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Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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हर दिन नया जन्म, हर दिन नई मौत - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों! अपने भारतीय धर्म में संध्यावंदन के दो समय नियुक्त हैं, एक प्रातःकाल एवं दूसरा सायंकाल। जब रात्रि और दिन दोनों मिलते हैं, तो उसे ‘संध्याकाल’ कहते हैं। यह सबेरे भी होता है और सायंकाल को भी होता है। इसलिए संध्यावंदन जब सूर्य उदय होता है तब और जब सूर्य अस्त होता है तब करना चाहिए। अध्यात्मिक जीवन में इस संध्यावंदन को हम एक और तरीके से कर सकते हैं। सोने को हम रात मान लें और जागने को दिन मान लें, तब प्रातःकाल एवं सायंकाल की संध्यावंदन का अध्यात्मिक समय वह बनेगा, जब आदमी सोकर उठेगा अथवा सोएगा।

प्रातःकाल की और सायंकाल की संध्यावंदन के लिए यही हो सकता है कि लोग शिकायत करें कि उस वक्त तक हमारी नींद नहीं खुलती हैं, उस वक्त तक तो हम दुकान पर रहते हैं, अमुक काम करते हैं। परंतु यह संध्यावंदन हरेक आदमी के लिए संभव है कि वह जब प्रातःकाल उठे, किसी भी वक्त तो उठेगा, अतः कभी भी सोए तो जो सोने का समय हो, उसे रात्रि का संध्यावंदन काल मान लिया जाए और जब उठ जाए, तो प्रातःकाल का संध्यावंदन का समय मान लें, तब फिर किसी को यह शिकायत नहीं रहेगी कि हमको साधना-उपासना के लिए, संध्यावंदन के लिए समय नहीं मिलता।

सबसे सरल तरीका

मित्रों! दैनिक उपासना करने के संबंध में लोगों को एक और भी शिकायत रहती है कि हमको जाड़े के दिनों में ठंड लगती हैं, स्नान करना संभव नहीं होता, कैसे उठें, पानी मिलता नहीं है। उसके लिए यह संध्यावंदन, जो आपको हम बता रहे हैं, इसको आप यहाँ से जा करके नियमित रूप से करते रहें। संध्यावंदन के लिए ऋषियों ने जो प्रातःकाल और सायंकाल का समय बताया हैं, उसके स्थान पर प्रातःकाल सो करके उठने का समय और रात्रि को सोने का समय, यह दो समय आपके लिए हम नियुक्त किए देते हैं। कई लोगों के पास स्थान नहीं होता है, पर स्थान नहीं हैं, पूजा का सामान नहीं हैं, नहाने का समय नहीं हैं, तो न सही, फिर आप ऐसा करें, चारपाई पर पड़े-पड़े ही संध्यावंदन कर लिया करें। इसके लिए न उठने की जरूरत है और न कुछ है। इससे सरल तो संध्यावंदन का और कोई तरीका हो ही नहीं सकता। यह सबसे सरलतम तरीका है कि आप प्रातःकाल और सायंकाल का संध्यावंदन अपनी चारपाई पर पड़े हुए भी उस समय कर लिया करें, जबकि आपकी नींद खुलती है और आप नींद लेने के लिए जाते हैं। दोनों समय की इस संध्या को आप भूलना मत। इसमें सिवाय आपकी लापरवाही और गैर जिम्मेदारी के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं हो सकती? आप चाहें तो नियमित रूप से, हर परिस्थितियों में, बीमारियों में भी, सफर में भी, कही भी यह संध्यावंदन कर सकते हैं।

नया जन्म नई मौत

मित्रों! सायंकाल की संध्या और प्रातःकाल की संध्या में क्या करें? क्या करना चाहिए, क्या विचार करना चाहिए? आपको इन दोनों समयों में आत्मबोध और तत्वबोध की साधना करनी चाहिए। प्रातःकाल जब आप उठा करें, तो एक नए जीवन का अनुभव किया कीजिए कि रात को सोने का अर्थ हैं, ‘पिछले जन्म की स्मृति और उस दिन की मौत’ सबेरे उठने का अर्थ हैं, ‘नया जन्म’। ‘जब आँख खुली तब नया जन्म’ आप यह अनुभव कर लिया करें, तो मजा आ जाए। आप हर दिन सबेरे यह अनुभव किया कीजिए कि हमारा नया जन्म हो गया। अब नए जन्म में क्या करना चाहिए? आपकी सारी बुद्धिमानी इस बात पर टिकी हुई है कि आपने अपनी जीवन संपदा का किस तरीके से उपयोग किया। यह मानना सही नहीं है कि यह जन्म भजन करने के लिए मिला हुआ है। नहीं मित्रो! यह जीवन भजन करने के लिए नहीं मिला हुआ हैं, वरन् इसलिए मिला हुआ है कि आप इस जीवन की संपदा को ठीक तरीके से इस्तेमाल करें। यह आपकी परीक्षा है। परीक्षा में जो पास हो जाते हैं, तो और आगे चढ़ा दिए जाते हैं।

साथियों! यह जो पहली परीक्षा भगवान् ने आपको मनुष्य का जीवन देकर ली है, उसमें आपका एक ही फर्ज हो जाता है कि आप इसका अच्छे-से-अच्छा उपयोग करके दिखाएँ। बस भगवान् ने यही अपेक्षा की है आप से, यही उम्मीद है और यही वह चाहता है। वह न आपसे पूजा चाहते हैं, न उपहार चाहता है, न भजन चाहता है, न मनुहार चाहता है, न मिठाई चाहता है, न कपड़े चाहता है, न कथा चाहता है, न कीर्तन चाहता है। इन सब बातों से भगवान् का कोई ताल्लुक नहीं है। यह तो अपने आपके परिशोधन की प्रक्रियाएँ हैं। न जाने क्यों लोगों ने यह मान लिया है कि इससे भगवान् प्रसन्न हो जाएगा। आप लोग विश्वास रखें, इससे भगवान् कभी प्रसन्न नहीं हो सकता। इससे आपको जीवन संशोधन करने में, कार्य निवारण करने में तो सहायता मिल सकती हैं, लेकिन जहाँ तक भगवान् की प्रसन्नता का ताल्लुक हैं, वहाँ सिर्फ एक बात है कि आपको जो बहुमूल्य मनुष्य का जीवन दिया गया था, उस जीवन का आपने किस तरीके से और कहाँ उपयोग किया। बस यही एक प्रश्न है, दूसरा कोई प्रश्न नहीं है। तब आपको यह दिया गया हैं, तो विश्वास रखें कि भगवान् ने अपनी बहुमूल्य संपत्ति आपके हाथ कर दी। इससे बड़ी संपत्ति भगवान् के खजाने में और कोई नहीं है।

आदमी बनने का प्रयास करें

मित्रों! मनुष्य के जीवन में बढ़कर और क्या हो सकता है? आप दूसरे प्राणियों पर नजर डालिए न। कोई नंगा फिर रहा हैं, किसी के खाने का ठिकाना नहीं हैं, कोई कहीं हैं, तो कोई कहीं हैं, न बोल सकता है, न लिख सकता है। किंतु आपको सारी सुविधाओं से भरा हुआ जीवन इसलिए दिया गया है कि आप उसका अच्छे-से-अच्छा उपयोग करके दिखाएँ। क्या अच्छा उपयोग हैं, एक आप स्वयं को ऐसा बनाएँ, जिसको कि आदमी कहा जा सकता है। दूसरों के सामने आपका उदाहरण इस तरीके से पेश होना चाहिए कि जिसको देख करके दूसरे आदमियों को प्रकाश मिलें, रोशनी मिले या पीछे चलने का मौका मिले और आपकी अंतरात्मा कषाय-कल्मषों का परिशोधन करती हुई साफ और स्वच्छ बनती चली जाए। यह आपका स्वार्थ है। और परमार्थ? परमार्थ यह है कि भगवान् की इस विश्व-वाटिका में, जिसमें कि आपको काम करने के लिए भेज गया हैं, उसमें आप एक अच्छे माली के तरीके से काम करें। भगवान् को साथियों की जरूरत है, इंजीनियरों की जरूरत हैं, ताकि उनमें इतने बड़े बगीचे, इतने बड़े कारखाने की सुव्यवस्था करने में वे हाथ बँटा सकें। आपको हाथ बँटाने के लिए पैदा किया गया है, खुशामदें करने के लिए नहीं, नाक रगड़ने के लिए नहीं, चापलूसी करने के लिए नहीं, चमचागिरी करने के लिए नहीं, मिठाई, उपहार भेंट करने के लिए नहीं पैदा किया गया। आपको सिर्फ इसलिए पैदा किया गया है कि बेहतरीन जिंदगी जिएँ और भगवान् के काम में हाथ बँटाएँ।

इसके लिए मित्रों क्या करना चाहिए? आमतौर से आदमी काम की बातें भूल जाते हैं और बेकार की बातें, बेवकूफी की बातें सब याद रखते हैं। आपको सबेरे उठते ही प्रातःकाल चारपाई पर पड़े-पड़े यह ध्यान करना चाहिए कि आज हमारा नया जन्म हुआ है और हमको इतनी बड़ी कीमत मिली, संपत्ति मिली कि जिसकी तुलना में और किसी प्राणी को कोई चीज नहीं मिली। आप अपने आपको सौभाग्यवान् महसूस कीजिए, भाग्यशाली अनुभव कीजिए। यह अनुभव कीजिए कि हमारे बराबर भाग्यशाली कोई नहीं। अभावों की बात, चिंता की बात, कठिनाइयों की बात आप सोचते रहते हैं, लेकिन यह क्यों नहीं सोचते कि आप कितने शक्तिशाली हैं कि इतना बड़ा जीवन आपको भगवान् ने दिया। आप अपने भाग्य को सराहें और सराहना के साथ-साथ एक और बात ध्यान में रखें। आप एक ऐसी ‘स्कीम’ बनाएं, ‘योजना’ बनाएँ, जिससे इस जीवन का अच्छे-से-अच्छा उपयोग करना संभव हो सके।

जीवन सँवारने के सूत्र

मित्रों! यह प्रयोग एक दिन के जीवन से करना चाहिए। जिस दिन आप सोकर उठें, उसी दिन आप यह याद रखिए कि बस हमारे लिए एक ही दिन जिंदगी का है और इस आज के दिन को अच्छे-से-अच्छा बनाकर दिखाएँ। बस, इतने क्रम को दैनिक जीवन में सम्मिलित कर लें, तो इसे रोज-रोज अपनाते हुए आप अपनी सारी जिंदगी को अच्छा बना सकते हैं। एक-एक दिन को हिसाब से जोड़ देने का मतलब होता है, सारे समय को और सारी जिंदगी को ठीक तरह और सुव्यवस्थित बना देना। आप प्रातःकाल उठा कीजिए और यह ध्यान किया कीजिए कि ‘हर दिन नया जन्म और हर दिन नई मौत को आप प्रातःकाल से सायंकाल तक कैसे प्रयोग करेंगे? इसके लिए सुबह से ही उठकर टाइमटेबिल बना लेना चाहिए कि आज आप क्या करेंगे, कैसे करेंगे और क्यों करेंगे? क्रिया के साथ में आप चिंतन को जोड़ दीजिए। चिंतन और क्रिया को जोड़ देते हैं, तो दोनों से एक समग्र स्वरूप बन जाता है। आप शरीर से काम करते रहें, मगर कोई उद्देश्य न हो अथवा अगर आप उद्देश्य ऊँचे रखें, लेकिन उसे क्रियान्वित करने का कोई मौका न हो, तो दोनों ही बातें बेकार हो जाएँगी। इसलिए मित्रो! सबेरे उठते ही जहाँ अपने जीवन को सराहें या मनुष्य जीवन पर गौरव का अनुभव करें, वहाँ एक बात और साथ-साथ में चालू कर दें, सुबह प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक का एक ऐसा टाइमटेबिल बनाएँ जिसको कि सिद्धाँतवादी कहा जा सके, आदर्शवादी कहा जा सके। इसमें भगवान् की हिस्सेदारी रखिए। शरीर के लिए भी गुजारे का समय निकालिए, भगवान् के लिए भी गुजारे समय निकालिए। आपके जीवन में भगवान् भी तो हिस्सेदार हैं, उसके लिए भी तो कुछ करना है। आपका शरीर ही सब कुछ थोड़े ही है, आत्मा भी तो कुछ है। आत्मा के लिए भी तो कुछ किया जाना चाहिए। सब कुछ शरीर को ही खिलाने-पिलाने के लिए करेंगे क्या? ऐसा क्यों करेंगे? आत्मा का कोई औचित्य नहीं है क्या? आत्मा की कोई इज्जत नहीं है क्या? आत्मा का कोई मूल्य नहीं है क्या? आत्मा से आपका कोई संबंध नहीं है क्या? अगर है तो फिर आपको ऐसा करना पड़ेगा कि साथ-साथ दिनचर्या में आदर्शवादी सिद्धाँतों को मिलाकर रखना पड़ेगा।

मित्रों! अपनी दिनचर्या ऐसी बनाइए जिसमें आपके पेट भरने की भी गुंजाइश हो और अपने कुटुँब के परिवार के लोगों के लिए भी गुंजाइश हो और अपने कुटुँब के परिवार के लोगों के लिए भी गुंजाइश हो। लेकिन साथ-साथ में एक और गुंजाइश होनी चाहिए कि अपनी आत्मा को संतोष देने के लिए और परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कार्यों का और विचारों का भी समावेश हो। आप स्वाध्याय का दैनिक जीवन में स्थान रखिए। आप सेवा का दैनिक जीवन में स्थान रखिए, आप उपासना का दैनिक जीवन में स्थान रखिए। इन सब बातों का समन्वित जीवन का अभ्यास कर लें, तो कल प्रातःकाल वाला संध्यावंदन पूरा हो हो जाएगा।

व्यस्त रहें, जीवनचर्या व्यवस्थित बनाएँ

जीवन की अनुभूति, जीवन की महत्ता की अनुभूति के साथ-साथ में सोते समय तक की सारी कार्य विधि का निर्धारण अगर आप कर लेते हैं, तो फिर आपकी उन-उन खुराफातों से बचत हो जाएगी, जो कि आप गृहस्थ जीवन के अभाव में करते रहते हैं। जो आदमी व्यस्त हैं, वह एक निर्धारित लक्ष्य में लगा रहता है। जो आदमी खाली है अर्थात् जो शरीर से खाली होगा, तो उसका दिमाग भी खाली होगा और दिमाग का खाली होना शैतान की दुकान है। इसलिए अपना दिमाग शैतान की दुकान न होने पाए और आपका शरीर खाली रहने की वजह से दुष्प्रवृत्तियों में न लगने पाए, इसके लिए बहुत अधिक आवश्यक है कि आप व्यस्तता से भरा हुआ टाइमटेबिल और कार्यक्रम बना लें और उस पर चलें। न केवल टाइमटेबिल बना लें, वरन् यह भी हर समय ध्यान रखें कि जो सबेरे कार्यपद्धति बनाई गई थी, वह ठीक तरीके से प्रयोग होती भी है कि नहीं।

आप अपने टाइमटेबिल में विश्राम का समय भी नियत रखें। यह कोई नहीं कहता कि विश्राम मत रखिए, लेकिन विश्राम भी एक समय से होना चाहिए, टाइम से होना चाहिए और एक विधि से होना चाहिए। चाहे जहाँ जरा-सा काम किया और फिर विश्राम, जरा-सा काम और फिर विश्राम ऐसे कोई काम होते हैं क्या? काम करने की शैली ही कर्मयोग है। कर्मयोग को अगर आप ज्ञानयोग में मिला दें, संध्यावंदन में मिला दें, तो मजा आ जाए, सारी की सारी दिनचर्या को आप भगवान् का कार्य मानकर चलें, तो फिर समझिए आपकी प्रातःकाल की संध्या पूर्ण हो गई।

इसके बाद अब सायंकाल की संध्यावंदन का नंबर आ गया। आप सायंकाल की संध्या उस समय किया कीजिए, जब आप साया करें। जब भी सोएँ-नौ बजे, ग्यारह बजे, बारह बजे, सोना तो आखिर है ही आपको। जब सोएंगे, तो यह बात भी सही है कि आप नींद की गोद में अकेले ही जाएँगे। ठीक हैं, बच्चे बगल में सोते हों तो क्या और कोई सोता हो तो क्या, परंतु नींद तो आपको अकेले ही को आएगी न, दो को तो एक साथ नहीं आ सकतीं? आप सुबह उठेंगे, तो अकेले उठेंगे न, दो तो एक साथ नहीं उठा सकते? यह आपका एकाँत जीवन है। सायंकाल को सोते समय आप उस एकाँत जीवन में ऐसे विचार किया कीजिए कि हमारे जीवन का अब समाप्ति का समय आ गया, अंत आ गया। अंत को लोग भूल जाते हैं। आदि को भी भूल जाते हैं बस मध्य में ही उलझे रहते हैं।

आदि और अंत का ध्यान

मित्रो! आदि यह है मनुष्य योनि में जन्म का सौभाग्य और उसको ठीक तरीके से उपयोग करने का निर्धारण। और अंत? अंत वह है जिसमें भगवान् के दरवाजे पर जाना ही पड़ेगा, भगवान् की कचहरी में पेश होना ही पड़ेगा, इससे कोई बचत नहीं हो सकती। आपको भी दूसरों की तरह मरना ही पड़ेगा और मरना भी चाहिए। यह नहीं हो सकता कि आपके मरने का कोई दिन न आए, जरूर आएगा, निश्चित आएगा। जब आपके मरने का दिन आएगा, तो फिर क्या होगा? तब आपको यहाँ से जाने के बाद में सीधे भगवान् के दरबार में जाना पड़ेगा और सिर्फ एक बात का जवाब देना पड़ेगा कि आपने इस जिंदगी का कैसे इस्तेमाल किया। अगर आपने ठीक तरीके से इस्तेमाल नहीं किया हैं, तो भगवान् आपसे बेहद नाराज होंगे, भले ही आपने अनुष्ठान किया हो, तीर्थयात्रा की हो, उपवास किए हों, तिलक लगाए हों, जो भी किया हो, इससे भगवान् का कोई समाधान होने वाला नहीं है।

इसलिए रात्रि को सोते समय यह ख्याल किया कीजिए कि अब हमारे जीवन का अंत है और अंत को अगर आप ध्यान कर लें तब? तब फिर आप चौंक पड़ेंगे। जिंदगी भर आदमी न जन्म को याद किया करें, तो मजा आ जाए। सिकंदर जब मरने को हुआ, तो उसने सब लोगों को बुलाया और कहा कि हमारा सब माल-खजाना हमको दीजिए, हम साथ लेकर के जाएंगे। क्योंकि बड़ी मेहनत से भी कमाया है और बड़ी बेईमानी से भी कमाया है। उसने जो कमाया था लोगों ने वह सब उसके सामने रख दिया। सिकंदर कहने लगा कि इसे हमारे साथ भेजने का इंतजाम करो। लोगों ने कहा, यह कैसे हो सकता हैं? यह सब चीजें तो यहीं की थीं और यही पड़ी रह जाएंगी। आप तो बेकार ही कहते हैं कि यह हमारे साथ जाएगा। आपके साथ तो आपका पुण्य और पाप जाएगा और कुछ नहीं जा सकता।

काश! हमें हर पल मौत याद रहे

सिकंदर फूट-फूटकर रोने लगा। उसने कहा कि अगर मुझे यह मालूम होता कि मेरे साथ में केवल पुण्य-पाप ही जाने वाला है, तो मैं इस छोटी-सी जिंदगी को गुनाहों से भरी हुई न बनाता। फिर मैं भगवान् बुद्ध के तरीके से जिया होता, सुकरात के तरीके से जिया होता, ईसा के तरीके से जिया होता। ऐसी गलती क्यों कर डाली? इस संपदा को, जिसकी मुझे जरूरत नहीं थी, उसी को मैं इकट्ठा करता रहा। यह क्यों करता रहा? मौत तो होनी ही है। उसको जब मौत याद आई, तो वह बार-बार यही बोला, मरते वक्त मेरे दोनों हाथ ताबूत से बाहर निकालकर रखना। उसने अपने सैनिकों से कहा कि आप लोग जब हमें दफनाने के लिए जाएँ, तो हमारे दोनों साथ ताबूत से बाहर निकालकर रखना। उसने अपने सैनिकों से कहा कि आप लोग जब हमें दफनाने के लिए जाएं, तो हमारे दोनों हाथ हमारे जनाजे से बाहर निकाल देना, ताकि लोग यह देखें कि सिकंदर खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला गया।

मित्रों! यह वैराग्य श्मशान घाट में ही बन सकता है। श्मशान घाट की एवं मौत की याद आपको आ जाए, तो आप निश्चित ही जो घिनौनी जिंदगी जी रहे हैं, उसकी कतई इच्छा नहीं होगी। फिर आप यह कहेंगे कि इस नए मौके का अच्छे-से-अच्छा उपयोग क्यों न कर लिया जाए।

फिर आप क्या करेंगे? फिर आप अपना टाइमटेबिल और अपनी रीति-नीति ऐसी बनाएंगे जैसे कि राजा परीक्षित ने बनाई थी। राजा परीक्षित को मालूम पड़ गया था कि आज से सातवें दिन साँप काट खाएगा। उसने यह निश्चय किया कि इन सात दिनों का अच्छे-से-अच्छा उपयोग करेंगे। उन्होंने भागवत् कथा का अनुष्ठान किया और दूसरे अच्छे कर्म किए। इससे उनकी मुक्ति हो गई।

मित्रों! सात दिन में तो सबको ही साँप काटने वाला है। आपको भी सात दिन में ही काटेगा। कुल सात ही दिन तो होते हैं न, मौत का साँप इन्हीं दिनों में तो काटता है। सातवें दिन के बाद आठवाँ दिन कहाँ हैं? इसलिए आप भी राजा परीक्षित के तरीके से विचार कर सकते हैं कि हमारी बची हुई जिंदगी, जो मौत के दिनों के बीच में बाकी रह गई हैं, इसका हम अच्छे-से-अच्छा कैसे उपयोग कर सकते हैं? सायंकाल को आप विचार किया कीजिए कि इसका कैसे अच्छे-से-अच्छा उपयोग किया जाए। सायंकाल को दिनभर के कार्यों की समीक्षा किया कीजिए और समीक्षा करने के बाद में यदि लगे कि हमने गलती की या नहीं की। यदि की हैं, तो उसके लिए अपने को धिक्कारिए नहीं, धमकाइए नहीं, वरन् अपने आपको इस बात के लिए रजामंद कीजिए कि जो कुछ आज कमियाँ रह गई अथवा गलतियाँ हो गई, वह कल नहीं होगी। कल हम उस कमी को पूरा कर लेंगे, गलती को सुधार लेंगे। फिर क्या हो जाएगा? कमी की पूर्ति हो जाएगी। अगली बार गलती नहीं होगी, काम बहुत अच्छा हो जाएगा।

गलतियों से सीखें, आत्मचिंतन करते रहें

इस तरह प्रातःकाल जिस तरीके से आपने आज की नीति का निर्धारण किया था, उसी तरीके से आज की गलतियों का और आज की सफलताओं का अनुमान लगाते हुए कल की बावत आप तैयारी कर सकते हैं कि पहले तय कर लेंगे, तो दूसरे दिन आपको सफलता मिलेगी, यकायक चिंतन करेंगे, तो थोड़ा कठिन पड़ेगा। इसलिए हर दिन सोते समय में, मौत की गोद में, नींद की गोद में जाते समय यह विचार लेकर जाया करें कि अब हम इस संसार से चले और भगवान् के यहाँ गए। ऐसी स्थिति में फिर आपको क्या करना चाहिए? लगाव को कम करना चाहिए। लोगों से, वस्तुओं से आपका लगाव जितना ज्यादा होगा, आप उतना ही ज्यादा कष्ट पाएंगे। आप लगाव को कम कीजिए। लगाव ही ज्यादा कष्टकारक है, जिम्मेदारियों का निभाना ज्यादा कष्टकारक नहीं है। जिम्मेदारियाँ तो आपको निभानी ही चाहिए। आप अपनी जिम्मेदारी माता के प्रति निभाइए, पत्नी के प्रति निभाइए, बच्चों के प्रति निभाइए, मोहल्ले के प्रति निभाइए और समाज के प्रति निभाइए, लेकिन लगाव आपको बहुत हैरान कर देगा। हमारा ही बच्चा हैं, यह आप क्यों कहते हैं? यह क्यों नहीं सोचते और कहते कि भगवान का बच्चा है। यह हमारी बीवी हैं, क्यों कहते हैं? यह क्यों नहीं करते कि यह भगवान् की बेटी हैं। यह कह देंगे, तो क्या हो जाएगा?

आप रात्रि को जब सोया करें और मौत को जब याद किया करें, तो साथ में दो बातें और भी याद कर लिया करें कि हम खाली हाथ जा रहे हैं। लालच हमारे साथ जाने वाला नहीं है और मोह भी हमारे साथ जाने वाला नहीं है। हर प्राणी अपने संस्कार लेकर आया है और अपने संस्कार लेकर चला जाएगा। फिर आप उनके मालिक कैसे हुए? संपत्ति जितनी आप खा सकते हैं और जितनी इस्तेमाल कर सकते हैं, उतनी ही तो ले सकते हैं। बाकी जमीन पर ही छोड़नी पड़ेगी, चाहे संबंधियों के लिए छोड़ें, चाहे उत्तराधिकारियों के लिए छोड़ें और चाहे पुलिस वालों के लिए छोड़ें। तो जब छोड़नी ही पड़ेगी, तो आप उन लोगों के लिए क्यों नहीं छोड़ते, जो कि इसके हकदार हैं। आप उतना ही क्यों न कमाएँ, जिससे कि आप ईमानदारी के साथ अपने लोक और परलोक को बनाए रखें। आप अपने खरच उतने ही क्यों न रखें, जिससे कि सीमित आजीविका में ही आदमी का गुजारा चल सकता है।

करें हर क्षण मृत्यु का स्मरण

मित्रों! ऐसे हजारों विचार हैं जो आपको तब आएंगे जब आप यह ख्याल करेंगे कि हमको मौत के मुँह में जाना है। अगर यह ख्याल आप नहीं कर सकते, तो फिर आप पर व्यामोह छाया रहेगा और यही भवबंधन छाए रहेंगे कि और कमाना चाहिए। लालच छाया रहेगा, मोह छाया रहेगा, चाहे उसकी जरूरत हो या न हो। बेटे-पोते सब समर्थ हो गए हैं, फिर भी आप यही सोचते रहेंगे कि इनकी सहायता करें। इनको ही पैसा दें आपके मन में कभी यह ख्याल भी नहीं आएगा कि इनके अलावा भी कोई दुनिया में और भी रहता है। यह त्याग, वैराग्य, भक्ति तब आती है जब आदमी मृत्यु का स्मरण करता है। आप मृत्यु का स्मरण कीजिए। मृत्यु का स्मरण करना बहुत जरूरी है। ॐ कृतो स्मरः......। किसको याद करो, मौत को याद करो। “भस्मीभूतमिदं षरीरं” यह शरीर भस्मीभूत होने वाला है।

आप इस मरने वाले शरीर के बारे में ध्यान रखें कि यह कल या परसों मिट्टी में मिलने वाला है। फिर हम क्यों ऐसे गलत काम करें, जिससे हमारी परंपरा बिगड़ती हो, पीछे वालों को कहने का मौका मिलता हो, धिक्कारने का मौका मिलता हों और आपकी आत्मा को असंतोष की आग में जलने का मौका मिलता हो। आप मत कीजिए ऐसा काम। यह दोनों शिक्षाएं आपको नया जीवन और नई मौत के स्मरण करने से मिल सकती हैं और कोई तरीका नहीं है। आप इन दो संध्यावंदन को भूलिए मत। गुरुजी हम तो उस समय गायत्री मंत्र का जप करते हैं। दूसरे समय पर कीजिए। प्रातःकाल तो यह चिंतन और मनन कीजिए “नया जन्म नई मौत” “और हर दिन को नया जन्म और हर रात को नई मौत।” इस मौत और जिंदगी के झूले में आप झूलते हुए अपने फर्ज, कर्तव्य और बुद्धिमत्ता के बारे में विचार करेंगे, तो ऐसी हजारों बाते मालूम पड़ेंगी, जिसके आधार पर आपका जन्म सार्थक हो सके आप अध्यात्मवाद के सच्चे अनुयायी और उत्तराधिकारी बन सकें। आज आप से यही कहना था। ॥ॐ शांति॥

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