• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
    • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
    • दारिद्रय और संकट (kahani)
    • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
    • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
    • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
    • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
    • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
    • Quotation
    • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
    • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
    • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
    • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
    • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
    • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
    • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
    • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
    • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
    • Quotation
    • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
    • कुमार जीव (kahani)
    • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
    • संस्कार (kahani)
    • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
    • Quotation
    • वह परमसत्ता एक ही है
    • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
    • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
    • सच्चा कर्मयोग (kahani)
    • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
    • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
    • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
    • आत्मबल सर्वोपरि
    • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
    • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
    • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
    • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
    • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
    • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
    • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
    • दारिद्रय और संकट (kahani)
    • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
    • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
    • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
    • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
    • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
    • Quotation
    • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
    • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
    • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
    • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
    • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
    • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
    • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
    • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
    • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
    • Quotation
    • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
    • कुमार जीव (kahani)
    • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
    • संस्कार (kahani)
    • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
    • Quotation
    • वह परमसत्ता एक ही है
    • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
    • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
    • सच्चा कर्मयोग (kahani)
    • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
    • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
    • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
    • आत्मबल सर्वोपरि
    • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
    • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
    • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
    • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
    • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
    • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 1 3 Last
सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक अनेक बार ऐसे अवसर आते रहे हैं जिनमें विनाश की विभीषिका इस रूप में सामने आई, मानों सर्वनाश जैसा कुछ होकर ही रहेगा। असुरता की परम्परा ऐसी ही है, जिसने अनीति को भड़काया और अनौचित्य का माहौल बनाया। वृत्रासुर, भस्मासुर, महिषासुर, हिरण्यकश्यप, रावण, कंस, दुर्योधन आदि नाम तो हैं ही, उनका अपना-अपना समुदाय भी रहा है, जिसमें अनेकों ने उन्हीं से स्तर की अवाँछनीयता को उग्र-उद्धत बनाने में योगदान दिया; किन्तु आतंक चरम सीमा तक पहुँचते पहुँचते ऐसी व्यवस्था बनी कि अनाचार का शमन करने वाले साधन उभरे, तन कर खड़े हुए और जो आतंक प्रलयंकर दीखता था, वह अपनी मौत मर गया।

अन्धकार हर संध्या के समय जोर-शोर से आक्रमण करता है। सर्वत्र हाथ को हाथ न सूझने वाली तमिस्रा बिखेर देता है। किन्तु उसका अंत होते हुए हम नित्य ही देखते हैं। उषाकाल के अरुणोदय के साथ अँधेरे का अंत हो जाता है और उदीयमान प्रकाश के कारण नव जागरण का, नव जीवन का माहौल बनता है। निशाचर और अधिक देर तक दाल गलती न देखकर कोंतरों में जा छिपते हैं। दिनमान का उदय होते ही, पक्षी चहकने, फूल खिलने और सभी जीवधारी अपने निर्धारित पुरुषार्थ करने में जुट जाते हैं। रात में जो आलस्य, अवसान छाया था, उसकी क्षति-पूर्ति सूर्योदय की अवधि में ही भली प्रकार हो जाती है। आज जब बीसवीं सदी का समापन हो रहा है, हम ऐसी ही युगान्तरकारी बेला से गुजर रहे हैं।

अवतारों द्वारा किए गए समय के परिमार्जन की कथाएँ प्रख्यात है। उनने विनाश का ही अन्त नहीं किया है, वरन् पहले से भी अच्छी स्थिति का सृजन किया है। लंका दहन के उपरान्त ही राम राज्य की स्थापना हुई और सतयुग की वापसी जैसी सुखद संभावना अवतरित हुई। हिरण्यकश्यप ने जो विनाश किया था, उसकी भरपाई प्रहलाद काल में भली प्रकार हो गयी। पतझड़ में विशालकाय वृक्षों के पत्ते तक धराशायी हो जाते हैं और सर्वत्र ठूँठ ही दीख पड़ते हैं। पर इसके उपरान्त ही बसन्त का आगमन होता है। नई कोंपलें निकलती हैं और डालियाँ मुस्कराते फूलों से लद जाती हैं। ग्रीष्म का आतप अस्थाई ही होता है। तूफानों और बवन्डरों की भरमार से झोंपड़ों के छप्पर में उड़ जाते हैं। भूमि तवे जैसी जलने लगती है। जलाशय सूख जाते हैं। हरियाली का कहीं अता-पता भी नहीं दिखता। प्यास से होठ सूखते हैं, पसीना टपकता है और कुछ करते-धरते नहीं बन पड़ता। इतने पर भी वह आपत्ति काल बहुत लम्बा नहीं होता। कुछ ही दिनों बाद वर्षा की मेघ-मालाएँ घटाटोप की तरह उमड़ती हैं, घनघोर बरसती हैं और जल-थल एक कर देती हैं। सर्वत्र हरीतिमा का फर्श बिछा दीखता है। विनाशका आतंक दिल दहला देने वाला तो होता है, पर उसकी सत्ता और शक्ति सृजन से बढ़कर नहीं हैं यदि ऐसा न होता, तो संसार में जो प्रगति का अनवरत क्रम आगे आगे ही बढ़ता जा रहा है, वह संभव न होता।

मनुष्य आए दिन भूलें करते रहने के लिए बदनाम है; किन्तु साथ ही उसमें एक अच्छाई भी है कि ठोकरें लगने के बाद सँभल भी जाता है। गरम दूध से मुँह जलाने के बाद फिर छाछ को भी फूँक कर पीने लगता है। विनाश और कुछ नहीं, मात्र दुर्बुद्धि का ही प्रतिफल हैं मनःस्थिति में अवाँछनीयता भर जाने पर परिस्थिति विपन्न स्तर की बनती जाती है। जो बोया है वही काटना पड़ता है। सीधे मार्ग पर ही चलने वाले को झाड़ियों में क्यों भटकना पड़ेगा? भ्रष्ट चिन्तन और दुष्ट आचरण ही प्रकारान्तर से दैत्य-दानव की भूमिका निभाते हैं। गुम्बज में अपनी ही आवाज प्रति-ध्वनि बनकर गूँजती है। छोटी-बड़ी समस्याएँ हमारे अपने ही द्वारा आमंत्रित हैं। यदि क्रम उलट दिया जाय तो प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलते देर नहीं लगती। समय-समय पर अनेक बार यही होता रहा है।

इन दिनों विज्ञान के संचार साधनों ने लम्बी दूरी को निकटवर्ती बना दिया है। देख अब परस्पर गली मुहल्लों की तरह सिकुड़ कर और निकट आ गये हैं। पृथ्वी के एक छोर पर बैठा मनुष्य दूसरे छोर पर रहने वाले के साथ सामने बैठे जैसा वार्तालाप कर सकता है। छवि निहार सकता है। दूरदर्शन-रेडियो ने कभी के असंभव को अब प्रत्यक्ष बना दिया है। इन परिस्थितियों में एक स्थान पर होने वाली हलचल समूचे संसार को प्रभावित करती है।

पिछले दिनों जो कार्य लम्बे समय में सम्पन्न हुआ करते थे वे अब कहीं अधिक जल्दी पूरे होने लगे हैं। पहले कृषि विस्तार से लेकर रीति-रिवाजों, संस्कृतियों में मंथर गति से बहुत धीमा परिवर्तन हुआ करता था, पर अब ऐसी बात नहीं रही। विचार धाराएँ भी बड़ी तीव्र गति से व्यापक बनी हैं। साम्यवादी विचारधारा ने एक शताब्दी के भीतर ही संसार के दो तिहाई लोगों को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया, जबकि हजारों वर्ष पुरानी विचारधाराएँ कछुए की गति से चलती रहीं और यत्किंचित ही विस्तार पा सकीं। संस्कृतियों के संबंध में भी यही बात कही जा सकती है। अंग्रेजी सभ्यता अब विश्व अलभ्यता स्तर की मान्यता प्राप्त कर चुकी है। पिछड़े इलाकों तक में भी वही रहन-सहन वंश-विन्यास अपनाया जाने लगा है। यह सब समय की गति बदलने के प्रमाण हैं। इसे देखते हुए यह माना जा सकता है कि जो कार्य हजारों वर्षों में सम्पन्न हुआ करते थे, वे अब कुछ दशकों में विकसित परिवर्तित होकर रहेंगे।

पाँच सौ वर्ष पुराना कोई मनुष्य यदि कहीं जीवित हो और अपने समय के साथ आज की परिस्थितियों की समीक्षा करे, तो उसे लगेगा कि यहाँ सब कुछ बदल गया। वह किसी नयी जगह-किसी अन्य नगरी में आ पहुँचा। तथाकथित वर्णित ऋद्धि-सिद्धियाँ मनुष्य को करतलगत हो गई। इन्द्र देवता का विद्युत वज्र, आज घर-घर में प्रकाश डालता, पंखा झलता, कपड़े धोता, तथा सर्वत्र पानी की आपूर्ति करता देखा जा सकता है। वह लम्बे इलाकों को नल कूप में बैठ कर सींचता है। कर्ण पिशाच नाम की यक्षिणी, अपनी भूमिका टेलीफोन एवं रेडियो में बैठकर निभाती है। इसे चमत्कार नहीं तो और क्या कहा जाये?

द्रुतगामी वाहन, विशालकाय कारखाने, पनडुब्बी, वायुयान, राकेट, अणुबम आदि के बारे में आधुनिक जानकारियाँ पाकर पाँच सौ वर्ष पुराना मानव यही कहेगा कि दुनिया बदल गयी है। करेंसी नोट, बैंक, शेयर चक्र, इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में आई क्रान्ति आदि को देखकर यही कहा जा सकता है कि इस अवधि में मनुष्य ने असंभव को संभव कर दिखाया है।

यह गतिशीलता अगले दिनों घटने वाली नहीं, है वरन और भी अधिक तेजी पकड़ेगी। जो कार्य सहस्राब्दियों में सम्पन्न हुआ करते थे वे अब दशाब्दियों में पूरे हो दीख पड़ेंगे। यह हर क्षेत्र में होगा। विज्ञान की दिशा में भी और बौद्धिक क्षेत्र में भी। गतिविधियाँ भी बदलेगी और रीति रिवाज भी। नये तरीके खोजे ही नहीं, अपनाये भी जायेंगे। वह अपनाना भी ऐसी तेजी से होगा, मानो उसके बिना गति ही नहीं, मानो वह रीति शताब्दियों से कोई सुनिश्चित प्रक्रिया बनकर चली आ रही हो? इस महान परिवर्तन की सशक्त पृष्ठभूमि इन्हीं दिनों बन रही है, भले ही उसके बीज अदृश्य की जमीन में ही कुलबुला क्यों न रहे हों?

अब से बारह वर्ष बाद शताब्दी ही नहीं, सहस्त्रताब्दी भी बदलने वाली है। इतिहास साक्षी है कि सहस्राब्दियों के परिवर्तन के साथ अति महत्वपूर्ण परिवर्तन होते रहे है। काल चक्र के उस उपक्रम को सही सिद्ध करने के लिए अनेकों प्रमाण सामने आ खड़े होते हैं। प्रातः और सायं का संध्या काल ऐसी ही असाधारण हलचलों से भरा होता है। प्रभात होते ही जागरण और पुरुषार्थ का माहौल बन जाता है। सन्ध्या होते ही अन्धकार अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए घुड़दौड़ लगता चला आता है। प्रसव काल भी एक प्रकार की संध्या है। उसमें एक ओर जननी को .... पीड़ा सहनी पड़ती है, दूसरी ओर शिशु जन्म की प्रसन्नता से परिवार भर के चेहरों पर उत्सुकता भरी मुस्कान छाई होती ही। शीत के समापन और ग्रीष्म के आगमन के मध्यवर्ती समय अपने आप में असाधारण विशेषताएँ भरे होते हैं एवं ऋतु संधि काल कहलाते हैं। बसन्त का वैभव उन मध्यवर्ती दिनों में देखते ही बनता है।

पिछली सहस्राब्दियों के समय जो परिवर्तन हुए होंगे, उनकी तुलना में इस बार की हलचलों को हर दृष्टि से अद्भुत माना जाना चाहिए। नई सदी को प्रभात कालीन अरुणोदय की बेला कहा जा सकता है। विश्वास किया जाना चाहिए कि अशुभ का अन्त ओर शुभ का उदय होने जा रहा है। इक्कीसवीं सदी मनुष्य के दुष्परिणाम भोगने के उपरान्त, सही मार्ग पर चलने की प्रायश्चित बेला कही जा सकती है। उसमें आश्चर्यचकित करने वाले परिवर्तन होकर रहेंगे, इस विश्वास को जितनी दृढ़तापूर्वक अपनाया जाय उतना ही मानव मात्र के लिए हितकारी है।

पिछले दिनों उपलब्धियों के उत्साह भरे उन्माद में भूलों पर भूले होती चली आ रही है। उनका प्रतिफल भोगे बिना गति नहीं। फोड़ा पकने के दिनों में दर्द भी अधिक करता है, साथ ही फुट कर मवाद निकाल फेंकने की तैयारी में लगा रहता है। बीसवीं सदी के अन्त को यदि ऐसी ही उथल पुथल से-कड़वी -मीठी अनुभूतियों से भरा हुआ माना जाय तो कुछ अनुचित न होगा।

पिछले दिनों अनेकों भविष्यवाणियाँ -चेतावनियाँ सामने आती रही हैं। क्रिया की प्रतिक्रिया का पर्यवेक्षण करने वाले कहते हैं कि दुष्टता के परिणाम बिना प्रताड़ना दिए रहने वाले नहीं हैं। भविष्यवक्ताओं, अदृश्य-दर्शियों के द्वारा भी ऐसी ही संभावनाएँ बताई जाती रही हैं और उनका समय प्रायः बीसवीं सदी के अन्त वाला ही बैठता है। ईसाई धर्म में “सेवन टाइम्स” भविष्यवाणियों में मानवजाति पर विपत्तियाँ टूटने की भयावह चर्चा है। इस्लाम धर्म में “हिजरी” की चौदहवीं सदी को कयामत ढाने वाली बताया गया है। भविष्य पुराण में भी ऐसे ही उल्लेख हैं। व्यक्तिगत रूप में भी अनेकों मनीषी ऐसा ही कुछ कहत रहते हैं। उनकी संगति बीसवीं सदी के अंत काल के साथ बैठती हैं। प्रकृति प्रकोपों के साथ उतरने वाली ईश्वरीय दण्ड प्रक्रिया से भी किसी हद तक इसकी संगति बैठती है।

असुरता के सम्मुख जब जब प्रतिकार का खतरा उत्पन्न हुआ है, तब तब उसने भयंकर उत्पात किये हैं। भागती हुई शत्रु सेना पीछा करने वाले सैन्य दल के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न करने के लिए पुल तोड़ती, कुओं में जहर घोलती, सफल को जलाती, प्रजाजनों को लूटती चलती है। इन कुकृत्यों के पीछे वही दुरभिसंधि काम करती देखी जाती है कि मात्र अपना ही विनाश क्यों सहा जाय? प्रतिपक्षी के मार्ग को कठिन मनाने के लिए जो किया जा सकता है, क्यों न किया जाय? बीसवीं सदी का अन्त ऐसी ही कुछ दुर्घटनाओं विपत्तियों से भरा हो सकता है। फिर औचित्य को भी तो अपनी वरिष्ठता सिद्ध करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ की परीक्षा देनी पड़ती है, उत्तीर्ण होना पड़ता है।

अनीति के स्थान पर नीति की स्थापना के लिए कुछ संघर्ष तो होना ही है। इस उठा पटक को अप्रत्याशित नहीं मानना चाहिए। असाधारण से निबटने के लिए, असाधारण का आह्वान करने के लिए, असाधारण व्यक्तियों द्वारा असाधारण तैयारी करनी ही पड़ती है। उन्हें भगीरथ, हनुमान, अर्जुन, दयानन्द, विवेकानन्द जैसों का अनुकरण करते हुए, अपने लिए कष्टसाध्य भूमिका निबाहने के लिए तैयार होना पड़ता है। परिवर्तन की इस प्रभात बेला में यही दिव्य प्रेरणा है, जिसे अपनाने में ही हर दृष्टि से हर किसी का कल्याण है।

First 1 3 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
  • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
  • दारिद्रय और संकट (kahani)
  • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
  • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
  • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
  • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
  • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
  • Quotation
  • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
  • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
  • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
  • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
  • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
  • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
  • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
  • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
  • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
  • Quotation
  • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
  • कुमार जीव (kahani)
  • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
  • संस्कार (kahani)
  • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
  • Quotation
  • वह परमसत्ता एक ही है
  • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
  • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
  • सच्चा कर्मयोग (kahani)
  • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
  • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
  • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
  • आत्मबल सर्वोपरि
  • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
  • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
  • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
  • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
  • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
  • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj