• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
    • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
    • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
    • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
    • डाकू बना महात्मा
    • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
    • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
    • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
    • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
    • Quotation
    • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
    • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
    • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
    • हजरत लुकमान (Kahani)
    • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
    • Quotation
    • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
    • धूर्त कौवा (Kahani)
    • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
    • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
    • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
    • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
    • Quotation
    • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
    • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
    • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
    • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
    • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
    • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
    • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
    • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
    • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
    • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
    • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
    • Quotation
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
    • तरने चला सकल संसार
    • तरने चला सकल संसार (Kavita)
    • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
    • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
    • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
    • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
    • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
    • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
    • डाकू बना महात्मा
    • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
    • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
    • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
    • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
    • Quotation
    • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
    • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
    • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
    • हजरत लुकमान (Kahani)
    • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
    • Quotation
    • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
    • धूर्त कौवा (Kahani)
    • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
    • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
    • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
    • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
    • Quotation
    • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
    • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
    • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
    • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
    • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
    • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
    • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
    • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
    • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
    • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
    • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
    • Quotation
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
    • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
    • तरने चला सकल संसार
    • तरने चला सकल संसार (Kavita)
    • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
    • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
    • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1994 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 31 33 Last
बुराई, भ्रष्टाचार, अपराधों के संबंध में हमारी शिकायतें दिनों दिन बढ़ती जा रही है। प्रतिदिन एक बँधे हुए ढर्रे की तरह हम नित्य ही इस संबंध में टीका-टिप्पणी करते हैं, कभी सरकार को दोष देते हैं तो कभी प्रशासन व्यवस्था की छीछालेदर करते हैं। कभी किन्हीं व्यक्तियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इस तरह की शिकायतें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च-स्थिति के लोगों तक से सुनी जा सकती हैं। लेकिन कभी हमने यह भी सोचा है कि इनके लिए हम स्वयं कितने जिम्मेदार हैं। हम भूल जाते हैं कि बहुत कुछ अपराध, बुराइयाँ हमारे व्यावहारिक जीवन में अपने प्रयत्नों का परिणाम हैं। हमारे अनीतिपूर्ण जीवन, सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा, हाथ धरे बैठ जाने की प्रवृत्ति से ही बुराइयों को प्रोत्साहन मिलता है। यदि हम इनके लिए स्वयं को उत्तरदायी मानकर अपना सुधार करने में लगें, अपने कर्तव्यों को समझने लगें तो कोई संदेह नहीं कि बुराइयाँ घटने लगें और एक दिन समाप्त भी हो जायँ।

बुराइयों को मिटाने के लिए हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है-’हम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें जिसे हम स्वयं अपने लिए न चाहते हों। ’ ऋषिगणों ने इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुये अपनी प्रजा को बताया था-”ऋषिगणों ने इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए अपनी प्रजा को बताया था-”आत्मनः प्रतिकूलानि परेशाँ न समाचरेत्” “जिस बात को तुम अपने लिए नहीं चाहते उसे दूसरों के लिए मत करो। ”

हम नहीं चाहतें कि कोई हमारा अपमान करे तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम किसी का अपमान न करें। इसी तरह विश्वासघात, छल, कपट, धोखाधड़ी उत्पीड़न, शोषण नहीं होना चाहते तो हमारा भी धर्म है कि हम दूसरों के साथ ऐसा न करें। लेकिन खेद है कि जब कोई हमारे ऊपर अत्याचार करता है हम बुराई की, सिद्धान्तों, की, दुहाई देते हैं और केवल बचाव के लिए गुहार मचाते हैं किंतु जब हम स्वयं दूसरों के साथ ऐसा करते हैं तब किसी के कुछ कहने सुनने पर वे हमारे कान पर जूँ तक नहीं रेंगती और यही कारण है कि बुराइयां दिनों दिनों बढ़ती जाती हैं। हम उनकी शिकायतें, करने, आलोचना करने, में ही अपना काम पूरा समझ लेते हैं।

बुराइयों के सम्बन्ध में दूसरी विचारणीय बात है कि इन्हें रोकने के लिये हम स्वयं कितनी सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभाते हैं। अपने कारोबार, मनोरंजन, आराम, घर गृहस्थी के अलावा हम सामाजिक कर्तव्यों में कितना हाथ बँटाते हैं? यह प्रश्न हमारे सबके लिये एक चेतावनी है। भारतीय नागरिक कि यह बहुत कमजोरी है कि वह अपने ही जीवन से इतना चिपका रहता है कि सामाजिक उत्तरदायित्वों की ओर आँख उठाकर नहीं देखता। इनकी ओर अपेक्षा भाव बनाये रखता है। पड़ोस में डाकू रहता है। अनैतिक कार्य का अड्डा, समाज विरोधी हरकतें हमारे सामने होती रहती हैं। दूसरों को बदमाशी करते हम देखते हैं किन्तु हम में से कितने की सूचना सरकारी अधिकारियों को देते हैं या इनके खिलाफ हममें से कितने लोग आवाज उठाते हैं। इनके विरोध में आँदोलन हममें से कितने लोग चलाते हैं। बहुधा हम इन्हें चुपचाप देखते रहते हैं। बहुत बार हममें से ही बहुत लोग अपराधियों को आश्रय देते हैं, सहायता पहुँचाते, उन्हें बढ़ावा देते हैं। यह निश्चित सत्य है कि अपराधी अपनी बुराइयों के बल पर जीवित नहीं रह सकते। समाज के सहयोग पर ही उनका आस्तित्व कायम रहता है। जागरुक व्यक्ति जानते हैं कि समाज के तथाकथित स्वार्थी लोग ही अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अवांछनीय तत्वों को प्रोत्साहित करते हैं उन्हें सहारा देते हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनका बचाव भी करते हैं। फिर एक दिन एक-एक कर हम सभी को इन दूषित तत्वों से हानि उठानी पड़े तो इसमें दोष किसका? क्योंकि अपराधी किसी का सगा नहीं होता, अपना लाभ न होते देख वह अपने तथाकथित बचाव करने वाले व्यक्ति पर भी आक्रमण कर सकता है।

कई बार किसी नागरिक पर बदमाश लोगों के आक्रमण को देखकर भी हममें से बहुत लोग चुपचाप आगे पग बढ़ा देते हैं। हममें से कइयों की जानकारी में रिश्वत का दौर चलता रहता है। कई बार जानते हैं कि सार्वजनिक कार्यों में ठेकेदार तथा नौकरशाही अनावश्यक लाभ उठा रहे हैं। हममें से बहुत से लोग धोखाधड़ी, ठगी, चोरबाजारी, मिलावट करने वालों को भारी भली-भाँति जानते हैं किन्तु यह सब जानकर हम इनका भंडा फोड़ नहीं करते। इनकी शिकायत पुलिस को या अपराध निरोधक संस्थाओं को नहीं करते। इनके खिलाफ संगठित होकर आँदोलन नहीं होता।

इस सम्बन्ध में हमारी यह शिकायत हो सकती है कि “आजकल कोई सुनता नहीं, ” जो इस तरफ के कदम उठाता है उसे ही उल्टी परेशानियां उठानी पड़ती हैं। बहुत कुछ अंशों में यह ठीक भी है। किसी बात की सूचना देने पर गुँडे के बजाय सूचना देने वाले को ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। बुराई का प्रतिरोध करने वाले को दूषित तत्वों का कोप-भाजन बनना पड़ता है। यह सब ठीक है किंतु बिना कोई खतरा उठाये दूर तो नहीं किया जा सकता। सुधार के लिए एक ही मार्ग है, वह है सब तरह के खतरे उठाकर बुराइयों का मुकाबला करना। यदि प्रशासन इस सम्बन्ध में ढील दे तो उसके खिलाफ भी आवाज उठायी जाये। कई सरकारी कर्मचारी या समाज का सदस्य ही दूषित तत्वों का बचाव करे इन्हें प्रोत्साहन दें तो उनकी भी आलोचना करने में नहीं चूकना चाहिए।

इस तरह प्रतिरोध के लिए अकेले व्यक्ति को तो संकल्प करना ही चाहिए किन्तु सारे समाज को संगठित होकर बुराइयों के विपरीत कदम उठाना चाहिए। कई कारण नहीं कि समाज का संगठित शक्ति के समक्ष बुराइयां जीवित रह सकें। खेद है सामाजिक उत्तरदायित्व हम लोग नहीं समझते। कोई व्यक्ति किसी गुँडे से निपटते समय सहायता के लिए पुकार करता है तो हम किवाड़ बन्द करके बैठ जाते हैं, सुनकर भी अनसुनी कर देते हैं। देखकर भी अनदेखे बन जाते हैं। लेकिन वह दिन भी दूर नहीं जब हमें भी इन दूषित तत्वों से आक्रांत, होना पड़ेगा।

आज बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सामूहिक अभियान की आवश्यकता है। जब तक लोगों में इन सामाजिक उत्तरदायित्वों की भावना पैदा न होगी तब तक बुराइयां एक-एक कर हम सबको प्रभावित करती रहेंगी, हानि पहुँचती रहेंगी।

हमारी एक सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम बड़े-बड़े सिद्धान्त बघारते हैं, नीति और न्याय की ऊँची-ऊँची बातें करते हैं, लेकिन यह सब दूसरे के लिए। अपने कार्यकलापों को न्याय, नीति की कसौटी पर हम बहुत ही कम कसते हैं। एक दुकानदार बाजार में बैठकर सरकार, पुलिस आदि के भ्रष्टाचार की जी खोलकर आलोचना करता है किन्तु उसकी आलोचक वृत्ति उस समय गायब हो जाती है जब वह वस्तुओं में मिलावट करता है, ग्राहकों को कम तौलता है, अधिक मुनाफा वसूल करता है। आतताई और गुँडों को हम लोग कोसते हैं, उन्हें बुरा कहते हैं किन्तु हमारी समीक्षात्मक बुद्धि उस समय जाने कहाँ चली जाती है। जब हम पराई स्त्री को बुरी निगाह से देखते, बिना प्रति, मूल्य देय समाज के साधनों का उपभोग करते हैं, अनीति के साथ धन एकत्रित करते हैं, दूसरों के श्रम अधिकार एवं साधनों का अनुसूचित शोषण करते हैं।

जिस तरह हम दूसरों की आलोचना करते हैं, उनके लिये न्याय-नीति की माँग करते हैं उसी तरह यह भी आवश्यक है कि हम अपने व्यवहार को नित-धर्म की कसौटी पर कसें। जो बुरा है उसे न करें।

हम दूसरों के कई ऐसी बात न करें जो स्वयं अपने लिये चाहते हैं बुराइयों को मिटाने के लिये सामाजिक उत्तरदायित्व जो हम पर है उसे सब तरह से खतरे उठाकर भी पूरा करने में न चूकें। कार्य व्यवहार को, नीति, न्याय और धर्म की कसौटी पर परखें जो बुराई उससे दूर रहें। ये तीन बातें हमारे जीवन में ढल जायें तो कोई सन्देह नहीं कि जो बुराइयाँ आज नहीं तो कल समाप्त हो जायेंगी।

First 31 33 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
  • मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
  • विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
  • नये युग के नये आधार व नये पंचशील
  • डाकू बना महात्मा
  • स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
  • गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
  • प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
  • वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
  • Quotation
  • पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
  • पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
  • अशिष्टता को शिष्टता से जीता
  • हजरत लुकमान (Kahani)
  • “सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
  • Quotation
  • खतरों से डरे या उनसे जूझें?
  • धूर्त कौवा (Kahani)
  • अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
  • संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
  • अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
  • बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
  • Quotation
  • मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
  • वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
  • आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
  • जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
  • क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
  • अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
  • अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
  • विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
  • नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
  • प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
  • सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
  • Quotation
  • वंदनीया मातु को संदेश हमारा
  • वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
  • तरने चला सकल संसार
  • तरने चला सकल संसार (Kavita)
  • नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
  • अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
  • नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj