
सूर्य स्फोटों का अपनी पृथ्वी पर प्रभाव!
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इन दिनों अन्तरिक्ष में तीन प्रक्रियाएँ ऐसी उभर रही हैं जो घटना की दृष्टि से दूरवर्ती होने के कारण सामान्य कही जा सकती है। किन्तु उनकी परोक्ष प्रतिक्रिया ऐसी है, जिससे जन-जीवन के बुरी तरह प्रभावित होनेकी आशंका है।
सन् 1947 के बाद सूर्य कलंक के दो परम वर्ष क्रमशः 1958 और 1969 गुजर चुके हैं। आने वाला सूर्य कलक का परम वर्ष सन् 1680-82 में है। अभी पिछले दिनों चीन ओर वियतनाम के बीच घमासान लडाई होकर चुकी है। ईरान में भी भयंकर क्रान्ति हुई है, अभी भी वहाँ स्थिति सुधरी नहीं है, स्थिति तनावपूर्ण है। रक्तपात और हिंसक घटनाओं के दौर जारी है। आफगानिस्तान में भी रुसी सेनाएँ डेरा डाले पडी है। विश्व के और भी कई दूसरे देशों में तनाव पैदा हो रहे है। उनकी आन्तरिक ओर बाह्य स्थिति बेहद उलझी हुई हैं विश्व पुनः संकटपूण्र स्थिति में है। विभिन्न राष्ट्रों के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धें को देखते हुए सर्वत्र यह आशंकाएँ व्यक्त की जा रही है कि पता नहीं कब विश्व युद्ध की चिनगारी फूट पड़े ? यह आशंका ही नहीं सम्भावना भ्ज्ञी समझी जा रही है। जिन्हे भी वर्तमान परिस्थितियों का थोड़ा बहुत ज्ञान है, वे इन्हे अशुभ ही अनुभव करते है। विशेषज्ञ तो यह निश्चित ही मानते है कि इन दिनोँ दुनिया सचमुच बारुद के ऐर पर बैठी हुई है, कभी भी उसमें आग की कोई चिनगारी लग सकती है ओर आग सुलग कर भीषण भंयकर अशान्ति में परिणत हो सकती है। यह समय सौर कलाकों को अभिवृद्धि का तो है ही सन् 1682 में जब नौ ग्रह सूर्य की एक सीध में होंगे तो एक ही सीध में आने से चुम्बकीय क्रिया बहुत अधिक होने से बहुत अधिक धब्बे बनने लगते है।
‘जूफ्टिर इफेक्ट’ पुस्तक में कहा गया है कि इस कारण महासागरों, सागरों और नदियों का पानी अधिक तेजी से भाप में परिवर्तित होने लगता है हिमनदों के पिघलने की गति बढ़ जाएगी। समुद्र को धाराओ में परिवर्तन होने लगेगा। सामान्य सौर कलंको के समय भी समुद्र को धाराओँ में परिवर्तन होने लगता है। और नीचे का ठण्डा पानी ऊपर आ जाता है। उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों पर जमी हुई बर्फ पिघलने लगती है कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक होने लगती है, फलस्वरुप नदियों में बाढे आने लगती है। कुछ क्षेत्रों में वर्षा न केवल घट जाती है वरन् बन्द ही हो जाती है।
अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग की अलबुकर्क स्थित साडिया लेबोरेटरी ने गत 35 वर्षो में हुई दुर्घटनाओं क आँकडे़ एकत्रित किये और उनका अध्ययन किया तो इस निर्ष्कष पर पहुँचे कि- “सौर कलंक जब अपनी चरम स्थिति में होते है तो दुर्घटनाएँ प्रायः छहः गुनी हो जाती है।”
न्यूयार्क के डा. बेकर ने बताया कि “तीव्र सोर क्रिया के दिनों में मानसिक रोगियों की संख्या में असाधारण रुप में वृद्धि होती है।
भारतीय ज्योतिष खगोलीय तथा फलित दोनों ही पद्धतियाँ सूर्य मण्डल में होने वाले विस्फोटो का स्वरुप, कारण तथा पृथ्वी के चराचर पर उससे होने वाले प्रभाव पर विस्तृत वर्णन मिलता है। महर्षि गर्ग, पाराशर, देवल, कश्यप, नारद तथा वरिष्ठ आदि ने इन विस्फोटो के बारे में पर्याप्त अनुसंधान किया है।
इस पद्धति से विचार कर वर्तमान ज्योतिर्विद जो निर्ष्कष निकाल रहे है, उसके अनुसार-”आगामी सूर्य कलंको का प्रभाव कम से कम एक वर्ष तक रहेगा। इस प्रभाव के कारण भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर, चीन तथा मध्यपूर्व के देश विशेष रुप में प्रभावित होंगे।” दुर्भिक्ष, सूखा, युद्धोन्माद बढ़ने, रोग, बाढ़, तूफान, भूकम्प आदि दैवी आपदाओं से जन धन को क्षति होने की भी सम्भावना है।”