• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • युग परिवर्तन और उसकी संभावनाएं
    • इस विषम वेला में हमारा महान् उत्तरदायित्व
    • परिवर्तन का केन्द्र विन्दु—सद्ज्ञान
    • असुरता से देवत्व की ओर
    • सामाजिक प्रगति का एकमात्र आधार
    • यह सत्यानाशी सामाजिक कुरीतियां
    • सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन
    • हमारा समाज असभ्य एवं अविवेकी न हो?
    • सभ्य समाज का स्वरूप और आधार
    • समाज को शक्तिशाली बनावें
    • लोक-मानस की शुद्धि कौन करेगा?
    • समाज सुधार के लिए प्रबुद्ध वर्ग आगे बढ़े
    • सबकी उन्नति में अपनी उन्नति
    • देश के लिए—समाज के लिए
    • मानव-जाति की समस्याएं इस तरह सुलझेंगी
    • आत्म-सुधार-विश्व-कल्याण का सबसे सरल मार्ग
    • सेवा हमारी जीवन नीति बने
    • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है
    • व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदण्ड बदलें
    • धर्म को सम्मानित न किया जाय
    • नागरिकता और नैतिकता की आधारशिला
    • सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन न हो
    • व्यवहार कुशलता की आध्यात्मिक पृष्ठभूमियां
    • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
    • अनुशासन का उल्लंघन न करें
    • मंगल सोचिए, मंगर करिए
    • पहले हम मनुष्य बनें, पीछे कुछ और
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • युग परिवर्तन और उसकी संभावनाएं
    • इस विषम वेला में हमारा महान् उत्तरदायित्व
    • परिवर्तन का केन्द्र विन्दु—सद्ज्ञान
    • असुरता से देवत्व की ओर
    • सामाजिक प्रगति का एकमात्र आधार
    • यह सत्यानाशी सामाजिक कुरीतियां
    • सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन
    • हमारा समाज असभ्य एवं अविवेकी न हो?
    • सभ्य समाज का स्वरूप और आधार
    • समाज को शक्तिशाली बनावें
    • लोक-मानस की शुद्धि कौन करेगा?
    • समाज सुधार के लिए प्रबुद्ध वर्ग आगे बढ़े
    • सबकी उन्नति में अपनी उन्नति
    • देश के लिए—समाज के लिए
    • मानव-जाति की समस्याएं इस तरह सुलझेंगी
    • आत्म-सुधार-विश्व-कल्याण का सबसे सरल मार्ग
    • सेवा हमारी जीवन नीति बने
    • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है
    • व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदण्ड बदलें
    • धर्म को सम्मानित न किया जाय
    • नागरिकता और नैतिकता की आधारशिला
    • सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन न हो
    • व्यवहार कुशलता की आध्यात्मिक पृष्ठभूमियां
    • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
    • अनुशासन का उल्लंघन न करें
    • मंगल सोचिए, मंगर करिए
    • पहले हम मनुष्य बनें, पीछे कुछ और
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - हम बदलें तो दुनिया बदले

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सबकी उन्नति में अपनी उन्नति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 11 13 Last
समाज के विकास के साथ ही व्यक्ति के विकास की सम्भावना जुड़ी है। समाज से प्रथक रहकर अथवा उसके हित की ओर से विमुख होकर कोई व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता। जब-जब मनुष्यों के बीच सामाजिक भावना का ह्रास हो जाता है तब-तब समाज में कलह और संघर्ष की परिस्थितियां बढ़ने लगती हैं। चारों ओर अशान्ति और असुरक्षा का वातावरण व्याप्त रहने लगता है। समाज की प्रगति रुक जाती है और उसी के साथ व्यक्ति की प्रगति भी। इसी हानि को बचाने के लिए हमारे समाज के निर्माता ऋषियों ने वेदों में स्थान-स्थान पर पारस्परिक सहयोग और सद्भावना का उपदेश दिया है—बताया गया है—

‘‘अज्येष्ठासोऽकनिष्ठासः सं भ्रातरो वावृधु सौभगाय’’

इस वेद वाक्य का आशय यही है कि हम सब प्रभु की सन्तान एक दूसरे के भाई-भाई हैं। हममें न कोई छोटा है और न बड़ा। यह एक उत्कृष्ट सामाजिक भावना है। इसी भावना के बल पर ही तो भारतीय समाज संसार में सबसे पहले विकसित और समुन्नत हुआ। इसी भावना के प्रसाद से उसके व्यक्तियों ने संसार में सभ्यता का प्रकाश फैलाने का श्रेय पाया है और इसी बन्धुत्व की भावना के आधार पर वह जगद्गुरु की पदवी पर पहुंचा है।

इसके विपरीत जब से भारतीय समाज की यह वैदिक भावना क्षीण हो गई वह पतन की ओर फिसलने लगा और यहां तक फिसलता गया कि आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक गुलामी तक भोगनी पड़ी है। किन्तु अब वह समय फिर आ गया है कि भारतीय समाज अपनी प्राचीन बन्धु-भावना को समझे, उसे पुनः अपनाये और आज के अशान्त संसार में अपने वैदिक आदर्श की प्रतिष्ठा द्वारा शान्ति की स्थापना का पावन प्रयत्न करे।

शाश्वत सिद्धान्त है कि दूसरों को उपदेश देने और मार्ग दिखलाने का वही सच्चा अधिकारी होता है जिसका आचरण स्वयं उसके आदर्श के अनुरूप हो। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि पहले हम अपनी भावनाओं और व्यवहार में सुधार करें, उसमें पारस्परिक भाईचारे का समावेश करें और तब संसार के सामने वसुधैव-कुटुम्बकं का आदेश उपस्थित करें। इस सुधार को सरल बनाने के लिए सबसे पहले व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध समझ लेना होगा। एक के विचारों और कार्यों का दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ता है यह जान लेना होगा।

समाज की उन्नति पर ही व्यक्ति की भी उन्नति निर्भर है। समाज से परे अथवा प्रथक रहकर व्यक्तिगत उन्नति किसी के लिए भी सम्भव नहीं। जीवन में निवास करने के लिए कुछ साधन, कुछ परिस्थितियां और कुछ सहयोग अपेक्षित होता है। यह सब सुविधाएं समाज में समाज द्वारा ही प्राप्त होती हैं। एक अकेला व्यक्ति न तो इन्हें उत्पन्न कर सकता है और न इनका उपयोग। इनके लिये उसे समाज पर ही निर्भर होना होगा। विभिन्न शिक्षण संस्थाएं, उनमें कार्य करने वाले व्यक्ति, जीवन-निर्वाह के साधन, ज्ञान-विज्ञान की सुविधाएं, अन्वेषण, आविष्कार, व्यापार, व्यवसाय, अनुभव और अनुभूतियां आदि मानव-विकास के जो भी साधन माने गये हैं उनकी उत्पत्ति समाज के सामूहिक प्रयत्नों द्वारा ही होती है। किसी का मस्तिष्क काम करता है तो किसी के हाथ-पांव, किसी का धन सहयोग करता है तो किसी का साहस। इस प्रकार जब पूरा समाज एक गति और एक मति होकर अभियान करता है तभी व्यक्ति और समूह दोनों के लिए कल्याण के द्वार खुलते चले जाते हैं। एक अकेला व्यक्ति संसार में कभी कुछ नहीं कर सकता।

समाज से प्रथक रहकर अथवा समाज के सहयोग के बिना व्यक्ति एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। कोई विशेष प्रगति कर सकना तो दूर इस पारस्परिकता के अभाव में जीवन ही संदिग्ध हो जाए। जीवन की सुरक्षा और उसका अस्तित्व समाज के साथ ही सम्भव है। समाज की शक्ति का सहारा पाकर ही हमारी व्यक्तिगत क्षमताएं एवं योग्यताएं प्रस्फुटित होकर उपयोगी बन पाती हैं। यदि हमारे गुणों और शक्तियों को समाज का सहारा न मिले तो वे निष्क्रिय रहकर बेकार चली जाएं। उनका लाभ तो तब स्वयं हमको ही हो और न समाज को। सच्ची बात तो यह है कि व्यक्तिगत जीवन नाम की कोई वस्तु ही संसार में नहीं है। हम सब व्यक्ति रूप में दीखते हुए दीखते हुए भी समष्टि रूप में जीते हैं। व्यक्तिवाद को त्याग कर समष्टिगत जीवन को महत्व देना ही हम सबके लिये हितकर तथा कल्याणकारी है। समष्टिगत जीवन और समूहगत उन्नति ही हमारा ध्येय होना चाहिए। उसी को विकसित एवं शक्तिशाली बनाने में अपनी शक्ति प्रतिभा, योग्यता एवं सम्पदा लगाएं। हमारे भोग द्वारा हमारा समाज जितना-जितना उन्नत, विकसित और शक्तिशाली बनता जाएगा उसी अनुपात से हमारा व्यक्तिगत जीवन भी चढ़ता जाएगा।

समाज की शक्ति ही व्यक्ति की वास्तविक शक्ति मानी गई है। व्यक्ति का एक अकेला शक्तिशाली होगा कोई अर्थ नहीं रखता। समाज जब समग्र रूप से निर्बल हो जाता है तो उस पर सामूहिक संकटों का सूत्रपात होने लगता है। उस सामूहिक संकट से व्यक्तिगत रक्षा कर सकना सम्भव नहीं होता। निर्बल समाज पर जब बाहरी आक्रमण होता है अथवा कोई संक्रामक रोग फैलता है तब व्यक्ति उससे अपनी रक्षा करने में सफल नहीं हो पाता फिर वह अपने आप में कितना ही शक्ति एवं स्वास्थ्यशाली क्यों न हो। ऐसी समूहगत संक्रान्ति से सामूहिक रूप से ही रक्षा संभव हो पाती है। समाज की शक्ति ही व्यक्ति की वास्तविक शक्ति है। इस सत्य को कभी भी न भूलना चाहिए। अपनी शक्ति का उपयोग एवं प्रयोग भी इसी दृष्टि से करना चाहिए जिससे हमारी व्यक्तिगत शक्ति भी समाज की शक्ति बने और उलट कर वह व्यापक शक्ति हमारे लिए हितकारी बन सके।

समाज को शक्तिशाली बनाने के लिए हमें चाहिए कि हम अपने समग्र व्यक्तित्व को उसमें ही समाहित कर दें। जो कुछ सोचे समाज को सामने रखकर सोचे, जो कुछ करें समाज के हित के लिए करें। यदि हम ऐसी समष्टि प्रधान चेतन को स्थान नहीं देते और अपने व्यक्तित्व की सत्ता को अलग कल्पना कर उसी तक सीमित रहते हैं तो एक प्रकार से समाज को निर्बल बनाने की गलती करते हैं। हमारी यह अहंकार पूर्ण भावना समाज विरोधी कार्य होगा। इसका कुप्रभाव समाज पर पड़ेगा वह तो पड़ेगा ही हम स्वयं भी इस असहयोग से अछूत न रह सकेंगे। हमारा यह सामाजिक पाप प्रकाश में आ जायेगा और तब हमको पूरे समाज के आक्रोश तथा असहयोग्य का लक्ष्य बनना पड़ेगा। हम जैसा करेंगे वैसा भरना होगा। इस न्याय से बच सकना सम्भव नहीं।

इस संकीर्ण मनोवृत्ति का कुप्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व पर एक प्रकार से और भी पड़ता है। वह है उसका मानसिक पतन। ऐसे असामाजिक वृत्ति के लोगों का अन्तर आलोकहीन होकर दरिद्री बन जाता है। उसके सोचने और समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। उसकी क्षमताओं, योग्यताओं और विशेषताओं का कोई मूल्य नहीं रहता। असामाजिक भाव वाले व्यक्तियों की शक्ति को समाज अपने लिए एक खतरा समझने लगता है और कोशिश करता है कि वे जहां की तहां निष्क्रिय एवं कुण्ठित होकर पड़ी रहें। उन्हें विकसित अथवा सक्रिय होने का अवसर न मिले। ऐसे प्रतिबन्धों के बीच कोई असहयोगी व्यक्ति अपना कोई विकास कर सकता है—यह सर्वथा असम्भव है। समाज के निषेध से जहां व्यक्ति की असाधारण शक्ति भी सीमित और वृथा बन जाती है वहां समाज में समाहित होकर किसी की न्यून एवं साधारण शक्ति भी व्यापक और असाधारण बन जाती है। अपनी एक शक्ति समाज के साथ संयोजित कर व्यक्ति असंख्य शक्तियों का स्वामी बन सकता है।

समाज को अपनी शक्ति सौंपकर उसकी विशाल शक्ति को अपनाने के लिए हमें चाहिए कि हम अपने भीतर सामूहिक भावना का विकास करें। हमारा दृष्टिकोण जीवन के क्षेत्र में अपने पर से प्रेरित न होकर समाज की मंगल भावना से प्रेरित हो। हम अपना कदम उठाने से पूर्व अच्छी तरह यह सोचलें कि इस प्रकार समाज पर क्या असर पड़ेगा। यदि हमें अपने उस कदम में समाज का जरा भी अहित दिखलाई दे तो तुरन्त ही उसे स्थगित कर देना चाहिए। हमारे लिए वे सारे प्रयत्न त्याज्य होने चाहिए जिनमें व्यक्तिगत लाभ भले ही दीखता हो उनसे समाज का कोई अहित होने की सम्भावना हो।

संचय, संग्रह, मुनाफाखोरी, शोषण, झूठा और प्रपंच आदि ऐसे निकृष्ट प्रयत्न हैं जिनमें लोभी तथा स्वार्थी व्यक्ति को अपना लाभ दिखलाई दे सकता है, किन्तु इनसे समाज को बड़ी क्षति पहुंचती है। इसीलिए इन सब कार्यों को भ्रष्टाचार की संज्ञा दी गई है। ऐसे भ्रष्टाचार पूर्ण कार्य किसी भी सामाजिक एवं सज्जन व्यक्ति को शोभा नहीं देते वे सर्वथा त्याज्य एवं अग्राह्य ही हैं। समाज में जहां अन्य लोगों को पेट भरने के लिए रोटी न मिले वहां हम अपने भण्डारों में अन्न संग्रह करते रहें। जहां लोग नंगे और निराश्रय होकर फुटपाथों पर रात व्यतीत करें वहां हम यदि हीटरों से गर्म कोठियों में बैठकर आमोद प्रमोद का आनन्द लेते हैं तो हम एक असामाजिक व्यक्ति हैं, समाज के अपराधी और उसके दण्ड के भागीदार हैं। यह न केवल सामाजिक अपराध ही है बल्कि आध्यात्मिक पाप भी है। ऐसे असामाजिक स्वार्थी और कठोर व्यक्तियों को ही असुर और अमानव कहकर पुकारा गया है।

समाज की शक्ति, उसकी रक्षा और उसकी उन्नति ही व्यक्ति की शक्ति, रक्षा और उन्नति है। समाज से भिन्न व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। यदि व्यक्तिवाद से प्रभावित कोई व्यक्ति स्वार्थ और लोभ को पूरा करने के लिए आज समाज का शोषण कर सम्पन्न बन जाता है तो निश्चय ही कल उसकी यह कुसम्पन्नता उसके लिए संकट का कारण बन जायेगी। समाज उसका असहयोग करेगा, दुष्ट लोग उसे सताएंगे और तब वह एकाकी अपनी रक्षा न कर सकेगा। व्यक्ति की वास्तविक शक्ति समाज की शक्ति है, समाज के हित में ही उसका हित है इसलिये आवश्यक है कि व्यक्ति को पीछे रखकर जीवन के हर क्षेत्र में सामाजिक दृष्टि को ही आगे रखा जाए।


First 11 13 Last


Other Version of this book



हम बदलें तो दुनिया बदले
Type: TEXT
Language: HINDI
...

हम बदलें तो दुनिया बदले
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • युग परिवर्तन और उसकी संभावनाएं
  • इस विषम वेला में हमारा महान् उत्तरदायित्व
  • परिवर्तन का केन्द्र विन्दु—सद्ज्ञान
  • असुरता से देवत्व की ओर
  • सामाजिक प्रगति का एकमात्र आधार
  • यह सत्यानाशी सामाजिक कुरीतियां
  • सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन
  • हमारा समाज असभ्य एवं अविवेकी न हो?
  • सभ्य समाज का स्वरूप और आधार
  • समाज को शक्तिशाली बनावें
  • लोक-मानस की शुद्धि कौन करेगा?
  • समाज सुधार के लिए प्रबुद्ध वर्ग आगे बढ़े
  • सबकी उन्नति में अपनी उन्नति
  • देश के लिए—समाज के लिए
  • मानव-जाति की समस्याएं इस तरह सुलझेंगी
  • आत्म-सुधार-विश्व-कल्याण का सबसे सरल मार्ग
  • सेवा हमारी जीवन नीति बने
  • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है
  • व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदण्ड बदलें
  • धर्म को सम्मानित न किया जाय
  • नागरिकता और नैतिकता की आधारशिला
  • सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन न हो
  • व्यवहार कुशलता की आध्यात्मिक पृष्ठभूमियां
  • विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
  • अनुशासन का उल्लंघन न करें
  • मंगल सोचिए, मंगर करिए
  • पहले हम मनुष्य बनें, पीछे कुछ और
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj