• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही 'मोक्ष'
    • सेवा-साधना निज की प्रगति के लिए भी अनिवार्य
    • भ्रम जंजाल में उलझकर देवताओं को गाली न दें
    • उपासना का स्तर (Kahani)
    • अंदर का आइना साफ करें, भविष्य ज्ञान पाएँ
    • रे मन! अब तू रूठना छोड़
    • सत्संगति क्यों है अनिवार्य?
    • मन दुरुस्त तो शरीर भी स्वस्थ व चुस्त
    • भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ
    • आत्मबल सम्पन्न ही जीवन संग्राम जीतते हैं
    • अपरिग्रह आज क्यों इतना जरूरी है
    • किस काम का है यह इन्द्रजाल?
    • मारियोपोजियो (Kahani)
    • चित्तवृत्तियों का परिशोधन आहार से सम्भव
    • पलकों की हलचल है मन का दर्पण
    • उपचार जड़ों का ही करना होगा
    • आप्तकाम बनने का सूत्र
    • प्रेम ही परमेश्वर है
    • प्राथमिकता (Kahani)
    • बुढ़ापे को भार मानकर न जियें
    • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार
    • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार (Kavita)
    • समर्पण के सुमन
    • समर्पण के सुमन (Kavita)
    • देवात्मा हिमालय की यात्रा - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • उपयोगिता-अनुपयोगिता का अंतर (Kahani)
    • मातृ लीलामृत- - परमवंदनीय माताजी का वह अंतिम प्रवास व उनके उद्गार
    • पंडित जवाहर लाल नेहरू (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - - प्रथम पूर्णाहुति आ पहुँची,अब समय न गँवायें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही 'मोक्ष'
    • सेवा-साधना निज की प्रगति के लिए भी अनिवार्य
    • भ्रम जंजाल में उलझकर देवताओं को गाली न दें
    • उपासना का स्तर (Kahani)
    • अंदर का आइना साफ करें, भविष्य ज्ञान पाएँ
    • रे मन! अब तू रूठना छोड़
    • सत्संगति क्यों है अनिवार्य?
    • मन दुरुस्त तो शरीर भी स्वस्थ व चुस्त
    • भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ
    • आत्मबल सम्पन्न ही जीवन संग्राम जीतते हैं
    • अपरिग्रह आज क्यों इतना जरूरी है
    • किस काम का है यह इन्द्रजाल?
    • मारियोपोजियो (Kahani)
    • चित्तवृत्तियों का परिशोधन आहार से सम्भव
    • पलकों की हलचल है मन का दर्पण
    • उपचार जड़ों का ही करना होगा
    • आप्तकाम बनने का सूत्र
    • प्रेम ही परमेश्वर है
    • प्राथमिकता (Kahani)
    • बुढ़ापे को भार मानकर न जियें
    • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार
    • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार (Kavita)
    • समर्पण के सुमन
    • समर्पण के सुमन (Kavita)
    • देवात्मा हिमालय की यात्रा - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • उपयोगिता-अनुपयोगिता का अंतर (Kahani)
    • मातृ लीलामृत- - परमवंदनीय माताजी का वह अंतिम प्रवास व उनके उद्गार
    • पंडित जवाहर लाल नेहरू (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - - प्रथम पूर्णाहुति आ पहुँची,अब समय न गँवायें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1995 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


रे मन! अब तू रूठना छोड़

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
रूठे को मना लेने में ही समझदारी है, रूठता कौन नहीं है कमोबेश सभी रूठते हैं लेकिन जो रूठ जाय उससे खुद भी रूठ बैठें तो जीवन चलाना मुश्किल हो जायेगा। कभी पत्नी से अनबन हो जाती है, कभी बच्चों से कहन–सुनन। कभी भाई से मन चाल हो जाती है कभी पड़ोसी से मन मुटाव बन जाता है। इस स्थिति को ऐसे ही रहने दिया जाय अथवा ऐंठ और कड़ी करते रहा जाय तो, काम नहीं चलेगा। उलझन बढ़ती ही जायेगी, जिनके साथ रहना है उनसे मीठे सम्बन्ध बनाये रहने में ही भलाई है।

ऐसा उपयोगी और सामर्थ्यवान साथी अपने से रूठे रहें यह कदापि उचित नहीं। रूठ जाय तो उसे मना लेना जीवन की सर्व प्रथम और अनिवार्य आवश्यकता है। अन्य काम छोड़कर भी इस काम को करना पड़े तो भी उचित है। मनोवैज्ञानिक वाल्टकर होलिस्टर अपनी पुस्तक 'नो युअर माइन्ड' में लिखते हैं 'यूँ मन आँखों से दिखाई नहीं देता, इसलिए उसका रूठा भी नहीं दिखता है। पर विवेक की आँख से देखें तो रूठा हुआ मन प्रत्यक्ष दिखाई देगा।'

रूठने वाली की पहचान है, साथ न देना, कहना न मानना, सहयोग न करना, नुकसान करना। बच्चा रूठ जाता है तो ऐसा ही उपद्रव करता है। घर का सामान तोड़ता-फोड़ता है और अपने हाथ पैर पीटता है।

मन ने यदि साथ दिया होता तो शरीर की ऐसी दुर्गति न होती, जैसी आज है। उसने काया को स्वस्थ और समर्थ बनायें रखने के लिए संयम बरता होता। लिप्सा के फेर में न पड़ा होता। जीभ को, कामेन्द्रियों को व्यवस्था में रखा होता। आहार विहार की नियमितता बरती होती तो काया-गुलाब के फूल की तरह खिली हुई और गेंद की तरह उछलने वाली रही होती। बीमारी और कमज़ोरी को इस घर में घुसने की हिम्मत ही न पड़ती। मन रूठा बैठा रहा, शरीर को देखा संभाला नहीं, रुग्णता ने घेरा डाल लिया। शरीर टूटा, आत्मा को अशान्ति रही और स्वयं मन भी रुग्ण काया में रहकर टूटे मकान में रहने वाले किरायेदार की तरह उद्विग्न अशान्त बना रहा।

देवत्व के सारे उपकरण अपने भीतर विद्यमान थे। एक उँगली के सहारे यह सारा साज झंकृत हो सकता था। अपने भीतर बैठा ऋषि देवता प्रतीक्षा करता रहा, जरा सा सहारा मिले तो ऊपर उभर कर आए। जीवन संध्या निकट आ गई तो भी हाय रे मन, तेरा सहयोग न मिल सका।

मनोवेत्ता रॉबर्ट शुलर के ग्रन्थ 'सेल्फ लव' की भाषा में कहें तो हमें मन से अपनी दयनीय दुर्दशा का वर्णन करना चाहिए। भगवान का समर्थ पुत्र- सकल साधनों से सम्पन्न इस प्रकार दीन-हीन निन्दति, तिरस्कृत, असफल असहाय फिरे यह कितने दुःख की बात है। यदि मन साथ दे, तो महामानव की गरिमामयी स्थिति में प्रकाश और उल्लास भरा जीवन अब भी जिया जा सकता हैं। यदि उतने में भी परस्पर सहयोग रह सके तो अभी भी उतना अवसर है कि अभिशाप को वरदान में बदला जा सके। वासना आग की तरह है, भोग से यह शान्त होने वाली नहीं। फिर उसके कुचक्र में जितना भी फँसा जाय, उतनी ही क्षमता, आयु, प्रतिभा घटती है। क्षणिक चटोरेपन के पीछे समर्थता की सम्पत्ति को घटाने और दिन-दिन दुर्बल होते जाने से क्या लाभ।

आत्मा रोती बिलखती रही, उसके संतोष उत्थान के लिए एक कदम नहीं बढ़ाया गया। उन्हें सींचने के लिए एक लोटा पानी नहीं डाला जा सका। सद्भाव के बालक अपने पोषण की पुकार करते रहे, उनकी आवश्यकताएँ जुटाने से मुँह मोड़े रहा गया।

शरीर को ठाट-बाट जुटाने में, उसी के ताने बाने बुनता रहा। मन तू खुद भी मरा और अपने मित्र शरीर को भी मारा। यदि तू आत्मा का मित्र बन गया होता और जितना श्रम शरीर के लिए किया गया है उतना आत्मा के लिए करता तो आनंद आ जाता।

भूलें बहुत हो चुकीं। बहुत क्या- यूँ कहना चाहिए कि अब तक का सारा जीवन भूल-भुलैयों में भटकते हुए ही बीत गया। कितने ऊँचे पहुँचे होते, कितने आगे बढ़े होते। खीझ क्षीणता, जलन और पछतावे की सिवाय इस भूल भरे मार्ग पर और मिलना ही क्या था।

'माइन्ड- इट्स मिस्ट्रीज एण्ड कंट्रोल' पुस्तक में सुप्रसिद्ध स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि ऐसा चिन्तन मनन हमें नित्य करना चाहिए। इस तरह के मनन को निरन्तर अभ्यास से रूठा मन सहज ही मान जायेगा। फिर तो इसके नित नये चमत्कार समूचे जीवन को अलौकिक बना देंगे।

First 5 7 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही 'मोक्ष'
  • सेवा-साधना निज की प्रगति के लिए भी अनिवार्य
  • भ्रम जंजाल में उलझकर देवताओं को गाली न दें
  • उपासना का स्तर (Kahani)
  • अंदर का आइना साफ करें, भविष्य ज्ञान पाएँ
  • रे मन! अब तू रूठना छोड़
  • सत्संगति क्यों है अनिवार्य?
  • मन दुरुस्त तो शरीर भी स्वस्थ व चुस्त
  • भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ
  • आत्मबल सम्पन्न ही जीवन संग्राम जीतते हैं
  • अपरिग्रह आज क्यों इतना जरूरी है
  • किस काम का है यह इन्द्रजाल?
  • मारियोपोजियो (Kahani)
  • चित्तवृत्तियों का परिशोधन आहार से सम्भव
  • पलकों की हलचल है मन का दर्पण
  • उपचार जड़ों का ही करना होगा
  • आप्तकाम बनने का सूत्र
  • प्रेम ही परमेश्वर है
  • प्राथमिकता (Kahani)
  • बुढ़ापे को भार मानकर न जियें
  • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार
  • लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार (Kavita)
  • समर्पण के सुमन
  • समर्पण के सुमन (Kavita)
  • देवात्मा हिमालय की यात्रा - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • उपयोगिता-अनुपयोगिता का अंतर (Kahani)
  • मातृ लीलामृत- - परमवंदनीय माताजी का वह अंतिम प्रवास व उनके उद्गार
  • पंडित जवाहर लाल नेहरू (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात - - प्रथम पूर्णाहुति आ पहुँची,अब समय न गँवायें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj