• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
    • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
    • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
    • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
    • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
    • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
    • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
    • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
    • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
    • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
    • सद्वाक्य
    • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
    • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
    • सद्वाक्य
    • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
    • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
    • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
    • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
    • सद्वाक्य
    • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
    • विज्ञापन सूचना
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
    • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
    • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
    • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
    • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
    • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
    • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
    • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
    • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
    • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
    • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
    • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
    • सद्वाक्य
    • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
    • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
    • सद्वाक्य
    • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
    • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
    • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
    • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
    • सद्वाक्य
    • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
    • विज्ञापन सूचना
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
    • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
    • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1982 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
सत्परामर्शों की उपयोगी आवश्यकता समझने वालों को यह भी देखना होगा कि जानने वाले भी अनजान क्यों हैं? दूसरों को शिक्षा देने वाले उन्हें स्वयं क्यों अपने व्यवहार में नहीं उतारते? प्रतिपादन ऐसे होने चाहिए जो तर्क, तथ्य, प्रमाण, उदाहरण के सहारे यथार्थवादी एवं व्यावहारिक सिद्ध किए जा सकें। इस युग में बुद्धिवाद का दौर है। क्यों और कैसे का प्रश्न हर प्रसंग में किया ही जाता है, साथ ही यह भी देखा जाता है कि जो कहा जा रहा है उसमें अवास्तविकता की रंगीली उड़ाने ही तो काम नहीं कर रहीं? उन्हें अपनाया भी जा सकता है या नहीं? लोग कठिन काम भी कर गुजरते हैं; पर उन्हें विश्वास होना चाहिए कि जिस मार्ग पर चलने के लिए कहा जा रहा है, वह लक्ष्य तक पहुँचता भी है या नहीं?

विचार-क्षेत्र में पिछले दिनों असाधारण उथल-पुथल हुई है। अगले दिनों उससे भी बढ़कर होने वाली है। विज्ञान ने मनुष्य को चलता-फिरता पौधा बताया और प्रकृतिक्रम से जीवन का क्रम निचक्र-निरुद्देश्य भ्रमण करने की बात कही। उसके पक्ष में उनने विज्ञान, दर्शन और प्रत्यक्ष की साक्षी भी प्रस्तुत की। फलतः नीति-मर्यादाओं का, धर्म और आध्यात्मिक का पक्ष डगमगा गया। संकीर्ण स्वार्थपरता, आपा-धापी पनपी और मत्स्य-न्याय के समर्थक उपयोगितावाद ने लोक-मानस पर अपना आधिपत्य कर लिया। पशुप्रवृत्तियों का पूर्वाभ्यास इसमें और भी सहायक हुआ। तात्कालिक लाभ भी इसी में लगा। भविष्य को देखने-सोचने की दृष्टि एक प्रकार से कुंठित ही होती चली गई। यही वह प्रत्यक्षवाद, बुद्धिवाद, स्वेच्छावाद है, जिसके प्रवाह में जाने-अनजाने, शिक्षित-अशिक्षित, पिछड़े प्रगतिशील समान रूप से बहते चले जा रहे हैं। नीति-मर्यादा का प्रत्यक्ष विरोध करने पर बदनामी होने के रूप में कोई कुछ कहता तो नहीं, पर उनके पालन का उत्साह दिन-दिन घटता जा रहा है। इस माहौल को नीति-क्षेत्र की, आस्था-क्षेत्र की प्रतिक्रांति या अराजकता भी कह सकते हैं। यही है— अपने समय का दार्शनिक विश्लेषण। यही है चिंतन का वह प्रवाह-प्रचलन, जिसने व्यक्ति और समाज को अनौचित्य का पक्षधर बनाकर वहाँ ला पटका जहाँ सर्वनाशी संकट का सामना करना पड़ रहा है।

मानवीसत्ता को यदि अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है तो प्रस्तुत निर्धारण-प्रचलन पर नए सिरे से पर्यवेक्षण करना होगा और देखना होगा कि अति उत्साह से प्रगतिशीलता के नाम पर जिस कूड़े-कचरों को जोश-खरोश के साथ गले बाँध लिया गया है, वह कहीं भूतकाल की प्रतिगामिता से भी अधिक अवांछनीय तो नहीं है। जो हो, मानवी गरिमा के सनातनकेंद्र तक लौटने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं। विकल्प केवल वह सर्वनाश ही है, जिसकी घोषणा स्थिति की गंभीरता को समझने वाले हर क्षेत्र से कर रहे हैं।

वापसी का रास्ता भी अब सरल नहीं रहा। जिस बुद्धिवाद के सहारे आस्था से अनास्था तक पहुँचा गया है, उसी सीढ़ी से उलटे पैर रखते हुए नीचे उतरना होगा। इन परिस्थितियों में काँटे से काँटा निकालने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं। बुद्धि की बुद्धि से ही मुठभेड़ कराई जाती है। तर्क को तर्क से ही निरस्त किया जाएगा। प्रमाण, उदाहरण मात्र अनाचार की सफलता के पक्ष में ही साक्षी नहीं देते, उनसे बड़े आधार ऐसे प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जो आदर्शों की गरिमा, आत्मिक शांति से भी बढ़कर भौतिक प्रगति में योगदान करने की बात सिद्ध कर सके। सत्य को तथ्य और श्रेयस्कर सिद्ध करने पर किसी का आग्रह हो तो उसे उस रूप में भी प्रमाणित करने वाली मनीषा ने चुनौती स्वीकार करने का निश्चय कर लिया है।

धर्मतत्त्व के शाश्वत सिद्धांतों को बुद्धिवाद की कसौटी पर कसे जाने के उपरांत मान्यता मिले, यह लगता तो बड़ा अटपटा है, पर बालहठ के सामने कोई क्या करे। मचले बच्चे को बहलाने के लिए बाबा को यदि घोड़ा बनना पड़े तो उसे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया जाता। यदि विज्ञान और बुद्धिवाद में तर्क, तथ्य, प्रमाण, उदाहरण के आधार पर ही किसी प्रतिपादन को स्वीकारने की ठान ठानी है तो उसमें शैली बदलने भर की कठिनाई पड़ेगी। नए आधार ढूँढ़ने का झंझट नहीं है। लोक-मानस को यदि आदर्शवादिता की ओर पीछे लौटने के लिए बुद्धिवाद की सवारी चाहिए तो इसके लिए उसे निराश नहीं होना पड़ेगा। थोड़ा झंझट तो है; पर बात असंभव नहीं। एक भाषा बोलने वाले को यदि दूसरी बोलने और सीखने के लिए विवश किया जाए तो यह झंझट भरा काम भी किसी प्रकार पूरा किया ही जाएगा। इसमें असंभव जैसा तो कुछ है नहीं।

लोक-मानस को अभ्यस्त अवांछनीयता से विरत करने के लिए जिन परामर्शों की आवश्यकता है, उनका स्वरूप विज्ञान, तर्क और प्रमाण पर आधारित यदि इतनी छोटी बात पर गाड़ी अड़ गई है तो उसे आस्तीनें चढ़ाकर आगे धकेल देने में किसी बड़े असमंजस का सामना नहीं करना पड़ेगा। युगमनीषा यह कर लेगी। परामर्श के प्रतिपादन चाहिए। वाणी से जो कहा जाना है, वह लेखनी के माध्यम से सुस्थिर होना चाहिए। ऋषियों ने लिखा है, मुनियों ने उसे फैलाया है। युग-प्रवक्ताओं की मुनि बिरादरी सृजनशिल्पियों के रूप में मोर्चा संभालने जा पहुँची। अब उनकी पेटियाँ कारतूसों से भरने का काम शेष है। यह ऋषि को करना होगा। युगसाहित्य का सृजन इसी प्रक्रिया का नाम है। उसकी अपनी विशेषता इतनी ही है। जो शास्त्रकार-आप्त पुरुष प्राचीनकाल की श्रद्धाशैली को प्रतिपादित करते रहे हैं, उन्हें अब वैज्ञानिक की, वकील की, दार्शनिक की शैली में नए ढंग से क्रमबद्ध करना पड़ेगा। युगलेखनी को इस तौर-तरीके से व्यक्ति और समाज से संबंधित प्रायः हर समस्या पर नए सिरे से प्रतिपादन प्रस्तुत करना पड़ेगा।

जर्मनी, एशिया, चीन, ईरान आदि की अधिनायकवादी सरकारों ने ब्रेनवाशिंग का लक्ष्य रखकर स्कूली पाठ्यक्रम एक वर्ष की अवधि में बदल दिए थे। साहित्य और सिनेमा की क्षमता का उपयोग शासकों की इच्छानुकूल हुआ था। उन लोगों ने चिंतन को प्रभावित करने वाले हर क्षेत्र को इच्छित प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किया। अपने देश में वैसा तो नहीं हो सकता और न वैसी आवश्यकता ही है। नीति और धर्म का पक्ष इतना सशक्त है कि यदि उसे बुद्धिवादीशैली में प्रस्तुत करने के लिए युगमनीषा कमर कस ले तो बिना शासन की सहायता के भी जन स्तर पर वैसा हो सकता है और जन-जन को युगचिंतन के हर पक्ष का समर्थन करने वाला साहित्य मिल सकता है। जो सत्य है, जो श्रेष्ठ है, जो श्रेय है, उसे उसी रूप में प्रत्यक्षवाद की कसौटी पर भी खरा सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार के लेखन-प्रतिपादन में मात्र मनीषा को संकल्पपूर्वक कटिबद्ध भर होना है। प्रकाशन और विस्तार का काम भी मनस्वी लोग संभालेंगे ही। थोड़े दिनों की अड़चन के बाद, वस्तुस्थिति को समझने के बाद ऐसा साहित्य प्रकाशन और विक्रय की अपनी व्यवस्था आप बना लेगा। समर्थ की सहायता के बिना बुद्ध, शंकराचार्य, मार्क्स, रूसो, तुलसी, सूर आदि के प्रतिपादन बिना छपे बिक बिक कहाँ रहे।

नवयुग के अनुरूप, मनुष्य की समस्त समस्याओं और आवश्यकताओं को समुचित समाधान प्रदान करने वाला बुद्धिवादी साहित्यसृजन आज की महती आवश्यकता है। समर्थ लोग उसे ईसाई मिशन की तरह बड़े रूप से सोचें और करें, यह समय की माँग है। इसे पूरा करने के लिए कौन प्रतिभाएँ, कब आगे आएँ, इसकी प्रतीक्षा न करके युगांतरीय चेतना ने इस महान प्रयोजन को अपने छोटे साधनों का संकोच न करते हुए बिना समय गँवाये आरंभ कर दिया है। इस प्रयास में टिटहरी और गिलहरी के समुद्र सुखा देने वाले संकल्प से महती प्रेरणा मिली है।

शान्तिकुञ्ज के ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के अंतर्गत इसी संदर्भ में अनुसंधान कार्य पिछले दिनों से चल रहा है। उसका विज्ञान पक्ष जितना सशक्त है, उसमें से अधिक दर्शन को भी महत्त्व दिया गया है। जहाँ विज्ञान और दर्शन को अध्यात्म की धुरी के साथ दो पहियों की तरह जोड़ने और प्रगति-रथ को लक्ष्य की दिशा में दौड़ाने में प्रयत्न चला है, वहाँ इस प्रयास में भी कोताही नहीं की गई तो धर्मतत्त्व को तर्क के आधार पर जन-जन के गले उतारने योग्य बनाया जाए। इस संदर्भ में अखण्ड ज्योति का तथा उसकी सहयोगी अन्य पत्रिकाओं का लेखन सामने है। आर्ष साहित्य से लेकर प्रचुर परिमाण में छोटा-बड़ा साहित्य लिखा और छपा है। इसकी लाखों प्रतियाँ छपती हैं और करोड़ों की संख्या में पढ़ी जाती हैं। इतने पर भी यह कहा जा सकता है कि मानव समुदाय की व्यापकता और आवश्यकता को देखते हुए यह जलते तवे पर कुछ बूँदें पड़ने के समान नगण्य है।

वाणी के मुखर करने की तरह लेखनी का प्रखर करने के लिए विचार-क्रांति की सामयिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक कदम उठाए गए हैं। शान्तिकुञ्ज की सत्र-शृंखला में अब प्रवचन-कौशल की तरह साहित्यसृजन के निमित्त लेखनकला की भी अभिनव प्रशिक्षणपद्धति इन्हीं दिनों आरंभ की गई है। ग्रेजुएट स्तर के छात्र लिए गए हैं और उनका पाठ्यक्रम हर अंगरेजी महीने की पहली तारीख से तीस तारीख तक का एक-एक महीने का रखा गया है। वे नियमित रूप से निरंतर चलेंगे। इनमें ब्रह्मवर्चस् की शोध-प्रक्रिया के अंतर्गत विज्ञान तत्त्व दर्शन के दोनों ही क्षेत्रों की शोध-प्रक्रिया का अभ्यास कराया जाएगा। अध्ययन, संकलन, वर्गीकरण, मंथन, निर्धारण की अनेक पगडंडियों को पार करते हुए युग साहित्यसृजन की स्थिति तक कैसे पहुँचा जा सकता है। इससे संबंधित अनेकों उतार-चढ़ावों की व्यावहारिक जानकारी उस छोटी अवधि में यथासंभव अधिक-से-अधिक करा देने की कार्यपद्धति बनाई गई है। शोध और सृजन से संबंधित एक भी पक्ष ऐसा नहीं छोड़ा गया है, जिसका सार-संक्षेप इन थोड़े से दिनों में ही करा न दिया जाए। शब्द-भंडार, भाषा-विन्यास, व्याकरण ज्ञान, शैली-प्रवाह, भाव-संवेदन के समावेश का अच्छा ज्ञान हर लेखक को होना चाहिए। इन संदर्भ में यों स्वेच्छा प्रयत्न और सामान्य मार्गदर्शन से भी कुछ-न-कुछ क्रमिक प्रगति होती है, पर यदि कहीं अनुभव संपदा को एक से दूसरे को हस्तांतरित करने को क्रम चले तो समझना चाहिए कि रास्ता कठिन होते हुए भी सरल हो गया।

प्रस्तुत विचारणा-पद्धति की खामियों, भ्रांतियों और दुखदाई प्रतिक्रियाओं से जनसाधारण को प्रभावी ढंग से समझाया जा सके तो दिशाभूल का पता चलने पर मनुष्य तत्काल लौट पड़ता है। इसी प्रकार उज्ज्वल संभावनाओं से भरे-पूरे तथ्यों का यदि विश्वास दिया लिया जा सके तो उसे अपनाने के लिए बौड़मों का भी मन चलता है। युगसाहित्य इसी स्तर का लिखा जाएगा, इसलिए उसकी तैयारी के लिए विश्वकोश का निर्माण करने जैसा मनोयोग और अध्यवसाय की आवश्यकता पड़ती है। यही सब उस एक महीने में अधिकाधिक मात्रा और गहराई के साथ शिक्षार्थियों के अनुभव-अभ्यास में उतारा जा रहा है।

प्रभावी परामर्श-प्रवचनों के लिए भी तथ्य चाहिए। विचार-क्रांति का प्रयोजन पूरा कर सकने वाले तथ्याश्रित साहित्य को तो हर पंक्ति में संदर्भ भरे रहने चाहिए। शान्तिकुञ्ज ने इस प्रक्रिया का छोटा शुभारंभ करके युगमनीषा को उकसाया है कि जब छोटे साधन इतना दुस्साहस कर सकते हैं तो जिनके लिए बड़े साधन जुटा सकना— बड़े कदम उठा सकना शक्य है वे बड़े स्तर की बड़ी बात क्यों न सोचें? बड़ी योजना क्यों न बनाएँ? युग परिवर्तन का अर्थ है— विचार परिवर्तन। इस महाक्रांति के लिए लाखों शस्त्र-सज्जा संजोने की, पर्वत जैसे अवरोधों को कुचल डालने वाली रणनीति अपनानी पड़ेगी। महाप्रज्ञा के वरदपुत्र समय की इस माँग को भी पूरा करके रहेंगे।

लेखन की एक मंजिल पूरी होते-होते विशद प्रकाशतंत्र खड़ा करने की, प्रस्तुत बुक सेलरों के ढर्रे में फिट न बैठ सकने के कारण स्वतंत्र विक्रय का प्रबंध करने की योजना भी हाथ लेनी पड़ेगी। प्रस्तुत पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से भी विचार का यह सिलसिला चल सकता है। यह साधन पक्ष हुआ। प्रसार की दृष्टि से वह भी कम महत्त्व का नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि सृजन का सिलसिला चलाने के लिए युगमनीषी अपनी श्रद्धा प्रखर करेंगे तो साधनसंपन्नों की दुनियाँ भी नितांत कृपण बनकर न बैठेगी। प्रकाशन और प्रसार की आवश्यकता पूरी कर सकने वाले साधन भी किसी-न-किसी प्रकार आसमान से धरती पर उतरेंगे।

First 8 10 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
  • वर्त्तमान की विपन्नता का तात्त्विक पर्यवेक्षण
  • विभीषिका से जूझने कौन आगे आए?
  • दो हाथों से ताली बजेगी, दो पहियों की गाड़ी चलेगी
  • मुहिम युगमनीषा को संभालनी होगी
  • महत्त्व लोक-मानस के परिष्कार का भी समझें!
  • तथ्य, तर्क और प्रमाणों से भरे-पूरे युग साहित्य का सृजन
  • लोकरंजन के साथ लोक-मंगल का समन्वय
  • जागृत आत्माओं की समयदान-अंशदान श्रद्धांजलि
  • मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण
  • सद्वाक्य
  • नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र की समग्र क्रांति
  • युगमनीषा कहाँ पाएँ ,कहाँ खोजें, कहाँ पुकारें?
  • सद्वाक्य
  • सृजन प्रयासों में धर्मतंत्र का शासन के साथ सहकार
  • नवसृजन का पूर्वार्ध जो हो चुका
  • युग परिवर्तन प्रक्रिया का उत्तरार्ध, जो अभी ही क्रियांवित होना है
  • हमीं एक कदम और आगे बढ़ें
  • सद्वाक्य
  • युगमनीषा के कंधों पर इन्हीं दिनों एक छोटा, किंतु महान उत्तरदायित्व
  • विज्ञापन सूचना
  • तमसो मा ज्योतिर्गमय
  • तमसो मा ज्योतिर्गमय (कविता)
  • धर्मतंत्र की उपेक्षित, किंतु मूर्धन्य शक्तिसामर्थ्य
  • झकझोरनें वाली वाणी मुखर करें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj