• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
    • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
    • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
    • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
    • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
    • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
    • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
    • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
    • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
    • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
    • सद्वाक्य
    • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
    • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
    • सद्वाक्य
    • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
    • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
    • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
    • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
    • सद्वाक्य
    • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
    • विज्ञापन सूचना
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
    • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
    • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
    • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
    • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
    • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
    • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
    • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
    • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
    • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
    • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
    • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
    • सद्वाक्य
    • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
    • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
    • सद्वाक्य
    • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
    • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
    • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
    • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
    • सद्वाक्य
    • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
    • विज्ञापन सूचना
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
    • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
    • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1982 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 16 18 Last
धर्म और शासन की समानांतर गरिमा का प्रतिपादन करते हुए कहा जा चुका है कि उपलब्ध अनेकानेक शक्ति-स्रोतों में यही दो प्रमुख हैं। क्षत-विक्षत स्थिति में होते हुए भी वे कम-से-कम अपना स्वरूप तो स्थिर रखे हुए हैं और इसके प्रभाव से ग्रसित न सही, उभय क्षेत्रीय अराजकता की रोक-थाम तो हो ही रही है। भौतिक-क्षेत्र की शासन और चेतन-क्षेत्र की धर्म जिम्मेदारी उठाएँ, यही उनकी अपनी मर्यादाएँ हैं। मनुष्य जड़ शरीर और चेतन अंतःकरण का समुच्चय है।

शासन की शक्ति असाधारण है। वह चाहे तो अपने तंत्र का इस प्रकार उपयोग कर सकती है, जिससे आदर्शवादी चिंतन और उच्च चरित्र के निर्माण में कारगर साहसिकता मिल सके। इसके लिए उसे अपने स्वरूप, कार्यक्रम एवं निर्धारण में अपेक्षाकृत अधिक बड़े और तेज कदम उठाने चाहिए। अपने भारतीय शासन से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि वे गाँधी जी की परंपरा को जीवंत एवं अग्रगामी बनाने के लिए उससे भी अधिक प्रयत्न करे, जैसे कि किए जा रहे हैं।

जिन कर्मचारियों के द्वारा शासनतंत्र चलता है, उन्हें केवल क्रियाकुशल; वरन चिंतन और चरित्र की दृष्टि से भी ऐसा होना चाहिए, जिससे उन्हें जनसाधारण का विश्वास, समर्थन और सहयोग मिल सके। उनकी नियुक्ति मात्र शिक्षा पर आधारित नहीं; वरन पिछले अनुभवों और प्रयत्नों को भी वरिष्ठता माना जाए। छोटी आयु के लड़के उच्च पदों पर आसीन न किए जाए। इसके लिए कार्यपद्धति इतनी सरल बनाई जाए कि बिना पेचींदगियों में उलझे पारस्परिक सहयोग पर निर्भर बिना समय गँवाए और खीज़ उत्पन्न किए, सरलतापूर्वक संपन्न होते रहें। कार्यपद्धति में प्रस्तुत पेचींदगियों को सरल किया जाना चाहिए, ताकि वे लंबी अवधि न गँवाकर काम को जल्दी निपटा दिया करे। अधिकारियों का हाथ में हैरान करने की क्षमता न रहे तो रिश्वतखोरी के कारण अपंग बने शासनतंत्र को नवजीवन प्राप्त हो सकता है और उपयोगी योजनाओं में जनता का सहयोग मिल सकता है। यों यह कार्य दोनों पक्षों का है। अधिकारी और नागरिक दोनों ही अपने-अपने पथ के कर्त्तव्य निभाने के लिए उत्तरदाई हैं।

