
लोकोत्तरवासियों के आगमन से लाभ उठाया जाय
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जीवन के अस्तित्व एक मात्र पृथ्वी पर ही नहीं है,वरन् सहस्रों करोड़ों ग्रह-उपग्रह ब्रह्माण्ड में ऐसे हैं जिनसे हमसे भी अधिक उन्नत विकसित सभ्यता के लोग निवास करते हैं। जीव विकास की नयी खोजें भी अब इस निष्कर्ष पर पहुँचती जा रही हैं कि मानवी सत्ता किसी अन्य लोक से आयी हैं जहाँ उसका विकास और भी ऊँचे स्तर का हो चुका होगा । अन्तर्ग्रही शक्तियों का पृथ्वी के साथ संपर्क और आदान-प्रदान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व-ब्रह्माण्ड की उपलब्ध जानकारी में पृथ्वी को सबसे अधिक सुन्दर समुन्नत एवं सुख-सुविधाओं से भरी-पूरी माना जाता है। यह स्थिति पृथ्वी की अपनी विशेषताओं के आधार पर विनिर्मित नहीं हुई है, वरन् सौर मण्डल के ग्रह-उपग्रहों ब्रह्माण्ड स्थित अन्यान्य तारकों के संतुलित अनुदानों से उसे यह सौभाग्य मिला है। इसलिए अन्य लोक वासी अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाते और भू लोक की खोज खबर लेने और तद्नुरूप अधिक सघन संपर्क बनाने की योजना में निरत देखे जाते हैं।
ब्रिटेन के प्रख्यात अन्तरिक्ष विज्ञानी एडमएड हैली का कहना है कि अपनी आकाश गंगा में अनेकों ग्रह ऐसे हैं जो अपने संकेतों के स्थान पर उड़न तश्तरियों के माध्यम से अनवरत पृथ्वी पर भेजते रहते हैं। ब्रह्माण्डीय किरणों का पर्यवेक्षण करने के उपरान्त ही उनने यह निष्कर्ष निकाला है कि निवास योग्य ग्रहों में से ढाई अरब ग्रहों में जीवन की संभावनाएँ सुनिश्चित हैं प्रकाश की गति से चलने वाले यान उनका पता नहीं लगा सकते। सन् 1716 में हैली ने एक उड़न तश्तरी को दो घंटे तक आकाश का चक्कर काटते हुए देखा था और उसी के प्रकाश में उन्होंने अपनी पुस्तक को पढ़ा और अनुभवजन्य अनुभूतियों को लिखा भी ।
मैक्सिको के विश्व प्रसिद्ध खगोलज्ञ जोस बोनीला अगस्त 1883 जेकेटिकाज वैद्यशाला में सौर्य धब्बों के कुछ चित्र खींच रहे थे तो उसी समय एक अलौकिक दृश्य उनके नेत्रों के सामने से गुजरा । चमकीली गेंद के आकार का यह वाहन पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ता जा रहा था । बोनीला ने उस यान का चित्र लेने में भी सफलता पाई उनके कथनानुसार अपनी पृथ्वी से परे भी कोई लोक है जहाँ के बुद्धिमान प्राणी भूलोक की खोज खबर के लिए बड़े ही उत्सुक रहते हैं वायुयानों के माध्यम से आवागमन का उपक्रम बैठाते रहते हैं। 11 अक्टूबर 1992 को क्रिस्टोफर कोलम्बस ने साँता मोरिया के डेक से एक चमकीले यान को मंडराते देखा था इसी तरह पिछले सन् 1987 में शंघाई शहर के वेधशाला के खगोलज्ञों ने भी लाल रंग की उड़न तश्तरी को आकाश में घूमते हुए स्पष्ट देखा है। वर्ष 1940 से 1950 तक अवधि में अमेरिका के सैकड़ों व्यक्तियों द्वारा इस तरह के आलौकिक यानों को देखा जा चुका है। वर्तमान में वैज्ञानिकों ने टेक्यान नामक कणों की खोज की है। जो प्रकाश की गति में भी तेज चल सकते हैं उनका कथन है कि विज्ञान जगत की खोजों का विकास क्रम यदि इस गति से चलता रहा तो संभवतः अन्यान्य ग्रहों के बुद्धिमान प्राणियों के संकेतों को आसानी से पकड़ा समझा जा सकता है। रूस की योरोवस्लेवल यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने वोल्गा नदी के किनारे सिर के ठीक आधा मीटर ऊपर प्रकाशयुक्त विद्युत गेंदों को उड़ते हुए देखा यह सेब के आकार की चमकीली गेंद गैस-स्टोव की तरह चिनगारी फेंकती जा रही थी । उनमें से एक ने जब उस अलौकिक दृश्य से अपने हाथ की उंगली का स्पर्श किया तो तुरंत ही बिजली के करंट जैसा झटका और अग्नि स्पर्श जैसा आभास होने लगा। वैज्ञानिकों ने इन कौतूहल भरे आश्चर्यजनक दृश्यों का पता लगाने के लिए कंप्यूटर प्रणाली पर आधारित एक गणितीय मॉडल तैयार किया है जिसमें उनकी सम्पूर्ण गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है। इसे एक प्रकार से अंतरिक्ष का अति सूक्ष्मतम तत्व यानी लम्बी अवधि तक जीवित रहने वाला प्लाज्मा ही कहा जा सकता है। स्थूल शरीर के तत्वों से इसका मेल नहीं खाता । उनका कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि किन्हीं अन्य ग्रह- गोलकों से हमसे भी अधिक विकसित सभ्यता के लोग भू पर अवतरित होते और हमारे क्रियाकलापों का विहंगावलोकन करके वापस चले जाते हैं । उनके यान के अन्दर का प्रकाश तो नहीं आता, किन्तु किरणें अवश्य आती हैं। यदि भूलोक के निवासी अपनी चुम्बकीय क्षमता एवं मनोबल को विकसित कर सकें तो अंतर्ग्रही चुम्बकीय तरंगों के माध्यम से उन्हीं जैसा दिव्य जीवन का आनंद उठा सकते हैं।
फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने बीसवीं सदी के आरंभ से ही एक लाख फ्रेंच का पुरस्कार किसी भी वैज्ञानिक को इस शर्त पर देने की घोषणा की है कि वह अंतर्ग्रही सभ्यता यानी पृथ्वी के अतिरिक्त अन्यान्य ग्रहों पर जीवन का पता लगा सके उत्साहवर्धक वैज्ञानिकों प्रयासों के फलस्वरूप मंगल ग्रह पर प्राणि जगत के अस्तित्व के होने के कुछ संकेत मिले हैं क्योंकि वहाँ की जलवायु में ऑक्सीजन और कार्बन जैसे जीवनदायी घटकों को खोजा जा चुका है। इन्फ्रारेड एस्ट्रानॉमी के अंतर्गत रेडियो तरंगों की नव विकसित तकनीक द्वारा अन्तरिक्षीय खोजों का सिलसिला अब तेजी से चल पड़ा हैं। अंतरिक्ष तकनीकी एवं रेडियो खगोल विज्ञान के अल्ट्रासोनिक अतिसंवेदनशील यंत्रों के माध्यम से अब अंतरिक्षीय किरणें तथा तत्वों की पहचान आसानी से की जा सकती है। एक वाट के दस अरबवें भाग तक के संकेतों को दिखा सकने में यह पूरी तरह सक्षम है। इन्हीं संकेतों के आधार पर खगोल-वेत्ताओं ने अनुमान लगाया है कि आज से 900 अरब वर्ष पूर्व भी इतनी बुद्धिमान सभ्यता ब्रह्माण्ड में अवश्य रही होगी ।
भौतिक विज्ञान के ज्ञाता भले ही इन अद्भुत एवं आश्चर्यजनक दृश्यों को ताप विपर्यय की मृगमरीचिका कहकर झुठलाते रहें पर तथ्यों की वास्तविकता को तो स्वीकार करना ही होगा । यजुर्वेद 1852 में यह लेख है कि लोक-लोकान्तरों में भौतिक साधन तथा विमानों द्वारा सरलतापूर्वक गमनागम का क्रम चल सकता है। महाभारत के द्रोणपर्व में बताया गया है कि राजा कर्ण ने रण कौशल को देखने के लिए देवता स्वर्गलोक से भूलोक पर विमानों से अवतरित हुए थे। गाड्स एण्ड स्पेसमैन इन द ऐंसीएन्ट ईस्ट नामक पुस्तक में डब्लू रेमोन्ड ड्रराके ने भारतीय संस्कृत भाषा के ग्रन्थों का सार निष्कर्ष प्रस्तुत किया है। विमान उत्पादन की तकनीकी का उल्लेख करते हुए उनने बताया कि ऋषि भारद्वाज 16 प्रकार की धातुओं का प्रयोग करके भूलोक पर ही इनके निर्माण कार्य को पूरा कर सकने में पूर्णतः सफल रहे थे । मैसूर की अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत अनुसंधान अकादमी ने ए मैन्यूस्क्रिप्ट फ्राम द प्रीहिस्टोरिक पास्ट नामक विशाल ग्रन्थ का विमोचन किया है जिसमें लोक-परलोक के आवागमन के साधनों का विस्तृत विवरण है।
दरवाजा कहकर पुकारते हैं। यह किसी ग्रह नक्षत्र से प्रकट होने वाला देवताओं का यान ही हो सकता है।
पौराणिक गाथाओं में धरती और स्वर्ग के बीच आवागमन की अनेकों चर्चायें सम्मिलित हैं। उसके अनुसार समुन्नत लोकों की श्रेष्ठ आत्मायें पृथ्वी की अपनी दिव्य वाहनों से इसलिए यात्रा करती हैं कि वे धरती-वासियों से घनिष्ठता बढ़ा सके और अपने जैसा श्रेष्ठ समुन्नत बना सकें । अनादिकाल में मनुष्य रूप में जब जीवनतत्व यहाँ बिखेरा गया तब भी अंतरिक्षीय शक्तियों ने ही मानवी उन्नति में सहायता की थी। अब यदि लोकोत्तरवासी यहाँ आते और जब तब अपनी उपस्थिति का परिचय देते हैं तो यह आशा क्यों न की जाय कि इस बार वे देवमानवों के सृजन और देवलोक जैसी परिस्थितियाँ बनाने की कोई योजना लेकर आते होंगे। अपना आत्म बल बढ़ाकर हम उनके अनुदानों का लाभ आसानी से उठा सकते हैं।