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Magazine - Year 1998 - Version 2

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Language: HINDI
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युग द्रष्टा के जीवन-दर्शन के साथ अब वाङ्मय समग्र रूप में उपलब्ध

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यह पारसमगध घर-घर में स्थापित होनी चाहिए

परमपूज्य गुरुदेव का अस्सी वर्ष जितनी उपलब्धियों से भरा पूरा है उतना ही वह अध्यात्म पथ के पंथियों के लिए सतत् मार्गदर्शन देने वाला एक सथत जीवन दर्शन भी हण् बहुआयामी जीवन तीने ली हमारी गुम्सना ने अपने इस जीवनकाल में अपने वजन से भी पांच गुना अधिक साहित्य अपने हाथों लिख्, हो नहीं विचार किंतु बीज जन जन में आरोपित कर एक युगपरिवर्तन का प्रचण्ड आती है। को जन्म भी दिया है। आज उज्ज्वल भविष्य की किरण यदि हर किमसी को चारों ओ छाएण् क्हासे के बीच दिखाई देती है तो उसके मूल में वह क्रांतिधर्मी चिन्तन है जो विचार बीज के रूप में समाज को विश्व ही हर समस्याओं के समाधान के रूप में परमपूज्य गुरुदेव लिखकर ‘अखण्ड-ज्योति पत्रिका उसी प्राणचेतना का कलेवर है क्रान्ति की संदेशवाहिका है एवं पूज्यवर के विचारों का प्रतिबिम्ब है। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय आज से प्रायः सवा दो वर्ष पूर्व आंवलखेड़ा की प्रािम पूर्णाहुति पर पहली बार 24 खण्डों के रूप में सबके समक्ष आया था इसके शेष बीस खण्ड कुछ माही बाद एवं पहले घोषित सत्तर विरात 3 माह में जन-जन पहुंच चुके है कुल 108 में से आगे के अड़तीस खण्डों का संपादन चल रहा हैं एवं संभावना है कि युग संधि की महापूर्णाहुति के साधनावर्ष के साथ-साथ में सब भी प्रकाशित हो जायेंगे जिस खण्ड ज्योति संस्थान घीयामंडी मथुरा के पते पर पत्र लिखकर मागा सकते है।

निश्चित ही जिस खण्ड की सर्वाधिक प्रतीक्षा चल रही थी। सभी को उत्सुकता उसके विषय में भी उसे लिखना सम्पादित करना सम्पादन मण्डल के लिए कितना कठिन रहा होगा यह अनुमान सभी लगा सकते है इस खण्ड में मूलतः परमपूज्य गुरुदेव, परमवंदनीय माताजी एवं युगनिर्माण योजना, गायत्री परिवार की समग्र जीवनयात्रा दी गई है इसके अतिरिक्त उनसे जुड़ें चमत्कारी घटनाक्रमों का विवरण विस्तार से दिया गया है समय-समय पर उनके द्वारा लिखों गयी -अपनी से अपनी बात ‘ जो संपादकीय के रूप में अखण्ड- ज्योति में प्रकाशित होती है जिसने अगणित व्यक्तियों को रुलाया हैं उनके मर्म को स्पर्श कर उन्हें पूज्यवर का अपना आत्मीय सम्बन्धी से भी बढ़कर बना दिया है उसकी झलक भी इस खण्ड में दो गयी है इस खंड सर्वांगपूर्ण रूप में जान या समझ नहीं सकता।प्रज्ञावतार के क्रिया−कलाप मानवी रूप में किस तरह कब-कब क्या मोड़ लेते हैं उनका चिन्तन- कृत्व किस तरह औरों के निमित्त नियोजित होता है इसे पढ़कर समझकर भी वाङ्मय को सही अर्थों में आत्मसात कर पाएंगे इस खण्ड में इतना ही नहीं पूज्यवर के बारे में पूज्यवर की कलम से एवं उनके समीप रहे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की कलम से अनुभव सत्य पहली बार सबके समक्ष एक ही कलेवर में बंधकर आ रहे है इतना ही नहीं इस खण्ड के उत्तरार्द्ध के विराट वाङ्मय के किस खण्ड में क्या-क्या हैं इसकी एक संक्षिप्त में क्या क्या है इसकी एक संक्षिप्त सिनाश्रु भी दी गयी है। इस प्रकार एक ही स्थान पर परमपूज्य गुरुदेव परम वंदनीय माताजी के विषय में तथा उनके बहुमुखी क्रिया−कलाप के समग्र वाङ्मय के स्वम्प को इन प्रीपीडिया विश्व को किया सकता है

1008 थीसिस लिख दो जाए तो भी हा परमपूज्य गुरुदेव के सम्पूर्ण जीवन को समेट नहीं सकते फिर भी एक अकिंचन प्रयास जो बन पड़ा हैं वह इस प्रािम खण्ड के रूप में ‘युगद्रष्टा का जीवन -दर्शन - नाम से प्रस्तुत है निश्चित ही इसे पढ़ने वाले पाठक पूरे वाङ्मय का रसास्वादन कर सकने में सफल हो सकेंगे। समुद्र नमकीन पानी से भरा है यह जानने के लिए बीज में विराट वृक्ष ढाकी देचा जी ताजी है एवं गुणसूत्रों में काया के समग्र स्वरूप का दिग्दर्शन किया जा सकता है ठीक इसी प्रकार युगद्रष्टा का जीवन दर्शन पढ़कर समग्र वाङ्मय की झलक देखी जा सकती है फिर अपनी रुचि अनुसार जो पसन्द हो वे खंड लेकर अपना पुस्तकालय क्रमशः सर्वांगपूर्ण बनाया जा सकता है।

प्रस्तुत प्रािम खंड में जो अध्याय दिए गए है वे इस प्रकार है जीवन संबंधी चार आत्मनिवेदन जो गुरुमाता की लेखनी से लिख गये हैं एक बीज जो गलकर वटवृक्ष बना साधकों डायरी के कुछ पृष्ठ विदाई की घड़ियां गुरुसत्ता की व्यथा वेदना गुरुवर की सूक्ष्मीकरण साधना वसीयत और विरासत बहुआयामी व्यक्तित्व के भी हमारे गुरुदेव लीला प्रसंग मातँलीलामुत देवदूत आया हम पहचान सकें जीवन

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय

वाङ्मय के सत्तर खण्ड उपलब्ध है उक क्रमशः प्रेषण कीव् यवथाबाई जा रही है पाठकों को मार्च 18 के अनं तक प्राप्त होने की आशा है

क स्मुद प्रेरक प्रसंग युगव्यास की जेखी ओर यह विराट बाइमस किस खण्ड में है तथा समग्र साहित्य लिखी गयी पुस्तकों की सूची के अतिरिक्त वाङ्मय के शेष प्रकाशित होने वाले खण्डों में क्या रहेगा यह सब हम इसमें परिशिष्ट में दिया गया है आशा ही नहीं विश्वास भी है कि वासंतीवेला में प्रस्तुत किए जा रहे इस खण्ड को सभी अपने पास रखने का इच्छा रखते हुए तुरंत इसे मंगायेंगे साथ ही औरों को सस्थाई की भेदवमप उपकार आदि कम में देने के लिए भी अतिरिक्त के रूप में अपने पास रखेंगे। वाङ्मय रूपी पारसमणि जहाँ रहेगी, वहाँ नन्दन-कानून निश्चय ही बनकर रहेगा, यह विश्वास सभी के मन में पक्का जम जाना चाहिए।

*समाप्त*

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