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Magazine - Year 1995 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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पलकों की हलचल है मन का दर्पण

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यों पलकें तो आँखों की सुरक्षा के लिए होती हैं और सेकेण्ड के दसवें हिस्से से भी कम समय में झपकती रहती हैं; पर यदा-कदा इनका उठना-गिरना और तेज अथवा मंद हो सकता है। ऐसी दशा में वह व्यक्ति की उस स्थिति एवं परिस्थिति का परिचायक होती हैं जिससे वह उस समय गुजर रहा होता हैं। दूसरे शब्दों में सामने वाले की मनोदशा जानने समझने का वह महत्वपूर्ण माध्यम है और एक हद तक व्यक्ति की तात्कालिक अवस्था का पता उनसे लगाया जा सकता है।

वैसे तो पलकों का खुलना-बन्द होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें आँखों की सुरक्षा और सफाई ही प्रमुख होती है, पर देखा यह भी गया है कि जब व्यक्ति असामान्य अवस्था से गुजर रहा होता है, तो उस पर उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। उदाहरण के लिए जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक सावधान या सचेत होता है तो उसकी पलकें कम झपकती हैं। रुचिकर विषय अथवा वस्तु को पढ़ते-देखते समय भी यह गति स्वाभाविकता रूप से कम हो जाती है ऐसे समय इसकी रफ्तार प्रति मिनट लगभग छः बार होती है किन्तु जब विषय वस्तु सामने वाले के मन पसंद की न हो तो यह क्रिया तीव्र हो सकती है। वार्तालाप कर रहे दो व्यक्तियों में से कौन कितना एक दूसरे की बातों में रस ले रहा है यह उनकी पलकों की गिरने-उठने की गति से जाना जा सकता है जो ऊब या आलस्य महसूस कर रहा होगा उसकी अत्यधिक गतिवान पलकें यह बता देंगी कि श्रोता को वक्ता एवं उसकी बातों में कोई रुचि नहीं है।

इसी आशय का एक प्रयोग बर्लिन यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने किया। उन्होंने कुछ लोगों को संगीत की कुछ उबाऊ धुनें सुनायीं। आधे घंटे के इस प्रयोग के दौरान देखा गया कि सामान्य स्थिति में उनकी पलकें जितनी बार झपकती थीं, उसकी आवृत्ति इस मध्य बढ़ गई। परीक्षण को पुनः दोहराया गया; किन्तु इस बार धुन बदल दी गई। अबकी बार का संगीत सरस और सुरीला था, अतः इसका परिणाम भी पहले से विपरीत प्राप्त हुआ। पाया गया कि इस मध्य श्रोताओं की पलकें असाधारण रूप से कम झपकी। इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि रुचि-अभिरुचि, पसन्द-नापसन्द का कितना कैसा प्रभाव हमारी दृश्येंद्रिय पर पड़ता है। इस आधार पर सामने वाले का मनोभाव आसानी से जाना जा सकता है।

शोध से यह भी ज्ञात हुआ कि कार्य के दौरान बरती गई एकाग्रता एवं तन्मयता का स्पष्ट आभास आँख के खुलने बन्द होने की गति से सरलता पूर्वक मिल जाता है। उदाहरण के लिए चित्र बनाते समय चित्रकारों की पलकें अपेक्षाकृत कम उठती-गिरती हैं। यह उसके एकाग्र चित का द्योतक है। कवि जब अपनी कल्पना की दुनिया में खोता है, साहित्यकार अपने विचार प्रवाह में बहता है, कर्मयोगी किसी काम में निष्ठापूर्वक निमग्न होता है, संगीतकार कोई नई धुन की रचना कर रहा होता है तब भी उनकी पलकों के झपकने की गति कम होती है।

इसके विपरीत परेशान व्यक्ति की पलकें जल्दी-जल्दी उठती गिरती हैं। यदि व्यक्ति समस्याग्रस्त हो, किंकर्तव्यविमूढ़ हो, असमंजस की दुविधाजनक स्थिति में हो, तो भी आँखों के खुलने-बन्द होने की रफ्तार तीव्र होती है। पलकों का गिरना-उठना यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति में कितना आत्मविश्वास है। एक आत्मविश्वासी अपनी बात को प्रकट करते समय अपेक्षाकृत न्यून पलकें झपकाता है जबकि उस व्यक्ति की, जिसका कथन अनिश्चय युक्त हो अथवा उसमें दृढ़ता का अभाव हो, तो उसके नेत्र जल्दी-जल्दी खुलते-बन्द होते हैं। साक्षात्कार के समय इस बात को स्पष्ट रूप से देखा अथवा अनुभव किया जा सकता है। वैसे परीक्षार्थी जिनकी तैयारी अच्छी होती है, अथवा जो आत्मविश्वास के धनी होते हैं, मौखिक परीक्षा के दौरान जवाब देते समय परीक्षक के आगे कम आँखें मुलमुलाते हैं, जबकि जिनकी तैयारी ठीक नहीं होती, जिन्हें स्वयं पर, अपने उत्तर पर भरोसा नहीं होता उनमें यह क्रिया अधिक तीव्र होती देखी गई है। पलक के झपकने की गति व्यक्ति के दबंगपन को भी अभिव्यक्त करती है। पाया गया है कि झेंपू या संकोची प्रकृति के लोगों में पलकों की रफ्तार अधिक तेज होती है, वहीं दबंग व्यक्तित्व की यह सुनिश्चित पहचान है कि उसकी पलकें किसी भी व्यक्ति के समक्ष प्रति मिनट कम झपकती हैं। डरपोक स्वभाव वाले लोगों की भी यही निशानी है कि उनमें आँख मुलमुलाने की प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती हैं। कुछ हद तक झूठ और सच की पहचान भी इससे की जा सकती है। झूठ बोलने और सच्चाई को छिपाई का प्रयास करने वालों में पलक संचालन की क्रिया ज्यादा तीव्र होती है। दूसरी ओर सत्यवादियों, न्याय के पक्षधरों में इसकी गति मंद होती है। देखा गया है कि जो झूठ को सच का रंग चढ़ा कर प्रस्तुत करते है।

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