जे. जानसीन भी इस हेतु भारत आये थे। तीसरा खग्रास सूर्यग्रहण 12 दिसम्बर सन् 1871 को पड़ा। मद्रास के खगोलवेत्ता अवनाशी ने कोयम्बतूर वेधशाला में इसका अध्ययन किया।

19वीं शताब्दी का अन्तिम खग्रास सूर्यग्रहण 22 जनवरी 1868 को पड़ा, जो मध्यभारत में देखा गया, इसे अनेक प्रख्यात अंग्रेज एवं अमरीकी खगोलविदों ने देखा व जाँचा-परखा, विवरण नोट किये। सर जार्मन लाकेर तथा प्रो. ए. फाउलर ने विजय दुर्ग में खगोल वेत्ता सर विलियम क्रिस्ट्री ताि प्रोफेसर एच.एच. टर्नर ने शहडोल में अमरीकी ज्योतिर्विद डब्लू. केम्पबेल ने जेबर में, तथा जान एवरशेड ने तालनी में इसका पर्यवेक्षण-अध्ययन किया। इस बार उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद में 16 फरवरी के ग्रहण का पर्यवेक्षण किया गया। इसके लिए चार लाख मूल्य के विशेष उपकरण मँगाये गये। संसार भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रभाव को जाँचने के लिए अपने-अपने ढंग से प्रयत्न किये।

16 फरवरी 1980 को घटित होने वाला खग्रास सूर्यग्रहण भारतीय पेनिनसुला में देखा गया। यह दक्षिण पश्चिमी अफ्रीका के दक्षिण में स्थिति अटलाँटिक समुद्र में सूर्योदय से आरम्भ हुआ। इसके बाद मध्य अफ्रीका,हिन्दमहासागर होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में देखा गया। तदुपरान्त वर्मा हेते हुए वह चीन में सूर्यास्त के समय समाप्त हो गया।

भारत में ग्रहण पश्चिमी तट स्थिति करवाड़ में सर्वप्रथम दिखाई दिया। मानक समय के अनुसार दिन के 2ः17 पर। तदुपरान्त गड़ग, रायपुर, दोरनाकल होते हुए पूर्वीतट स्थिति पुरी में समाप्त हुआ। रायपुर मेंयह 2 बजकर 25 मिनट पर तथा पुरी में 2 बजकर 42 मिनट पर दिखाई देना शुरु हुआ। करवाड़ में कुल दो घन्टे 40 मिनट, गडग में 2ः11घन्टे, रायपुर में 2 घन्टे 40 मिनट, दोरनाकल में 2ः11 घन्टे और पुरी में 2 घन्टे 20 मिनट तक दिखाई दिया, अन्य स्थान, जहाँ से पूरा ग्रहण देखा गया। धारवाड़, हुवली, महबूवनगर, नालगोंडा, खम्भास, भद्राचलम, कोरापुट, वाबिली और भुवनेश्वर।

भारत के कुछ मुख्य शहरों में सूर्यग्रहण दिखाई देना निम्नानुसार रहा-

हेदराबाद- 2 बजकर 28 मिनट, दिल्ली 2 बजकर 36 मिनट, कलकत्ता-2 बजकर 47 मिनट पर, अहमदाबाद में 2 बजकर 20 मिनट पर, भोपाल में 2ः11 बजे से, लखनऊ में 2 बजकर 40 मिनट पर।

सन् 1980 में चार ग्रहण पड़ते हैं। पहला 16 फरवरी को पूर्ण सूर्यग्रहण दूसरा 1 मार्च को चन्द्रग्रहण तीसरा 27 जुलाई को चन्द्रग्रहण तथा चौथा 10 अगस्त को पुनः सूर्यग्रहण। उल्लेखनीय है कि ये चारों ग्रहण क्रमशः सूर्य और चन्द्र तथा चन्द्र और सूर्य पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर ही पड़ने वाले हैं। इस्लाम धम्र की प्रसिद्ध पुस्तक “मौज जात मसीह” के पृष्ठ 145 पर हजरत इमाम वाकर के सर्न्दभ में कहा गया है- “जब चाँद एवं सूर्यग्रहण पन्द्रह दिन के फर्क में (अवधि) होंगे तो उससे यह साबित होगा कि कयामत का समय करीब आ गया हैं”।

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • परिवर्तन में प्रगति और जीवन
  • युगसन्धि की विषम बेला और जागरुकों का कर्त्तव्य निर्धारण
  • युग परिवर्तन का यही उपयुक्त समय
  • मूर्धन्य विश्व विचारकों का अभिमत
  • अर्न्तग्रही परिस्थितियों की प्रभावी प्रतिक्रिया
  • मनुष्य जाति पर गहराते संकट के बादल
  • युद्ध लिप्सा कितनी घातक हो सकती है!
  • युग-सन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त-प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में
  • VigyapanSuchana
  • सूर्य ग्रहणों की असाधारण श्रृंखला और उनकी अवाँछनीय प्रतिक्रिया
  • खग्रास ग्रहण से व्यापक उथल पुथल सम्भावित
  • VigyapanSuchana
  • सूर्य स्फोटों का अपनी पृथ्वी पर प्रभाव!
  • विश्व विख्यात कुछ अदृश्य दर्शियों के भविष्य कथन
  • ईसाई धर्म साहित्य में भावी संकट के संकेत
  • युग परिवर्तन में अन्तरिक्ष विज्ञान का उपयोग
  • VigyapanSuchana
  • आर्ष ज्योतिविज्ञान का पुनजीवन-नई वैद्यशाला
  • नये चरण इस प्रकार उठाने है।
  • भावना बल
  • भावना बल (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj