
ऐसे इतिहास को बदलना होगा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
भारत में गिरोह बंद डाकुओं का जिन दिनों दौरा-दौरा था, उन दिनों ढेरों छोटे-छोटे सामंती रजवाड़े बन गये थे। सभी ने राजा की उपाधि धारण कर ली थी। इनकी लूट-खसोट से जनता संत्रस्त थी। सामने आकर तो उस अनीति का ब्यौरा कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी, हर पीठ पीछे मन-ही-मन सभी कोसते थे इतने पर भी प्रशंसा सुनने की ललक इन सबको रहती थी उसकी पूर्ति के लिए एक चारण समुदाय ही बन गया था। वे प्रशंसा में कविता बनाते और जोशीली मधुर वाणी में उनके दरबार में उपस्थित होकर सुनाते थे। इसके बदले में उन्हें इनाम भी मिलते। इस इनाम के सहारे ही वे अपना पेट पालत थे।
यह चारण संप्रदाय इतिहासकारों के रूप में भी जन्मा है। पुरस्कार के लालच में उन्होंने आततायी सामंतों की बड़ी-बड़ी प्रशंसाएँ लिखी हैं। किसी-किसी को तो “महान” की पदवी तक दी है। महान शब्द बड़ा ऊँचा है। वह चरित्रवानों, लोकसेवियों, एवं परमार्थ हेतु त्याग-बलिदान करने वालों को ही मिलना चाहिए, पर हुआ कुछ विचित्र है। सिकन्दर जैसे आततायी और क्षुद्र व्यक्ति को इतिहासकारों ने “महान” शब्द से अलंकृत किया है। इतिहासकार प्लूटार्क, डियोडोरस, कर्टियस, एरियन ने सिकन्दर की करतूत का उल्लेख करते हुए भी उसे महान कहा है।
यूनान का सेनापति फिलिप आक्रान्ताओं में प्रसिद्ध हुआ है। उसने अनेकों आक्रमण किये और छोटे-छोटे राज्यों को मटियामेट करके अपने राज्य में मिला लिया। सिकन्दर उसी का बेटा था। पिता ने उसे अपने जैसा पराक्रमी बनाने के अतिरिक्त विद्वान बनाने की भी चेष्टा की। वह तीन वर्ष तक अरस्तू की पाठशाला में पढ़ा भी। युवा होते ही पिता के साथ कई लड़ाइयों में शामिल हुआ और विजयी भी हुआ। इससे उसका अहंकार आसमान छूने लगा।
बाप बेटों में अनबन ही नहीं हुई, मार-काट की भी नौबत आ गई। सिकन्दर की माँ के रहते फिलिप ने दूसरा विवाह कर लिया। उससे एक लड़का भी हुआ। फिलिप उसी को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। सिकन्दर इसे सहन न कर सका और कई सामंतों का गुट बना कर बाप को मरवा डाला । सिकन्दर की माँ ने अपने हाथों दूसरी पत्नी की हत्या कर दी। अब सिकन्दर के हाथ में सत्ता और सेना आ गई। वह अधिकाधिक क्षेत्र का अधिपति होने के लिए व्याकुल होने लगा। एक के बाद दूसरे आक्रमण की योजना चारों ओर छाने लगी।
सबसे बड़ा आक्रमण उसने चेल कबीले पर किया, जिसकी लूटमार से असीम धन मिला और छः हजार प्रजाजनों को गुलाम के रूप में पकड़ कर हाट-बाजारों में बेच दिया। आतंक की चरम सीमा थी। अनेकों छोटे राज्यों पर आक्रमण का तानाबाना बनाने लगा। ऊँचे वेतन और बड़े इनाम देने के प्रलोभन में यूनान भर के योद्धा उसकी सेना में भर्ती होने लगे। जो भी देश जीता, उसी प्रजा को पूरी तरह लूट लिया। हारे हुए देश के युवक-युवतियों को दास-दासियों के रूप में बंदी बनाया और साथियों को सस्ते मोल बेच कर अपना खजाना भरा और जो साथ में थे, उन्हें अनुग्रहीत किया, पराजित देश में कत्लेआम कराया और लाखों घर बरबाद किये।
सिकन्दर ने भारत पर भी हमला किया। उसके पास बहुत अधिक सेना थी। उसने सैनिकों को लूट का बहुमूल्य माल मिलने का सब्जबाग दिखाया। सबसे बड़ा मुकाबला राजा पुरु के साथ हुआ। मौसम, वर्षा का और नदियाँ उफन पड़ने के कारण उसे मुँह की खानी पड़ी। कई मोर्चों पर उसे गहरे घाव लगे और सेना के पाँव उखड़ गये। सिकन्दर ने जो प्रदेश जीते थे, उन सब में बगावत हुई और एक-एक करके सभी हाथ से निकल गये।
यह है सिकन्दर की करतूत फिर भी चारण इतिहासकारों ने न जाने उसमें किस महानता को देखा और “महान” की पदवी से अलंकृत किया। हमें ऐसे इतिहास को भी बदल डालना चाहिए।