• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • क्राँति -बीज
    • साहस और इच्छाशक्ति से ही हुई है मानवी प्रगति
    • VigyapanSuchana
    • सिद्धि का मर्म-निष्काम कर्म
    • VigyapanSuchana
    • परमचेतना का चुना हुआ देश भारत
    • हो जीवन के तार तरंगित की स्वर-लहरियों से
    • Quotation
    • इतना आसान नहीं है कुंडलिनी जागरण
    • आज भी देखे जा सकते हैं अष्टावक्र
    • Quotation
    • असमर्थों को भी पार लगाती सामूहिक उपासना
    • पुण्य धर्म की खेती है - सत्य
    • Quotation
    • दमन दान और दया
    • चिरपुरातन, फिर भी चिरनवीन वास्तुशास्त्र
    • करुणा और विवेक से जनकल्याण
    • Quotation
    • मानव-जीवन एक पवित्र धरोहर
    • पवित्र कार्य का माना गया (kahani)
    • सक्षम-सबल है, आज की नारी
    • प्रज्ञा परिजनों के लिए सात प्रतिबंध
    • आत्मिक प्रगति का ककहरा
    • आत्मिक प्रगति का उच्चस्तरीय मार्गदर्शन है इन पत्रों में
    • जिनने ब्रह्मकमल को पूरी तरह खिलाया
    • महाशक्ति गायत्री का साकार विग्रह थे वे
    • भावभरे पुरुषार्थ के लिए विशेष आह्वान
    • अपनों से अपनी बात-1 - प्रतिभाओं की सिद्धि से महायज्ञ की महापूर्णाहुति
    • अपनों से अपनी बात-2 - जलते दीपक संपन्न करेंगे यह महापूर्णाहुति
    • अपनों से अपनी बात-3 - संभागीय महापूर्णाहुति के बाद अब है तीन स्तरों वाला अति महत्वपूर्ण चतुर्थ चरण
    • आत्मदीपक जल रहे हैं।
    • आत्मदीपक जल रहे हैं (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • क्राँति -बीज
    • साहस और इच्छाशक्ति से ही हुई है मानवी प्रगति
    • VigyapanSuchana
    • सिद्धि का मर्म-निष्काम कर्म
    • VigyapanSuchana
    • परमचेतना का चुना हुआ देश भारत
    • हो जीवन के तार तरंगित की स्वर-लहरियों से
    • Quotation
    • इतना आसान नहीं है कुंडलिनी जागरण
    • आज भी देखे जा सकते हैं अष्टावक्र
    • Quotation
    • असमर्थों को भी पार लगाती सामूहिक उपासना
    • पुण्य धर्म की खेती है - सत्य
    • Quotation
    • दमन दान और दया
    • चिरपुरातन, फिर भी चिरनवीन वास्तुशास्त्र
    • करुणा और विवेक से जनकल्याण
    • Quotation
    • मानव-जीवन एक पवित्र धरोहर
    • पवित्र कार्य का माना गया (kahani)
    • सक्षम-सबल है, आज की नारी
    • प्रज्ञा परिजनों के लिए सात प्रतिबंध
    • आत्मिक प्रगति का ककहरा
    • आत्मिक प्रगति का उच्चस्तरीय मार्गदर्शन है इन पत्रों में
    • जिनने ब्रह्मकमल को पूरी तरह खिलाया
    • महाशक्ति गायत्री का साकार विग्रह थे वे
    • भावभरे पुरुषार्थ के लिए विशेष आह्वान
    • अपनों से अपनी बात-1 - प्रतिभाओं की सिद्धि से महायज्ञ की महापूर्णाहुति
    • अपनों से अपनी बात-2 - जलते दीपक संपन्न करेंगे यह महापूर्णाहुति
    • अपनों से अपनी बात-3 - संभागीय महापूर्णाहुति के बाद अब है तीन स्तरों वाला अति महत्वपूर्ण चतुर्थ चरण
    • आत्मदीपक जल रहे हैं।
    • आत्मदीपक जल रहे हैं (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2000 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपनों से अपनी बात-2 - जलते दीपक संपन्न करेंगे यह महापूर्णाहुति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
सारा राष्ट्र व विश्व इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। समझदारी इसी में है कि इस समय का उपयोग अपने राष्ट्र के भाग्य और भविष्य का निर्माण करने के लिए किया जाए। श्री अरविंद ने 1904 में एक पुस्तिका लिखा थी ‘भवानी मंदिर’। इसमें उन्होंने चेताया था कि “भारतमाता जो आदि जननी है, असल में पुनर्जन्म लेने का प्रयास कर रही है। असह्य वेदना और आँखों में आँसू लिए है। उसे कठिनाई किस बात की है ? इतनी विशाल होते हुए भी वह अशक्त क्यों है ? अवश्य ही हममें कोई भारी दोष होगा। हमारी पास बाकी सभी चीजें है। बस हम शक्तिशून्य हैं, ऊर्जा का हममें अभाव है। हमने शक्ति को त्याग दिया अथवा शक्ति द्वारा हम त्याग दिए गए। हमारी माता का वास हमारे अंतःकरण में, मस्तिष्क में, भुजाओं में नहीं है।” श्री अरविंद की चेतावनी इस विषय में थी कि बल हमारे अंदर से स्वतः स्फूर्ति हो प्रकटे एवं हम सही माइनों में राजनैतिक-सांस्कृतिक स्वातंत्र्य प्राप्त करें।

आई.सी.एस. की पढ़ाई पूरी कर चुके श्री अरविंद घोष की भारतमाता के विषय में यह बड़ी स्पष्ट मान्यता थी। 30 अगस्त 1905 को उनके द्वारा अपनी पत्नी मृणालिनी देवी को लिखे एक पत्र को यहाँ उद्धृत करने की इच्छा हो रही है, जिसमें उन्होंने राष्ट्रचिंतन को और अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा था, “लोग अपने देश को एक जड़ पदार्थ का टुकड़ा समझते हैं-खेत, वन और पहाड़ियों-नदियों के रूप में, लेकिन मैं आपने देश को अपनी माता मानता हूँ। मैं उसकी आराधना करता हूँ, माता के रूप में उसकी पूजा करता हूँ। यदि कोई राक्षस किसी पुत्र की माता की छाती पर चढ़कर उसका खून चूसने लगे, तो वह पुत्र क्या करेगा ? मैं यह जानता हूँ कि मुझ में इस गिरे हुए राष्ट्र को उबारने की ताकत है। शारीरिक शक्ति की बात नहीं, मैं कोई तलवार या बंदूक उठाकर लड़ने नहीं जा रहा, पर मैं ज्ञान की शक्ति से विजय प्राप्त करूंगा।” यह है सही मायने में आस्था-विश्वास, वह भविष्य-दृष्टि जो किसी भी संस्कृति को, राष्ट्र को अमरत्व प्रदान करती है।

आज के भ्रष्ट, नैतिक मूल्यों से रहित समाज को, अविश्वास से भरे सामाजिक जीवन को जब हम देखते हैं, तो मन में संशय उठता है कि कैसे बनेगा यह राष्ट्र भारतवर्ष महान् ? कैसे करेगा यह मार्गदर्शन सारे विश्व का और कैसे उबरेगी मानवजाति ? लगता है कि हम सभी को पुनः भारतवर्ष के प्राण अध्यात्म को, ज्ञान की शक्ति को, जिसकी चर्चा श्री अरविंद ने ऊपर की, पुनर्जागृत करना होगा, इसी प्रेरणा को जन-जन के रग-रग में भरना होगा, तभी होगा खंडहरों में से भारत का पुनर्जन्म। हाँ, इस शीर्षक से लिखी श्री अरविंद की पुस्तक भी साररूप में यही कहती है कि यही भारत की मूल ताकत है एवं विज्ञान की शक्ति के साथ मिलकर यह एक नए वाद ‘वैज्ञानिक अध्यात्मवाद’ की भूमि पर, हमारे परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी के शब्दों में, एक नए सशक्त जगद्गुरु के रूप में भारतवर्ष को पुनः इसी इक्कीसवीं शताब्दी में (2057 वि. संवत् से 2065 तक) स्थापित करके रहेगी। क्या यह संभव हो सकेगा ?

इन दिनों सारा विश्व एक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। जहाँ एक ओर विज्ञान की खोजों ने, उपग्रहों व इंटरनेट के जाल ने उसे एक ‘ग्लोबल ग्राम’ बना दिया है, वहीं व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की भावनात्मक दूरी भी बढ़ा दी है। 1902 की 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद के महाप्रयाण से लेकर 1950 की 5 दिसंबर को श्री अरविंद के ब्रह्मलीन होने एवं 2 जून गायत्री जयंती 1990 को परमपूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म में विलीन होने तक का समय इसी सहस्राब्दी के अंतिम शतक में बीता, जिसके अंतिम वर्ष से हम गुजर रहे हैं। एक असीम शतक में बीता, जिसके अंतिम वर्ष से हम गुजर रहे हैं। एक असीम संभावनाओं को लिए एक नया वर्ष, एक नई शताब्दी, एक नई सहस्राब्दी हमारा स्वागत करने को तैयार खड़ी है, मात्र दो सौ दिन बाद। इस 98 वर्ष में न जाने कितना जल गंगा में बह गया, वह एक पुण्यतोया सदानीरा भागीरथी से एक छोटे-से गंदे नाले के प्रवाह में बदल गई। न जाने कितना रक्त बह गया इस धरती पर सारे विश्वयुद्ध व सर्वाधिक मौतें इसी एक सदी में हुई। एक प्रश्न पूछती है भारत की एक अजन्मी आत्मा कि क्या मैं सुरक्षित रहूँगी नई सहस्राब्दी में भारतभूमि में जन्म लेकर। हमें उसे आश्वासन ही नहीं देना है, वह वातावरण भी देना है, जिसमें वह जी सके, घुट-घुटकर मर न जाए, जैसा कि उच्चस्तरीय आत्माओं के साथ सदैव होता रहा है।

वस्तुतः यह मानव मात्र के भाग्यनिर्माण की, विश्व के भविष्य निर्माण की वेला है। पिछले अंधकार युग की विभूतियाँ इन दिनों वैज्ञानिक, बौद्धिक, आत्मिक प्रगति का ईंधन पाकर दावानल की तरह भड़क उठी है। ज्वालामुखी संकटों की तरह ऐसे संकट उभर रहे है, जिनके समाधान नहीं सूझते। एक जगह से सीना पूरा हो नहीं पाता, इसके पूर्व दूसरे दस जगह से कथरी फट जाती है। सड़े-गले को गलाने की, ढालने की इन घड़ियों में महाकाल की युगाँतरीय चेतना अधिकाधिक प्रखर होती चली जा रही है। जिनके पास आँखें हों, वे ही आज इस महान् परिवर्तन के पुण्य पर्व का महात्म्य और महत्व समझ सकेंगे अन्यथा इतिहासकार तो इस परिवर्तन काल के घटनाक्रम का उल्लेख करेंगे ही और भावी पीढ़ियाँ इसे रुचिपूर्वक पढ़ेगी भी।

आपत्तिकाल में सामान्य नियम नहीं चलते। इन दिनों विशेष निर्धारण होते हैं, विशेष क्रियाकलाप चलते हैं। मुहल्ले के किसी मकान में आग लगी हो तो सामान्य दैनिक कृत्यों में नहीं उलझा जाता। उस समय विशिष्ट परिस्थितियों का सामना करने के लिए जाग्रतों को जुटना पड़ता है। हानि-असुविधा कुछ भी सहनी पड़े लगना तो पड़ता ही है। जाग्रत् आत्माओं को भी ऐसी संधिवेला में अपना विशिष्ट दायित्व निभाने आगे आना होगा।

साहसिक शूरवीरों की तरह अब नवयुग के अवतरण में जागृतात्माओं की भगीरथ भूमिका आवश्यक हो गई है। इसके बिना तपती भूमि और जलती आत्माओं को तृप्ति देने वाली, सगरपुत्रों को शाप से उबारने वाली गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतरने के लिए सहमत न किया जा सकेगा, यह वस्तुतः देवत्व की प्रतिष्ठा का समय है, जिसमें समूह का बल ही सक्रिय भूमिका निभा सकेगा। नवयुग की योजनाओं को बनाते रहने का समय अब बीत गया। अब तो करना ही शेष है। विचारणा को तत्परता में बदलने की घड़ी आ पहुँची है। भावनाओं का परिपाक सक्रियता में होने की प्रतीक्षा की जा रही है। असमंजस में जीने का समय नहीं है यह।

किया क्या जाए ? कैसे नवसृजन के इस पावन यज्ञ में अपनी आहुति डाली जाए ? इसके लिए ज्ञानयज्ञ की, विचारक्राँति की लाल मशाल जो जनमानस के परिष्कार के लिए प्रज्वलित की गई थी, के प्रकाश को प्रखर बनाने हेतु तत्पर होना पड़ेगा। यह प्रखरता इस मशाल में जिस तेल से आएगी, वह आग्रतात्माओं के भावभरे त्याग-बलिदान से ही प्राप्त किया जा सकेगा। व्यक्ति, परिवार और समाज की अभिनव रचना के लिए न तो साधनों की आवश्यकता है और न परिस्थितियों के अनुकूल होने तक प्रतीक्षा करने की। उसके लिए तो ऐसी प्रखर प्रतिभाएँ चाहिए, जिनकी नसों में भावभरा ऋषिरक्त प्रवाहित हो रहा हो। उनके लिए जिस धातु की आवश्यकता है, वह आदर्शों के प्रति अटूट आस्था की भट्ठी में ही तैयार होती है। इससे कम में भावनात्मक नवसृजन हो नहीं सकता। अष्टधातु के ढले प्राणवान् व्यक्तियों की ही इन दिनों आवश्यकता पड़ रही है। वे छद्मवेशधारी लूटने-खसोटने वालों की अनगढ़ भीड़ में कहीं दुबके पड़े हैं या आत्मविस्मृति के गर्त से उबरे हेतु सही समय की राह देख रहे हैं। विचारक्राँति अभियान की प्रतिभा परिष्कार योजना, विभूति नियोजन प्रक्रिया इसी निमित्त एक विराट् धर्मानुष्ठान के समापन पर एक महापूर्णाहुति की वेला के रूप में सामने आई है। लोकसेवा के व्यापक क्षेत्र में न जाने कितने पाखंडी घात लगाए बैठे दिखाई पड़ते हैं, एन.जी.ओ. के नाम पर सेवा का दंभ भरते दिखाई पड़ते हैं। पर प्रकाश तो हमेशा जलते दीपकों से ही होता है। ऐसे जलते दीपकों को महापूर्णाहुति के विभिन्न चरणों में दीपयज्ञों की आभा में टटोला व पुनः प्रज्वलित किया जा रहा है, स्नेह का घृत डालकर उनकी प्रखरता को जीवंत रखने का प्रयास युगचेतना द्वारा संपन्न हो रहा है।

गायत्री परिवार के अब तक के इतिहास में ऐसा महापराक्रम से भरा अवसर पहली बार आया है, जब सारे राष्ट्र ही नहीं, विश्व को मथा जा रहा है। प्रतिभाओं का गहन मंथन कर नवनीत निकाला जा रहा है। यह वर्ष महापूर्णाहुति वर्ष है, गुगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति, एक शताब्दी के सामरिक पुरुषार्थ की महापूर्णाहुति। अगला वर्ष युगचेतना के भरती पर अवतरण के 75 वें वर्ष की रजतजयंती के रूप में मनाया जाने वाला है। सभी जानते हैं कि ‘अखण्ड दीपक’ के रूप में युगचेतना नए युग का संदेशा लेकर धरती पर 1923 की वसंत पंचमी 18 जनवरी की ब्रह्ममुहूर्त की पावन वेला में आई। साथ ही परमवंदनीय माताजी भी धरती पर इसी वर्ष आश्विन कृष्ण चतुर्थी के पावन दिन अवतरित हुई। इस वर्ष को तीसरा सौभाग्य मिला श्री अरविंद के द्वारा भागवत् चेतना के धरती पर अवतरण का वर्ष घोषित करने के रूप में। इस वर्ष के अंत के आते-आते श्री अरविंद ने अपने को पूरी तरह बहिरंग गतिविधियों से खींच लिया था।

महापूर्णाहुति का अंतिम चरण 29 जनवरी वसंत पंचमी 2001 से आरंभ होकर 1 जून गायत्री जयंती तक चलेगा। यह समय आते-आते भारतवर्ष अपने विराट रूप में अपनी संतानों के माध्यम से पुनः प्रतिष्ठित होगा। युगचेतना के अवतरण की रजतजयंती निश्चित ही भारत ही नहीं, सारे विश्व के पुनर्जागरण का पावन संदेश लेकर आ रही है। उसके पूर्व का समय हम सबके लिए भारी जिम्मेदारी भरा, विशिष्ट अवसरों से युक्त एवं समूह मन की उच्चस्तरीय साधना का समय है। कोई भी जागृतात्मा इस पावन सुयोग से वंचित न रहने पाए।

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • क्राँति -बीज
  • साहस और इच्छाशक्ति से ही हुई है मानवी प्रगति
  • VigyapanSuchana
  • सिद्धि का मर्म-निष्काम कर्म
  • VigyapanSuchana
  • परमचेतना का चुना हुआ देश भारत
  • हो जीवन के तार तरंगित की स्वर-लहरियों से
  • Quotation
  • इतना आसान नहीं है कुंडलिनी जागरण
  • आज भी देखे जा सकते हैं अष्टावक्र
  • Quotation
  • असमर्थों को भी पार लगाती सामूहिक उपासना
  • पुण्य धर्म की खेती है - सत्य
  • Quotation
  • दमन दान और दया
  • चिरपुरातन, फिर भी चिरनवीन वास्तुशास्त्र
  • करुणा और विवेक से जनकल्याण
  • Quotation
  • मानव-जीवन एक पवित्र धरोहर
  • पवित्र कार्य का माना गया (kahani)
  • सक्षम-सबल है, आज की नारी
  • प्रज्ञा परिजनों के लिए सात प्रतिबंध
  • आत्मिक प्रगति का ककहरा
  • आत्मिक प्रगति का उच्चस्तरीय मार्गदर्शन है इन पत्रों में
  • जिनने ब्रह्मकमल को पूरी तरह खिलाया
  • महाशक्ति गायत्री का साकार विग्रह थे वे
  • भावभरे पुरुषार्थ के लिए विशेष आह्वान
  • अपनों से अपनी बात-1 - प्रतिभाओं की सिद्धि से महायज्ञ की महापूर्णाहुति
  • अपनों से अपनी बात-2 - जलते दीपक संपन्न करेंगे यह महापूर्णाहुति
  • अपनों से अपनी बात-3 - संभागीय महापूर्णाहुति के बाद अब है तीन स्तरों वाला अति महत्वपूर्ण चतुर्थ चरण
  • आत्मदीपक जल रहे हैं।
  • आत्मदीपक जल रहे हैं (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj