
सफलता के लिए समग्रता की आवश्यकता
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काम को हाथ में लेने की शान तब है जब उसे सफलतापूर्वक ठीक समय और ठीक रीति से पूरा कर दिखाया जाय। यह कुछ कठिन नहीं है। थोड़ी सतर्कता भर बरतने से यह सब पूरा हो सकता है और साथियों के सामने शिर ऊँचा रह सकता है।
काम हाथ में लेने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उसके लिए उपयुक्त साधन हैं अथवा हो सकते हैं या नहीं। साधनों के अभाव में बड़ी -बड़ी बातें बनाने भर से कोई काम पूरा नहीं हो सकता। जो करना है उसका ज्ञान और अनुभव होना चाहिए। जिस काम की साँगोपाँग जानकारी न हो, उतार चढ़ावों के, नीच-ऊँच के संबंध में समुचित ज्ञान न हो, उसमें ढेरों भूले रहती हैं। साधन पर्याप्त न हो तो उन्हें उपलब्ध कराने तक काम रोकना चाहिए। इसी प्रकार यदि अनुभव नहीं है तो उसे संग्रह करने में विलम्ब लगता हो तो लगने देना चाहिए। पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरना ही ठीक रहता है।
साधनों से बढ़कर ज्ञान है और ज्ञान से बढ़कर है आत्मविश्वास। सफलता के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए इन सभी बातों की आवश्यकता है। उदासी, लापरवाही और गैर जिम्मेदारी से किये गये काम आधे-अधूरे रह जाते हैं।
हाथ में लिये हुये काम को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर चलना चाहिए। उसमें पूरी एकाग्रता और तन्मयता नियोजित करनी चाहिए। जिस काम को पूरी तत्परता पूर्वक नहीं किया गया है उसमें भूल पर भूल होती रहेंगी और वे सब मिलकर काम को असफल बना देंगी।
एक समय में अनेक काम करने या अनेक दिशाओं में ध्यान दें सकने की आदत हर किसी में नहीं होती। ऐसी प्रतिभा किन्हीं विरलों में ही होती है और बहुत दिन के अभ्यास के बाद आती है। सामान्य स्थिति में यही उचित है कि एक समय में एक काम को हाथ में लिया जाय और उस पर सारा ध्यान एकत्रित करके जुटाया जाय। इस प्रकार की आदत जिनमें होती है वे ही अपनी गलती को समझ पाते हैं और समय रहते उसे ठीक भी कर लेते हैं। बिखरे स्वभाव के लोग आधे अधूरे मन से काम करने से भूल पर भूल करते जाते हैं। वे भूलें इकट्ठी होकर जब असफलता की स्थिति बना देती है तो गलतियों के लिए दूसरों को दोषी ठहराकर अपन पीछा छुड़ाते हैं। यह तरीका बुरा है। हर असफलता आदमी का मूल्य गिराती और वजन घटाती है। फिर काम देने वाले लोग यह अनुमान लगाते हैं कि यह व्यक्ति ऐसी योग्यता का नहीं है जो वजनदार काम पूरा कर सके। जिनका काम हर्ज होता है उनका नाराज होना उचित ही है। काम का सरंजाम जुटाने के ढेरों साधन लगाने पड़ते हैं। असफलता मिलने पर वे लगाये हुये साधन बर्बाद हो जाते हैं। साथ ही जिस समय जो होना था वह न होने पर वह व्यक्ति घाटा लगने के कारण खिन्न भी होता है। इस खिन्नता की चर्चा जो लोग सुनते हैं उन सबके मन में इज्जत घटती है। अयोग्यता की छाप पड़ती है।
मनुष्य का मूल्य इस बात पर निर्भर है कि वह अपने जिम्मे लिए हुये कामों को कितनी जिम्मेदारी और तत्परता के साथ पूरा करता है। इसके लिए अन्य बातों की अपेक्षा आत्मविश्वास की सबसे अधिक आवश्यकता है। चित्त को बिखेरने न देना, सौंपे गये काम में पूरी रुचि लेना, कहीं कोई भूल तो नहीं हो रही है जैसी सतर्कता अत्यधिक आवश्यक है।
असफलता का दोष परिस्थितियों पर अथवा दूसरे व्यक्तियों पर डालने से कोई दोष मुक्त नहीं हो सकता। साधन कम थे या घटिया थे तो उन्हें पहले ही देखना चाहिए था। उन्हें पूरा करने के बाद ही कदम उठाना चाहिए था। यही बात योग्य साथियों के संबंध में भी है हर काम में सतर्कता और तत्परता अपनाने पर ही सफलता मिलती है और उसी आधार पर व्यक्तित्व प्रामाणिक एवं प्रशंसनीय बनता है।