चुनाव में सही और श्रेष्ठ प्रतिनिधि चुने जा सकें, इसलिए वोट का अधिकार सर्वजनीन न रहकर समझदारी एवं ईमानदारी की कुछ शर्तें पूरी करने वालों को ही दिया जाए। इसी प्रकार प्रतिनिधित्व के लिए हर किसी को खड़ा होने का अधिकार न हो। इसकी वरिष्ठता इससे पूर्व ही प्रामाणित होनी चाहिए। जनता को यह अधिकार रहे कि गुटबंदी के कारण, भ्रांत प्रचार के कारण तो नहीं, पर यदि भ्रष्टाचाररत पाया जाए तो उन्हें वापिस भी बुला सके। चुनाव में इन दिनों जैसा दुष्प्रचार चलता है, जैसा जितना धन व्यय होता है, उस पर कड़ा अंकुश लगे।

जनता को भी मौलिक अधिकारों की तो छूट रहे, पर उस बहाने स्वेच्छाचार बरतने की गुंजाइश न रहने दी जाए। कर्त्तव्यपालन के लिए हर किसी को वापिस किया जाए। मात्र अधिकार और सुविधा की ही रट न लगती रहे। उच्छृंखलता और अवरोधों का आरंभ ही न हो सके, ऐसा वातावरण बने। गुंडागर्दी का आचरण भी अपराधों में गिन लिया जाए और उसकी रोक-थाम के लिए किसी के द्वारा मुकदमा चलाए जाने की प्रतीक्षा न करके सहकारी हस्तक्षेप का ही विषय बने। अपराधियों को सुधारा तो जाए; पर साथ ही दंड की कठोरता में कमी न की जाए। इस क्षेत्र में बरती गई सरलता से अपराध घटते नहीं, बढ़ते हैं। व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन में अनैतिक आचरण की रोक-थाम करने के लिए पुरानी सामाजिक पंचायतों की परंपरा को पुनर्जागृत किया जाए। अवज्ञा करने वालों को वे पंचायतें सरकारी प्रताड़ना भी दिला सकें।

शिक्षा स्वावलंबी बनाई जाए। मैट्रिक स्तर का जीवनोपयोगी सामान्य ज्ञान सबको सरलतापूर्वक उपलब्ध हो; पर आगे की शिक्षा व्यवस्था में फूँक-फूँककर कदम उठे। नौकरी उद्देश्य न रहे। स्वावलंबन के लिए उद्योगों का शिक्षा के साथ समावेश रहे। सरकारी नौकरियों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उतने ही छात्र भरती किए जाए जो न केवल स्तरीय हों, वरन खप भी सकें। उपयोगी विषयों के विशेषज्ञ बनने की इच्छा वालों को ज्ञानार्जन की अतिरिक्त सुविधा रहे। पाठ्यक्रम बहुत बोझिल न हो। साथ ही उनमें चरित्रनिष्ठा और समाजनिष्ठा को आदर्शों की हृदयंगम कराने वाली प्रेरणा भरी रहे।

उद्योगों का विकेंद्रीकरण हो। वे छोटी इकाइयों में बँटे और सुदूर देहातों तक फैले हों। सहकारिता के आधार पर चलें। बड़े मिलों को कुटीर-उद्योगों के प्रति स्पर्धा न करने दी जाए। टूट-फूट की मरम्मत एवं पुराने को नया बनाने की व्यवस्था को अतिरिक्त प्रोत्साहन दिया जाए। शहरों की आबादी बहुत न बढ़ने दी जाए। कस्बों को विकसित किया जाए, ताकि वे समीपवर्त्ती छोटे देहातों की प्रगति एवं सुविधा में सहायक सिद्ध हो सकें। विलासिता के साधनों का उत्पादन घटाया और दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ सर्वत्र सुलभ हो, औद्योगिक नीति का आधार ऐसा ही बने।

सहकारिता का हर क्षेत्र में प्रवेश हो। संयुक्त परिवार की आवश्यकता पूरी करने वाले सुनियोजित कम्यून चलें। विवाहों पर सामाजिक नियंत्रण हो और वे पंजीकृत हों। जाति, लिंग तथा आर्थिक आधार पर पनपने वाली विषमता को देर तक सहन न किया जाए। कुरीतियों पर होने वाले अपव्यय निषिद्ध रहें। विद्यालयों की तरह पुस्तकालयों की भी स्थापना है। साहित्य और कला को उच्छृंखल न बनने देने के लिए उनके निर्माताओं को सुरुचिपूर्ण सृजन की शर्त पालन करनी पड़े। मौलिक अधिकारों के नाम पर किसी को भी ऐसे काम करने की छूट न मिले, जिसमें वह सार्वजनिक हित के विरोध में काम करे। नशा उत्पादन जैसे कार्यों की रोक-थाम, अंकुश कड़े करने से ही हो सकती है। अर्थसंग्रह की सीमा हो, उसी प्रकार निजी खरच पर भी अंकुश रहे। इसके बिना दुर्व्यसनों और कुप्रचलनों की रोक-थाम न हो सकेगी।

ऐसे सुझाव और भी हो सकते हैं, जो स्थाई सामयिक एवं स्थानीय आवश्यकता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हों। यह चरित्रनिष्ठा, समाजनिष्ठा में सहायक एवं व्यक्तित्वों को विकसित करने वाली विधि-व्यवस्था की ओर कुछ संकेत हैं। इन्हें अपनाने के लिए शासन को सहमत प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वह पनपने वाली अनीति अव्यवस्था की रोक-थाम में अपनी समुचित भूमिका निभा सके।

वस्तुतः यह कार्य राजनीतिज्ञों और उस क्षेत्र की पेचींदगियाँ, बारीकियाँ समझने वालों का है। सुधार और दबाव का कार्य उन्हीं के हाथ छोड़ देना चाहिए। प्रज्ञा आगमन की नीति, लोक-मंगल के सभी कार्यों में सरकारी प्रयत्नों में सहयोग देने और भाग लेने की है। शिक्षा प्रसार, वृक्षारोपण, स्वास्थ्य-संवर्द्धन, समाज कल्याण, परिवार नियोजन, बचत आंदोलन, सहकारिता, कुटीर-उद्योग, नशा निषेध, अपराध नियमन जैसे लोक-मंगल से संबंधित सभी सरकारी कार्यों में भरपूर सहयोग देने की है। इसके बदले न श्रेय लेना है और न पारिश्रमिक। श्रेय अफसरों को मिले। पुरस्कार अन्य उपयोगी कामों में लगे। इसी में धर्मतंत्र की गरिमा है। न आश्रित रहा जाए, न असहयोग किया जाए, बिना टकराए जितना सहयोग संभव हो, अपनी ओर से करते रहा जाए। साथ ही धर्मक्षेत्र की विकृतियों को देखते हुए किसी अतिरिक्त सहयोग-अनुदान की भी आशा न रखी जाए। जब सरकार जनता से वांछित सहायता अर्जित कर सकती हैं, तब कोई कारण नहीं कि अपनी वरिष्ठता और उपयोगिता सिद्ध करके उसी जनता से भाव भरा स्वेच्छा सहयोग अर्जित न किया जा सके, जिसकी सहायता से सरकार अपना खर्चीला तंत्र चलाती है। प्रज्ञा अभियान का तथ्य सृजन है, उसमें सहयोग और सद्भावना की ही प्रधान भूमिका हो सकती है। यही अपनी सुस्पष्ट नीति है। जनसाधारण की तरह शासनतंत्र के साथ भी अपनी ओर से संबंध इसी आधार पर मधुर संबंध रखने की है, विग्रह की नहीं। अच्छा है, शासन भी धर्म के प्रति ऐसा ही सहकारी सद्भाव बरतें।

First 16 18 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
  • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
  • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
  • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
  • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
  • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
  • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
  • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
  • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
  • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
  • सद्वाक्य
  • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
  • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
  • सद्वाक्य
  • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
  • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
  • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
  • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
  • सद्वाक्य
  • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
  • विज्ञापन सूचना
  • तमसो मा ज्योतिर्गमय
  • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
  • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
  • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj