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Books - राष्ट्र समर्थ और सशक्त कैसे बनें?

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राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में आपका योगदान

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आज चारों और चारित्रिक और सामाजिक दृष्टि से क्षोभ और निराशा का वातावरण दिखाई देता है। हम और आप सभी इस वातावरण को बदलना चाहते हैं, परंतु इस कार्य में अपने को असमर्थ पाते हैं। इन समस्त दुःखद परिस्थितियों के लिए हम सरकार को, समाज को और अन्य जनों को दोष देते हैं, हम भूलकर भी अपने दिल को नहीं खोजते। हम कभी भी यह नहीं सोचते कि इन दूषित परिस्थितियों को उत्पन्न करने में हमारा क्या योगदान है? यदि एक बार आप अपने विचारों और कार्यों का मूल्यांकन करने लगें, तो आपकी समझ में तुरंत आ जायेगा कि, दूसरों को दोष देना व्यर्थ है। स्वयं अपने में कुछ दोष हैं, उन्हें यदि निकाल दिया जाए तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं। यदि आप अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने लगें, तो आप एक सही दिशा की ओर चलने लगेंगे। यह न सोचें कि ‘अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा?’ बहुत से लोग अपना काम इसलिए ठीक से नहीं करते कि वे अन्य कर्तव्यहीन जनों के कृत्यों को देखकर सोचते हैं कि जब सभी लोग ईमानदारी से काम नहीं करते, तो हमारी ईमानदारी से क्या लाभ होगा?

आप यह निश्चित रूप से जान लें कि आपकी अकेली ईमानदारी में बहुत बड़ा बल है। हां, वह ईमानदारी पत्थर की चट्टान की तरह दृढ़ और अभेद्य होनी चाहिए। एक व्यक्ति में कितनी शक्ति होती है, इसे समझना है तो राम, कृष्ण, गौतम, ईसा, मोहम्मद और गांधी की शक्ति को देखिए। अपने चारों ओर की प्रतिकूल परिस्थितियों की परवाह न करके ये लोग अकेले ईमानदारी के साथ कर्तव्यपरायण हुए, फलस्वरूप उनका अनुगमन करने वाले अनेक बन गये, सारी दुनिया बदल गयी। तालाब के निश्चल जल में एक ही कंकड़ फेंका जाता है, परंतु उसके प्रभाव से उठने वाली असंख्य तरंगें, जल की सतह पर उठने लगती हैं। उसी प्रकार अकेले आपके ईमानदार होने से, घर में पास-पड़ौस में, व्यवसाय में और सभी क्षेत्रों में जहां आप प्रवेश करते हैं वहीं, कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य होता है।

आप अपने घर के एक सदस्य हैं। यदि परिवार में आप सबसे बड़े हैं, आप उस छोटे से समाज के ‘प्रमुख’ या ‘प्रधान’ हैं, तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं। अपने आश्रितजनों के साथ निष्पक्ष और निष्कपट व्यवहार करके आप सबका जीवन सुखी बना सकते हैं। सबके लिए उचित साधन जुटाकर सबको उन्नति करने का समान अवसर दे सकते हैं। बच्चों और युवकों को (जो आपके परिवार के हैं) उनकी शिक्षा के विषय में उचित परामर्श और पथ प्रदर्शन दे सकते हैं। परिवार एक प्रकार की नर्सरी है। जैसे नर्सरी में फूलों के पौधे उगाये जाते हैं और बड़े होने पर वही पौधे बंगलों और उद्यानों की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार परिवार में जो बच्चे जन्म लेते हैं, पलते हैं और शिक्षा पाकर बड़े होते हैं, वही आगे चलकर देश के उत्तर नागरिक बनते हैं, जिनकी कार्य कुशलता ईमानदारी और कर्तव्यपालन पर देश का भाग्य निर्भर होता है। सच पूछिये तो आप इस राष्ट्र की शानदार इमारत की ईंट तैयार करते हैं।

आज हमारे परिवारों की दशा बहुत गिरी हुई है। गरीबी और उत्तम सांस्कृतिक वातावरण की कमी के कारण, पारिवारिक जीवन दूषित होता चला जा रहा है। उसी के कारण मनुष्य में स्वार्थपरता, व्यक्तिगत सुख की होड़ के भाव प्रबल हो जाते हैं, जिससे सामाजिक जीवन को क्षति पहुंचती है। इन दूषित प्रवृत्तियों को नष्ट करने के लिए कानून नहीं बनाये जा सकते और यदि बनाये जा सकते और यदि बनाये भी जायें, तो इससे कोई लाभ नहीं होगा। हम देखते हैं कि हमारे देश में कानून बनते हैं, परंतु उनसे जो सुधर होने चाहिए, नहीं हो पाते। एक ओर कानून बनता है और दूसरी ओर कानून का उल्लंघन करने के उपाय लोग निकाल लेते हैं। राष्ट्रीय चरित्र कानूनों की सहायता से नहीं सुधारा जा सकता। उसका बनाना हमारे हाथ में है। यदि हर एक व्यक्ति अपना सुधार कर ले तो सारा देश अपने आप सुधर जायगा।

सामाजिक जीवन आदान-प्रदान की नींव पर खड़ा होता है। हमको दूसरों से सुख-सुविधाएं मिलती हैं और हम दूसरों को सुख-सुविधाएं पहुंचाते हैं, तभी सामाजिक जीवन कायदे से चलता है और सुख की वृद्धि होती है। सामाजिक जीवन के क्रम को भंग न होने देना हमारे हाथ की बात है। इस समय एक बहुत बड़ी कठिनाई यह उपस्थित है कि हम और आप तमाम सुख-सुविधाएं पाना चाहते हैं, परंतु दूसरों को अपनी ओर से सुख-सुविधाएं देना नहीं चाहते। हम ‘आदान’ चाहते हैं, परंतु ‘प्रदान’ नहीं। जहां प्रदान नहीं होता, वहां आदान केवल थोड़े दिन चलता है। अपनी ओर से प्रदान का क्रम भंग होते ही, दूसरे लोगों का आदान नहीं प्राप्त होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक जीवन की विकास और विनाश की कुंजी आपके ही हाथ में है। आप उसका प्रयोग करके बहुत कुछ समाज का उपकार कर सकते हैं। समाज के प्रति आपका जो भी ‘देय’ है, निष्ठापूर्वक दीजिए, आपका जो भी उत्तरदायित्व है, उसे पूरा करिए।

इसी प्रकार समाज में व्याप्त अनेक दोषों को नष्ट कर सकते हैं। होता यह है कि आप अनेक सामाजिक बुराइयों को या तो स्वार्थवश दूर नहीं करते या कायरतावश उनकी ओर से उदासीन रहते हैं। आपके पास-पड़ौस में कोई दुष्ट तथा अपराधी-प्रवृत्ति का व्यक्ति रहता है, तो आप साहसपूर्वक उसका विरोध नहीं करते और कभी-कभी तो स्वार्थवश उसके साथ सहयोग करने लगते हैं। ऐसी दशा में अपराध का उन्मूलन नहीं हो सकता। वास्तव में अपराधों के बढ़ाने में आप सहायक होते हैं। आपके पास-पड़ौस में यदि गंदगी है, छूत की बीमारियां फैलती हैं, फिर भी आप सफाई की आर न तो स्वयं ध्यान देते हैं और न दूसरों का ध्यान आकर्षित करते हैं। हमारे देश में अभी काफी अज्ञानता है। पास-पड़ौस में यदि आप पढ़े-लिखे हैं, तो निरक्षर जनों तक कुछ ज्ञान का प्रकाश फैलाइए। मुहल्लों में सवेरे म्यूनिसपैलटी के कर्मचारी गलियों की सफाई कर जाते हैं, नालियां धो दी जाती हैं, परंतु आपके घर की स्त्रियां और पास-पड़ौस के अशिक्षितजन अपने बच्चों से नालियों में मल-मूत्र त्याग कराते हैं, घर का तमाम कूड़ा-कचरा बाहर गली में ढेर कर देते हैं। आपके पास में सार्वजनिक नल लगा है। वह खुला पड़ा रहता है और पानी नष्ट हुआ करता है, इससे राष्ट्रीय धन का अपव्यय होता है, साथ ही नमी फैलती है। यह सब छोटी-छोटी बातें बड़े महत्त्व की हैं। केवल इन छोटी-मोटी बातों की ओर ध्यान न देने से राष्ट्र के अपार धन की क्षति होती है।

अब आप अपने व्यवसाय की बात लीजिए। हमारे देश में प्रायः व्यवसाय के प्रति लोगों का दृष्टिकोण स्वस्थ नहीं है। आप चाहे नौकरी करें, मजदूरी या दुकानदारी, उसमें अधिक से अधिक लाभ उठाने की चेष्टा करते हैं। आप यह भूल जाते हैं कि अनुचित मुनाफागिरी के कारण आपके व्यवसाय से लाभ उठाने वाले उपभोक्ताओं पर क्या प्रभाव पड़ता है? हम सभी युद्धकालीन ‘काला बाजार’ से परिचित हैं। व्यापारी वर्ग अपनी वस्तुओं को बेचकर उचित नफा उठाने के साथ-साथ और भी अधिक अनुचित लाभ लेना चाहता है। व्यापारी को अपने परिश्रम का उचित लाभ उठाने का हक है, परंतु दूसरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना भी उसका कर्तव्य है।

यदि आप सरकारी कर्मचारी हैं, तो आपको अपने पद के अनुकूल कर्तव्य का निर्वाह करना है। अधिकारी और कर्मचारी वर्ग भी अपने पेशे में ईमानदार नहीं रहे। मुनाफाखोरी करने वालों के प्रलोभनों से उन्हें बचना चाहिये। अधिकारी होने के नाते, वे उपभोक्ता जनता के संरक्षक हैं। स्वार्थ के लिये न्याय की हत्या करके किन्हीं को अनुचित अवसर प्रदान करना उनके लिए निश्चित रूप से लज्जास्पद है। मजदूर वर्ग को भी अपने पेशे में ईमानदार रहना चाहिए। यदि आप मजदूर हैं, तो आप जिस कारखाने में काम करते हैं, वहां अपने काम की उत्तमता बढ़ावें, उत्पादन की मात्रा बढ़ावें। ऐसा करने से ही राष्ट्रीय आय बढ़ेगी और आपकी भी आय साथ में बढ़ेगी।

उपर्युक्त कुछ उदाहरणों से स्पष्ट है कि देश और समाज का भविष्य हमारे-आपके हाथों में हैं। हम अनेक बुराइयों को दूर करने का बोझ स्वयं स्वीकार करें और सरकार का मुंह न ताकें। तभी उन्नति की दिशा में हम अग्रसर हो सकते हैं।

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