• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अभिनन्दन एवं विश्वास
    • सत्य का अवलम्बन
    • जीवन और उसकी सार्थकता
    • अपना स्वरूप और दायित्व समझें
    • अनुशासन का वरदान
    • कुशल मांझी भवसागर को सहज पार करते हैं।
    • Quotation
    • दूरदर्शिता एक बहुत बड़ा सौभाग्य
    • स्वाद विजय की प्रथम साधना
    • Quotation
    • Quotation
    • सफलता के लिए समग्रता की आवश्यकता
    • कस्मै देवाय हविषा विधेम्
    • महानता की कसौटी
    • Quotation
    • धनवान और बलवान से बड़ा आत्मवान्
    • श्रद्धा-ध्यान से रोग निवारण
    • संगीत उपचार की संभावनाएं
    • Quotation
    • ध्यान साधना की वैज्ञानिक विवेचना
    • आरुणी वशिष्ठ मेधावी था (kahani)
    • न मनुष्य बन्दर की औलाद है न बन्दर मनुष्य की
    • सेनापति नोबुनागर (kahani)
    • धर्म का तत्व दर्शन हर दृष्टि से श्रेयस्कर
    • विवेकानन्द गुजर रहे थे (kahani)
    • ब्राह्मी चेतना का विस्तार कार्य व्यवहार
    • पुरातन भारत ज्ञान और विज्ञान का घनी था
    • राजकुमार सुकर्णव (kahani)
    • भय-जन्य संकट प्रायः काल्पनिक होते हैं।
    • सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय
    • मृतात्माओं का जीवित मनुष्य से सम्पर्क
    • सम्राट सिकन्दर (kahani)
    • शरीर से बाहर भी आत्माएँ
    • स्वप्नों के पीछे सन्निहित तथ्य
    • Quotation
    • मृत्यु कष्ट में भी स्वर्ग सुख की कल्पना
    • Quotation
    • सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री- गायत्री
    • शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म
    • हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियाँ
    • अपनों से अपनी बात- ‘हीरक जयंती’ शानदार स्तर की मनाई जाय
    • धर्म प्रचार के लिए जा रहे थे (kahani)
    • इस सुयोग का नियोजन इस प्रकार करें
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अभिनन्दन एवं विश्वास
    • सत्य का अवलम्बन
    • जीवन और उसकी सार्थकता
    • अपना स्वरूप और दायित्व समझें
    • अनुशासन का वरदान
    • कुशल मांझी भवसागर को सहज पार करते हैं।
    • Quotation
    • दूरदर्शिता एक बहुत बड़ा सौभाग्य
    • स्वाद विजय की प्रथम साधना
    • Quotation
    • Quotation
    • सफलता के लिए समग्रता की आवश्यकता
    • कस्मै देवाय हविषा विधेम्
    • महानता की कसौटी
    • Quotation
    • धनवान और बलवान से बड़ा आत्मवान्
    • श्रद्धा-ध्यान से रोग निवारण
    • संगीत उपचार की संभावनाएं
    • Quotation
    • ध्यान साधना की वैज्ञानिक विवेचना
    • आरुणी वशिष्ठ मेधावी था (kahani)
    • न मनुष्य बन्दर की औलाद है न बन्दर मनुष्य की
    • सेनापति नोबुनागर (kahani)
    • धर्म का तत्व दर्शन हर दृष्टि से श्रेयस्कर
    • विवेकानन्द गुजर रहे थे (kahani)
    • ब्राह्मी चेतना का विस्तार कार्य व्यवहार
    • पुरातन भारत ज्ञान और विज्ञान का घनी था
    • राजकुमार सुकर्णव (kahani)
    • भय-जन्य संकट प्रायः काल्पनिक होते हैं।
    • सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय
    • मृतात्माओं का जीवित मनुष्य से सम्पर्क
    • सम्राट सिकन्दर (kahani)
    • शरीर से बाहर भी आत्माएँ
    • स्वप्नों के पीछे सन्निहित तथ्य
    • Quotation
    • मृत्यु कष्ट में भी स्वर्ग सुख की कल्पना
    • Quotation
    • सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री- गायत्री
    • शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म
    • हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियाँ
    • अपनों से अपनी बात- ‘हीरक जयंती’ शानदार स्तर की मनाई जाय
    • धर्म प्रचार के लिए जा रहे थे (kahani)
    • इस सुयोग का नियोजन इस प्रकार करें
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1985 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


न मनुष्य बन्दर की औलाद है न बन्दर मनुष्य की

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 21 23 Last
दर्शन, सुनने समझने में साधारण तथा अटपटा-सा लगाता है, पर उसका दूरगामी प्रभाव जीवन की दिशा-धारा विनिर्मित करने में महती भूमिका निभाता है। इसलिए दर्शन को बुद्धिवादियों का विद्युविलास न मानकर सर्वसाधारण को दिशा निर्धारक मानना चाहिए। मैं क्या हूँ? कहाँ से आया? कर्तव्य धर्म क्या है? किस नीति मर्यादा का पालन करना चाहिए और अन्ततः किस परिणति की आशा करनी चाहिए। ऐसे ढेरों प्रश्न दर्शन के साथ जुड़ते हैं। इसलिए जब समाज को उठाना या गिराना हो तो उसके दर्शन को सुधारने बिगाड़ने से काम चल जाता है। स्थायी युद्ध से उस देश की, युग की, संस्कृति को भ्रष्ट करना होता है।

इन पंक्तियों में उस विकासवाद की चर्चा की जा रही है जो आजकल मान्यता प्राप्त कर चुका है और जिसे पढ़कर बच्चे विश्वासपूर्वक स्कूल से बाहर निकलते हैं। चौदह वर्ष जो लगातार पढ़ा और पढ़ाया गया है उसे भुला देने या अविश्वास करने का कोई कारण नहीं।

हमें पढ़ाया गया है कि मनुष्य बन्दर की औलाद है। पूर्वजों का अपने स्वरूप और स्वाभिमान पर सभी को अभिमान होता है। जब तक हम प्रत्येक धर्मकृत्य में यह संकल्प उच्चारण करते थे कि हम अमुक देव अथवा ऋषि के वंशज हैं तब तक पूर्वजों की मान मर्यादा का भी ध्यान रहता था। चक्रव्यूह में चारों ओर से घिर जाने पर विपक्षियों से यह कहता था कि मैं डरने वाला नहीं हूँ। उस ओर तलवार छोड़े तो मुझे अर्जुन पुत्र न समझना। रामचन्द्र जी एक अवसर पर कहते हैं- “रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।” इसमें कुल की पूर्व परम्परा का उल्लेख है जो मनुष्य का सहज स्वाभिमान बढ़ाती है और उनकी महान परम्परा के अनुकरण की प्रेरणा देती है। जब कुल और परम्परा निकृष्ट कोटि की स्वीकार कर ली जाय तो फिर ओछे कदम उठाने में भी लज्जा नहीं आती।

आधुनिक विकासवाद के जनक डार्विन ने बड़े दमखम के साथ यह प्रतिपादित किया है कि मनुष्य बन्दर की औलाद है। उसके लिए जहाँ-तहाँ उपलब्ध पाषाण अंगों को एकत्रित किया है जिनके सहारे वे वंश परम्परा का निर्धारण करते और मनुष्य को विकसित होकर इस रूप में पहुँचा बताते हैं।

इस संदर्भ में प्रतिपादन कर्ता वे अकेले नहीं हैं। उनके साथी सहयोगी को मान्यता देने में अपनी बुद्धि दौड़ाते हैं (जार्ज वाण्ड जो नृतत्व विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इस मान्यता के समर्थक हैं। स्वीडन के नील हर्बर्ट नेल्सन, हरबर्ट युनीवर्सिटी के कीट विज्ञानी एडवर्ड विक्स, चर्च लेमसन, स्टीवेन्स एस. स्टेलली, आस्ट्रेलिया के जीवविज्ञानी ऐलन होल्ट ने भी इन्हीं विचारों का समर्थन किया है। इन समर्थन कर्ताओं के मस्तिष्क में दो विचार जड़ जमाकर बैठ गये हैं कि सृष्टि के आरम्भ में बहुत छोटी स्थिति में जीव बना पीछे उसने धीरे-धीरे विकास करते हुए वर्तमान स्थिति प्राप्त की। दूसरी उनकी मान्यता यह है कि जिस प्राणी की शक्ल पूर्ववर्ती जिस प्राणी से मिलती हो उसे उसका पूर्वज मान लेना चाहिए। इस प्रमाण की पुष्टि ने उसे प्राणियों के पाषाणी भूत अवयव भी मिले हैं। उन्हें देखकर जैसा चाहें वैसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है। वे इस स्थिति में नहीं हैं कि उस आधार पर कोई एक ही स्पष्ट निष्कर्ष निकल सके। उन पत्थर के टुकड़ों से तीसरी या चौथी बात भी सिद्ध की जा सकती है।

उपरोक्त प्रतिपादन कर्ताओं के समकालीन तथा इतने ही विद्वान दूसरे भी हैं जो डार्विन के विकासवाद का हाथों हाथ खण्डन करते चले हैं। वर्कले युनिवर्सिटी के रिचर्ड गोल्ड स्मिथ ने अपने प्रख्यात ग्रन्थ “मैटेरियल वेसिस आफ इवूलेशन” में ऐसी अनेकों त्रुटियाँ निकाली है जो बन्दर से मनुष्य बनने की बात को गलत सिद्ध करती है। इसी प्रकार जीव विज्ञानी ओजोडिड बुल्फ ने उन तथ्यों को गिनाया है जिसके आधार पर मनुष्य वर्ग को बन्दर वर्ग का साबित नहीं किया जा सकता।

पिछड़े दिनों इस बात की खोज होती रही है कि जिन जीवधारियों में परस्पर संगति है वे परस्पर मिल-जुलकर नई संतति पैदा कर सकते हैं। इसमें घोड़े और गधे का उदाहरण स्पष्ट है। उनका संयोग आसानी से हो जाता है। ऐसे सजातीय वर्ग कुछ जलचरों और कीट-पतंगों में भी पाये गये हैं, पर उनकी संख्या उँगलियों पर गिनने की तरह है। इस संदर्भ में मक्खी पर सबसे अधिक प्रयोग हुए हैं। उनकी संगति नये प्रजनन के लिए मिलाने के निमित्त लम्बे और जटिल प्रयोग हुए हैं, पर कोई सफलता नहीं मिली। पेड़ पौधों में जैसे कलम लगाई जा सकती है, उस प्रकार आधुनिक मनुष्य चिंपेंजी, गौरेला, वन-मानुष, बन्दर, लंगूर आदि की मिश्रित सन्तति पैदा करने की कोशिश की गई। पर उसमें तनिक भी सहायता नहीं मिली। होने को क्रोमोसोम-क्रोमोजोन इतने भिन्न हैं कि वे आपस में एकता स्थापित करने के लिए कतई तैयार न हुए। पक्षियों में भी किसी जाति का शंकरत्व न हो सका। इसलिए उन्हें स्वतन्त्र जाति मानना पड़ा।

पत्थर के जमे अंग फासल्स एक ऐसी कड़ी नहीं जोड़ते जिससे बन्दर और आदमी को समीपी सिद्ध कर सके। मनुष्य के कितने ही अवयवों की विधि रचना हैं इनमें आंखें और मस्तिष्क का गठन मनुष्य अद्भुत है। अन्य प्राणी इस दृष्टि से बहुत पीछे हैं। बन्दरों का मस्तिष्कीय विकास जन्मकाल जितना ही रहता है, किंतु मनुष्य के बच्चे का दो वर्ष तक लगातार बढ़ता रहता है और वजन के हिसाब से नहीं स्तर के हिसाब से दस गुना हो जाता है।

सोसियो बायोलोजी एण्ड सिन्थेरसि के विद्वान लेखक ने कहा है- “बन्दर एनाटोमी फिजयालौजी के हिसाब से किसी कदर मनुष्य से मिलता है। किन्तु उसकी मान्यता और सामाजिकता दोनों के बीच तनिक भी नहीं मिलती। इसी प्रकार एक-दूसरे ग्रन्थों “आफ्टर मैंन ए जूलौजी आफ्टर फ्यूचर” में लिखा है यदि बन्दर मनुष्य बन गया तो मनुष्य को अगले दिनों क्या बनना चाहिए। एक तीसरे ग्रन्थ “न्यू इवैल्युशनरी टाइम टेबल” में व्यंग किया गया है कि मनुष्य को बढ़ते बढ़ते पाँच फुट का चमगादड़ बनना होगा, तभी उसकी परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठेगा। उनका कथन है कि समुद्री जीवों में ह्वेल एक लम्बी चोंच उगा लेगी और समुद्र पर एक छत्र राज्य करेगी।

डार्विन स्वयं इस बात पर शर्मिन्दा था कि वे बन्दर और मनुष्य की एक हजार वर्ष की खोई कड़ी को वे किसी प्रकार मिला नहीं पा रहे हैं और इसके बिना प्रतिपादन की प्रमाणिकता खण्डित होती है। जिसके प्रस्तोतातक को अपने प्रतिपादन पर सन्देह हो, उसको धड़ल्ले के साथ मान्यता मिले और स्कूलों से हर बच्चा उसी विचार धारा को साथ लेकर निकले यह बड़े आश्चर्य की बात है।

विकास क्रम में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूर्वजों के स्वभाव संस्कार अगली पीढ़ियों में चलते रहते हैं। बन्दर की कोई नैतिकता नहीं है। वह किसी की भी खाद्य सामग्री चुराकर भाग सकता है। प्रजनन अवसर पर कोई रिश्ता उसके मार्ग में बाधक नहीं होता। यदि मनुष्य सचमुच बन्दर से विकसित हुआ है तो धन सम्बन्धी नैतिकता और यौन सदाचार की कोई आशा उससे नहीं करनी चाहिए। अपने माने हुए मुहल्ले में दूसरे मुहल्ले के बन्दर घुस आवें तो देखते-देखते मल्लयुद्ध खड़ा कर लेते हैं। यदि मनुष्य बन्दर की औलाद है तो यह गुण स्वभाव उसके पैतृक अनुदान माने जाने चाहिए और कहा जाना चाहिए कि नैतिक अनुबन्ध कृत्रिम हैं थोपे या लादे गये हैं। यदि वह उन्हें तोड़ता है इसमें भूल प्रकृति के विपरीत कुछ भी नहीं है।

शरीर संरचना वंशजों में सर्वथा नहीं बदल सकती। उच्चारण तन्त्र उसमें गायन वादन निकल सके, बन्दर को कितना ही सिखाने पर भी विकसित नहीं हो सकता। पूँछ कैसे गायब हुई। रीढ़ की हड्डी कैसे सीधी हुई और दो पैरों से चलना सीखकर हाथों को स्वतन्त्र रूप से काम करने के लिए कैसे बचा लिया गया। यदि यह आवश्यकता के अनुरूप था तो भी अभी भी बहुत ही अंग ऐसे हैं जो घटाये जाने चाहिए। कानों की जैसी टेड़ी-मेढ़ी आकृति है उसकी तो कोई जरूरत ही मालूम नहीं पड़ती। एक छेद से भी काम चल सकता है। पैरों की उँगलियों की संख्या और साइज में भी बहुत सुधार की जरूरत है। नारियों की प्रसव पीड़ा की क्या आवश्यकता है। वे रास्ता चलते प्रसव करने की सुविधा क्यों न प्राप्त करेंगी।

वस्तुतः समुद्र से सब प्राणियों का अद्भुत होना बड़ी किलिस्ट कल्पना है। साँप के अण्डे में से चिड़िया जन्मी। बच्चे को रोज डेढ़ टन दूध पिलाने वाली ह्वेल पहले जमीन पर रहती थी और वह पशु वर्ग की भी, फिर सुविधा और आदत के अनुसार समुद्र में जा घुसी और वही रम गई। यह ऐसे प्रतिपादन हैं जिसे मूर्धन्य चाहे जिस प्रकार सिद्ध करना चाहें। सामान्य बुद्धि के गले उतरने वाली नहीं है।

सच तो यह है कि प्रत्येक प्राणी अपने आप में पूर्ण उत्पन्न हुआ है और जैसा भी था उसी रूप में अपनी वंश वृद्धि कर रहा है। अमीबा एक कोशीय जीवाणु है। वह एक से दो- दो से चार का क्रम चलाता है, पर उसकी मूल इकाई एक कोशीय अभी भी है। इसी प्रकार हर प्राणी सृष्टि के आरम्भ से लेकर जिस रूप में बना था उसी में रहता हुआ अपनी वंश वृद्धि करता आ रहा है। मनुष्य की उत्पत्ति हमें स्वयंम्भु मुनि एवं शतरूपा रानी से आरम्भ करनी चाहिए। ब्रह्माजी द्वारा उसका अन्य जीव धारियों की तरह ही अपने ढंग का अनोखा उद्भव मानना चाहिए। जो अद्यावधि अपने नर-नारायण स्वरूप को बनाये हुए हैं। बीच-बीच में उस पर कषाय−कल्मषों के मैल चढ़ते रहे हैं, नित्य स्नान की तरह उसकी सफाई होती रहे तो उसके दैवी गुण निखर कर फिर साफ हो जाते हैं। सोने को तपाकर साफ कर लिया जाता है तो उसकी अशुद्धियाँ साफ होतीं और अपने मूल स्वरूप में प्रकट होती रहती हैं। यही मान्यता सही है कि बन्दर से मनुष्य बनने की।

हर प्राणी समुद्र में से हुआ यह मान्यता भी अशुद्ध है। जलचर जल में, थलचर थल में उत्पन्न होते हैं और नभचर नभ में भी। आकाश का अदृश्य अन्तरिक्ष है जिसमें वायुभूत सूक्ष्म जीवाणु उत्पन्न होते हैं। मरणोत्तर जीवन में प्राणियों का निवास विश्राम और परिभ्रमण आकाश में ही होता है। इसके अतिरिक्त ऐसे प्रमाण की कम नहीं हैं कि बादलों में भी प्राणी उत्पन्न होते और टिके रहते हैं। उस क्षेत्र में थोड़ा-सा आश्रय पाकर टिके रहते हैं। ऐसे अवसर भी आते हैं जल चर आकाश से बड़े परिमाण में बरसते पाये गये हैं। 12 फरवरी 1979 की बात है। इण्डेण्ड के साउथ पालन उपनगर में रहने वाले रोनाल्ड मूडी ने एक बरसात के दिन छत पर बड़ी संख्या में सरसों के बीज बिखरे हुए पाये। उन्हें आश्चर्य हुआ कि कल ही जिस छत को भली प्रकार बुहारा गया था। उस पर इतनी बड़ी संख्या में गीली सरसों कहाँ से आ गई। वे पड़ौसियों के यहाँ भी इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने गये तो पाया कि उस पूरे उपनगर की छतों पर एक ही जाति की मोटी सरसों की परत बिछी हुई है। बहुत सिर फोड़ी करने के बाद भी ये इसके सिवाय और कोई नतीजा न निकाल सके कि यह बरसात की बूँदों के साथ आकाश से बरसी है।

13 मार्च 1977 की घटना है व्रिस्टल के अल्फर्ड विलसन अपनी पत्नी समेत कार से जाने की तैयारी कर रहे थे कोट के बटन टूट पड़ने जैसी आवाजें हुई चारों ओर निगाह फैला कर देखा तो मालूम हुआ कि बटन साइज के पिंगल के बीच ओलों की तरह आकाश से बरस रहे हैं। बीजों की परत दूर-दूर तक जमीन पर जमा हो गई। थोड़े से समेट कर उनने रूमाल में बाँधे और कितनों को ही दिखाये। वे सचमुच पिंगल के बीज थे। आश्चर्य यह है कि मार्च का महीना उन बीजों का था भी नहीं।

दुबलिन के सीमन्स मंथली मेट्रोलाजिकल मैगजीन में इस बीज वर्षा का समाचार विस्तार से छपा है और कहा है कि रास्ता निकलने वालों के कपड़े और टोप उनसे बुरी तरह लाद लाये थे।

वर्किघम की एक महिला श्रीमती भीडे अपने बच्चों समेत रायल नेवी पार्क की एक प्रदर्शनी देखने जा रही थी अचानक उनने देखा कि पौन इंच साइज के खाकी रंग की छोटे मेंढकों की आसमान से वर्षा हो रही है। मेंढक इतने अधिक थे कि उनने पार्क की जमीन को पूरी तरह ढक लिया था और वे इधर-उधर चलने की कोशिश कर रहे थे। दर्शकों के झुण्ड लग गये, उनमें से एक अमेरिका चार्ल्स फोर्ट ने कहा सन् 1874 में उनके घर तथा पास-पड़ौस में ऐसे ही मेंढक वर्षे थे। तब उनने उसकी चर्चा किसी से नहीं कि इस बात पर विश्वास कौन करेगा?

जनरल आफ ऐशियाविक सोसाइटी आफ बंगाल के एक बार वैज्ञानिक सर्वे की रिपोर्ट छपी थी जिसमें मुजफ्फरपुर जिले के टोन्स कोर्ट के समीप मछली वर्षा की वास्तविकता का वर्णन छपा था। वे सफेद रंग की एक-एक इंच की मछलियाँ थी। उनने उस सारे घेरे को ढक लिया था।

सुप्रसिद्ध विज्ञान वेत्ता क्लार्क ने अपनी पुस्तक ‘मिस्टीरियस वर्ड’ में आकाश से समय-समय पर बरसने वाले जीव जन्तुओं की घटनाओं का संकलन किया है।

इस पुस्तक में घटित घटनाओं का कारण उनने अनेक वैज्ञानिकों से पूछकर यह सम्भावना व्यक्त की है कि आकाश में भी बैक्टीरिया मौजूद है। कुछ तारे भी ऐसे हैं। उनकी जीवाणु पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर यहाँ की स्थिति के अनुरूप शरीर धारण कर लेते हैं।

ऋषियों का अभिमत था कि सृष्टि में आदि में मनुष्य पूर्णावस्था में अन्तरिक्ष से उतरे थे और वे देवपुत्र जैसे थे। बाद में यहाँ की परिस्थिति के अनुसार विभिन्न प्रकार के हो गये। कहाँ मनुष्य का इतना गौरवपूर्ण इतिहास कहाँ उसे बन्दर की औलाद कहा जाता है। पाठक स्वयं विचार करें कि इनमें से कौन-सा कथन मानने योग्य है।

First 21 23 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अभिनन्दन एवं विश्वास
  • सत्य का अवलम्बन
  • जीवन और उसकी सार्थकता
  • अपना स्वरूप और दायित्व समझें
  • अनुशासन का वरदान
  • कुशल मांझी भवसागर को सहज पार करते हैं।
  • Quotation
  • दूरदर्शिता एक बहुत बड़ा सौभाग्य
  • स्वाद विजय की प्रथम साधना
  • Quotation
  • Quotation
  • सफलता के लिए समग्रता की आवश्यकता
  • कस्मै देवाय हविषा विधेम्
  • महानता की कसौटी
  • Quotation
  • धनवान और बलवान से बड़ा आत्मवान्
  • श्रद्धा-ध्यान से रोग निवारण
  • संगीत उपचार की संभावनाएं
  • Quotation
  • ध्यान साधना की वैज्ञानिक विवेचना
  • आरुणी वशिष्ठ मेधावी था (kahani)
  • न मनुष्य बन्दर की औलाद है न बन्दर मनुष्य की
  • सेनापति नोबुनागर (kahani)
  • धर्म का तत्व दर्शन हर दृष्टि से श्रेयस्कर
  • विवेकानन्द गुजर रहे थे (kahani)
  • ब्राह्मी चेतना का विस्तार कार्य व्यवहार
  • पुरातन भारत ज्ञान और विज्ञान का घनी था
  • राजकुमार सुकर्णव (kahani)
  • भय-जन्य संकट प्रायः काल्पनिक होते हैं।
  • सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय
  • मृतात्माओं का जीवित मनुष्य से सम्पर्क
  • सम्राट सिकन्दर (kahani)
  • शरीर से बाहर भी आत्माएँ
  • स्वप्नों के पीछे सन्निहित तथ्य
  • Quotation
  • मृत्यु कष्ट में भी स्वर्ग सुख की कल्पना
  • Quotation
  • सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री- गायत्री
  • शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म
  • हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियाँ
  • अपनों से अपनी बात- ‘हीरक जयंती’ शानदार स्तर की मनाई जाय
  • धर्म प्रचार के लिए जा रहे थे (kahani)
  • इस सुयोग का नियोजन इस प्रकार करें
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj