• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
    • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
    • दारिद्रय और संकट (kahani)
    • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
    • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
    • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
    • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
    • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
    • Quotation
    • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
    • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
    • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
    • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
    • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
    • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
    • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
    • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
    • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
    • Quotation
    • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
    • कुमार जीव (kahani)
    • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
    • संस्कार (kahani)
    • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
    • Quotation
    • वह परमसत्ता एक ही है
    • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
    • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
    • सच्चा कर्मयोग (kahani)
    • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
    • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
    • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
    • आत्मबल सर्वोपरि
    • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
    • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
    • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
    • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
    • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
    • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
    • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
    • दारिद्रय और संकट (kahani)
    • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
    • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
    • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
    • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
    • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
    • Quotation
    • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
    • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
    • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
    • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
    • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
    • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
    • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
    • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
    • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
    • Quotation
    • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
    • कुमार जीव (kahani)
    • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
    • संस्कार (kahani)
    • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
    • Quotation
    • वह परमसत्ता एक ही है
    • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
    • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
    • सच्चा कर्मयोग (kahani)
    • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
    • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
    • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
    • आत्मबल सर्वोपरि
    • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
    • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
    • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
    • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
    • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
    • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
भगवत् आराधना के लिए जप और ध्यान का उपचार सर्वविदित, सर्वमान्य एवं सार्वभौम है। अन्य उपासनायें भी विभिन्न सम्प्रदायों में अपने- अपने ढंग से प्रचलित हैं। पर उसमें शब्द और भाव का नियोजन निश्चित रूप से होता है। इन उपचारों के बिना देवता के साथ चेतना को जोड़ सकना प्रायः बन नहीं पाता। उन थोड़े मनीषियों की बात अलग है जो पूजा उपचार के बिना भी अपने कर्मों में आदर्शों की भगवद्बुद्धि को सुस्पष्ट रख साधना का प्रयोजन अपनी विशेष शैली में उपलब्ध कर लेते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि आत्मिक प्रगति में उपासना के बिना भी काम चल सकता है। यह राजमार्ग है कोई पुल पर चलने की अपेक्षा नहीं तैरकर गन्तव्य तक जा पहुँचे तो उसे कीर्तिमान भले ही कहा जाय पर वह सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं है।

उपासना का पहला चरण दूसरे चरण जीवन साधना का आधार बनता है। सार्थकता उसी उपासना की है जो आत्म परिष्कार की प्रेरणा दे सके। संयम साधना के रूप में तपश्चर्या इसी हेतु की जाती है। इन्द्रिय-संयम अर्थ-संयम-समय संयम, विचार-संयम यह उपासना की सार्थकता के चार प्रतिफल हैं। आत्मशोधन के लिए इन्हें अपनाना ही पड़ता है। जीवन साधना इन्हीं के सहारे बन पड़ती है। उस उपासना को निष्फल ही मानना चाहिए जो जीवन के मौलिक स्वरूप में सभ्य आचरण एवं आत्मिक पक्ष को सुसंस्कारिता से सम्पन्न न करे। उस बीज की क्या महिमा जो उर्वर भूमि में भी अंकुर उत्पन्न न करे। उपासना बीज है और उसका अंकुर संयम। तपश्चर्या भी यही है। उपासना और साधना का खाद पानी पाकर मनुष्य क्षुद्र से महान बनता हैं छोटा अंकुर विशाल वृक्ष का रूप धारण करता है। शक्तियों से आत्मसत्ता का भण्डार भरता है।

इस शक्ति संचार के भण्डार का आखिर उपयोग क्या हो? इसके लिए अध्यात्म अभ्युदय का तीसरा पक्ष “आराधना” के नाम से जाना जाता रहा है। आराधना परमार्थ परायणता को कहते हैं। तृष्णा के क्षेत्र तो व्यक्तिगत स्वार्थपरता तक सीमित हैं, किन्तु परमार्थ का क्षेत्र उतना ही बड़ा है जितना कि ईश्वर का विश्व विस्तार। परमार्थ में जन्म जन्मान्तरों तक लगे रहा जा सकता है। ऋषि चेतना ने भी स्वर्ग, मुक्ति, वैभव आदि की उपलब्धियों को स्वीकार करने से इन्कार करते हुए यही कामना व्यक्त की है कि प्राणियों की सेवा में ही उसे सदा सर्वदा जुटे रहने का अवसर मिले। यही है वह विधा जिसके सहारे आत्म सन्तोष लोक-सम्मान और दैवी अनुग्रह के तीनों लाभ हाथों हाथ मिलते रहते हैं। तीनों लोकों का वैभव प्राप्त करने से भी अधिक इस आनन्द का रसास्वादन अधिक बढ़ा चढ़ा माना गया है। उपासना जीवन साधना के लिए अग्रसर करती है और सुसंस्कारों से साधा गया जीवन अपनी उपयोगिता आराधना में-लोकसेवा में निरत रहना अनुभव करता है। यही वह त्रिवेणी है जिसे तीर्थराज की संज्ञा दी गई है। ईश्वर आराधना का अर्थ है दिव्यता के साथ अपनी संवेदनाओं को घनीभूत कर लेना। जीवन के विचार क्षेत्र में भ्रष्ट चिन्तन और दुष्ट आचरण को बहिष्कृत कर देना। अपनी कौशल और साधना को पुण्य परमार्थ में उत्सर्ग करते रहना। यही है क्रमशः उपासना, साधना और आराधना के तीन वर्ग। इनसे आत्मा सत्ता के स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर तीनों ही कृतकृत्य होते हैं। आध्यात्म तत्वज्ञान और योग साधना के विधि विधान का यह परम प्रयोजन है। प्रचलित समस्त कर्मकाण्ड इन्हीं तीन प्रयोजनों के इर्द गिर्द परिभ्रमण करते हैं। उस कर्मकाण्ड की कोई उपयोगिता नहीं, जो जीवनक्रम को प्रभावित न करे, मात्र पूजा-उपचारों की लकीर तो पीटे, पर व्यक्तित्व के किसी क्षेत्र को प्रभावित न करें।

इस मान्यता को बाल बुद्धि ही कहा जा सकता है कि ईश्वर को छुटपुट उपहार देकर या शब्दों का वाक्जाल बनाकर खुशामद के सहारे प्रसन्न किया जा सकता है। उतने भर से मनोकामनाओं की खाई पाटने वाला वरदान प्राप्त किया जा सकता है हो सकता है कि यह सस्ती रीति-नीति बालकों को कुछ प्रलोभन देकर स्कूल पढ़ने जाने के लिए प्रोत्साहित करने जैसे प्रयास के रूप में मानली गयी हो। मन्दिरों में प्रसाद बाँटकर उस लालच से लोगों को पूजा के समय आने और सदुपदेशों से लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह न कुछ देकर बहुत कुछ पाने की कल्पना लाटरी खुलने का सपना दीखने जैसा है। सामान्य लाभों में सफलताओं को प्राप्त करने के लिए जब इतना समय, श्रम, कौशल और साधन लगाने की आवश्यकता पड़ती है तो फिर असामान्य मनोकामनायें तुर्त फुर्त पूरी कराने के लिए मात्र कुछ देर का पूजा पाठ, चमत्कार दिखा देना ऐसी बाल कल्पनायें वयस्कों और समझदारों को शोभा नहीं देती।

आत्मबल सबसे बड़ा बल है। उसके धनी हनुमान, अर्जुन, ईसा, बुद्ध, गाँधी, शंकराचार्य जैसे महान कार्य सम्पादित करते देखे गये है। जिन्हें बुद्धिमान पराक्रमी साधन सम्पन्न व्यक्ति भी नहीं कर पाते वे कार्य आत्मबल के सहारे सम्भव हो जाते हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को, समर्थ ने शिवा को अपने अनुदानों के सहारे कितना सुसम्पन्न बनाया था यह सर्वविदित है। ऐसी इसी संसार की महानतम विभूति को प्राप्त करने के लिए जादूगरों जैसा छू मन्तर करके कौतुक-कौतूहल जैसा कुछ पाया नहीं जा सकता। उसके लिए धीर-गंभीर प्रयत्न करने की आवश्यकता है- आत्मशोधन की आवश्यकता हैं। विषों को शोधकर चिकित्सक अमृतोपम औषधियां बनाते हैं। मनुष्य प्रत्यक्षतः कितना ही दुर्बल अभावग्रस्त क्यों न हो? आत्मपरिष्कार की प्रक्रिया अपनाकर ऐसी प्रतिभा अर्जित कर सकता है जिसके सहारे आत्मकल्याण और विश्व-कल्याण की दोनों आवश्यकतायें साथ-साथ सध सके।

उपासना साधना और आराधना यह तीन प्रयोग प्रकरण है जिनके सहारे ईश्वर प्रदत्त प्रसुप्त दिव्य क्षमताओं को जगाया और अपने समर्थ शक्तिवान बनाया जा सकता है। हर क्षेत्र में प्रगति के लिए प्रबल पुरुषार्थ करने पड़ते हैं। शरीर को बलवान पहलवान बनाने के लिए कितनों को कितने दिन कितनी तत्परता व कठोर व्यायाम करने पड़ते हैं यह किसी से छिपा नहीं। धनी बनने के लिए कृषि व्यवसाय कल शिल्प आदि का आश्रय लेने वाले कितने लम्बे समय तक कितनी तत्परता के साथ कितना कठोर श्रम करते है वह किसी से छिपा नहीं। उच्च शिक्षा प्राप्त करके उच्च अधिकारी बनने की आकाँक्षा रखने वाले प्रायः चौथाई जीवन जितना समय और इतना धन खर्च करते हैं जिसके ब्याज से ही जिन्दगी भर बैठे गुजारा होता रह सकता था।

फिर भी जिन्हें शिक्षा की वह परिणति विदित है जिसके सहारे आत्मगौरव के अतिरिक्त अगले जन्म के लिए विकसित मानस लेकर अगले जन्म तक से लाभ उठाते रहने का अवसर मिलता है, कितना अधिक महत्वपूर्ण है? महान उपलब्धियों के लिए उच्चस्तरीय प्रयत्न करने पड़ते हैं। आत्म परिष्कार ऐसा ही बढ़ा−चढ़ा-लाभ है, जिसके सहारे भौतिक सफलताओं से लेकर आत्मिक अभ्युदय की ऋद्धि−सिद्धियों का लाभ मिलता है। यह कितना बड़ा काम है, इसका मूल्यांकन करने में किसी को भी भूल नहीं करनी चाहिए।

आत्मिक प्रगति का अर्थ है-आत्मपरिष्कार, सत्प्रवृत्ति संवर्धन और पुण्य परमार्थ संचय कर सकने की प्रचण्ड क्षमता। इसके लिए उपासना, साधना, आराधना के अवलम्बनों को ध्यानपूर्वक अपनाया ही जाना चाहिए।

First 7 9 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना
  • द्रुतगामी परिवर्तनों से भरी प्रस्तुत संधिवेला
  • दारिद्रय और संकट (kahani)
  • परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
  • सेवा समर्पण का व्रत (kahani)
  • पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम
  • छोटे मिल जुल कर बड़ा काम कर सकते है (kahani)
  • आत्मिक प्रगति के त्रिविध आधार
  • Quotation
  • प्रकाश रश्मियों की विज्ञान सम्मत ध्यान प्रक्रिया
  • शाश्वत-सनातनः आँतरिक सौंदर्य
  • ऊँचा उठें- आगे बढ़ें!
  • सर्वसुलभ, सर्वोपयोगी ध्यान-धारणा
  • स्वप्न संकेतों से प्रेरणा लें
  • दृष्टिकोण का अन्तर मात्र (kahani)
  • प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
  • विचारों में निहित प्रचण्ड सामर्थ्य
  • समर्पण का आनन्द और उसकी अनुभूति
  • Quotation
  • विपन्नता के बीच एकान्त साधना
  • कुमार जीव (kahani)
  • जपयोग की साधना एवं उसका महात्म्य
  • संस्कार (kahani)
  • तर्क की कसौटी पर एक नास्तिकवादी दर्शन
  • Quotation
  • वह परमसत्ता एक ही है
  • परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)
  • आत्मिकी का स्वरूप और प्रयोजन
  • सच्चा कर्मयोग (kahani)
  • देवत्व का विकास एवं योग सिद्धि
  • रागों से होगी अब रोगों की चिकित्सा
  • गैरीबाल्डी की सादगी (kahani)
  • आत्मबल सर्वोपरि
  • क्रिया की प्रतिक्रिया का सुनिश्चित सिद्धान्त
  • ब्रह्मचर्य की सही परिभाषा
  • भावाभिव्यक्ति का अनुदान सभी को प्रदत्त
  • मानवता का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है!
  • सामूहिक धर्मानुष्ठानों की बारह वर्षीय श्रृंखला
  • समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj