
आप जैसे है, वैसे ही रहें!
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मनुष्य जब तक अपनी सही-सच्ची स्थिति में बना रहता है, तब तक वह अनेक प्रकार की मुसीबतों से बचा रहता है, किन्तु जैसे ही मिथ्या आडम्बर और स्वयं को बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति उसमें विकसित होती दिखाई पड़े, समझा जाना चाहिए कि दुर्दिन निकट हैं और मुसीबतों का पहाड़ टूटने ही वाला है।
यह एक बहुत बड़ा अवगुण है कि लोक अपनी शक्ति के बाहर और स्थिति के बिलकुल प्रतिकूल खर्च करते हैं। इससे लाभ तो कुछ होता नहीं हाँ, महत्वाकाँक्षा की पूर्ति अवश्य हो जाती है कि लोग उन्हें अमीर समझें, बड़ा आदमी मानें। इस भ्रम में पड़ कर ऐसे व्यक्ति धन की बरबादी तो करते ही हैं, मन को भी इन्हीं भ्रम-जंजालों में उलझाये रहते हैं। परिणाम यह होता है कि जिस ऊर्जा को विकास योजनाओं में लगना चाहिए, वह बाह्याडम्बर जैसे तुच्छ कार्य की उधेड़बुन में पड़ कर नष्ट हो जाती है और व्यक्ति पतन पराभव की दिशा में लगातार बढ़ता चला जाता है। आज की गलती का परिणाम सारे जीवन भर भोगना पड़ता है। इस दिशा में ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिस धन का अपव्यय प्रदर्शन जैसे कार्य में किया जा रहा है, उससे वैयक्तिक और सामाजिक अनेकों प्रकार के कार्य किये जा सकते हैं, पर दिखावे में लगकर वह धन यों ही बर्बाद हो जाता है।
बाहरी सजधज को जो मान प्रतिष्ठा का आधार मानते हैं, वे वस्तुतः भ्रम में रहते हैं। विवेकवान पुरुष बाहरी वेश-विन्यास और वस्त्राभूषणों के आधार पर लोगों का मूल्याँकन नहीं करते, वरन वे इसके लिए आन्तरिक गुणों को मापदण्ड मानते हैं। मनुष्य की शिष्टता और शालीनता उसकी सादगी में झाँकती है, न कि बाह्य दिखाते में। सदाचरण और सादगी का परस्पर घनिष्ट संबंध होता है। जहाँ सादगी होगी, वहीं सत्कर्म होंगे। जहाँ सत्कर्म होंगे, वहाँ सुख और सुव्यवस्था भी होगी। मनुष्य के लिए यही स्थिति अभीष्ट भी है। अतः आडम्बर की तुच्छ प्रवृत्ति में न पड़ कर हर एक को सीधे-साधे ढंग से रहने में ही अपनी शान और बड़प्पन समझना चाहिए।
अपनी वास्तविक स्थिति में अन्ततक बिना दिखावे के साथ बने रहना मनुष्य का नैतिक बल भी प्रदर्शित करता है। संभव है आज की परिस्थिति में मन में इसके लिए कुछ झिझक और संकोच उत्पन्न हो, किन्तु एक सी स्थिति में सुखी और संतुष्ट जीवन बिताने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ मार्ग है कि अपनी स्थिति और स्तर का अतिक्रमण न किया जाय। गरीब होना पाप नहीं है, किन्तु जब येन-केन प्रकारेण गरीबी छिपा कर अमीरी का आवरण ओढ़ने का प्रयत्न किया जाता है, तो गरीबी तो ज्यों की त्यों बनी रहती है, अनेकों अन्य मुसीबतें उठ खड़ी होती हैं। निर्धनता का उपहास कुछ दिन हो सकता है, मगर झूठा प्रदर्शन तो सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता एवं वास्तविक स्थिति को और भी दयनीय बना देता है।
झूठ जब तक बोलने चालने तक सीमित हो तब तक उससे विशेष हानि की संभावना नहीं रहती, किन्तु योजनाबद्ध ढंग की झुठाई के परिणाम असाधारण होते हैं। मिथ्या आडम्बर एक प्रकार के झूठ का व्यवस्थित और शक्तिशाली कथन है, अतः इसका प्रभाव-क्षेत्र और भी व्यापक होता है। व्यक्ति और समाज दोनों ही इसकी चपेट में आते हैं। इसलिए हम जिस स्थिति में हैं, अपने जीवन को उसी अवस्था स्थिति में दूसरों के सामने रखें, इसी में अपनी और समाज दोनों की भलाई सन्निहित है।