
किसान उत्तर से संतुष्ट (Kahani)
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भगवान महावीर एक गाँव से गुजर रहें थे, तो एक जिज्ञासु प्रकृति के किसान ने प्रश्न किया-महाराज ! साधु और असाधु में क्या अन्तर है ? साधु कौन ? असाधु कौन ? क्या हमारे जैसे गृहस्थ भी साधु की संज्ञा पा सकते हैं?
भगवान महावीर ने जवाब दिया- जिसने स्वयं को साध लिया, वास्तविक साधु वही है। असाधु तो वह है, जो केश और वेष से साधु बनने का प्रपंच रचता है। यदि तुमने अपने आप को साध और सुधार लिया, तो निश्चय ही तुम गृहस्थ होते हुए भी साधु हो ।
किसान उत्तर से संतुष्ट था ।
प्रव्रज्या कर रहे तथागत रात्रि विश्राम के लिए एक गाँव में ठहरे। रात्रि सत्संग के समय भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा-भिक्षुओं ! संसार में चार प्रकार के व्यक्ति हैं। एक वे जो केवल अपना भला करने में लगे रहते हैं। दूसरे वे जो न अपना भला कर सकें न दूसरों का, तीसरे वे जो अपना भला करने से पूर्व दूसरों का हित सोचते हैं। चौथे वे जो अपने साथ-साथ और अन्यों का भी भला करने में लगे रहते हैं।
जो न अपना भला कर सका, न दूसरों का उस का जीवन तो निरर्थक उस खरपतवार की तरह है जो उपयोगी फसल की खुराक भी चट कर जाती है। और
फसल, किसान, पशु पक्षी किसी के मतलब की नहीं होती ।
आप लोग सदैव अपनी स्थिति पर विचार करते रहना और जगत के लिए अधिक से अधिक उपकारी एवं उपयोगी बनने की बात सोचना ।