
क्या मनुष्य ‘ब्रह्मा’ बन सकता है ?
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इन दिनों मनुष्य और ईश्वर में एक प्रकार से होड़ लगी हुई है कि कौन कितना अद्भुत प्राणी विकसित कर सकता है। इन दृष्टि से देखा जाय तो मनुष्य ईश्वर से बीस हो साबित होगा, उन्नीस नहीं, क्योंकि उसकी रचना में अब तक सब अजूबे ही अजूबे पैदा हुए हैं।
अभी कुछ वर्ष पूर्व मैक्सिको विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी विभाग ने एक ऐसी गाय विकसित की है, जिसे आकार की दृष्टि से कुत्ता कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। यह गाय मात्र 65 से0मी0 लम्बी है। इसको ‘जेबू’ प्रजाति की गाय से विकसित किया गया है। इसका आहार अत्यंत स्वल्प है। एक जेबू प्रतिदिन जितना चारा खाती है, उतने से प्रायः एक दर्जन मिनी जेबुओं का निर्वाह हो सकता है। अब तक इस प्रकार की 40 गायें पैदा की जा चुकी है। इनके करीब तीन दर्जन बछड़े हैं। देखने में ये बछड़े कम, बिल्ली के बच्चे ज्यादा लगते हैं। इनके अत्याधिक छोटे आकार के कारण चारागाह में बराबर खोने का भय बना रहता है। आज कल रंग-बिरंगी गायें मैक्सिको विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी विभाग की शोभा बढ़ा रही है।
ऐसी ही वहाँ एक अन्य प्रयोग के दौरान गाय और भैंसें के संयोग से एक विचित्र जंतु पैदा किया गया। इसके कुछ गुण गाय से मिलते हैं, तो कुछ भैंसे से। खुराक में यदि यह गाय जैसा है, तो स्थूलता में भैंसे जैसा। रंग इसने गाय का पाया है, तो सींग भैंसे की। आवाज भैंसे से मिलती-जुलती है जबकि शक्ल गाय की तरह है। कुछ मिलाकर यह बड़ा अजीबोगरीब दीखता है।
इसी क्रम में बकरी और भेड़ की मध्यवर्ती संरचना भी वैज्ञानिकों ने विनिर्मित की। उसका नाम “शीगाँट” रखा गया। यह विलक्षण बकरी ऊन उत्पन्न करती और दूध भी देती है। ऐसे ही मादा शेर व नर चीते को मिलाकर ‘टिंग लायन’ नामक नया जीव विकसित किया गया। मादा तेंदुए एवं नर बाघ से जिस प्रजाति का जन्म हुआ, उसे ‘पैन्थोपार्ड’ कहकर पुकारते हैं, जबकि गधे और जेब्रा की वर्ण संकर संतान को ‘जैब्रायड’ नाम दिया गया है।
इन बड़े जंतुओं पर सफल प्रयोग के बाद अब वैज्ञानिक अपेक्षाकृत छोटे जीवों पर परीक्षण करने के मनसूबे बना रहे हैं। फिलाडेल्फिया यूनिवर्सिटी के जंतु शास्त्री डॉ0 बीट्रिस मिंट्स ने चूहों पर ऐसे कुछ प्रयोग किये और सफल हुए है। उन्होंने उनकी कोशिका में विशेष विधि द्वारा वैसे मानव ‘जीन’ प्रविष्ट करा दिये, जो शरीर विकास के लिए जिम्मेदार थे। उन ‘जीनो’ की उपस्थिति से चूहे की काया बृहदाकार हो गयी । इन चूहों का डॉ. मिंट्स ने ‘सुपर माउस’ नाम रखा। अब ऐसे ही प्रयोग बिल्ली, कुत्ते एवं दूसरे पालतू जीवों पर करने का विचार वैज्ञानिक बना रहे हैं और सुपर कैट, सुपर डाग स्तर की संरचनाएँ गढ़ने की सोच रहे हैं।
इसी शृंखला में शायद उनके मन में ‘सुपर मैन’ बनाने की बात भी कोंधे और गोरिल्ला अथवा चिंपांजी प्रभृति किसी जंतु का ‘जीन’ मनुष्य में प्रत्यारोपित करके उसे भीमकाय बना डालें। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मत है कि यदि ऐसा हुआ, तो निश्चय ही मानव की संकर प्रजाति शक्ति और आकार में अद्वितीय साबित होगी। संभव हे इस दृष्टि से नव विकसित किस्म ‘सुपरमैन’ कहलाने का अधिकारी सिद्ध हो, पर अध्यात्म अवधारणा में जिस ‘अतिमानव’ की कल्पना की गई है, वह सर्वथा इससे भिन्न प्रकार का है। यह अतिमान परिष्कृत चेतना की एक सुसभ्य, श्रेष्ठ व सुसंस्कृत प्रतिमूर्ति है, भले ही उसका वाह्य आकार लंबा, छोटा कैसा भी क्यों न हो, किन्तु वैज्ञानिकों का सुपर मैन आकार प्रधान है। वह विशालकाय होने मात्र से सुपरमैन बन जाता है, भले ही उसकी प्रकृति नीत्शे के सुपरमैन जैसी ही क्यों न हो।
अब सवाल यह है कि मानव जीन प्रवेश करा कर किसी को सुपरजीव बना दिया जाय, अथवा अन्य किसी जंतु का जीन मनुष्य में प्रत्यारोपित करके उसे सुपरमैन बना डाला जाय या शेर व बाघ जैसे दो भिन्न जंतुओं के अस्वाभाविक संयोग से “लाइगर” जैसा प्राणी विनिर्मित कर दिया जाय, पर मूल प्रश्न फिर भी ज्यों-का-त्यों बना रहता है कि आखिर इनकी उपयोगिता क्या है ? यदि हाँ,” तो इसे रोका जाना चाहिए और कुछ ऐसा किया जाना चाहिए, जो ईश्वरीय विधान में अनावश्यक हस्तक्षेप न होकर उसमें सहायक हो। ऐसा कार्य यही हो सकता है कि हम सृष्टि को अव्यवस्थित करने की तुलना में अधिकाधिक सुव्यवस्थित और समुन्नत बनाते चलें। सुपर जीवों जैसे नये सृजन का दायित्व पूर्णतः परमात्मा के जिम्मे छोड़ दें, अन्यथा यह परंपरा यदि चल पड़ी, तो फिर वैधानिकता का पूर्ण अंत हो जायेगा और नवीन ‘ब्रह्मा’ ऐसी-ऐसी कौतुकपूर्ण सृष्टियाँ करने लगेगा, जिनकी न तो कोई उपयोगिता सिद्ध हो सकेगी, न आवश्यकता ही। ऐसे में मनुष्य भले ही अभिनव रचनाकार की उपाधि पा ले, पर परमेश्वर से उसकी तुलना में सेर और छटांक जितना भारी अंतर बना ही रहेगा। अतः उत्तम यही है कि हम स्वयं मनुष्य बने रहें और निर्माता की भूमिका भगवान को संपन्न करने दें। सुव्यवस्था की गारंटी तभी दी जा सकेगी।