• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
    • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
    • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
    • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
    • डाकू बना महात्मा
    • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
    • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
    • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
    • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
    • Quotation
    • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
    • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
    • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
    • हजरत लुकमान (Kahani)
    • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
    • Quotation
    • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
    • धूर्त कौवा (Kahani)
    • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
    • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
    • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
    • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
    • Quotation
    • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
    • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
    • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
    • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
    • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
    • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
    • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
    • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
    • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
    • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
    • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
    • Quotation
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
    • तरने चला सकल संसार
    • तरने चला सकल संसार (Kavita)
    • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
    • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
    • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
    • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
    • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
    • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
    • डाकू बना महात्मा
    • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
    • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
    • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
    • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
    • Quotation
    • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
    • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
    • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
    • हजरत लुकमान (Kahani)
    • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
    • Quotation
    • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
    • धूर्त कौवा (Kahani)
    • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
    • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
    • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
    • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
    • Quotation
    • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
    • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
    • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
    • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
    • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
    • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
    • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
    • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
    • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
    • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
    • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
    • Quotation
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
    • तरने चला सकल संसार
    • तरने चला सकल संसार (Kavita)
    • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
    • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
    • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1994 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 27 29 Last
आदिकाल से ही देवभूमि भारत विशेषकर देवात्मा हिमालय ऋषि, मुनियों, योगियों एवं अवतारी महापुरुषों की तपस्थली रहा है। भगीरथ से लेकर पाण्डवों तक की कठिन तपस्यायें तथा उनके स्वर्गारोहण की कहानी यहीं संपन्न हुई थी। वेद व्यास से लेकर आचार्य शंकर ने इसी हिमालय की गोद में बैठकर ज्ञान-साधना की थी। गुरुनानक, कबीर, समर्थ गुरु रामदास, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ आदि महामानवों ने सनातन धर्म को विश्वव्यापी बनाने की विचारणा तपोभूमि हिमालय की गोद में बैठकर ही बनाई थी। अशोक, चन्द्रगुप्त, कालीदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, दयानंद, राजाराम-मोहनराय, , देशबंधु चितरंजन दास आदि महापुरुषों ने भी इस तुषार मंडित हिमक्षेत्र में यहीं न कहीं अपना आसन जमाया था। राम, कृष्ण बुद्ध, महावीर, ईसा जैसे अवतारी महापुरुषों ने देवात्मा हिमालय में ही कभी तपस्या की थी और समस्त संसार का मार्गदर्शन किया था।

हजरत ईसा के बारे में भी ऐसे अनेकों प्रमाण विद्यमान हैं कि उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग ‘धरती का स्वर्ग’ कहे जाने वाले हिमालय की घाटी-कश्मीर में व्यतीत किया और तपस्यारत रहते हुए यहीं से स्वर्गारोहण किया।

भविष्य पुराण के प्रति सर्ग पर्व-द्वितीय-अध्याय के श्लोक 17 से 32 तक ऐसा ही उल्लेख है जिसमें ईसा मसीह के लंबे समय तक भारत के उत्तराखंड में निवास करने और तपस्यारत रहने का वर्णन है। उस समय उत्तरी भारत में शालिवाहन का शासन था। एक दिन वे हिमालय गये जहाँ लद्दाख की ऊँची पहाड़ियों पर उन्होंने एक गौरवर्ण दिव्य पुरुष को ध्यानमग्न स्थिति में तपस्या करते हुये देखा। समीप जाकर उन्होंने उनसे पूछा- आपका नाम क्या है और आप कहाँ से आये हैं? उस दिव्य पुरुष ने उत्तर दिया-”मेरा नाम ईसा मसीह है। कुँवारी माँ के गर्भ से उत्पन्न हुआ हूँ। आस्थाहीनों में आस्था तथा आशा का संचार करने वाला तथा निरंतर सत्य की खोज में रत ईश्वर का पुत्र हूँ। आस्थाहीनों में आस्था तथा आशा का संचार करने वाला तथा निरंतर सत्य की खोज में रत ईश्वर का पुत्र हूँ और विदेश से आया हूँ जहाँ बुराइयों का अंत नहीं है। उन आस्थाहीनों के बीच मैं मसीहा के रूप प्रकट हुआ हूँ। जैसे कि “म्लेच्छदेषे मसीहोऽहं समागत ॥ 25॥........ईसा मसीह इति च ममनाम प्रतिश्ठितम्॥ 31 ॥ इस श्लोक से स्पष्ट है। इस तरह ईसा ने अपने जीवन के उद्देश्य, आविर्भाव एवं इजराइल से भारत आगमन का विवरण दिया।

इस संदर्भ में आधुनिक खोजकर्ताओं ने जो तथ्यपूर्ण प्रमाणिक विवरण खोज निकाले हैं उन से भी उक्त पौराणिक कथन की पुष्टि होती है। म्यूनिख-जर्मनी के सुविख्यात धर्मशास्त्री रोबर्ट क्लाइट ने अपना संपूर्ण जीवन ईसाई धर्म के अनुसंधान में व्यतीत किया है। उनके अनुसार बाइबिल के न्यू टेस्टामेण्ट में ईसा के जीवन का जो वृत्ताँत मिलता है उसमें ईसा के 13 से 30 वर्ष की अवस्था का वर्णन रिक्त है। 30 वर्ष की उम्र में जब उन्होंने संत जॉन द्वारा बपतिस्मा ग्रहण किया तभी से उल्लेख मिलता है। लूका 2/52 में उनकी बौद्धिक क्षमता एवं महानता का यहीं से वर्णन मिलता है। इसी अध्याय में ईसा और उनकी माता मरियम का एक संवाद आता है ईसा कहीं गायब हो गये थे और तीस वर्ष तक उनका कुछ पता न लगा। क्लाइट के अनुसार 13 वर्ष की अवस्था में वे भारत आ गये थे तथा ब्राह्मण और बौद्धों से धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया। ईसा पद वेद एवं उपनिषद् की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। यही कारण है कि जब वे भारत में संव्याप्त वर्ण व्यवस्था पर प्रहार करने लगे तो ब्राह्मणों-पुरोहितों से उनका मतभेद हो गया। वे वहाँ से चल कर हिमालय के उत्तरी भाग नेपाल आ गये और वहीं उन्होंने बौद्ध-दर्शन का अध्ययन किया और तंत्र साधनायें सीखीं 30 वर्ष तक वह यहीं रहे, तत्पश्चात् वापस इजराइल लौट गये और वहाँ अपनी शिक्षाओं का प्रचार शुरू किया। जिसे बाद में उनके शिष्यों-मैथ्यू, मार्क, ल्यूक और जॉन ने लिपिबद्ध किया जो ‘न्यू टेस्टामेण्ट’ में वर्णित है।

दसवीं शताब्दी के प्रख्यात इतिहासवेत्ता शैक-अल-सईद-अस सादिक ने अपनी ऐतिहासिक कृति “इकमाल-उद्दीन” में लिखा है कि ईसामसीह ने दो बार भारत की यात्रा की। पहली बार वे 12-13 वर्ष की उम्र में भारत आये थे और लगी 18 वर्ष रहे। दूसरी बार सूली पर चढ़ाये जाने और तत्पश्चात् पुनर्जीवित होने के बाद वे युजआशफ के नाम से लंबे समय तक कश्मीर में रहे थे और वहीं पर शरीर त्यागा था। उनकी यह पुस्तक दुबारा ईरान से प्रकाशित हुई थी। विश्वविख्यात मनीषी मैसमूलर ने भी “इकमाल-उद्-दीन” नामक इस पुस्तक का जर्मन भाषा में अनुवाद किया और उसे प्रकाशित कराया था।

कश्मीर के सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता प्रोफेसर फिदाहुसैन ने इस संबंध में गहन खोजबीन की है। अपनी पुस्तक “फिफ्थ गाँस्पल” में उन्होंने लिखा है कि बचपन में जब प्रथम बार ईसा भारत आये थे तब यहाँ के हिन्दू तथा बौद्धधर्म का गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया था और उनसे संबंधित तीर्थ स्थलों की यात्रायें की थीं, साथ ही लद्दाख एवं कश्मीर की घाटी में कठोर साधनायें की थीं। इस समय उत्तरी भारत में राजा शालिवाहन का राज्य था। फिलिस्तीन (इजराइल) की दुखद घटनाओं के कारण दुबारा जब वे भारत आये तब यहीं कश्मीर में बस गये और मृत्युपर्यंत यहीं रहे। अपनी उक्त कृति में हुसैन ने ईसा के कश्मीर में बस गये और मृत्युपर्यंत यहीं रहे। अपनी उक्त कृति में हुसैन ने ईसा के कश्मीर आने, नाम बदल कर मृत्युपर्यंत ठहरने तथा उनके मकबरे आदि के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा है। इसी तरह सुप्रसिद्ध पादरी एलिजाबेथ कलार ने अपने ग्रंथ में लिखा है कि ईसा भारत आये थे और तिब्बत में रहकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और तंत्र साधनायें सीखीं। एक अन्य पाश्चात्य विद्वान ब्रायन एलबर्न ने अनेकों प्रमाण प्रस्तुत करते हुए बताया है कि ईसा ने कश्मीर में रहकर आयुर्वेद का उदाहरण देते हुए उनने लिखा है कि उस पुस्तक में ईसा के भारत आने, एवं हिमालय में तप साधना करने का स्पष्ट उल्लेख है।

“द अननोन लाईफ आफ दी जीसस क्राइस्ट” नामक अपनी अनुसंधानपूर्ण कृति में रूस के ख्याति प्राप्त इतिहासवेत्ता निकोलाय अलेक्साँद्रोविच नोताविच ने ईसा के भारत-आगमन, यहाँ के विभिन्न स्थानों के भ्रमण तथा हिमालय में तप एवं ज्ञान संबंधी ऐतिहासिक तथ्यों की प्रमाणिक जानकारी दी है। उन्होंने लगातार चालीस वर्षों तक खोज करके उन प्रमाणों को संकलित किया है जो ईसा-मसीह के अज्ञातवास के दिनों का विवरण प्रस्तुत करते हैं। सन् 1887 में अपने भारत यात्रा के समय उन्होंने लद्दाख एवं तिब्बत की राजधानी ल्हासा की यात्रा की। ल्हासा के सबसे बड़े बौद्ध मठ-’हेमिस’ में उन्हें ताड़ पत्र पर पाली भाषा में लिपिबद्ध प्राचीन दुर्लभ ग्रंथ पढ़ने को मिले। दुभाषियों की सहायता से उन्होंने उन पुस्तकों का अध्ययन किया और पाया कि वह ईसा के जीवन से संबंधित हैं। उनमें उल्लेख है कि सुदूर देश इजराइल में ईसा नाम एक दिव्य बच्चे का जन्म हुआ। 13-14 वर्ष की उम्र में वह कुछ व्यापारियों के साथ भारत के सिंध प्राँत में पहुँचा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करता रहा। इसके बाद उसने पाँच नदियों के प्राँत-पंजाब की यात्रा की और कुछ दिन वहाँ जैन संतों के साथ व्यतीत किया। तदुपराँत वह जगन्नाथपुरी पहुँचे, जहाँ पुरोहितों ने उनका भव्य स्वागत किया। वहीं रहकर ईसा ने वेद-उपनिषद् और मनुस्मृति का अध्ययन किया और अपनी भाषा में उनका अनुवाद किया और वहीं पिछड़ी जातियों एवं शूद्रों का प्रशिक्षण करने लगे। इस पर उन्हें उन पुरोहितों का कोप भाजन बनना पड़ा जो यह समझते थे कि उनकी स्थिति और शक्ति का अतिक्रमण किया जा रहा है। 6 वर्ष जगन्नाथपुरी में व्यतीत करने के बाद वे राजगीरी, बनारस तथा अन्य कई पवित्र तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए हिमालय चले गये। नेपाल में वह 6 वर्ष तक रहे अंत में कई देशों की यात्रा करते हुए जगह-जगह उपदेश देते हुए पश्चिम की ओर चले गये और अंततः एशिया होते हुए फिलिस्तीन-इजराइल पहुँच गये।

सन् 1922 में रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अभेदानंद भी तिब्बत के उस ‘हेमिस मठ’ में गये थे जहाँ ईसा के जीवन वृत्तांत से संबंधित पाण्डुलिपियाँ रखी हुई हैं। उन्होंने उस विवरण का अनुवाद भी किया था जो बाद में बँगला भाषा में “कश्मीरी ओ-तिब्बती नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद रूस के सुप्रसिद्ध मनीषी निकोलस रोरिख ने सन् 1925 में तिब्बत की यात्रा की और हेमिस के मठ में रखी उन पाण्डु-लिपियों का अध्ययन किया जो ईसा के जीवन के अज्ञातवास से संबंधित है। अपने अध्ययन एवं खोज को उन्होंने ‘द हर्ट आफ एशिया’ नामक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया। अमेरिकी विद्वान लेवी ने भी अपनी पुस्तक “दी एक्वैरियन गास्पल आफ जीसस क्रइस्ट” के छठे एवं सातवें भाग में ईसा मसीह की दो बार की भारत यात्रा का वर्णन किया है। इसमें ईसा द्वारा दुर्गम हिमालय के कुमाऊँ क्षेत्र से लेकर तिब्बत तक की यात्राओं का वर्णन है जहाँ उन्होंने ल्हासा के बौद्ध मंदिरों में रखे आध्यात्मिक गुरुओं की रचनाओं, पाण्डुलिपियों का अध्ययन किया इसके बाद में लाहौर होते हुए सिंध प्राप्त पहुँचे और वहाँ से 30 वर्ष की आयु में वापस फिलिस्तीन चले गये। डॉक्टर स्पेन्सर कृत “मिस्टीकल लाइफ आफ जीसस” में ऐसे अनेकों प्रमाणों का संकलन है जिसमें ईसा के भारत आने, वैदिक एवं बौद्ध साहित्य का अध्ययन करने, उच्चस्तरीय साधना सीखने, एवं हिमालय में तपस्या करने का उल्लेख है। ईसा की “सरमन आद दी माउण्ट” नामक धर्मनीति भी इस बात का परिचायक है कि उन्होंने हिन्दू और बौद्ध धर्मों का गहन अध्ययन किया था।

First 27 29 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
  • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
  • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
  • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
  • डाकू बना महात्मा
  • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
  • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
  • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
  • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
  • Quotation
  • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
  • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
  • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
  • हजरत लुकमान (Kahani)
  • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
  • Quotation
  • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
  • धूर्त कौवा (Kahani)
  • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
  • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
  • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
  • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
  • Quotation
  • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
  • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
  • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
  • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
  • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
  • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
  • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
  • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
  • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
  • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
  • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
  • Quotation
  • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
  • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
  • तरने चला सकल संसार
  • तरने चला सकल संसार (Kavita)
  • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
  • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
  • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj