
अब तो होश संभाल (kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
उत्तम तन पाकर भी दुःख के काट ना पाया जाल।
हतभागी मानव तू अपने अब तो होश संभाल ॥
महानाश की सृष्टि अहिर्निश रचने में तू व्यस्त।
लतावत् यह जाल करेगा स्वयं तुझे ही ध्वस्त ॥
तू अनीति में डूबा है अब हुआ मोह में मस्त।
जब परिणाम सामने आयें तब होगा संत्रस्त ॥
अच्छा हो, यदि शीघ्र बदल ले तू अपनी यह चाल।
हतभागी मानव तू अपने, अब तो होश संभाल ॥
मानव का जीवन यह मानव नहीं कभी भी जीता।
अमृत के धोखे में निशदिन घोर हलाहल पीता ॥
सृष्टा की इस भव्य सृष्टि में तूने आग लगाई।
और हंसा, फिर देख देखकर, तू अपनी चतुराई ॥
तेरी सब काली करतूतें देख रहा है काल।
हतभागी मानव तू अपने अब तो होश संभाल ॥
नहीं पतन में शान, शान तो है ऊँचा उठने में।
नहीं लूट में चैन, चैन तो है खुद के लुटने में ॥
तू क्या जाने धृष्ट, मजा क्या, परहित मर मिटने में।
रोने में क्या मजा, और उससे बढ़कर घुटने में ॥
तुझे स्वार्थ से काम और सब धन्धे है जंजाल।
हतभागी मानव तू अपने अब तो होश संभाल ॥
तू जाने मेरा क्या बिगड़े मैं समर्थ अति भारी।
लगता है, पर धरी रहेंगी तेरी सब तैयारी ॥
मानवता का पतन देखकर दुःखी हुये युगदेव।
करुणा फूट पड़ी अन्तर से जिनके अब स्वयमेव॥
सीख मान ले युग दृष्टा की बन जाये खुशहाल।
हतभागी मानव तू अपने अब तो होश संभाल ॥
*समाप्त*