
स्वस्थ रहना हो तो दिल खोलकर हँसे
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हँसी प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया हुआ एक बेशकीमती उपहार है। अन्य किसी प्राणी को यह क्षमता उपलब्ध नहीं, जबकि मनुष्य की चौदह प्रमुख प्रवृत्तियों में से यह एक है। हँसना, ठहाके लगाकर हँसना जहाँ एक सशक्त व्यायाम है वहीं स्वास्थ्य के लिए निसर्ग द्वारा प्रदत्त एक टॉनिक भी है। अंग्रेजी में यह कहावत ठीक ही बनी है कि ‘लॉफ्टर इज द बेस्ट मेडिसिन’ अर्थात् हँसी सर्वश्रेष्ठ दवा है। हँसी जहाँ मानसिक तनाव से राहत दिलाने वाली अचूक औषधि है वहीं मानवीय सम्बन्धों को सरस एवं सुखद बनाकर पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन को सफल बनाने वाला एक निर्णायक साधन भी है। इसके अनगिनत फायदों को देखते हुए हँसी आज वैज्ञानिक शोध अध्ययन का विषय बनी हुई है।
अब तक हुए अनुसंधानों से यह स्पष्ट हुआ है कि हँसी स्वास्थ्य के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितना कि उचित खान-पान। क्रोध, भय, ईर्ष्या, द्वेष जैसे नकारात्मक भाव जहाँ शरीर पर घातक प्रभाव डालते हैं, वहीं हँसी के साथ मानव देह से ऐसे जैव रसायनों का स्रवण होता है जो स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। हँसी व ठहाके लगाकर हँसने के साथ शरीर में एण्डोर्फिन नामक हार्मोन का उत्सर्जन होता है, जो शरीर में सक्रियता, स्फूर्ति एवं प्रसन्नता को जगाता है। इसके अतिरिक्त एपीनेफ्रन, नारेपाइनफ्रीन, डोपामाइन जैसे हार्मोन भी सक्रिय होते हैं, ये सभी शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक गुणकारी जैव रसायन हैं।
ठहाके मारकर हँसने से शरीर के भीतरी अंग-अवयवों की अच्छी खासी कसरत हो जाती है। प्रख्यात् वैज्ञानिक नारमन कजनस, इसे भीतरी ‘जागिंग’ की संज्ञा देते हैं। उनके अनुसार हँसने से न केवल भीतरी अंगों की मालिश होती है, बल्कि दिमागी खिंचाव भी दूर हो जाता है। खुलकर हँसने से शरीर में रक्त का संचार तीव्रगति से होने लगता है, अतः पसीना अधिक आता है, जिसके साथ विजातीय द्रव्य आसानी से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। ठहाके लगाने से पेट और सीने के स्नायु मजबूत होते हैं, फेफड़ों में भरी दूषित वायु बाहर निकल जाती है और ऑक्सीजन का प्रवाह तेज हो जाता है, जिससे कि शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार होने लगता है। इसके साथ तनाव, अवसाद, सिरदर्द,ऊब आदि अपने आप दूर होने लगते हैं। डॉ. नारमन के अनुसार,हँसने से व्यक्ति अपने तनावों और कुण्ठाओं को भूलकर स्वयं को हल्का अनुभव करता है। प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिदिन चार-पाँच किलोमीटर दौड़ने से जितना व्यायाम होता है, उतना कुछ देर जोरदार ठहाके लगाने से हो जाता है। प्रख्यात् चिकित्सक विलियम फ्राय के अनुसार, जब हम हँसते हैं तो हमारे स्नायु व श्वसनतंत्र का खिंचाव बढ़ जाता है, जिससे हमारे भीतर अधिक ऑक्सीजन का संचार होता है। हँसने से चेहरे की माँसपेशियों की भी अच्छी खासी कसरत हो जाती है। डायफ्राग्म की कसरत से रक्त का संचार सुचारु रूप से होता है व पाचन−तंत्र दुरुस्त रहता है।
हँसने के चिकित्सीय प्रभावों पर भी गम्भीर अध्ययन चल रहा है और इसके निष्कर्ष अद्भुत एवं आश्चर्यजनक हैं। न्यूयार्क में ‘ह्यूमर प्रोजेक्ट’ की स्थापना करने वाले डॉ. गुडमैन के अनुसार, यदि कोई दिन में पंद्रह बार हँसे तो उसके डॉक्टर का बिल लगभग न के बराबर होगा। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जोनेथन स्विफट ने विश्व के तीन चिकित्सकों की प्रशंसा की है, ये चिकित्सक हैं- डॉक्टर डाइट (संतुलित आहार), डॉक्टर पीस (शान्ति) और डॉक्टर स्माइल (मुस्कान या हँसी)। हँसी के अद्भुत चिकित्सीय प्रभावों का उल्लेख यूगोस्लाविया के मनोवैज्ञानिक बरोको बोकुल ने अपनी पुस्तक ‘ट्रीटमेंट बाय ह्यूमर’ में किया है। उन्होंने इसे दुर्बलता, सिरदर्द तथा उच्चरक्तचाप का अचूक उपाय बताया है और कैंसर जैसे घातक रोग में तक इसके अद्भुत प्रभावों पर प्रकाश डाला है। डॉ. फ्राय अपने ग्रन्थ ‘ह्यूमर एण्ड एजिंग‘ में लिखते हैं कि उनकी लम्बी उम्र का राज प्रसन्न व हँसमुख रहना है। हास्य के लाभों पर सारगर्भित शब्दों में टिप्पणी करते हुए फ्रेंक इंविंग फ्लेचर नामक विद्वान लिखते हैं कि यह थके हुए के लिए विश्राम है, हतोत्त्साहित के लिए दिन का प्रकाश और उदास के लिए दिन का धूप है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम प्रतिकार है। इस पर खर्च कुछ नहीं आता, किन्तु यह देती बहुत है। इसे पाने वाला मालामाल हो जाता है, साथ ही देने वाला भी दरिद्र नहीं होता।
इस तरह हँसी जीवन का एक अद्भुत वरदान है, जिसके लाभ बहुआयामी हैं। ‘जस्ट फॉर द हेल्थ’ एवं ‘हेल्थ एजुकेशन’ के लेखक डॉ. ज्योल गुडमैन इनका वर्णन करते हुए इन्हें तीन तरह से स्पष्ट करते हैं। प्रथमतः यह शरीर के विकारों का प्राकृतिक ढंग से उपचार करता है, दूसरा यह शरीर को तनाव रहित करता है और तीसरा, हास्य हमारे सामाजिक रिश्तों को मजबूत बनाता है। इस तरह शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के प्राकृतिक संरक्षक एवं संवर्धक के साथ इसे इन्सानी रिश्तों को बढ़ाने, बनाने व इसे निभाने में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व के रूप में स्वीकारा जा रहा है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड इस संदर्भ में हँसी पर बहुत महत्त्व देते थे। उनका मानना था कि हास्य तनाव से मुक्त करता है। पति-पत्नी के जीवन में यदि हास्य की मौजूदगी है तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय एवं सरस होगा, अन्यथा यह नीरस होगा और तलाक की नौबत आ जायेगी। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर. के लक्ष्मण का कहना है कि ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ एक ऐसा हथियार है जिससे केवल दुष्टता खत्म होती है। और यह सच है कि इसके सामने संशय, गलतफहमी, दुर्भाव एवं घृणा, द्वेष जैसे नकारात्मक भाव छूमन्तर हो जाते हैं। प्रसिद्ध फ्राँसिसी दार्शनिक हेनरी, हँसी को सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ने का एक कारगर अस्त्र मानते थे।
आज जब इन्सान जिन्दगी के विषम दौर से गुजर रहा है, समाज तमाम तरह की बुराइयों से ग्रस्त है, तो ऐसे में हँसी के इस अस्त्र को उपयोग में लाने की आवश्यकता भलीभाँति समझी जा सकती है। आज की भागम-भाग जिन्दगी में लोग गम्भीर तनाव में जी रहे हैं और अनिद्रा, उदासी, अवसाद, ब्लडप्रेशर, मधुमेह, हृदयरोग, नपुँसकता, अर्द्धविक्षिप्तता जैसे शारीरिक एवं मानसिक रोग आम होते जा रहे हैं। दिनों-दिन जटिल होती जा रही विषम परिस्थितियों में लोगों का सुख-चैन एवं स्वास्थ्य संतुलन छिनता जा रहा है। ऐसे में हास्य रूपी नैसर्गिक टॉनिक एवं दिव्य अस्त्र का अचूक उपाय आजमाने योग्य है।
तंज को भाँप कर हँसे थे। अधिकतर लोग तो फिजूल की उबाऊ बातों पर ही हँसे थे, मानो हँसने का फर्ज पूरा कर रहे हों।
जो भी हो हास्य के पर्याय अंग्रेजी शब्द ‘ह्यूमर’ का अर्थ मजाक, परिहास आदि है, वहीं इसके इतावली मूल ‘ह्यूमस’ के अनुरूप इसका अर्थ भीतरी गीलापन भी है, जिसे भारतीय मुहावरे ‘अन्दर से गदगद होना’ के रूप में समझा जा सकता है। इस तरह यह एक आन्तरिक उल्लास एवं प्रसन्नता की सुखद स्थिति का द्योतक है। इसे जीवन का एक अभिन्न अंग बना लेने पर हम जीवन के उत्सव का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
कुछ विचारकों के मतानुसार हँसी एक सुखद अनुभव है और इसके आगे-पीछे कुछ नहीं। हँसी के अवसरों को चूको मत। यदि हँसी आये, तो हँसो, खूब जमकर हँसो। हँसी क्यों आयी, कब आयी की सोच में मत पड़ो। हँसी स्वच्छन्द झरने की तरह बहने वाली हो। हँसी के लिए माहौल का इन्तजार करने की भी जरूरत नहीं है। हँसी को उत्पन्न करने वाली घटनाओं को याद करके, उन विनोद एवं उल्लासपूर्ण क्षणों को अनुभव करके, हम कभी भी हँसी को अपने अन्दर पैदा कर सकते हैं। हँसी के इन क्षणों में शरीर रोमाँचित हो उठेगा, हँसी की तरंगें दिल में हिलोरें लेने लगेंगी और रोजमर्रा के भारीपन को बुहारकर हल्केपन का अहसास करायेगी। ऐसे अभ्यास बुढ़ापे के एकाकीपन में विशेष रूप से उपयोगी हैं, जबकि उम्र के अन्तिम पड़ाव में शरीर बोझ रूप लगने लगता है, किन्तु अनुभवी विशेषज्ञों के अनुसार हँसी बुढ़ापे को नजदीक आने नहीं देती। हँसी शरीर के लिए संजीवनी सिद्ध होती है जो रोते हुए को हँसा देती है। बुरे समय में हँसी दवा का काम करती है, खासकर जब कोई अपने साथ नहीं होता। मन को हल्का करने का इससे अच्छा, सरल और सस्ता कोई उपाय नहीं है। इसलिए जब हम खुश हों तो जी खोल कर हँसे और जब खुश न हों तो भी हँसने का प्रयास करें। यह अभ्यास अद्भुत आत्मसंतोष एवं आत्मविश्वास जगाने वाला साबित होगा।
बिना कारण भी हँसने का अभ्यास एक प्रभावी कसरत एवं टॉनिक के बतौर किया जा सकता है। इसी तथ्य के आधार पर पिछले कुछ समय से भारत में ‘लॉफ्टर क्लब’ अर्थात् हास्य या अट्टहास क्लबों की स्थापना हो रही है। लोग सबेरे-सबेरे पार्क में इकट्ठा होकर जोर-जोर से हँसते हैं। बिना कारण हँसते देख अक्सर लोग इनका मजाक भी उड़ाते हैं। लेकिन सच तो यह है कि इनका यह अभ्यास उन्हें कई तरह के छोटे-मोटे रोगों से मुक्त कर रहा है और वे अन्यों की तुलना में अधिक स्वस्थ एवं सजीव अनुभव कर रहे हैं। आज भारत में लगभग 400 से भी अधिक ऐसे क्लब हैं। इन क्लबों के प्रणेता डॉ. मदन कटारिया ‘हास्य योग‘ के रूप में हँसी के स्वास्थ्यवर्धक तकनीकों का विकास विस्तार कर रहे हैं। वर्तमान के तनाव, अवसाद एवं भाग-दौड़ में जी रहे हैरान, परेशान इन्सान की हँसी-खुशी को वापस लाने के ये प्रयास स्तुत्य हैं।
वास्तव में आज भौतिक वाद की आँधी में इन्सान इतना बह रहा है कि वह वर्तमान में अपने जीवन की वास्तविकता में ही जीना भूल गया है। उसकी आकाँक्षायें बढ़ी-चढ़ी हैं। कितनी भी उपलब्धियाँ उसे संतुष्ट नहीं कर पाती। ऐसे में दूसरों का संतोष एवं प्रगति भी ईर्ष्या-द्वेष का कारण बन रही हैं। ऐसे में हँसी के याँत्रिक अभ्यास के साथ यदि हम जीवन की आध्यात्मिक शैली को भी अपना लें तो ऐसे सादे, सरल एवं संयत जीवन में हंसी-खुशी के ढेरों अवसर आयेंगे व जहाँ हम इनके वरदानों से लाभान्वित होंगे, वहीं पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन भी अधिक सरस, सुखी एवं सफल सिद्ध होगा।